कचराघर में चिढ़ाने वाले जाल पृष्ठ का पता दिया गया था. पर, यह क्या बात हुई. हिन्दी के कचराघर में अंग्रेज़ी के जालपृष्ठ का पता. लीजिए हिन्दी ...
कचराघर में चिढ़ाने वाले जाल पृष्ठ का पता दिया गया था. पर, यह क्या बात हुई. हिन्दी के कचराघर में अंग्रेज़ी के जालपृष्ठ का पता. लीजिए हिन्दी का भरपूर चिढ़ाने वाला जालपृष्ठ का पता. यहाँ जाइए, भरपूर चिढ़िये.
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प्रिंट मीडिया के लोग अभी भी इंटरनेट पर हिन्दी के जाल पृष्ठों को देखकर आश्चर्यचकित और चमत्कृत होते रहते हैं. किशोरों की पत्रिका सुमन-सौरभ के मई-06 कम्प्यूटर विशेषांक में पूरे एक पृष्ठ पर हिन्दी जाल पृष्ठों के बारे में बताया गया है. चिट्ठा विश्व, देवनागरी.नेट तथा अभिव्यक्ति के बारे में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है. पर चिट्ठा विश्व के यूआरएल में चिड़िया (~) को वे खा गए हैं, अतः पता गलत दर्ज हो गया है. स्कैन किए पृष्ठ को मूल आकार में यहाँ देखें.
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1. 9 जून से लेकर 9 जुलाई 2006 तक आपको अख़बार के खेल पृष्ठों को ध्यान से पढ़ते रहना होगा ताकि विश्वकप में क्या चल रहा है इसकी जानकारी आपको रहे और आप अपने पति के साथ वार्तालाप (या आप चाहती हैं कि आपके पति आपके साथ कुछ वार्तालाप करें तो) में शामिल हो सकें. यदि आपने इस टीप को अनदेखा किया और विश्वकप के बारे में पर्याप्त जानकारियाँ हासिल न कीं, तो आपके साथ बहुत बुरा होगा, आपके पति आपको अनदेखा करेंगे तब फिर आप यह शिकायत न करिएगा कि आपके पति आपसे बात ही नहीं करते. 2. विश्वकप के दौरान, टीवी पर पति का पूर्ण अधिकार रहेगा. बिना किसी अपवाद के, सारे समय. यदि आपने टीवी के रिमोट कंट्रोल की तरफ नजर भी डाली तो आप उसे खो सकती हैं (अपनी नजर). 3. यदि आप खेल के दौरान टीवी के सामने से गुजरती हैं तो ध्यान रखिए कि आप झुककर या रेंगते हुए गुजरें - यानी देखने में बिना किसी व्यवधान डाले गुजरें. उत्तम तो यह होगा कि आप किसी व्यवसायिक अंतराल का इंतजार कर लें या फिर इस दौरान सामने से गुजरें ही नहीं. 4. खेलों के दौरान आपके पति अंधे, बहरे और गूंगे हो जाएँगे, जब तक कि खेल के उत्तेजक क्षणों में उन्हें अचानक भूख और प्यास का दौरा न पड़ जाए. ऐसे में आप निरी बेवकूफ ही होंगी जो यह सोचेंगी कि आपके पतिदेव किसी के आने पर दरवाजा खोल सकते हैं, टेलिफोन उठाकर जवाब दे सकते हैं या आपकी किसी बात का जवाब दे सकते हैं. 5. यह उत्तम होगा कि इस दौरान आप फ्रिज को खाने-पीने की चीज़ों से पूरा का पूरा भर कर रखें. खासतौर पर ऐसी चीजों से जिन्हें मैच देखते देखते चबाया-चुभलाया जा सके. और आपके पति के दोस्तों के मैच देखने के लिए कुसमय घर आने पर कुपित तो कतई मत होइए. मैच देखने का आनंद जितनी संख्या में मित्र साथ होते हैं उतना गुना बढ़ जाता है – और, यह बात आपको भी पता होना चाहिए. आपकी इस दयालुता के बदले हो सकता है कि आपके पतिदेव आपको दोपहर में टीवी देखने दे सकते हैं बशर्ते उस समय किसी छूटे खेल का कोई पुनर्प्रसारण नहीं हो रहा हो. 6. प्लीज़, प्लीज़, प्लीज़!! यदि आपके पति की प्रिय टीम हार रही हो तो कभी भी अपने पति से यह न कहें कि “कोई बात नहीं, खेल में तो हार जीत लगी ही रहती है” या “कोई बात नहीं, लीग के अगले मैच में तो वे जीतेंगे ही”. ऐसी बातें कह कर आप अपने पति की नाराजी, अप्रसन्नता और खराब मूड को बढ़ाएंगी ही, और इसके प्रतिफल में आपके प्रति उनके मन में प्यार में कमी भी हो सकती है. यह याद रखिए की फ़ुटबाल के बारे में आप उनसे ज्यादा न तो जानती हैं, न कभी जान सकती हैं. अतः इस तरह के सांत्वना भरे शब्द हो सकता है कि बाद में तलाक के ‘कारण’ भी न बन जाएँ. 7. पूरे विश्वकप के दौरान आप अपने पति के साथ बैठकर कोई एक (1) मैच देख सकती हैं. और अगर आपके पति की पसंदीदा टीम जीत रही हो तो आप उनसे इस दौरान कुछ वार्तालाप भी कर सकती हैं जैसे कि गोल होने पर हुर्रे... वाह क्या बढ़िया गोल किया है... वगैरह. परंतु वह भी हाफ़टाइम से पहले तक. 8. आपके पति, इस दौरान हो सकता है कि सारा समय घर पर टीवी के साथ ही रहें, मगर इसे आप यह बिलकुल न समझें कि वे आपके साथ कुछ समय बिताएँगे. वे सशरीर आपके बगल में होंगे, परंतु उनकी आत्मा फुटबाल के मैदान में विचर रही होगी. आपको उनकी आत्मा और शरीर के बीच में व्यवधान बनने की कतई कोशिश नहीं करनी चाहिए. 9. गोल खाने व गोल बचाने के रीप्ले खेलों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं. भले ही वे कई बार, कई एंगल से पहले ही देखे-दिखाए जा चुके होते हैं, मगर उन्हें आपके पति हर बार, बार बार, प्रत्येक बार देखना चाहेंगे. इस बारे में आपके द्वारा की गई कोई भी टीप उन्हें असहनीय होगी. 10. अपने दोस्तों रिश्तेदारों से यह बोल बताकर रखिए कि इस दौरान वे कोई सामाजिक कार्यक्रम और पार्टी शार्टी न रखें क्योंकि ऐसे किसी भी कार्यक्रम में: a) आपके पति नहीं जाएंगे, b) आपके पति नहीं ही जाएंगे तथा c) आपके पति किसी सूरत नहीं जाएंगे. 11. परंतु यदि आपके पति के कोई मित्र उन्हें कोई मैच देखने के लिए किसी रविवार अपने घर पर सपरिवार आमंत्रित करता है तो वे आपकी सहमति के बिना आपको भी लेकर वहाँ तुरंत जाएंगे. अतः ऐसी स्थिति के लिए पहले से ही तैयार रहिए. 12. प्रत्येक रात्रि को विश्वकप के सारांश भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जितने कि खेले गए मैच. मैच का विशेषज्ञों द्वारा विश्लेषण-विवेचन मैच से भी ज्यादा आनंददायी होता है अतः यह कभी न कहें कि आपने मैच तो पहले ही देख रखा है, अभी कोई दूसरा प्रोग्राम देख लेते हैं. हो सकता है कि टीप क्रमांक 2 में दिए अनुसार आपके साथ कोई विकराल समस्या पैदा हो जाए. 13. और, अंत में कृपा कर यह कभी न कहें कि – शुक्र है कि विश्वकप चार साल में एक बार ही आता है. आपके पति पर इन शब्दों का कोई असर नहीं होगा. क्योंकि आगे आने वाले दिनों में चैंपियन लीग, इटालियन लीग, क्रिकेट विश्वकप इत्यादि इत्यादि आने वाले हैं. (इंटरनेट पर विचर रहे ईमेल फ़ॉरवर्ड का हिन्दी तर्जुमा)
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हिमेश रेशमिया का रीमिक्स या नक़ल किया संगीत आप भूल जाएंगे. गारंटीड. जब आप पश्चिम के गायकों (साधकों) से पूर्व के भजनों को पूरी तन्मयता से गवाएंगे तो जो संगीत बनेगा वह क्या होगा? वही तो असली रीमिक्स होगा. बाकी तो सब नक़ली संगीत. ये दो भजन डाउनलोड कर सुनें. है न असली संगीत – असली रीमिक्स संगीत. (गुणवत्ता के साथ फ़ाइल आकार छोटा बनाए रखने हेतु फ़ाइल डबल्यूएमए फ़ॉर्मेट में रेकॉर्ड किया है. भजन – श्री साईं ग्लोबल हार्मनी रेडियो के सौजन्य से.) भजन 1 (1.5 मेबा) भजन 2 (5 मेबा) (पुनश्च: इन भजनों से यह कयास न लगाएँ कि मैं भजन भजते रहता हूँ. वह तो पुरानी रेडियोडिक्सिंग की आदत के कारण अचानक रामा रामा क्रष्णा क्रष्णा सुनाई दिया जो वास्तव में कर्णप्रिय लगा...) 88888888888 राजनीति में राजनीति **-** राजनीति सचमुच एक गंदा शब्द हो गया है. अत्यंत गंदा. बदबूदार और सड़ता हुआ. अब देखिए कि इसका नाम आते ही अनुगूंज और चिट्ठाकारो में सीनियर-जूनियर का लफड़ा पैदा हो गया. अब कोई बताए कि चिट्ठाकारों में कोई सीनियर जूनियर है भी? चिट्ठाकारों का जाति-धर्म है भी? चिट्ठाकार अपने विचारों में भिन्न हो सकते हैं, मानव के रुप में कभी नहीं. उनमें कभी कोई किसी प्रकार का लेबल नहीं लग सकता. क्या राजनीति सचमुच इतनी गंदी हो चुकी है? हाँ, राजनीति सचमुच अत्यंत गंदी हो चुकी है. बुश हों या मुश (मुशर्रफ) अर्जुन हों या आडवाणी – राजनेता कोई भी हों, कहीं से भी हों, राजनीति के गंदे खेल खेलने में लगे रहते हैं. भारत में अर्जुन जाति के तीर चलाते हैं तो अमरीका में बुश समलैंगिक बाण चलाने की कोशिशें करते दीखते हैं. राजनीतिज्ञों का सपना उनके स्वयं के, और बहुत हुआ तो अपनी पार्टी के तात्कालिक लाभ को लेकर होता है – उन्हें अपने देश या समाज के लाभ और उन्नति से कोई लेना देना नहीं होता. राजनीति के गंदेपन का एक बढ़िया उदाहरण – पिछली सरकार में ऊर्जा मंत्री थे – सुरेश प्रभु. शिवसेना से सम्बद्ध थे. उन्होंने समूचे भारत में ऊर्जा सुधारों में तीव्रता लाने के लिए बढ़िया काम करने की कोशिशें कीं. पर शिवसेना सुप्रीमो को उनकी कुछ कोशिशें नागवार गुजरीं. प्रभु ने जताया कि ये ऊर्जा सुधार भारत की खुशहाली और लाभ के लिए हैं. सुप्रीमो ने उन्हें राजनीति सिखाई – काम भारत के लिए नहीं शिवसेना की खुशहाली और लाभ के लिए करो. कल शिवसेना नहीं रहेगी तो तुम भी नहीं रहोगे. अंततः प्रभु को ऊर्जा मंत्रालय का बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. राजनीति में आपको ऐसे सैकड़ों-हजारों उदाहरण हर कहीं मिल जाएंगे. **-** व्यंज़ल जिन्होंने खेली है राजनीति में राजनीति उन्हें ये भ्रम है कि है प्यार में राजनीति ये वक्त है, बचते फिरोगे कहाँ तक मित्र तुझे मिलेगी दर-ओ-दीवार में राजनीति कल तक तो हमारे पास भी था आशियाँ सभी ने तो की उसके ढहाने में राजनीति सूक्ष्मता से छानबीन करोगे दोस्त, तो पाओगे हर झगड़े की जड़ में राजनीति पहले नकारा ही गया था चहुँ ओर रवि फिर अपनाया उसने जीवन में राजनीति **-** 88888888888
रतलाम के दुकानदारों ने व्यापार व्यवसाय में तरक्की का नया फंडा निकाला है. वे अपनी दुकान में गर्दभदेव की तसवीर लगा रहे हैं. व्यापारियों का कहना है कि उनके व्यापार व्यवसाय में गर्दभदेव के कारण दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है. जय गर्दभ महाराज! तरक्की का यह नया फंडा आपको कैसा लगा? बीसेक साल पहले की घटना याद आ रही है. रायपुर में बंजारी बाजार है. वहाँ की एक गली में एक दुकान के आहाते में एक विक्षिप्त ने अपना डेरा जमा रखा था. कोई उसे खाने पीने की चीजें दे देता तो कोई उसे कुछ कपड़े. बहुत जल्दी ही वह बंजारी वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो चला. लोगों में यह फैल गया कि अगर वह आपको गाली दे दे या आपकी दी वस्तु को लेकर कुछ खाए और बाकी फेंक दे तो आपके ऊपर सौभाग्य की बरसात होगी. लोग धूप बरसात में घंटों समोसे-बिस्किट-चाय-कपड़े इत्यादि न जाने क्या क्या लेकर खड़े रहते. परंतु बंजारी बाबा का क्रोध उन्हें नहीं मिलता. उस दौरान किसी फोटोग्राफ़र ने उसका किसी एंगल से फोटो खींचा और दो चार प्रति यूँ ही बांट दी. देखते ही देखते रायपुर तथा आसपास के सैकड़ों दुकानों जिनमें पानठेले प्रमुख थे, बंजारी बाबा के फोटो लग गए. उनका मानना था बाबा की फोटो लगाने से व्यापार में तरक्की होती है. बाबा की मृत्यु पश्चात वहाँ एक स्मारक भी बनाया गया है जहाँ व्यापार व्यवसाय में वृद्धि चाहने वालों की भीड़ लगी रहती है. एक और घटना याद आ रही है. मेरे एक परिचित इलेक्ट्रॉनिक सामानों की दूकान चलाते थे. कोई दस साल पहले मध्य प्रदेश में बिजली की प्रचुरता थी, और लोड शेडिंग इत्यादि लोग जानते नहीं थे. पर बिजली विभाग में भयंकर राजनीति की पैठ ने देखते ही देखते बिजली की भयंकर कमी पैदा कर दी. तो उस मित्र को मैंने आइडिया दिया कि इनवर्टर का कारोबार शुरू करे. शुरूआती साल में उसका इनवर्टर का कारोबार मंदा ही रहा. लोग इनवर्टर के बारे में तथा उसकी उपयोगिता के बारे में जानते भी नहीं थे. अगले साल बिजली की भयंकर कमी हो गई. लोड शेडिंग बढ़ गया. इनवर्टर की उपयोगिता लोग समझने लगे. उस मित्र का व्यापार चल निकला. एक दिन मैं उससे मिलने गया तो पता चला कि वह अपने धार्मिक गुरु महाराज की सेवा में गया हुआ है. कई दिनों बाद मैं उससे मिला तो मैंने यूं ही पूछ लिया – धंधा पानी कैसा चल रहा है. उसने बताया – ‘गुरु महाराज’ की कृपा से बहुत बढ़िया. उसने बताया कि गुरु महाराज की कृपा से इसी महीने चालीस इनवर्टर बेचे हैं. मुझे लगा कि उसके गुरु महाराज की कृपा से ही मध्य प्रदेश में बार बार बिजली गुल हो रही है और इनवर्टर का विक्रय हो रहा है. धन्य हैं उनके गुरु महाराज. तो, जब आपके व्यापार-व्यवसाय में ‘बंजारी’ जैसे बाबा, ‘गुरु महाराज’, और यहाँ तक कि ‘गर्दभदेव’ भी जादू कर सकते हैं तो वह हमारे अपने चिट्ठों पर भी चमत्कार करेंगे ही. यही कारण है कि मैंने भी गर्दभदेव का चित्र छींटें और बौछारें में लगा लिया है. उम्मीद करता हूं कि यह इतना ज्यादा लोकप्रिय हो जाए कि गूगल शीघ्र ही इसे मिलियन डॉलर में खरीद ले. इसी उम्मीद में इस तस्वीर की आरती भी गाता हूँ. आप भी साथ दीजिए. जय गर्दभ महाराज! आरती – गर्दभ देव की **-**
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चूहों तक तो ठीक थी, बात में ढकों तक पहुँच गई! शायद इन्हें कॉक्रोच और छिपकलियों के क्रम आने का डर था! 8888888888
जब पुरूष और स्त्री एक दूसरे की भावनाओं का
सोती हुई सरकार... सरकार जब सो रही है तो देश की जनता को तो जाग जाना चाहिए. है कि नहीं? पर नहीं. जनता तो और भी ज्यादा लंबी ताने सो रही है. पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा जब चाहे तब खुले आम झपकी लेते दिखाई देते थे. देवगौड़ा की निद्रा के बारे में मजेदार प्रसंग इंडियन एक्सप्रेस के संपादक शेखर गुप्ता ने किसी मित्र के हवाले से लिखा था – “देवगौड़ा दिन में इस देश के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करते होते हैं. शाम को अपनी पार्टी के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं. रात में वे अपने जिले के कलेक्टर के रूप में काम करते हैं जहाँ से वे चुनकर आए हैं. ऐसे में उन्हें सोने को वक्त ही नहीं मिलता. लिहाजा वे जब चाहे तब जहाँ चाहे वहाँ झपकी निकालते दिखाई देते हैं.” लंबे उबाऊ भाषणों को बेवकूफ़ों की तरह सुनने और सुनकर भयंकर बोरियत में सो जाने के अलावा इन बड़े नेताओं को कोई और प्रॉडक्टिव कार्य क्यों नहीं सूझता? क्यों वे ऐसी जगहों पर जाते हैं – जहाँ कार्यक्रम तय समय से घंटों देरी से प्रारंभ होता है और जहाँ हर कोई घंटे-घंटे भर के अर्थहीन भाषण पेलते हैं. वे क्यों ऐसे नॉन-प्रॉडक्टिव कार्य करते हैं? इतनी देर में तो वे अपने विभाग के सैकड़ों फ़ाइलें निपटा चुके होते. परंतु वे उबाऊ भाषण सुनकर अवांछित निद्रा लाभ लेते रहते हैं. अब तक इस देश में नेताओं ने जितने घंटे भाषण दिए हैं, अगर उतने ही घंटे वे झाड़ू लगाए होते तो भारत का संपूर्ण कचरा कब का साफ हो चुका होता. **-** व्यंज़ल **-** जाने कब से नींद में है सरकार नहीं हो रही क्यों जनता बेकरार दोहराए हैं सियासतों के खेल में वही कहानी वही किस्से हरबार मुद्दतों बाद झपकी आई थी कि किसी हँसी ने कर दिया बेकरार जंग तो जीतेंगे हौसला है बहुत हाथ में है कलम न कि तलवार सोता ही रहा था रवि अब तक मालूम नहीं थे अपने अधिकार **--** **--** 8888888888 कहावत है कि मनुष्य के जीवन में दो चीज़ें अपरिहार्य हैं. एक है मृत्यु और दूसरा है कर (टैक्स). वैज्ञानिक खोजों – ‘मसलन स्टैम सेल उपचार’ इत्यादि से तो हो सकता है कि मनुष्य अपनी पहली अपरिहार्यता – यानी ‘मृत्यु’ को तो भले ही अपने जीवन से दूर कर ले, परंतु टैक्स की अपरिहार्यता वह कभी खत्म नहीं कर पाएगा. अब तो टैक्स की अपरिहार्यता मनुष्य के दैनिक जीवन के प्रत्येक, अकल्पनीय हिस्से में घुस रही है. ब्रिटेन के नीति निर्धारकों ने टैक्स लगाकर धन उगाही करने के लिए नया, नायाब तरीका निकाला है – कू ड़े कचरे पर टैक्स. मुझे आश्चर्य है कि यह तरीका भारत के लोगों ने पहले क्यों नहीं सोचा! यह टैक्स वसूल करने का सर्वोत्तम तरीका हो सकता है और सर्वोत्तम रेवेन्यू जेनरेट करने की श्योर-शॉट शैली भी हो सकती है. वित्त मंत्री चिदम्बरम को एक और बढ़िया क्षेत्र मिला है टैक्स लगाने का – और अब तो वह दावे से कह सकते हैं कि ऐसा टैक्स पश्चिम के देशों ने पहले ही लगा रखा है. भारत में हर आदमी हर कहीं यहाँ वहाँ कूड़ा कचरा फैलाता दीखता है. लोग रोड साइड पान ठेले से पाउच खरीदते हैं, पाउच फाड़ते हैं, अंदर का मसाला मुँह में डालते हैं, खाली पाउच वहीं सड़क पर फेंकते हैं, और चल निकलते हैं. चलते चलते जहाँ मर्जी मुंह के भीतर का लाल पदार्थ थूकते उगलते हैं. अब अगर इन कार्यों को लीगल करार देकर इन पर यदि एक पैसा भी टैक्स लगा दिया जाए तो भारत की बिगड़ती वित्तीय अर्थ व्यवस्था पटरी पर आने में कतई देर नहीं लगेगी. कूड़े कचरे पर टैक्स लगेगा तो क्या होगा – पड़ोसी झगड़ेंगे – मैंने घर के सामने कूड़ा फैलाया है तो क्या हुआ मैं कोई चोरी नहीं करता, मैं कूड़ा टैक्स ईमानदारी से भरता हूँ. कोई दूसरा पड़ोसी प्रतिवाद करेगा – मेरा कूड़ा ज्यादा मात्रा में तथा ज्यादा बदबूदार है तो मैं कूड़ा टैक्स ज्यादा भी तो भरता हूँ. भयंकर प्रदूषण और भारी कूड़ा कचरा फैलाने वाली कंपनियाँ कूड़ा टैक्स भरकर अपनी सामाजिकता, समाजसेवा का ठप्पा लगवा लेंगी. नेताओं को कूड़ा टैक्स जमा करने से छूट रहेगी. वे चाहे जितनी मर्जी, चाहे जितना ज्यादा कूड़ा फैला लें. परंतु यह छूट सिर्फ सत्ता में काबिज रहने वाले नेताओं को मिलेगी. विपक्षी नेताओं को न सिर्फ कूड़ा टैक्स देना पड़ेगा, बल्कि उन्हें उस पर कई तरह के सरचार्ज भी देने होंगे. इसी तरह कुछ जाति विशेष को कम कर में ही ज्यादा कूड़ा फैलाने की इजाजत मिलेगी. जाति के बगैर भारत में कुछ नहीं चल सकता – कूड़ा कर भी नहीं. लोग आयकर, विक्रय कर, वेट इत्यादि के भारी दरों पर हल्ला मचाते हैं कि सरकार को इन्हें कम करना चाहिए. ‘कूड़ा कर’ ऐसा कर होगा जिसे लोगबाग बगैर हल्ला मचाए ईमानदारी से देंगे और चाहे जितना भारी दर हो, हँसी खुशी देंगे – बस उन्हें चाहे जितना कचरा-कूड़ा फैलाने की छूट मिलनी चाहिए होगी. भले ही कानूनन कूड़ा फैलाना गलत हो, जगह जगह लिखा हो कि कूड़ा फैलाना मना है - मैं भी यहाँ वहाँ यत्र तत्र कूड़ा फैलाता रहता हूँ – क्या करूं यहाँ की संस्कृति में रच बस गया हूँ – और असंस्कारी होने का लेबल अपने ऊपर नहीं लगाना चाहता. तो मैं चाहता हूं कि कूड़ा कर यहाँ भी अतिशीघ्र लागू हो जाए. कम से कम कर देकर मुझे इस हीनता से, इस ग्रंथि से मुक्ति तो मिल ही जाएगी कि मैं कूड़ा फैलाकर कोई गलत काम करता हूँ. मैं कूड़ा कर ईमानदारी से और एडवांस में जमा करवाता रहूंगा. मुझे ‘कूड़ा कर’ अध्यादेश का बेसब्री से इंतजार है.
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प्रिंट मीडिया के लोग अभी भी इंटरनेट पर हिन्दी के जाल पृष्ठों को देखकर आश्चर्यचकित और चमत्कृत होते रहते हैं. किशोरों की पत्रिका सुमन-सौरभ के मई-06 कम्प्यूटर विशेषांक में पूरे एक पृष्ठ पर हिन्दी जाल पृष्ठों के बारे में बताया गया है. चिट्ठा विश्व, देवनागरी.नेट तथा अभिव्यक्ति के बारे में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है. पर चिट्ठा विश्व के यूआरएल में चिड़िया (~) को वे खा गए हैं, अतः पता गलत दर्ज हो गया है. स्कैन किए पृष्ठ को मूल आकार में यहाँ देखें.
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1. 9 जून से लेकर 9 जुलाई 2006 तक आपको अख़बार के खेल पृष्ठों को ध्यान से पढ़ते रहना होगा ताकि विश्वकप में क्या चल रहा है इसकी जानकारी आपको रहे और आप अपने पति के साथ वार्तालाप (या आप चाहती हैं कि आपके पति आपके साथ कुछ वार्तालाप करें तो) में शामिल हो सकें. यदि आपने इस टीप को अनदेखा किया और विश्वकप के बारे में पर्याप्त जानकारियाँ हासिल न कीं, तो आपके साथ बहुत बुरा होगा, आपके पति आपको अनदेखा करेंगे तब फिर आप यह शिकायत न करिएगा कि आपके पति आपसे बात ही नहीं करते. 2. विश्वकप के दौरान, टीवी पर पति का पूर्ण अधिकार रहेगा. बिना किसी अपवाद के, सारे समय. यदि आपने टीवी के रिमोट कंट्रोल की तरफ नजर भी डाली तो आप उसे खो सकती हैं (अपनी नजर). 3. यदि आप खेल के दौरान टीवी के सामने से गुजरती हैं तो ध्यान रखिए कि आप झुककर या रेंगते हुए गुजरें - यानी देखने में बिना किसी व्यवधान डाले गुजरें. उत्तम तो यह होगा कि आप किसी व्यवसायिक अंतराल का इंतजार कर लें या फिर इस दौरान सामने से गुजरें ही नहीं. 4. खेलों के दौरान आपके पति अंधे, बहरे और गूंगे हो जाएँगे, जब तक कि खेल के उत्तेजक क्षणों में उन्हें अचानक भूख और प्यास का दौरा न पड़ जाए. ऐसे में आप निरी बेवकूफ ही होंगी जो यह सोचेंगी कि आपके पतिदेव किसी के आने पर दरवाजा खोल सकते हैं, टेलिफोन उठाकर जवाब दे सकते हैं या आपकी किसी बात का जवाब दे सकते हैं. 5. यह उत्तम होगा कि इस दौरान आप फ्रिज को खाने-पीने की चीज़ों से पूरा का पूरा भर कर रखें. खासतौर पर ऐसी चीजों से जिन्हें मैच देखते देखते चबाया-चुभलाया जा सके. और आपके पति के दोस्तों के मैच देखने के लिए कुसमय घर आने पर कुपित तो कतई मत होइए. मैच देखने का आनंद जितनी संख्या में मित्र साथ होते हैं उतना गुना बढ़ जाता है – और, यह बात आपको भी पता होना चाहिए. आपकी इस दयालुता के बदले हो सकता है कि आपके पतिदेव आपको दोपहर में टीवी देखने दे सकते हैं बशर्ते उस समय किसी छूटे खेल का कोई पुनर्प्रसारण नहीं हो रहा हो. 6. प्लीज़, प्लीज़, प्लीज़!! यदि आपके पति की प्रिय टीम हार रही हो तो कभी भी अपने पति से यह न कहें कि “कोई बात नहीं, खेल में तो हार जीत लगी ही रहती है” या “कोई बात नहीं, लीग के अगले मैच में तो वे जीतेंगे ही”. ऐसी बातें कह कर आप अपने पति की नाराजी, अप्रसन्नता और खराब मूड को बढ़ाएंगी ही, और इसके प्रतिफल में आपके प्रति उनके मन में प्यार में कमी भी हो सकती है. यह याद रखिए की फ़ुटबाल के बारे में आप उनसे ज्यादा न तो जानती हैं, न कभी जान सकती हैं. अतः इस तरह के सांत्वना भरे शब्द हो सकता है कि बाद में तलाक के ‘कारण’ भी न बन जाएँ. 7. पूरे विश्वकप के दौरान आप अपने पति के साथ बैठकर कोई एक (1) मैच देख सकती हैं. और अगर आपके पति की पसंदीदा टीम जीत रही हो तो आप उनसे इस दौरान कुछ वार्तालाप भी कर सकती हैं जैसे कि गोल होने पर हुर्रे... वाह क्या बढ़िया गोल किया है... वगैरह. परंतु वह भी हाफ़टाइम से पहले तक. 8. आपके पति, इस दौरान हो सकता है कि सारा समय घर पर टीवी के साथ ही रहें, मगर इसे आप यह बिलकुल न समझें कि वे आपके साथ कुछ समय बिताएँगे. वे सशरीर आपके बगल में होंगे, परंतु उनकी आत्मा फुटबाल के मैदान में विचर रही होगी. आपको उनकी आत्मा और शरीर के बीच में व्यवधान बनने की कतई कोशिश नहीं करनी चाहिए. 9. गोल खाने व गोल बचाने के रीप्ले खेलों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं. भले ही वे कई बार, कई एंगल से पहले ही देखे-दिखाए जा चुके होते हैं, मगर उन्हें आपके पति हर बार, बार बार, प्रत्येक बार देखना चाहेंगे. इस बारे में आपके द्वारा की गई कोई भी टीप उन्हें असहनीय होगी. 10. अपने दोस्तों रिश्तेदारों से यह बोल बताकर रखिए कि इस दौरान वे कोई सामाजिक कार्यक्रम और पार्टी शार्टी न रखें क्योंकि ऐसे किसी भी कार्यक्रम में: a) आपके पति नहीं जाएंगे, b) आपके पति नहीं ही जाएंगे तथा c) आपके पति किसी सूरत नहीं जाएंगे. 11. परंतु यदि आपके पति के कोई मित्र उन्हें कोई मैच देखने के लिए किसी रविवार अपने घर पर सपरिवार आमंत्रित करता है तो वे आपकी सहमति के बिना आपको भी लेकर वहाँ तुरंत जाएंगे. अतः ऐसी स्थिति के लिए पहले से ही तैयार रहिए. 12. प्रत्येक रात्रि को विश्वकप के सारांश भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जितने कि खेले गए मैच. मैच का विशेषज्ञों द्वारा विश्लेषण-विवेचन मैच से भी ज्यादा आनंददायी होता है अतः यह कभी न कहें कि आपने मैच तो पहले ही देख रखा है, अभी कोई दूसरा प्रोग्राम देख लेते हैं. हो सकता है कि टीप क्रमांक 2 में दिए अनुसार आपके साथ कोई विकराल समस्या पैदा हो जाए. 13. और, अंत में कृपा कर यह कभी न कहें कि – शुक्र है कि विश्वकप चार साल में एक बार ही आता है. आपके पति पर इन शब्दों का कोई असर नहीं होगा. क्योंकि आगे आने वाले दिनों में चैंपियन लीग, इटालियन लीग, क्रिकेट विश्वकप इत्यादि इत्यादि आने वाले हैं. (इंटरनेट पर विचर रहे ईमेल फ़ॉरवर्ड का हिन्दी तर्जुमा)
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हिमेश रेशमिया का रीमिक्स या नक़ल किया संगीत आप भूल जाएंगे. गारंटीड. जब आप पश्चिम के गायकों (साधकों) से पूर्व के भजनों को पूरी तन्मयता से गवाएंगे तो जो संगीत बनेगा वह क्या होगा? वही तो असली रीमिक्स होगा. बाकी तो सब नक़ली संगीत. ये दो भजन डाउनलोड कर सुनें. है न असली संगीत – असली रीमिक्स संगीत. (गुणवत्ता के साथ फ़ाइल आकार छोटा बनाए रखने हेतु फ़ाइल डबल्यूएमए फ़ॉर्मेट में रेकॉर्ड किया है. भजन – श्री साईं ग्लोबल हार्मनी रेडियो के सौजन्य से.) भजन 1 (1.5 मेबा) भजन 2 (5 मेबा) (पुनश्च: इन भजनों से यह कयास न लगाएँ कि मैं भजन भजते रहता हूँ. वह तो पुरानी रेडियोडिक्सिंग की आदत के कारण अचानक रामा रामा क्रष्णा क्रष्णा सुनाई दिया जो वास्तव में कर्णप्रिय लगा...) 88888888888 राजनीति में राजनीति **-** राजनीति सचमुच एक गंदा शब्द हो गया है. अत्यंत गंदा. बदबूदार और सड़ता हुआ. अब देखिए कि इसका नाम आते ही अनुगूंज और चिट्ठाकारो में सीनियर-जूनियर का लफड़ा पैदा हो गया. अब कोई बताए कि चिट्ठाकारों में कोई सीनियर जूनियर है भी? चिट्ठाकारों का जाति-धर्म है भी? चिट्ठाकार अपने विचारों में भिन्न हो सकते हैं, मानव के रुप में कभी नहीं. उनमें कभी कोई किसी प्रकार का लेबल नहीं लग सकता. क्या राजनीति सचमुच इतनी गंदी हो चुकी है? हाँ, राजनीति सचमुच अत्यंत गंदी हो चुकी है. बुश हों या मुश (मुशर्रफ) अर्जुन हों या आडवाणी – राजनेता कोई भी हों, कहीं से भी हों, राजनीति के गंदे खेल खेलने में लगे रहते हैं. भारत में अर्जुन जाति के तीर चलाते हैं तो अमरीका में बुश समलैंगिक बाण चलाने की कोशिशें करते दीखते हैं. राजनीतिज्ञों का सपना उनके स्वयं के, और बहुत हुआ तो अपनी पार्टी के तात्कालिक लाभ को लेकर होता है – उन्हें अपने देश या समाज के लाभ और उन्नति से कोई लेना देना नहीं होता. राजनीति के गंदेपन का एक बढ़िया उदाहरण – पिछली सरकार में ऊर्जा मंत्री थे – सुरेश प्रभु. शिवसेना से सम्बद्ध थे. उन्होंने समूचे भारत में ऊर्जा सुधारों में तीव्रता लाने के लिए बढ़िया काम करने की कोशिशें कीं. पर शिवसेना सुप्रीमो को उनकी कुछ कोशिशें नागवार गुजरीं. प्रभु ने जताया कि ये ऊर्जा सुधार भारत की खुशहाली और लाभ के लिए हैं. सुप्रीमो ने उन्हें राजनीति सिखाई – काम भारत के लिए नहीं शिवसेना की खुशहाली और लाभ के लिए करो. कल शिवसेना नहीं रहेगी तो तुम भी नहीं रहोगे. अंततः प्रभु को ऊर्जा मंत्रालय का बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. राजनीति में आपको ऐसे सैकड़ों-हजारों उदाहरण हर कहीं मिल जाएंगे. **-** व्यंज़ल जिन्होंने खेली है राजनीति में राजनीति उन्हें ये भ्रम है कि है प्यार में राजनीति ये वक्त है, बचते फिरोगे कहाँ तक मित्र तुझे मिलेगी दर-ओ-दीवार में राजनीति कल तक तो हमारे पास भी था आशियाँ सभी ने तो की उसके ढहाने में राजनीति सूक्ष्मता से छानबीन करोगे दोस्त, तो पाओगे हर झगड़े की जड़ में राजनीति पहले नकारा ही गया था चहुँ ओर रवि फिर अपनाया उसने जीवन में राजनीति **-** 88888888888
रतलाम के दुकानदारों ने व्यापार व्यवसाय में तरक्की का नया फंडा निकाला है. वे अपनी दुकान में गर्दभदेव की तसवीर लगा रहे हैं. व्यापारियों का कहना है कि उनके व्यापार व्यवसाय में गर्दभदेव के कारण दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है. जय गर्दभ महाराज! तरक्की का यह नया फंडा आपको कैसा लगा? बीसेक साल पहले की घटना याद आ रही है. रायपुर में बंजारी बाजार है. वहाँ की एक गली में एक दुकान के आहाते में एक विक्षिप्त ने अपना डेरा जमा रखा था. कोई उसे खाने पीने की चीजें दे देता तो कोई उसे कुछ कपड़े. बहुत जल्दी ही वह बंजारी वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो चला. लोगों में यह फैल गया कि अगर वह आपको गाली दे दे या आपकी दी वस्तु को लेकर कुछ खाए और बाकी फेंक दे तो आपके ऊपर सौभाग्य की बरसात होगी. लोग धूप बरसात में घंटों समोसे-बिस्किट-चाय-कपड़े इत्यादि न जाने क्या क्या लेकर खड़े रहते. परंतु बंजारी बाबा का क्रोध उन्हें नहीं मिलता. उस दौरान किसी फोटोग्राफ़र ने उसका किसी एंगल से फोटो खींचा और दो चार प्रति यूँ ही बांट दी. देखते ही देखते रायपुर तथा आसपास के सैकड़ों दुकानों जिनमें पानठेले प्रमुख थे, बंजारी बाबा के फोटो लग गए. उनका मानना था बाबा की फोटो लगाने से व्यापार में तरक्की होती है. बाबा की मृत्यु पश्चात वहाँ एक स्मारक भी बनाया गया है जहाँ व्यापार व्यवसाय में वृद्धि चाहने वालों की भीड़ लगी रहती है. एक और घटना याद आ रही है. मेरे एक परिचित इलेक्ट्रॉनिक सामानों की दूकान चलाते थे. कोई दस साल पहले मध्य प्रदेश में बिजली की प्रचुरता थी, और लोड शेडिंग इत्यादि लोग जानते नहीं थे. पर बिजली विभाग में भयंकर राजनीति की पैठ ने देखते ही देखते बिजली की भयंकर कमी पैदा कर दी. तो उस मित्र को मैंने आइडिया दिया कि इनवर्टर का कारोबार शुरू करे. शुरूआती साल में उसका इनवर्टर का कारोबार मंदा ही रहा. लोग इनवर्टर के बारे में तथा उसकी उपयोगिता के बारे में जानते भी नहीं थे. अगले साल बिजली की भयंकर कमी हो गई. लोड शेडिंग बढ़ गया. इनवर्टर की उपयोगिता लोग समझने लगे. उस मित्र का व्यापार चल निकला. एक दिन मैं उससे मिलने गया तो पता चला कि वह अपने धार्मिक गुरु महाराज की सेवा में गया हुआ है. कई दिनों बाद मैं उससे मिला तो मैंने यूं ही पूछ लिया – धंधा पानी कैसा चल रहा है. उसने बताया – ‘गुरु महाराज’ की कृपा से बहुत बढ़िया. उसने बताया कि गुरु महाराज की कृपा से इसी महीने चालीस इनवर्टर बेचे हैं. मुझे लगा कि उसके गुरु महाराज की कृपा से ही मध्य प्रदेश में बार बार बिजली गुल हो रही है और इनवर्टर का विक्रय हो रहा है. धन्य हैं उनके गुरु महाराज. तो, जब आपके व्यापार-व्यवसाय में ‘बंजारी’ जैसे बाबा, ‘गुरु महाराज’, और यहाँ तक कि ‘गर्दभदेव’ भी जादू कर सकते हैं तो वह हमारे अपने चिट्ठों पर भी चमत्कार करेंगे ही. यही कारण है कि मैंने भी गर्दभदेव का चित्र छींटें और बौछारें में लगा लिया है. उम्मीद करता हूं कि यह इतना ज्यादा लोकप्रिय हो जाए कि गूगल शीघ्र ही इसे मिलियन डॉलर में खरीद ले. इसी उम्मीद में इस तस्वीर की आरती भी गाता हूँ. आप भी साथ दीजिए. जय गर्दभ महाराज! आरती – गर्दभ देव की **-**
जय गर्दभ जय गर्दभ जय गर्दभ देवा। माता जाकी गर्दभी, पिता गर्दभदेवा।। चारा का भोग लगे रवि* करे सेवा।। जय गर्दभदेवा।। द्वि कर्ण दयावन्त चार पैर धारी। बिठाए पीठ पर धोबी की सवारी।। व्यापारी को व्यापार देत भिखारी को माया। चिट्ठाकार को पाठक देत चिट्ठा को पेज रैंक भाया।। चारा चढ़े पत्ती चढ़े और चढ़े मेवा। जय गर्दभ जय गर्दभ जय गर्दभ देवा।।**-** * यहाँ पर अपना या अपने चिट्ठे का नाम बोलें.
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चूहों तक तो ठीक थी, बात में ढकों तक पहुँच गई! शायद इन्हें कॉक्रोच और छिपकलियों के क्रम आने का डर था! 8888888888
निम्न अनुवाद मैंने कुछेक साल पहले मंजुल प्रकाशन भोपाल के लिए, मेन आर फ्रॉम मार्स एण्ड वीमेन आर फ्रॉम वीनस नाम की पुस्तक के लिए किए थे. मंजुल वालों को या तो मेरा अनुवाद पसंद नहीं आया या फिर मेरा रेट. बाद में इस पुस्तक का अनुवाद डॉ. सुधीर दीक्षित ने किया जिन्होंने बाद में हैरी पॉटर जैसे अनेक पुस्तकों का भी अनुवाद किया.
जिन्होंने इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद (मंजुल प्रकाशन वाला) पढ़ा हो, बताएँ कि इस और उस अनुवाद में क्या भिन्नताएँ हैं?
खण्ड 1
मंगल ग्रह का पुरूष शुक्र ग्रह की स्त्री
कल्पना कीजिए कि पुरूष मंगल ग्रह के हो और स्त्रियाँ शुक्र ग्रह की। बहुत पहले किसी दिन मंगलवासियों ने अपने दूरदर्षी यंत्रों से देखते हुए शुक्रवासियों को ढूंढ निकाला। सिर्फ एक सरसरी निगाह में देखने से ही शुक्र ग्रह की सौंदर्य देवियों ने उनमें वह अहसास जगाया जिससे वे अभी तक अनभिज्ञ थे। वे प्यार में डूब गए और फिर शीघ्र ही उन्होंने अंतरिक्ष में यात्रा करने के तरीके ढूंढ निकाले और पंहुच गए शुक्र ग्रह।
शुक्रवासियों ने मंगलवासियों का तहेदिल से स्वागत किया। शुक्रवासियों के अंतर्मन उन्हें यह अहसास दिलाते रहते थे कि यह दिन तो आना ही था। उनके दिल भी प्यार के अवर्णनीय अहसास से भर गए जो उन्होंने अभी तक अनुभव नहीं किये थे।
मंगलवासियों और शुक्रवासियों के बीच का वह प्यार जादुई था। उन्हें साथ रहने में, साथ काम करने में और चीजों को आपस में मिल बांटनें में मजा आ रहा था। भिन्न दुनिया के होने के बावजूद उन्होंने अपनी भिन्नताओं का आनंद उठाया। उन्होंने एक दूसरे को जानने, समझने, एक दूसरे की भिन्न आवष्यकताओं, आदतों और पसंदगी को स्वीकार कर प्रषंसित करने में महीनों गुजार दिए। सालों साल साथ रहकर उन्होंनें प्यार और शांति में अपने जीवन गुजारे।
फिर वे पृथ्वी पर बसने चले आए। यहाँ भी प्रारंभ में सब कुछ विलक्षण और मनोहर था। परंतु पृथ्वी के वातावरण ने अपना असर दिखाया और फिर एक दिन सुबह जब वे जागे तो उनमें स्मृतिहीनता - एक विशेष प्रकार की स्मृतिहीनता आने लगी थी।
मंगलवासी और शुक्रवासी यह भूल गए कि वे दोनों ही भिन्न ग्रहों से आए हैं, और इस कारण उनमें भिन्नता बनी रहनी ही है। जो कुछ उन्होंने अपनी भिन्नताओं के बारे में सीखा था वह सब कुछ एक सुबह उनकी स्मिृतियों से मिट गया। और उस दिन से पुरूष और स्त्रियों के बीच में कलह की शुरूआत हो गई।
अपनी भिन्नताओं को याद करें
जब तक हम सचेत न रहेंगे कि हम आपस में भिन्न हो, अलग हो, तब तक स्त्री और पुरूष एक दूसरे के लिए अनोखे, अनजाने ही बने रहेंगे। आमतौर पर हम इस महत्वपूर्ण बात को भूल जाते हैं और इस कारण हम एक दूसरे के व्यवहार से निराश और नाराज होते रहते हो। हम यह उम्मीद करते हो कि हमारे विपरीत लिंगी हमारे जैसे आचार व्यवहार करें। हम यह आशा रखते हो कि ''वो वही चाहें जो हम चाहें'' और ''वही महसूस करें जो हम महसूस करते हो।''
हममें यह धारणा गलत होती है कि यदि हमारा जीवनसाथी हमें प्यार करता है, तो वह उसी तरीके से अपने प्यार का इजहार करेगा, उसी ढंग से प्रतिक्रिया प्रदर्शित करेगा जैसे कि हम अपने प्यार के इजहार में करते हैं। यह अवस्था हमें हर बार निराशा के गर्त में धकेलती है तथा साथ ही हमें आपस में मिल बैठ कर, प्यार भरी बातें कर अपने विरोधाभासों को सुलझाने भी नहीं देती।
हममें यह धारणा गलत होती है कि
यदि हमारा जीवनसाथी हमें प्यार करता है
तो वह उसी तरीके से अपने प्यार का इजहार
करेगा, उसी ढंग से अपनी प्रतिक्रिया प्रदर्शित करेगा
जैसे कि हम अपने प्यार के इजहार में करते हैं
पुरूषों में आकांक्षा गलत होती है कि स्त्रियों की सोच, वार्तालाप और प्रतिक्रिया वैसे ही होने चाहिएँ जैसे कि पुरूषों के होते हो; स्त्रियों में भी यही आकांक्षा गलत होती है कि पुरूषों की सोच, वार्तालाप और प्रतिक्रिया वैसे ही होने चाहिएँ जैसे स्त्रियों के होते हैं। यहाँ हम यह भूल चुके होते हैं कि पुरूष और स्त्री एक जैसे कदापि नहीं हैं बल्कि बिलकुल भिन्न हैं। फलस्वरूप हमारे संबंध अनावश्यक रूप से तनावयुक्त और संघर्षमय हो जाते हैं।
स्त्री और पुरूष द्वारा आपस की इन भिन्नताओं को सम्मान जनक रूप से स्पष्टत: स्वीकार कर लेने पर आपसी संबंध नाटकीय रूप से अच्छे होने लगते हैं और आपस का भ्रम भी कम होने लगता है। अगर आप यह याद रखें कि पुरूष मंगल ग्रह से हैं और स्त्री शुक्र ग्रह से, तो फिर हर बात आसानी से समझी जा सकती है।
अपनी भिन्नताओं पर दृष्टि
समूचे पुस्तक में अपनी भिन्नताओं के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा की गई है। प्रत्येक खंड आपके लिए नई, महत्वपूर्ण अवधारणाएं लेकर आएगा। यहाँ प्रस्तुत है कुछ प्रमुख भिन्नताएँ जिनकी बारीकियों का अन्वेषण हम करेंगे:
खण्ड 2 में हम देखेंगे कि स्त्री और पुरूष के आंतरिक मूल्यों में अंतर कैसे होता है। यहाँ हम यह भी समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे हम दो बड़ी गलतियाँ करते हो- पुरूष गलत ढंग से हर समस्या का हल प्रस्तुत करता है तथा अनुभवों, अहसासों को महत्वहीन समझता है। स्त्री अवांछित उपदेश एवं दिशा निर्देश प्रदान करती है। अगर हम अपने मंगल / शुक्र के होने को स्वीकार कर लें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि पुरूष और स्त्री अनजाने में ही सही ये गलतियाँ क्यों करते हो। अपनी भिन्नताओं को याद रखते हुए हम अपनी गलतियों को सुधार सकते हैं और तुरंत एक दूसरे के प्रति ज्यादा सही तरीके से पेश आ सकते हैं।
खण्ड 3 में हम यह देखेंगे कि स्त्री और पुरूष भिन्न-भिन्न तरीकों से जीवन के तनावों को कैसे झेलते हैं। जहाँ मंगलवासी जरा पीछे हटकर शांति से सोच विचार करते हैं कि उन्हें कौन सी वस्तु परेशान कर रही है, वहीं शुक्रवासी स्वाभाविक रूप से अपनी परेशानियों का समाधान बोल-बताकर करना चाहती हैं। ऐसे विरोधाभासी समय में वांछित प्रतिफल प्राप्त करने के लिए नई व्यूह रचना के बारे में भी सीखेंगे।
हम खण्ड 4 में यह ढूंढने की कोशिश करेंगे कि विपरीत लिंगी को कैसे प्रेरित किया जा सकता है। पुरूष तब प्रेरित होता है, जब वह अपनी आवश्यकता महसूस करता है, जबकि स्त्री तब प्रेरित होती है, जब वह प्यार और मातृत्व महसूस करती है। यहाँ हम अपने संबंधों को बेहतर बनाने के तीन सोपानों के बारे में परीक्षण करेंगे तथा यह भी तलाश करेंगे कि हम अपनी इन सबसे बड़ी कमजोरियों : पुरूष को प्यार देने में और स्त्री को प्यार लेने में जो रूकावटें आती हैं उस पर विजय कैसे प्राप्त करें।
खण्ड 5 में आप सीखेंगे कि पुरूष और स्त्री एक दूसरे को ठीक तरह से समझ नहीं पाते क्योंकि वे अपनी अलग भाषाएं बोलते हैं। मुहावरों का एक शब्दकोश दिया गया है ताकि मंगल / शुक्र वासी द्वारा बोली गई बातों का वास्तविक अर्थों में रूपांतर किया जा सके। आप सीखेंगे कि कैसे अलग अलग कारणों से पुरूष और स्त्री बातें करते हैं और बातें करना बंद भी कर देते हैं। स्त्रियाँ यह सीखेंगी कि जब पुरूष उनसे बातें करना बंद कर दे तो उन्हें क्या करना चाहिए और पुरूष यह सीखेंगे कि बिना व्यग्र हुए बातों को बेहतर कैसे सुना जा सकता है।
खण्ड 6 में आप पाएंगे कि पुरूष और स्त्री की आपसी अंतरंगता के लिए आवश्यकताएं अलग अलग क्यों होती हैं। एक पुरूष एक स्त्री के करीब आता है, पर फिर वह अनिवार्यत: दूर होता जाता है। स्त्रियाँ सीखेंगी कि पुरूषों की इस अनिवार्यता को कैसे संभाला जाए ताकि पुरूष दूर जाने के बाद खिंचे हुए रबर बैंड की तरह ज्यादा तेजी से वापस करीब आए। वे यह भी सीखेंगी कि पुरूष से आत्मीय, अंतरंग बात करने का सबसे सही समय कब होता है।
हम खण्ड 7 में यह तलाश करेंगे कि कैसे स्त्रियों का प्यार समयानुसार लहरों की गति के समान एक लय में कभी ज्यादा और कभी कम होता है। पुरूष सीखेंगे कि प्यार में अचानक आए इन परिवर्तनों को सही तरीके से कैसे पहचानें। पुरूष यह भी सीखेंगे कि वे उस समय की पहचान कर पाएं कि कब उनकी जरूरत ज्यादा होती है ताकि उस समय अपनी इच्छाओं का त्याग किए बिना ही वे चतुराई से सहायक बन सकें।
खण्ड 8 में आप जानेंगे कि पुरूष और स्त्री ऐसा प्यार देते हैं, जो वह खुद चाहते हैं पर वैसा प्यार नहीं देते जो उनके विपरीत लिंगी चाहते हैं। पुरूष प्रथमत: ऐसा प्यार चाहता है जो भरोसेमंद, स्वीकार्य और प्रशंसनीय हो। स्त्री प्रथमत: ऐसा प्यार चाहती है जो सुरक्षित, समझ और आदर से परिपूर्ण हो। यहाँ आप उन छ: मुख्य तरीकों को जान पाएंगे जिनके द्वारा आप जाने अनजाने ही अपने जीवनसाथी के मन में अपनी नापसंदगी भर देते हैं।
खण्ड 9 में हम यह देखेंगे कि दर्द भरे झगड़ों से कैसे बचा जा सकता है। पुरूष यह जान पाएंगे कि वे अपने आप को हमेशा सही साबित कर स्त्री की चेतना को किस प्रकार खत्म कर देते हैं। स्त्रियाँ यह जान पाएंगी कि अनजाने में ही, वे विरोध प्रकट करने के बजाए अस्वीकार और असम्मति के स्वर पुरूषों तक पँहुचाकर पुरूषों की रक्षा प्रणाली को कैसे सक्रिय कर देती हैं। विवाद के रचनाशास्त्र का अध्ययन कर बहुत से व्यवहारिक सुझावों को भी देखेंगे जो उचित वार्तालाप का अवलम्बन बनती हैं।
खण्ड 10 आपको यह बताएगा कि पुरूष और स्त्री अपने हिसाब किताब किस प्रकार अलग अलग तरीके से रखते हैं। पुरूष यह सीखेंगे कि शुक्रवासियों को दिया गया प्यार का उपहार हिसाब में अन्य किसी भी उपहार के बराबर होता है। उसका आकार प्रकार कोई मायने नहीं रखता। बजाए इसके कि किसी एक बडे उपहार के बारे में वे सोचें, पुरूष को ध्यान दिलाया गया है कि प्यार की छोटी-छोटी अभिव्यक्तियाँ भी जरूरी हैं। यहाँ अपनी स्त्री का दिल जीतने के 101 तरीकों का भी वर्णन किया गया है। स्त्रियाँ यह सीखेंगी कि वे अपनी क्षमताओं को उन आयामों में कैसे मोड़ें ताकि वे अपने पुरूष को वह दे सकें जो वे हमेशा से चाहते रहे हैं।
खण्ड 11 आपको यह सिखाएगा कि कठिन समय में भी बातचीत का सिलसिला कैसे जारी रखा जाए। स्त्री और पुरूष अलग-अलग तरीकों से अपने अहसासों को छिपाते हैं उनकी भी चर्चा की जाकर इस बात पर ध्यान दिलाया जाएगा कि अपने विचारों, आवेगों एवं अहसासों को बांटना भी आवश्यक होता है। अपने ऋणात्मक सोच को अपने जीवनसाथी के सामने रखने के लिए प्रेम पत्र तकनीक सुझाया गया है जो क्षमा प्राप्त करने और अंतत: ज्यादा प्यार प्राप्त करने का साधन है।
आप खण्ड 12 में यह समझ पाएंगे कि शुक्रवासी अपनी सहायता के लिए पुरूषों से पूछने में कठिनाई अनुभव क्यों करते हैं, तथा यह भी कि मंगलवासी साधारणतया किसी निवेदन को नकार क्यों देते हैं। आप जान सकेंगे कि वाक्यांश ''कर सकते हो क्या'' और ''कर सकोगे क्या'' पुरूषों को तिरष्कृत करता है अत: उसके बदले क्या कहा जाना चाहिए। पुरूषों को उत्साहित करने के रहस्यों को भी आप जान सकेंगे ताकि उनसे आपको और ज्यादा प्यार मिल सके तथा अपनी बातों को सीधे, संक्षिप्त, और सही शब्दों में रखने के असर और उसके तौर तरीकों की भी खोजबीन कर सकेंगे।
खण्ड 13 में आप प्यार के चार मौसम की खोज करेंगे। प्यार के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान कि यह कैसे बढ़ता, बदलता है, आपको अपने रिश्तों को बेहतर बनाने में और उनमें आ रही रूकावटों को दूर करने में सहायता करेगा। आप सीखेंगे कि आपका भूतकाल या आपके जीवनसाथी का भूतकाल आपके वर्तमान रिश्तों को कैसे प्रभावित कर सकता है तथा अन्य महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि की खोज करेंगे जो आपके प्यार के जादू को जगाए रखने में काम आएँ।
मंगल ग्रह का पुरूष शुक्र ग्रह की स्त्री के प्रत्येक खण्ड में आप उन रहस्यों को खोज निकालेंगे जो रिश्तों को निभाने में और प्यार पैदा करने में सहायक होंगे। ऐसी प्रत्येक नई खोजें आपके रिश्तों को निभाने की प्रवीणता को और पुष्ट करेंगीं।
अच्छे अभिप्राय ही काफी नहीं
प्यार में पड़ना हमेशा जादुई अहसास दिलाता है। यह अनन्त का बोध कराता है जैसे कि आपका प्यार हमेशा बना रहेगा। हम सहज रूप से यह मानते आए हैं कि किसी न किसी प्रकार से हम उन सब समस्याओं से मुक्त हैं जो हमारे माता-पिता ने झेले थे, यह असंगत मानते हुए कि प्यार किसी दिन खत्म हो जाएगा, यह विश्वास करते हैं कि प्यार को तो बने रहना ही है तथा यह भी कि हम हमेशा सुखी रहने का सौभाग्य लेकर आए हैं।
पर जब जादू छंटता है और दैनिक जीवन के यथार्थ सामने आते हैं तो यह बात उभरकर सामने आती है कि पुरूष हमेशा यह चाहता है कि स्त्री, पुरूष के जैसा सोचे और प्रतिक्रिया करे और स्त्री यह चाहती है कि पुरूष, स्त्री के जैसा अनुभव और आचरण करे। हम स्पष्ट रूप से अपनी भिन्नताओं से अवगत नहीं होते अत: एक दूसरे को समझने और सम्मान देने के लिए समय ही नहीं निकाल पाते। हम उम्मीदें बढ़ाकर, क्रोधी, नासमझ और असहनशील बन जाते हैं।
अपने श्रेष्ठ और सर्वोच्च प्यार के आशय से प्यार मरने लग जाता है। किसी न किसी तरह समस्याएं घुसती चली जाती हैं।र् ईष्या पैदा होने लगती है। बोलचाल बंद हो जाता है। अविश्वास बढ़ने लग जाता है। अपने आप को छोड़ने और इच्छाओं को दबाने की भावना जागृत होती है। प्यार का जादू खत्म हो जाता है।
हम अपने आप से पूछते हैं:
यह कैसे हो गया?
यह क्यों हो गया?
यह हमारे साथ ही क्यों हो गया?
इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए हमारे सर्वोत्तम मष्तिष्कों ने शानदार मगर पेचीदे, दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक मॉडल तैयार किए हैं। परंतु फिर भी, पुराने प्रतिमान वापस आ ही जाते हैं। प्यार मर जाता है। ऐसा लगभग सभी के साथ होता है।
प्रतिदिन लाखों लोग प्यार एवं प्यारे जीवनसाथी की तलाश में भटकते हैं। हर साल लाखों युगल प्यार और शादी के बंधन में बंधते हैं और फिर या तो दर्दनाक तरीके से अलग हो जाते हैं या जैसे तैसे रिश्तों को ढोते हैं चँकि वे अपने बीच के प्यार के अहसास को खो चुके होते हैं। प्यार करने वालों में से सिर्फ 50 प्रतिशत लोग ही अपने प्यार को शादी के मंडप तक पंहुचा पाते हैं। इनमें से भी जो शादी के बंधनों में बंधे रहते हैं, 50 प्रतिशत लोगों के रिश्ते कामयाब नहीं होते। वे सिर्फ सामाजिक, पारिवारिक और ऐसे ही अन्य कारणों से साथ बने रहते हैं।
निश्चित रूप से बहुत कम लोग ही प्यार में पनप पाते हैं। फिर भी ऐसा होता तो है। जब पुरूष और स्त्री एक दूसरे की भावनाओं का आदर करने लगते हैं और एक दूसरे की भिन्नताओं को स्वीकार कर लेते हैं तो प्यार फलने फूलने लगता है।
जब पुरूष और स्त्री एक दूसरे की भावनाओं का
आदर करने लगते हैं और एक दूसरे
की भिन्नताओं को स्वीकार कर
लेते हैं तो प्यार फलने
फूलने लगता है।
स्त्री-पुरूष अपनी छुपी हुई भिन्नताओं को समझ कर सफलता पूर्वक ज्यादा प्यार पा सकते हैं और बांट सकते हैं। अपनी भिन्नताओं को स्थापित कर और स्वीकार कर उसका सृजनात्मक समाधान ढूंढा जा सकता है और इस तरह जो हम चाहते हैं, उसे पाने में कामयाब हो सकते हैं। और, मुख्य रूप से, हम यह सीख पाएंगे कि हम अपने प्रिय जनों को अच्छे और उचित तरीके से प्यार और आश्रय कैसे पंहुचाएं।
प्यार जादुई है और यह हमेशा बनी रह सकती है, यदि हम अपनी भिन्नताओं को याद रख सकें।
888888888888सोती हुई सरकार... सरकार जब सो रही है तो देश की जनता को तो जाग जाना चाहिए. है कि नहीं? पर नहीं. जनता तो और भी ज्यादा लंबी ताने सो रही है. पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा जब चाहे तब खुले आम झपकी लेते दिखाई देते थे. देवगौड़ा की निद्रा के बारे में मजेदार प्रसंग इंडियन एक्सप्रेस के संपादक शेखर गुप्ता ने किसी मित्र के हवाले से लिखा था – “देवगौड़ा दिन में इस देश के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करते होते हैं. शाम को अपनी पार्टी के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं. रात में वे अपने जिले के कलेक्टर के रूप में काम करते हैं जहाँ से वे चुनकर आए हैं. ऐसे में उन्हें सोने को वक्त ही नहीं मिलता. लिहाजा वे जब चाहे तब जहाँ चाहे वहाँ झपकी निकालते दिखाई देते हैं.” लंबे उबाऊ भाषणों को बेवकूफ़ों की तरह सुनने और सुनकर भयंकर बोरियत में सो जाने के अलावा इन बड़े नेताओं को कोई और प्रॉडक्टिव कार्य क्यों नहीं सूझता? क्यों वे ऐसी जगहों पर जाते हैं – जहाँ कार्यक्रम तय समय से घंटों देरी से प्रारंभ होता है और जहाँ हर कोई घंटे-घंटे भर के अर्थहीन भाषण पेलते हैं. वे क्यों ऐसे नॉन-प्रॉडक्टिव कार्य करते हैं? इतनी देर में तो वे अपने विभाग के सैकड़ों फ़ाइलें निपटा चुके होते. परंतु वे उबाऊ भाषण सुनकर अवांछित निद्रा लाभ लेते रहते हैं. अब तक इस देश में नेताओं ने जितने घंटे भाषण दिए हैं, अगर उतने ही घंटे वे झाड़ू लगाए होते तो भारत का संपूर्ण कचरा कब का साफ हो चुका होता. **-** व्यंज़ल **-** जाने कब से नींद में है सरकार नहीं हो रही क्यों जनता बेकरार दोहराए हैं सियासतों के खेल में वही कहानी वही किस्से हरबार मुद्दतों बाद झपकी आई थी कि किसी हँसी ने कर दिया बेकरार जंग तो जीतेंगे हौसला है बहुत हाथ में है कलम न कि तलवार सोता ही रहा था रवि अब तक मालूम नहीं थे अपने अधिकार **--** **--** 8888888888 कहावत है कि मनुष्य के जीवन में दो चीज़ें अपरिहार्य हैं. एक है मृत्यु और दूसरा है कर (टैक्स). वैज्ञानिक खोजों – ‘मसलन स्टैम सेल उपचार’ इत्यादि से तो हो सकता है कि मनुष्य अपनी पहली अपरिहार्यता – यानी ‘मृत्यु’ को तो भले ही अपने जीवन से दूर कर ले, परंतु टैक्स की अपरिहार्यता वह कभी खत्म नहीं कर पाएगा. अब तो टैक्स की अपरिहार्यता मनुष्य के दैनिक जीवन के प्रत्येक, अकल्पनीय हिस्से में घुस रही है. ब्रिटेन के नीति निर्धारकों ने टैक्स लगाकर धन उगाही करने के लिए नया, नायाब तरीका निकाला है – कू ड़े कचरे पर टैक्स. मुझे आश्चर्य है कि यह तरीका भारत के लोगों ने पहले क्यों नहीं सोचा! यह टैक्स वसूल करने का सर्वोत्तम तरीका हो सकता है और सर्वोत्तम रेवेन्यू जेनरेट करने की श्योर-शॉट शैली भी हो सकती है. वित्त मंत्री चिदम्बरम को एक और बढ़िया क्षेत्र मिला है टैक्स लगाने का – और अब तो वह दावे से कह सकते हैं कि ऐसा टैक्स पश्चिम के देशों ने पहले ही लगा रखा है. भारत में हर आदमी हर कहीं यहाँ वहाँ कूड़ा कचरा फैलाता दीखता है. लोग रोड साइड पान ठेले से पाउच खरीदते हैं, पाउच फाड़ते हैं, अंदर का मसाला मुँह में डालते हैं, खाली पाउच वहीं सड़क पर फेंकते हैं, और चल निकलते हैं. चलते चलते जहाँ मर्जी मुंह के भीतर का लाल पदार्थ थूकते उगलते हैं. अब अगर इन कार्यों को लीगल करार देकर इन पर यदि एक पैसा भी टैक्स लगा दिया जाए तो भारत की बिगड़ती वित्तीय अर्थ व्यवस्था पटरी पर आने में कतई देर नहीं लगेगी. कूड़े कचरे पर टैक्स लगेगा तो क्या होगा – पड़ोसी झगड़ेंगे – मैंने घर के सामने कूड़ा फैलाया है तो क्या हुआ मैं कोई चोरी नहीं करता, मैं कूड़ा टैक्स ईमानदारी से भरता हूँ. कोई दूसरा पड़ोसी प्रतिवाद करेगा – मेरा कूड़ा ज्यादा मात्रा में तथा ज्यादा बदबूदार है तो मैं कूड़ा टैक्स ज्यादा भी तो भरता हूँ. भयंकर प्रदूषण और भारी कूड़ा कचरा फैलाने वाली कंपनियाँ कूड़ा टैक्स भरकर अपनी सामाजिकता, समाजसेवा का ठप्पा लगवा लेंगी. नेताओं को कूड़ा टैक्स जमा करने से छूट रहेगी. वे चाहे जितनी मर्जी, चाहे जितना ज्यादा कूड़ा फैला लें. परंतु यह छूट सिर्फ सत्ता में काबिज रहने वाले नेताओं को मिलेगी. विपक्षी नेताओं को न सिर्फ कूड़ा टैक्स देना पड़ेगा, बल्कि उन्हें उस पर कई तरह के सरचार्ज भी देने होंगे. इसी तरह कुछ जाति विशेष को कम कर में ही ज्यादा कूड़ा फैलाने की इजाजत मिलेगी. जाति के बगैर भारत में कुछ नहीं चल सकता – कूड़ा कर भी नहीं. लोग आयकर, विक्रय कर, वेट इत्यादि के भारी दरों पर हल्ला मचाते हैं कि सरकार को इन्हें कम करना चाहिए. ‘कूड़ा कर’ ऐसा कर होगा जिसे लोगबाग बगैर हल्ला मचाए ईमानदारी से देंगे और चाहे जितना भारी दर हो, हँसी खुशी देंगे – बस उन्हें चाहे जितना कचरा-कूड़ा फैलाने की छूट मिलनी चाहिए होगी. भले ही कानूनन कूड़ा फैलाना गलत हो, जगह जगह लिखा हो कि कूड़ा फैलाना मना है - मैं भी यहाँ वहाँ यत्र तत्र कूड़ा फैलाता रहता हूँ – क्या करूं यहाँ की संस्कृति में रच बस गया हूँ – और असंस्कारी होने का लेबल अपने ऊपर नहीं लगाना चाहता. तो मैं चाहता हूं कि कूड़ा कर यहाँ भी अतिशीघ्र लागू हो जाए. कम से कम कर देकर मुझे इस हीनता से, इस ग्रंथि से मुक्ति तो मिल ही जाएगी कि मैं कूड़ा फैलाकर कोई गलत काम करता हूँ. मैं कूड़ा कर ईमानदारी से और एडवांस में जमा करवाता रहूंगा. मुझे ‘कूड़ा कर’ अध्यादेश का बेसब्री से इंतजार है.
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