प्रदूषित होती आस्थाएँ – भाग 2 हमारी प्रदूषित होती आस्थाओं का एक और हृदय-विदारक दृश्यः मैंने अपने पिछले किसी ब्लॉग में लिखा था कि ह...
प्रदूषित होती आस्थाएँ – भाग 2
हमारी प्रदूषित होती आस्थाओं का एक और हृदय-विदारक दृश्यः
मैंने अपने पिछले किसी ब्लॉग में लिखा था कि हम अपने धार्मिक पाखंडों के चलते वातावरण में कितना अधिक प्रदूषण फैलाते हैं. सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की बात तो अलग ही है. बिना किसी सामाजिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण के, हम अपने धार्मिक पाखंडों में नित्य नए आयाम भरते जा रहे हैं. पिछले दिनों अहमदाबाद के एक झील में लाखों की तादाद में मछलियाँ मर गईं (ऊपर चित्र देख कर अपने किए पर फिर से आँसू बहाइये). प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बने तथा हानिकारक रंगों से पुते सैकड़ों की संख्या में गणेश प्रतिमाओं के झील में विसर्जन के फलस्वरूप हुए प्रदूषण को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है. स्वयं भगवान श्री गणेश इन लाखों मछलियों की अकारण, अवांछित, असमय, अकाल मौत पर आँसू बहा रहे होंगे.
आइए, इन निर्दोष मछलियों की मृत्यु पर इनकी आत्मा को श्रद्धांजलि देने हेतु हम भी एक मिनट का मौन धारण करें.
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ग़ज़ल
****
घड़ियाली आँसुओं के ये दिन हैं
घटिया पाखण्डों के ये दिन हैं
आइए आपका भी स्वागत है
पसरती रूढ़ियों के ये दिन हैं
दो गज़ ज़मीन की बातें कैसी
सिकुड़ने सिमटने के ये दिन हैं
अर्थहीन से हो गए शब्दकोश
अपनी परिभाषाओं के ये दिन हैं
कोई तेरी पुकार सुने क्यों रवि
चीख़ने चिल्लाने के ये दिन हैं
*-*-*-*
हमारी प्रदूषित होती आस्थाओं का एक और हृदय-विदारक दृश्यः
मैंने अपने पिछले किसी ब्लॉग में लिखा था कि हम अपने धार्मिक पाखंडों के चलते वातावरण में कितना अधिक प्रदूषण फैलाते हैं. सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की बात तो अलग ही है. बिना किसी सामाजिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण के, हम अपने धार्मिक पाखंडों में नित्य नए आयाम भरते जा रहे हैं. पिछले दिनों अहमदाबाद के एक झील में लाखों की तादाद में मछलियाँ मर गईं (ऊपर चित्र देख कर अपने किए पर फिर से आँसू बहाइये). प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बने तथा हानिकारक रंगों से पुते सैकड़ों की संख्या में गणेश प्रतिमाओं के झील में विसर्जन के फलस्वरूप हुए प्रदूषण को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है. स्वयं भगवान श्री गणेश इन लाखों मछलियों की अकारण, अवांछित, असमय, अकाल मौत पर आँसू बहा रहे होंगे.
आइए, इन निर्दोष मछलियों की मृत्यु पर इनकी आत्मा को श्रद्धांजलि देने हेतु हम भी एक मिनट का मौन धारण करें.
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ग़ज़ल
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घड़ियाली आँसुओं के ये दिन हैं
घटिया पाखण्डों के ये दिन हैं
आइए आपका भी स्वागत है
पसरती रूढ़ियों के ये दिन हैं
दो गज़ ज़मीन की बातें कैसी
सिकुड़ने सिमटने के ये दिन हैं
अर्थहीन से हो गए शब्दकोश
अपनी परिभाषाओं के ये दिन हैं
कोई तेरी पुकार सुने क्यों रवि
चीख़ने चिल्लाने के ये दिन हैं
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I think you have not chosen the language in your blog settings as Hindi.
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