धन्य धान्य धर्माचार्य… ----------------------- दोस्तों, अब इस ख़बर पर सरसरी नज़र दौड़ाइएः जनाब असगर अली इंजीनियर साहब, उम्मीद है ...
धन्य धान्य धर्माचार्य…
-----------------------
दोस्तों, अब इस ख़बर पर सरसरी नज़र दौड़ाइएः
जनाब असगर अली इंजीनियर साहब, उम्मीद है आपने भी यह दिल जलाने वाली खबर पढ़ी होगी. कुछ अरसा पहले यहाँ रतलाम में भी खबर उड़ी थी
कि आसाराम साम्राज्य ने यहाँ का एक अत्यंत विशाल धर्मस्थल करोड़ों में खरीदा है. सिंहस्थ 04 उज्जैन में किसी साधु के द्वारा करोड़ों रुपए के चेक
बैंक में जमा किए जाने की खबर उड़ी थी. धर्माचार्यों की अपनी दुकानें निर्बाध चलती रहें, शायद इसीलिए विश्व भर में धर्माचार्यों द्वारा अपने अपने धर्म
के पाखंडों को जीवित रखने के पूरे प्रयास किए जाते हैं, तथा धर्म में आधुनिक, प्रगतिशील, विज्ञानवादी दृष्टिकोण घुसने नहीं देते. यही वजह है कि
इस तरह के पैरासाइट, हजारों लाखों निठल्लों का मजमा लगाए बैठे रहते हैं और लोगों को अंधकार से प्रकाश की ओर, स्वर्ग तथा आत्मा की मुक्ति का
रास्ता दिखाने इत्यादि बातों में लगाए रखते हैं, जो जाहिर है, उन्हें भी मालूम नहीं होता.
सच है- जब तक हम जैसे बेवक़ूफ़ रहेंगे, होशियार हमारे ज़क़ात से अपनी कोठियाँ बनाते रहेंगे.
------------------------------------
ग़ज़ल
***
धर्म की कोई दुकान खोल लीजिए
सियासत के सामान मोल लीजिए
सफलता के नए पैमानों में लोगों
थोड़े से झूठे मुस्कान बोल लीजिए
उस जहाँ की खरीदारी से पहले
अपने यहाँ के मकान तोल लीजिए
रौशनी दिखाने वालों के अँधेरों के
जरा उनके भी जान पोल लीजिए
गाता है कोई नया सा राग रवि
अब आप भी तान ढोल लीजिए
*-*-*-*
-----------------------
दोस्तों, अब इस ख़बर पर सरसरी नज़र दौड़ाइएः
जनाब असगर अली इंजीनियर साहब, उम्मीद है आपने भी यह दिल जलाने वाली खबर पढ़ी होगी. कुछ अरसा पहले यहाँ रतलाम में भी खबर उड़ी थी
कि आसाराम साम्राज्य ने यहाँ का एक अत्यंत विशाल धर्मस्थल करोड़ों में खरीदा है. सिंहस्थ 04 उज्जैन में किसी साधु के द्वारा करोड़ों रुपए के चेक
बैंक में जमा किए जाने की खबर उड़ी थी. धर्माचार्यों की अपनी दुकानें निर्बाध चलती रहें, शायद इसीलिए विश्व भर में धर्माचार्यों द्वारा अपने अपने धर्म
के पाखंडों को जीवित रखने के पूरे प्रयास किए जाते हैं, तथा धर्म में आधुनिक, प्रगतिशील, विज्ञानवादी दृष्टिकोण घुसने नहीं देते. यही वजह है कि
इस तरह के पैरासाइट, हजारों लाखों निठल्लों का मजमा लगाए बैठे रहते हैं और लोगों को अंधकार से प्रकाश की ओर, स्वर्ग तथा आत्मा की मुक्ति का
रास्ता दिखाने इत्यादि बातों में लगाए रखते हैं, जो जाहिर है, उन्हें भी मालूम नहीं होता.
सच है- जब तक हम जैसे बेवक़ूफ़ रहेंगे, होशियार हमारे ज़क़ात से अपनी कोठियाँ बनाते रहेंगे.
------------------------------------
ग़ज़ल
***
धर्म की कोई दुकान खोल लीजिए
सियासत के सामान मोल लीजिए
सफलता के नए पैमानों में लोगों
थोड़े से झूठे मुस्कान बोल लीजिए
उस जहाँ की खरीदारी से पहले
अपने यहाँ के मकान तोल लीजिए
रौशनी दिखाने वालों के अँधेरों के
जरा उनके भी जान पोल लीजिए
गाता है कोई नया सा राग रवि
अब आप भी तान ढोल लीजिए
*-*-*-*
COMMENTS