भारतीय शर्मागार पार्ट 2 ----------------------- हम कुरूप भारतीय: मित्रों, जग सुरैया के टाइम्स ऑफ इंडिया (सोमवार, 4 अक्तूबर) में...
भारतीय शर्मागार पार्ट 2
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हम कुरूप भारतीय:
मित्रों, जग सुरैया के टाइम्स ऑफ इंडिया (सोमवार, 4 अक्तूबर) में लिखे गए लेख पर एक नज़र डालिएः
उन्होंने सच ही लिखा है कि हम भारतीय दुनिया में सबसे ज़्यादा कुरूप (शारीरिक नहीं) लोगों में से हैं. हम भारतीयों में अनुग्रह और अच्छे सामाजिक व्यवहार की जन्मजात कमी होती जा रही है. ग्राफिक डिटेल में बताते हुए वे आगे लिखते हैं कि भारत की उन्नति (जितनी होनी चाहिए थी उतनी हुई है क्या ?) कारक प्रतीकों यथा फ़ाइव स्टार होटल, भव्य चमकीले शॉपिंग माल इत्यादि के बावजूद सड़कों के गड्ढे, सार्वजनिक स्थलों पर कचरों के अम्बार, आवारा कुत्तों, विचरती गायों के बीच खुले आम थूकते-मूतते भारतीय, हमको विश्व के सबसे कुरूप लोगों में शुमार करते हैं. और, उनका यह भी कहना है कि इस कुरूपता के लिए भारत की गरीबी कतई जिम्मेदार नहीं है, बल्कि एक निपट गांव का निष्कपट ग़रीब तो इन मामलों में निश्चित ही खूबसूरत होता है.
प्रश्न यह है कि क्या यह क्रमशः बढ़ती कुरूपता कभी कम होने की ओर अग्रसर होगी?
***
ग़ज़ल
----
अपनी कुरूपताओं का भी गुमाँ कीजिए
दूसरो से पहले खुद पे हँसा कीजिए
या तो उठाइये आप भी कोई पत्थर
या अपनी क़िस्मत पे रोया कीजिए
सफलता के पैमाने बदल चुके हैं अब
भ्रष्टाचार भाई-भतीजावाद बोया कीजिए
मुल्क की गंगा में धोए हैं सबने हाथ
बढ़िया है आप भी पोतड़े धोया कीजिए
खूब भर रहे हो अपनी कोठियाँ रवि
उम्र चार दिन की क्या क्या कीजिए
*-*-*-*
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हम कुरूप भारतीय:
मित्रों, जग सुरैया के टाइम्स ऑफ इंडिया (सोमवार, 4 अक्तूबर) में लिखे गए लेख पर एक नज़र डालिएः
उन्होंने सच ही लिखा है कि हम भारतीय दुनिया में सबसे ज़्यादा कुरूप (शारीरिक नहीं) लोगों में से हैं. हम भारतीयों में अनुग्रह और अच्छे सामाजिक व्यवहार की जन्मजात कमी होती जा रही है. ग्राफिक डिटेल में बताते हुए वे आगे लिखते हैं कि भारत की उन्नति (जितनी होनी चाहिए थी उतनी हुई है क्या ?) कारक प्रतीकों यथा फ़ाइव स्टार होटल, भव्य चमकीले शॉपिंग माल इत्यादि के बावजूद सड़कों के गड्ढे, सार्वजनिक स्थलों पर कचरों के अम्बार, आवारा कुत्तों, विचरती गायों के बीच खुले आम थूकते-मूतते भारतीय, हमको विश्व के सबसे कुरूप लोगों में शुमार करते हैं. और, उनका यह भी कहना है कि इस कुरूपता के लिए भारत की गरीबी कतई जिम्मेदार नहीं है, बल्कि एक निपट गांव का निष्कपट ग़रीब तो इन मामलों में निश्चित ही खूबसूरत होता है.
प्रश्न यह है कि क्या यह क्रमशः बढ़ती कुरूपता कभी कम होने की ओर अग्रसर होगी?
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ग़ज़ल
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अपनी कुरूपताओं का भी गुमाँ कीजिए
दूसरो से पहले खुद पे हँसा कीजिए
या तो उठाइये आप भी कोई पत्थर
या अपनी क़िस्मत पे रोया कीजिए
सफलता के पैमाने बदल चुके हैं अब
भ्रष्टाचार भाई-भतीजावाद बोया कीजिए
मुल्क की गंगा में धोए हैं सबने हाथ
बढ़िया है आप भी पोतड़े धोया कीजिए
खूब भर रहे हो अपनी कोठियाँ रवि
उम्र चार दिन की क्या क्या कीजिए
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हम भी कुरूप हैं…
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