वैसे तो बनवारी लाल चौकसे की आत्मकथात्मक किताब ‘श्रमिक से पद्मश्री’ स्मरणिका के रूप में ज्यादा नजर आती है मगर स्वेट मार्डेनों, दीपक चोपड़ा...
वैसे तो बनवारी लाल चौकसे की आत्मकथात्मक किताब ‘श्रमिक से पद्मश्री’ स्मरणिका के रूप में ज्यादा नजर आती है मगर स्वेट मार्डेनों, दीपक चोपड़ाओं और जमात में ताज़ा तरीन शामिल हुए रश्मि बंसलों जैसे तमाम प्रेरणास्पद लेखकों की तमाम किताबों के जैसी प्रेरणा यह एक किताब पाठक के मन में भर सकती है.
किताब बहुत ही सहज और बेहद सरल भाषा में लिखी गई है. शुरुआत के पन्नों में कुछ अनावश्यक से बधाई संदेशों को स्थान दे दिया गया है, और आखिरी के पृष्ठों में चित्रों के चयन में तारतम्यता नहीं बरती गई है, बावजूद इसके पूरी किताब पठनीय और बेहद प्रेरणास्पद है.
किताब में बनवारी लाल चौकसे ने ये बताया है कि किस तरह उन्होंने एक दिहाड़ी श्रमिक – दैनिक वेतनभोगी मजदूर के रूप में अपना कैरियर एक नामालूम सी प्राइवेट कंपनी में प्रारंभ किया और अपनी लगन, अपनी क्षमता, नित्य सीखने की ललक, हर कार्य में, हर जाब में अपना शतप्रतिशत झोंक देने की प्रतिबद्धता के बल पर न सिर्फ बहुत ही कम समय में बीएचईएल व भारत के सर्वोच्च श्रम पुरस्कारों को प्राप्त किया, बल्कि भारत सरकार के बेहद प्रतिष्ठित पद्म पुरस्कार भी प्राप्त किया. अगर आप समझते हैं कि पद्म पुरस्कार चंद रसूख वालों को मिलता है, तो आप गलत हैं. बनवारी लाल चौकसे जैसे लोग इसके अपवाद हैं. वे भारत के चंद सर्वाधिक पुरस्कृत तकनीकज्ञों में से एक हैं.
प्रस्तुत है किताब के कुछ प्रेरणास्पद अनुच्छेद -
“मैं वर्ष 1973 में ओमेगा इंडस्ट्री में हेल्पर के रूप में कार्यरत था. इस संस्थान में मेरा कार्य मशीनों की साफ सफाई तथा जाबों को मशीन पर लोड-अनलोड करने वाला था. एक दिन मैं स्टील की प्लेटों को स्टोर से शॉप फ्लोर में ला रहा था. प्लेटें काफी वजनदार होने के कारण मुझे बहुत परेशानी हो रही थी. मेरे इस कार्य को ओमेगा इंडस्ट्रीज के मालिक श्री प्रकाश साहब देख रहे थे. उन्होंने मुझसे पूछा कि कहाँ रहते हो तथा शिक्षा क्या है? मैं डर गया कि वे मुझे नौकरी से निकाल देंगे. लेकिन उन्होंने प्रेम से कहा कि बेटा इतना कठिन कार्य तुम्हारे बस का नहीं है. तुम भेल में ट्रेनिंग क्यों नहीं कर लेते! मैं तुम्हारी मदद करूंगा. अब मैं पूरी तरह से यह समझने लगा कि वे इस बहाने से अब मुझे काम पर नहीं बुलाएंगे. लेकिन परिणाम उल्टा ही हुआ. उन्होंने अपने अधीनस्थों के माध्यम से मुझे ट्रेनिंग की जानकारी भिजवाई तथा यह भी आश्वासन दिया कि जब तक तुम्हारा प्रशिक्षण के लिए चयन नहीं हो जाता, यहाँ पर काम करते रहो. मैं इस घटना को याद करते हुए यह कहना चाहता हूं कि कठिन परिश्रम से अंजान लोग भी आपकी मदद कर सकते हैं.”
“ नवम्बर 2000 में मुझे अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियों के प्रस्तुतीकरण के लिए सिंगापुर के अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में आमंत्रित किया गया था. उन दिनों भेल संस्थान की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण कार्पोरेट कार्यालय द्वारा सारे अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम स्थगित कर दिए गये थे.
लेकिन कार्पोरेट प्रबंधन ने मेरी उपलब्धियों तथा पहली बार ऐसे आमंत्रण के लिए मुझे तथा मेरे साथ दो अधिकारियों को अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियों के प्रस्तुतीकरण के लिए भेजा गया था. प्रस्तुति का विषय गुणता सर्किल के नेता के रूप में मेरी उपलब्धियाँ था.
वहां मंच पर मुझसे एक प्रश्न पूछा गया – यदि कोई अंतर्राष्ट्रीय संस्थान आपको उच्च वेतन पर अपने यहाँ नौकरी प्रदान करे तो आप क्या जाएंगे?
मेरा उत्तर था कि जिस संस्थान एवं राष्ट्र ने मुझे इतने संसाधन उपलब्ध करवाकर आज जिस मंच पर लाकर खड़ा किया है, मैं उस देश तथा अपने उस संस्थान को छोड़ने के बारे में स्वप्न में भी नहीं सोच सकता...”
अपनी किताब के आखिरी हिस्से में वे सफलता के कुछ सूत्र गिनाते हैं –
- कार्य के प्रति अपनत्व
- नितांत जिज्ञासु बने रहना
- पूर्ण विश्वास रखें एवं मनोयोग बनाए रखें
- गलतियों को छिपाए नहीं और संकोच से बचें
- स्वयं को असहाय व कमजोर न समझें
- अहं भाव को त्यागकर परोपकारी बनें
- समय के महत्व को जानें
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श्रमिक से पद्मश्री
आत्मकथा
लेखक : बनवारी लाल चौकसे
प्रकाशक – इन्द्रा पब्लिशिंग हाउस, अरेरा कॉलोनी, हबीबगंज रोड, भोपाल मप्र 462016
आईएसबीएन नं. 978-81-89107-27-7
पृष्ठ 136, मूल्य – 125/- रु.
shukriya is jaankaaree ke liye,,,
हटाएंदोहरे साहब से परिचय करने पर धन्यवाद
हटाएंबहुत बढिया, प्रेरणा दायी जानकारी.
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