भोपाल में होने जा रहे हिंदी साहित्य के विश्वरंग कार्यक्रम में उक्त विषय पर मुझे अपनी प्रस्तुति देना है. निम्न आलेख तैयार किया है. कृपया बताए...
भोपाल में होने जा रहे हिंदी साहित्य के विश्वरंग कार्यक्रम में उक्त विषय पर मुझे अपनी प्रस्तुति देना है. निम्न आलेख तैयार किया है. कृपया बताएँ कि कहीं कोई कुछ छूट तो नहीं रहा है या कहीं कुछ सही गलत हो रहा है. धन्यवाद.
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माननीय मंच व सदन को मेरा सादर अभिवादन.
विद्वान वक्ताओं ने विषय के लगभग सभी पहलुओं पर बात की है और हमारा ज्ञान बढ़ाया है. इसके लिए उन्हें हमारा धन्यवाद व आभार. चूंकि मेरा कार्य क्षेत्र थोड़ा तकनीकी रहा है तो मैं इस विषय के कुछ तकनीकी पहलुओं पर आप सभी का ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा.
हम सब की जिंदगी बदल रही है. सोशल मीडिया ने न केवल साहित्य, बल्कि मनोरंजन के तमाम सामग्री सृजन व उपभोग के नए द्वारों को कुछ इस तरह खोला है कि अब हर – जी हाँ, हर व्यक्ति या तो सृजक है या उपभोक्ता, या दोनों ही. और कमाल की बात यह है कि पढ़े लिखों की तो बात छोड़ ही दें, घोर निरक्षर भी इन माध्यम में सामग्री सृजन और उपभोग करने में व्यावसायिकता के स्तर तक सक्षम है. दृश्य-श्रव्य मीडिया ने साक्षरता-निरक्षरता की दूरी को पाट दिया है. यही नहीं, अब तो मामला दुधमुंहे शिशुओं से प्रारंभ हो रहा है. आजकल आम दृश्य हम अपने आसपास देखते हैं - कोई बच्चा खाना खाने में आनाकानी करता है तो उसकी मां उसे अपने मोबाइल फ़ोन में डोरेमॉन या छोटा भीम लगा कर उसे पकड़ा देती है अथवा टीवी में कार्टून नेटवर्क लगा देती है – यानी मीडिया की सामग्री का उपभोग पोतड़े और पालने के समय से ही प्रारंभ. बच्चा बोलना बाद में प्रारंभ करता है, उससे पहले वो टैप कर आपके स्मार्टफ़ोन को चलाना सीख जाता है. आप में से बहुतों को यह शायद पता हो, बहुत से टिकटोक स्टार शिशु हैं, और तारीफ की बात यह है कि उन्हें खुद नहीं पता कि वे बोल नहीं पाते हैं, चल नहीं पाते हैं, मगर फिर भी वे सोशल मीडिया के नियमित सामग्री सृजक हैं और सोशल मीडिया स्टार हैं. आपकी लिखी हाइकु रचना को कितने पाठक मिलते हैं? प्रिंट में हजार दो हजार? इंटरनेट साइटों – फ़ेसबुक-वाट्सएप्प पर पांच सात हजार? मगर यदि आप अपनी रचनापाठ वीडियो के रूप में यूट्यूब - टिकटोक पर चढ़ा देते हैं तो मामला देखते देखते लाखों में पहुंच जाता है. यह है सोशल मीडिया के दृश्य-श्रव्य माध्यम की ताकत!
जब भी हम सोशल मीडिया की बात करते हैं तो घूम फिर कर बात ब्लॉग, यू-ट्यूब, फ़ेसबुक, ट्विटर, और वाट्सएप्प-टिकटोक तक ही पहुँचती है. यह वाजिब भी है, चूंकि दुनिया की अधिकांश आबादी इन्हीं सुविधाओं का उपयोग करती है, क्योंकि ये उपयोगकर्ता के हिसाब से बहुत ही सरल और खूब सारी सुविधाओं से परिपूर्ण बनाए गए हैं. इनमें से हम हिंदी रचनाकारों में फ़ेसबुक और वाट्सएप्प ग्रुप का उपयोग अधिक प्रचलित है. आप कोई नया मोबाइल या कंप्यूटिंग उपकरण लेते हैं तो उसमें फ़ेसबुक पहले से इंस्टाल किया हुआ आता है – आपको इंस्टाल करने की भी झंझट भी नहीं होती. वाट्सएप्प के भी यही हाल हैं. किसी बेहतरीन तकनीक के, पराकाष्ठा की हद तक गलत उपयोग का उदाहरण है वाट्सएप्प. जिधर देखो उधर से बारंबार फारवर्ड मारे गए वाट्सएप्प संदेश चले आते हैं. यदि आपने डिफ़ॉल्ट सेटिंग नहीं बदली है तो हर कोई आपको अपने ग्रुप में जोड़ देता है और फिर चालू हो जाता है सैकड़ों बार, बारंबार किए गए फारवर्ड संदेशों का दौर जो स्वचालित डाउनलोड होकर आपके फ़ोन की मेमोरी को खत्म करता है. नकली और उलटी सीधी, भरमाती, वायरल की जाती सामग्रियों में से सही और गलत की पहचान करना बहुधा संभव नहीं हो पाता है.
मगर एक चीज, मानवता के लिए, सोशल मीडिया ने बहुत ही बढ़िया किया है – उसने अच्छे अच्छों को, बल्कि यूं कहें, हम में से हर किसी को पढ़ना सिखा दिया, और बहुतों को लिखना-पढ़ना. नए जमाने के हर गली कूचे से जो लिक्खाड़ों की फ़ौज, रचनाकारों की, सामग्री सृजनकर्ताओं की जो फ़ौज निकल रही है, उसमें हम सब के लिए आम तौर पर निःशुल्क और सहज सरल उपलब्ध सोशल मीडिया का बड़ा और महती हाथ है. और हमें इनका आभार तो मानना ही चाहिए. हिंदी सोशल मीडिया के शुरूआती दौर में मैंने ऐसी ही किसी चर्चा में कहा भी था, हिंदी के भविष्य के सूर और तुलसी, सोशल मीडिया से ही प्रकट होंगे. आगाज़ हो चुका है – हिंदी के बहुत से बेस्ट सेलर – सोशल मीडिया के जरिए आ रहे हैं.
परंतु बड़ा सवाल यह है कि हम रचनाकारों को सोशल मीडिया का कौन सा प्लेटफ़ॉर्म उपयोग में लेना चाहिए? मैं पिछले दो दशकों से इंटरनेट व सोशल मीडिया से जुड़ा हूँ, और इंटरनेट की प्रागैतिहासिक सोशल मीडिया टूल याहू! जियोसिटीज से लेकर टम्बलर और हालिया टिकटोक और टेलीग्राम तक के तमाम प्लेटफ़ॉर्मों का उपयोग किया है और जांचा परखा है. और, मेरे विचार में रचनाकारों को जो गंभीर सृजन में लगे हैं अथवा वे रचनाकार जो अपना सृजन इंटरनेट पर प्रकाशित करना चाहते हैं और जो चाहते हैं कि तमाम दुनिया के पाठक उनकी रचनाओं तक पहुँचें, तो उनके लिए फ़ेसबुक और वाट्सएप्प जैसे सीमित और मित्र-मंडली के दायरे में बंधे प्लेटफ़ॉर्म के बजाय ब्लॉग जैसा खुला प्लेटफ़ॉर्म अधिक उपयुक्त होगा.
आइए, देखते हैं कि कैसे –
वाट्सएप्प और फ़ेसबुक जैसे प्लेटफ़ॉर्म में प्रकाशित आपकी रचनाओं के पाठक सीमित होते हैं – केवल आपकी मित्र-मंडली अथवा समूह सदस्यों तक पहुँच होती है. इन प्लेटफ़ॉर्म के उपयोग के लिए खाता खोलना व पंजीकरण करना अनिवार्य होता है, इसके बगैर आप उसकी सार्वजनिक पोस्टों की सामग्री का भी उपयोग नहीं कर सकते. उसकी सामग्री सामान्य इंटरनेटी सर्च में नहीं आती, फ़ेसबुक सामग्रियों को बूस्ट करने अथवा अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए आपसे पैसे मांगता है. जरा सोचिए कि आपने कोई बढ़िया रचना लिखी है और आप चाहते हैं कि दुनिया के हर आदमी तक वो पहुँचे. मगर फ़ेसबुक उसे आपके 5 हजार मित्रों व 15 हजार अनुसरणकर्ताओं तक ही सीमित कर देता है. जबकि दुनिया तो करोड़ों में है! बहुत बार, फ्लैग की गई रचनाओं को यह आपकी वाल के टाइमलाइन से हटा भी देता है या आपका खाता निलंबित कर देता है या मिटा भी देता है. यूं इंटरनेट की कोई भी महारथी कंपनी दूध की धुली नहीं है, और सभी हमारे द्वारा किए गए सृजित सामग्री के विशाल भंडार से ही माल कमाने में लगी रहती हैं फिर भी फ़ेसबुक का अल्गोरिद्म इस मामले में मदर इंडिया के लाला की तरह है.
जबकि वर्डप्रेस और ब्लॉगर जैसे ब्लॉग प्लेटफ़ॉर्म में आमतौर पर इस तरह का कोई बंधन नहीं होता है. ब्लॉग प्लेटफ़ॉर्म खासकर टम्बलर जैसी सेवाएँ इस मामले में बहुत उदार हैं, और यदि आप स्वयं के डोमेन से वर्डप्रेस जैसा ब्लॉग बनाते हैं तब तो आप अपनी सामग्री के स्वयं मालिक होते हैं – वैधानिकता की स्थिति को छोड़कर, दुनिया में कोई माई का लाल उसे हटा नहीं सकता. टॉर और वीपीएन जैसी सेवाओं के जरिए आप अनाम बने रहकर वैधानिकता को भी धता बता सकते हैं.
ब्लॉग की सामग्री को कोई भी ब्राउज़र का उपयोग कर उपभोग कर सकता है. ब्लॉग की सार्वजनिक पोस्ट की सामग्री इंटरनेट सर्च पर आसानी से उपलब्ध होती है और बहुधा दिनांकित व क्रमांकित रूप से उपलब्ध होती है. इसकी सामग्री को आर्काइव.ऑर्ग पर नियमित तौर पर स्नैपशॉट के रूप में एकत्रित भी किया जाता है ताकि इसे अनंत काल तक सुरक्षित रखा जा सके. इसके लिए पैरेलल पोस्टिंग भी की जा सकती है. यहाँ मौजूद हममें से अधिकांश लोग फ़ेसबुक पर सक्रिय हैं और अपनी धीर-गंभीर टिप्पणियों समेत सामग्री सृजन भी वहीं करते हैं तो उसका मसाला वहाँ से उठा कर कॉपी-पेस्ट कर ब्लॉग पर भी साथ ही प्रकाशित करें. यदि आप कोई कविता, कहानी, व्यंग्य अथवा कोई सामान्य सी टिप्पणी भी लिख कर पोस्ट करते हैं तो उसे अपने मोबाइल फ़ोन के कैमरे के जरिए रचना पाठ का वीडियो रेकार्ड कर उसे यूट्यूब पर भी चढ़ा सकते हैं. यह बेहद आसान है. फ़ेसबुक लाइव में भी यह सुविधा है. यदि आपके पास स्मार्टफ़ोन है, तो उसमें यूट्यूब होगा ही. और, बहुत संभव है कि आपका खाता भी पहले से बना होगा. आपको बस अपनी रचना रेकार्ड कर अपलोड करना है. यकीन मानिए, यूट्यूब पर आपके चढ़ाए गए कविता पाठ का, रचनापाठ का रसास्वादन करने वाले, किसी भी इस तरह के भौतिक आयोजन में उपस्थित रहने वाले दर्शकों से सैकड़ों हजारों गुना ज्यादा होंगे, और यही नहीं, उसमें नित्य इजाफ़ा भी होगा. आप किसी आयोजन में शान से उपस्थित होकर सौ-दो-सौ प्रेक्षकों के सामने अपनी रचनापाठ कर खुश हो लेते हैं, मगर जब आप अपनी जीवंत रचना-पाठ को यूट्यूब या वीमियो या टिकटोक जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर चढ़ा लेते हैं तो वो आज भी उपलब्ध होता है, कल भी और परसों भी. आप व आपके पाठक उसे नित्य देख-सुन सकते हैं. वो एक तरह से अजर-अमर हो जाता है. कल्पना कीजिए कि आपके जीवंत रचनापाठ का आनंद आज से सौ-पचास साल बाद, आपके पड़-पोते किसी सर्च लिंक को फालो करते हुए सुनेंगे तो वो कैसा महसूस करेंगे! आपने देखा होगा कि अपनी यह प्रस्तुति देने से पहले मैंने अपने मोबाइल फ़ोन में वीडियो रेकार्डिंग चालू की थी. इस प्रस्तुति के बाद इस रेकार्ड किए वीडियो को मैं यूट्यूब पर अपलोड कर दूंगा. फिर दुनिया जहान के लोग इस प्रस्तुति को देखेंगे. बारंबार, आज भी कल भी. मेरा आज का यह इंटरनेट पर सृजन सदा सर्वदा के लिए बना रहेगा.
ऐसा नहीं है कि आपकी रचनाओं के लिए केवल ब्लॉग, यू-ट्यूब या फ़ेसबुक जैसी ही सुविधा है. बहुतों को विचारधारा के स्तर पर बहुराष्ट्रीय गूगल और फ़ेसबुक से परेशानी हो सकती है. ऐसे में, सामुदायिक रूप से पोषित प्रकल्प आर्काइव.ऑर्ग की भी सुविधा है. जहाँ आप विविध फ़ार्मेट में – डाक्यूमेंट, पीडीएफ, ध्वनि या वीडियो फ़ाइल के रूप में अपना असीमित सृजन निःशुल्क अपलोड कर सकते हैं व दुनिया से साझा कर सकते हैं. आर्काइव.ऑर्ग यूजर फ्रेंडली नहीं है, फिर भी थोड़ा सा सीख कर आप इसे चला सकते हैं. रचनाकार.ऑर्ग के माध्यम से आर्काइव.ऑर्ग में दर्जनों उपन्यास, कविता संग्रह, कहानी संग्रह प्रकाशित किए गए हैं, जो विविध फ़ॉर्मेट में डाउनलोड हेतु तथा ऑनलाइन पठन पाठन हेतु संग्रहित हैं. साउंडक्लाउड जैसी सेवा में आप अपनी रचनाएँ ऑडियो फ़ॉर्मेट में अपलोड कर सकते हैं. यदि आपके पास संसाधन हैं तो आप अपना स्वयं का डोमेन व सर्वर लेकर अपनी स्वयं की वेबसाइट बना सकते हैं. अर्थ यह कि संभावनाएँ अनंत हैं. हिंदी साहित्य की तमाम नई पुरानी किताबें आर्काइव.ऑर्ग और डिजिटल लाइब्रेरी आफ इंडिया में संग्रहित हैं.
अंत में, मैं अपनी एक अच्छी आदत के बारे में आपको बताऊँ. चाहें तो आप भी इसे अपना सकते हैं, और अपना जीवन आसान बना सकते हैं. आजकल मैंने रचनाएँ पढ़ना छोड़ दिया है. कोई भी रचना आजकल मैं नहीं पढ़ता. आप पूछेंगे कि भई क्यों? क्या आजकल सारी रचनाएँ बोझिल, उबाऊ, अपठनीय आ रही हैं? नहीं. ऐसा नहीं है. अरे भई, जब आपकी जेब में बेहतरीन तकनॉलाजी मुफ़्त में उपलब्ध हो, जो किसी भी रचना को आपको पढ़कर सुना दे तो अपनी आँखें वो भी बुढ़ापे में फोड़ने से क्या मतलब? अपनी आँखों की रौशनी मैं उजड़ा-चमन और बाला जैसी फ़िल्मों का आनंद लेने के लिए बचाए रखता हूँ. अब आप इंटरनेट पर प्रकाशित कोई भी, किसी भी रचना का आनंद सुनकर ले सकते हैं. बहुत से टैक्स्ट टू स्पीच ऐप्प हैं जिनके जरिए ब्लॉग-फ़ेसबुक से लेकर ट्विटर तक प्रकाशित कोई भी रचना पढ़ने के बजाए सुनी जा सकती है. आजकल मैं ड्राइव पर निकलता हूँ तो मेरे कार के एमपी3 प्लेयर में गाने नहीं, रचनाएँ बजती हैं. और मेरी पसंदीदा हैं – लघुकथाएँ, व्यंग्य और बहुधा – घोर अपठनीय, गूढ़ कविताएँ और हाइकु. जी हाँ, आप घोर अपठनीय रचनाओं का आनंद भी ले सकते हैं. अपठनीय रचनाओं को ऐप्प आपके लिए पढ़ेगा, आपको सुनाएगा, और आप चाहे तो उसे अनसुना कर दें! और, यदि आपको मशीनी आवाज से दिक्कत है, तो सीधे स्टोरीटेल.कॉम में जाएँ, और वहाँ की प्रीमियम सेवा लेकर प्रोफेशनल तरीके से, मानव स्वर में रेकार्ड की गई रचनाओं का आनंद लें. कॉफ़ी हाउस कहवा और कहानियाँ जैसे निःशुल्क प्लेटफ़ॉर्म भी हैं जहाँ आपको जादू जी अपनी बालसुलभ आवाज में बालकहानियाँ भी सुनाते हैं. यदि आपको देखने-सुनने में आनंद आता है, तो यू-ट्यूब अथवा टिकटोक पर कहानी शब्द सर्च कर देख लें. तमाम विषयों की असीमित कहानियाँ आपके सम्मुख उपलब्ध हो जाएंगी. हाँ, किसी लिंक पर क्लिक या टैप करने से पहले ठहर कर गौर जरूर कर लें कि आप कौन सी लिंक खोलने जा रहे हैं – क्योंकि इंटरनेट पर कूड़ाकरकट भी बहुत है.
तो, फिर, आज से फ़ेसबुक-वाट्सएप्प बंद और यूट्यूबिंग-टिकटोकिंग शुरू?
धन्यवाद.
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