९ मई २०११ ९:२२ पूर्वाह्न को, Shailesh Bharatwasi ने लिखा: आदरणीय रवि जी, एक साहित्यिक पत्रिका है 'जनपथ' जो आरा से प्रकाशित होती है, ...
९ मई २०११ ९:२२ पूर्वाह्न को, Shailesh Bharatwasi ने लिखा:
आदरणीय रवि जी,एक साहित्यिक पत्रिका है 'जनपथ' जो आरा से प्रकाशित होती है, मैं इसके भाषा विशेषांक के लिए एक आलेख तैयार कर रहा हूँ। मैं हिन्दी कम्प्यूटिंग को लेकर आलेख तैयार कर रहा हूँ। चूँकि आप हिन्दी तकनीक के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षरों में से एक हैं, इसलिए आपके विचार महत्वपूर्ण है। कृपया आप निम्नलिखित प्रश्नों पर अपनी प्रतिक्रिया दें-
1) मानक हिन्दी कीबोर्ड (इनस्क्रिप्ट) की पहुँच आम जनता तक न होने की वजह क्या है?
क्योंकि आम जनता आमतौर पर कृतिदेव इस्तेमाल करती है या चाणक्य. इसके लिए रेमिंगटन लेआउट ही प्रचलन मे है.
2) मानक हिन्दी कीबोर्ड का इस्तेमाल किस हद तक और कहाँ-कहाँ हो रहा है?
इसका प्रयोग अब बढ़ रहा है. जो कंप्यूटर में हिंदी में गंभीर टाइप करना चाहते हैं उन्हें इनस्क्रिप्ट अपनाना ही होगा. वैसे, शौकिया जनता फ़ोनेटिक का ज्यादा प्रयोग कर रही है, क्योंकि हिंदी में हार्डवेयर कीबोर्ड मिलना टेढ़ी खीर है.
3) क्या आपको लगता है कि हिन्दी में टाइप कर लेने, स्पेल-चेकर, स्पीच टू टेक्सट, टेक्सट टू स्पीच आदि टूल विकसित कर लेने से कम्प्यूटर का संसार हिन्दी में बसाया जा सकता है?
बिलकुल. इन सब की अभी भी घोर कमी है, जो हिंदी कंप्यूटिंग की एडॉप्टेबिलिटी को कम करती है. एक हिंदी अकेला स्पेल चेकर - जो नोटपैड से लेकर वर्ड तक हर कहीं बढ़िया काम करे , वही हिंदी कंप्यूटिंग की दिशा बदल सकने की ताकत रखता है. मगर दुख की बात है कि अब तक कोई बढ़िया स्पेल चेकर ही नहीं है हिंदी में.
4) वो कौन-कौन से ऑपरेटिंग सिस्टम हैं जिनका यूज़र-इंटरफेस पूर्णतया हिन्दी या भारतीय भाषाओं में हैं। अन्य किन-किन भारतीय भाषाओं में यह सुविधा उपलब्ध है?
विंडोज़ एक्सपी तथा लिनक्स के कई संस्करण हिंदी, तमिल, बंगाली, गुजराती, मराठी, पंजाबी इत्यादि में हैं. लिनक्स में दीगर क्षेत्रीय भारतीय भाषाएँ यथा अवधी और छत्तीसगढ़ी में भी ऑपरेटिंग सिस्टम मिलता है.
5) ऑपरेटिंग सिस्टमों के देशी भाषाओं के यूज़र-इंटरफेस का इस्तेमाल कुल कितने कम्प्यूटरों पर हो रहा है? इसका कोई आँकड़ा उपलब्ध है? यदि नहीं तो आपका अनुमान क्या कहता है?
देशी भाषाओं में उपलब्ध तो है, मगर इनका प्रयोग नहीं के बराबर है क्योंकि अभी भी जनता जो कंप्यूटरों क प्रयोग करती है वो अंग्रेजीदां लोग हैं. क्षेत्रीय लोगों के पास कंप्यूटर आया ही नहीं है, उनकी कंप्यूटर खरीदने की औकात ही नहीं है. नहीं तो मामला कुछ और होता.
6) इनका बहुत अधिक प्रचार-प्रसार न होने पाने के पीछे कारण क्या है?
प्रचार-प्रसार तो हो रहा है, भारतीय भाषाई बॉस लिनक्स फोकट में बांट रहे हैं सिखा रहे हैं. मगर बात वही है, जो पहले ही अंग्रेजी जानता है सिर्फ और सिर्फ उसी के पास कंप्यूटर है, तो वो तो पहले ही अंग्रेजी में कंप्यूटर प्रयोग कर रहा है. उसे हिंदी या भारतीय भाषाएँ अजीब लगती हैं कंप्यूटर में. मामला तभी फिट बैठेगा जब अंग्रेजी नहीं जानने वाली जनता के पास भाषाई कंप्यूटर पहुँचेंगे, तब उन्हें अपनी भाषा में कंप्यूटर में काम करने का विकल्प मिलेगा, तब होगा एक वॉव फैक्टर. और, तब किसी प्रचार प्रसार की जरूरत नहीं होगी. लोग स्वयं अपनाएंगे आगे बढ़कर.
7) क्या प्रोग्रेमिंग लैंग्वेज के कमांड, कीवर्डों, ऑपरेटरों को भारतीय भाषाओं में लिखने (यूनिकोड की मदद से) की शुरूआत हो गई है? इसकी वर्तमान स्थिति से परिचित करायें।
हाँ, सभी आधुनिक प्रोग्रामिंग भाषाओं में यूनिकोड की सुविधा हो गई है, जिसका अर्थ है कि भारतीय भाषाओं में भी प्रोग्रामिंग अब संभव है. हालांकि अभी भी कॉम्प्लैक्स लैंगुएज - रेंडरिंग इत्यादि की समस्याएँ आती रहती हैं. माइक्रोसाफ़्ट के ताजातरीन डाटनेट डेवलपमेंट प्लेटफ़ॉर्म में आप हर किस्म के हिंदी के सॉफ़्टवेयर बना सकते हैं. लिनक्स में हर किस्म के सॉफ़्टवेयर को हिंदी (भारतीय) भाषा में बनाया भी जा सकता है और बढ़िया अनुवाद किया जा सकता है. अलबत्ता पूरा का पूरा कोड हिंदी में लिखने की सुविधा अभी नहीं है, और शायद ये आए भी नहीं.
8) ट्रांसलिटरेशन टूलों की लोकप्रियता और आम आदमी में उसकी सेंध हमें किधर ले जा सकती है?
कंप्यूटर की यही तो ख़ूबी है. हर किस्म की सहायता - आड़े-टेढ़े रूप में, जैसा भी बन पड़े. तो यदि मुझे चार लाइन के वाक्य लिखने हैं, तो मैं ट्रांसलिट्रेशन से क्यों न कर लूं? यदि मुझे अंग्रेजी में भी काम करना पड़ रहा है और या हिंदी का कीबोर्ड नहीं मिल रहा या याद नहीं हो रहा तो कमल लिखने के लिए Kamal टाइप करना बुरा तो नहीं है? मेरे विचार में यह एक सुविधा है, और अंततः आदमी को जोड़ता है. उसे किसी न किसी दिन इनस्क्रिप्ट जैसे आधुनिक कीबोर्ड की क्षमता का पता चलता है - मेरे समेत कई उदाहरण कई हैं रमण कौल, दिनेश राय द्विवेदी इत्यादि - तो वो शिफ़्ट हो जाता है.
9) अंग्रेज़ी भाषा की सामान्य समझ रखने वाला व्यक्ति क्या उन्नत सॉफ्टवेयरों का विकास कर सकता है?
बिलकुल. उन्नत सॉफ़्टवेयरों का विकास करने के लिए आपके पास साहित्यिक भाषाई योग्यता नहीं, बल्कि लॉजिकल रीजनिंग की योग्यता होनी चाहिए. बहुत से चीनी, जर्मनी, रूसी और दीगर भाषाई प्रोग्रामरों ने शानदार प्रोग्राम बनाए हैं.
10) दुनिया की 5 अधिकतम लोकप्रिय वेबसाइटों की बात करें, जिनका यूज़र इंटरफेस हिन्दी या भारतीय भाषाओं में भी है, का इस्तेमाल लगभग कितने प्रतिशत भारतीय करते हैं? आपका अनुमान क्या है?
सब के सब अखबार हैं. जागरण पहले नंबर पर है. वेब दुनिया, प्रभासाक्षी इत्यादि हैं. सटीक संख्या उपलब्ध नहीं है.
11) यदि इनकी लोकप्रियता कम है तो इसके पीछे कारण क्या है?
हिंदी में सार्थक सामग्री का अभाव है. जो भी उपलब्ध है वो सब समाचार नुमा तथा छिछली और अधकचरी किस्म की है. जब सामग्री बढ़ेगी तो प्रयोक्ता बढ़ेंगे, और जब प्रयोक्ता बढ़ेंगे तो सामग्री सृजित होगी. मामला साइक्लिक है - कार्बन साइकिल जैसा - तो शायद बढ़ने संभलने में देर लगे, मगर मामला दुरूस्त जरूर होगा देर सबेर.
12) आपको क्या लगता है कि पब्लिक सेक्टर के प्रयासों (राष्ट्रीय ई-गर्वनेन्स योजना, सार्वजनकि सेवा केन्द्र और स्वान) तथा प्राइवेट सेक्टर के प्रयासों (आईटीसी की ई-चौपाल, HUL की शक्ति, माइक्रोसाफ्ट का शिक्षा और गूगल इंटरनेट बस) से इंटरनेट की सेंध ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ी है?
मेरे विचार में नहीं. इंटरनेट की सेंध ग्रामीण क्षेत्र में मोबाइल क्रांति के जरिए बढ़ी है. आप देखेंगे कि आने वाले पांच वर्षों में जब इंटरनेट इनेबल्ड टचस्क्रीन मोबाइल उपकरण हजार दो हजार रुपए में मिलने लगेंगे, तब ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट प्रयोग का विस्फोट होगा. मगर यह विस्फोट भी तभी होगा जब वायरलेस / मोबाइल इंटरनेट की दर १००-२०० रुपए प्रतिमाह की रेंज में (फेयर यूसेज में असीमित प्लान) आ जाएगी.
13) और भी कुछ जो आप अपनी ओर से कहना चाहें।
हिंदी का भविष्य उज्जवल है. कंप्यूटिंग डिवाइसों या इंटरफ़ेसों में भले ही नहीं, मगर इंटरनेट पर तो अवश्य ही.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सूरदास जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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