प्राचीन काल में आदमी स्वास्थ्य लाभ करने के नाम पर हवापानी बदलता था. तपेदिक जैसी बीमारियाँ हवापानी बदलने से खुद-ब-खुद ठीक हो जाती थीं. आजकल, ...
प्राचीन काल में आदमी स्वास्थ्य लाभ करने के नाम पर हवापानी बदलता था. तपेदिक जैसी बीमारियाँ हवापानी बदलने से खुद-ब-खुद ठीक हो जाती थीं. आजकल, तकनीक की चहुँओर उन्नति के बावजूद मल्टी-ड्रग-रेजिस्टेंस आदि-इत्यादि के चलते हवापानी बदलने का सौभाग्य प्राप्त हो इसके पहले ही आदमी का त्रिलोक बदल जाता है. यानी आदमी के साथ साथ आदमी को बीमार करने वाले जीवाणु भी आदमी से अधिक तेज गति से उन्नति कर रहे हैं. डैंगू, चिकन-गुनिया, स्वाइन-फ़्लू, एड्स आदि ये बताते हैं कि आदमी कितनी भी तेजी से उन्नति कर ले, जीव-जंतु और जीवाणु उससे एक कदम आगे ही रहेंगे.
चलिए, बात तकनीकी हवापानी की हो रही थी. आज का आदमी आजकल हर मिनट हवापानी बदलने में सक्षम हो गया है. डेस्कटॉप हो या लैपटॉप या स्मार्टफ़ोन-टैबलेट हो या फ़ीचर फ़ोन. हर आदमी के पास इनमें से कोई न कोई उपकरण है, जिसमें वह व्यस्त रहता है. और इनमें मौजूद रहते हैं हवापानी बदलने के तमाम ऐप्प और प्रोग्राम. आदमी आधा घंटा फ़ेसबुक चलाया, तबीयत थोड़ी ऊबी, तो व्हाट्सएप्प पर चला गया. वहाँ संघी-वामी-आपिए-कांगी-वरिष्ठ-गरिष्ठ-साहित्यकार-व्यंग्यकार आदि-इत्यादि के बीच हो रहे चतुर्थ विश्वयुद्ध के हथियारों का अजीबोगरीब प्रयोग देख तबीयत नासाज सी हुई तो इंस्टाग्राम पर चला गया. वहाँ ब्रिटनी स्पीयर्सों, पेरिस हिल्टनों, जस्टिन बीबरों और प्रियंका चोपड़ाओं के फ़ोटो-सेल्फ़ियों को देख कर कुछ देर मन बहला. मगर जल्द ही फिर उकता गया तो फिर हवापानी बदलने की बात हो आई. दन्न से दूसरा पन्ना खोला और ब्लॉगरों की दुनिया में चले आए. वहाँ मन नहीं रमा तो लल्लनटाप और द-ऑनियन जैसी साइटों की और भाग लिए. हवापानी बदलने का यह सिलसिला अनवरत जारी रहता है.
थोड़ा अति उत्साही किस्म के लोग नई-नई तकनीक और गॅजेट में नियमित-इन्वेस्ट कर अपना हवापानी बदलने की असफल कोशिश करते रहते हैं. अपने व अपने घर के स्मार्टफ़ोनों, ब्लूटूथ स्पीकरों, मोटर-साइकिलों, कारों, स्मार्ट-वॉच, स्मार्ट-टीवी आदि-इत्यादि के महज छः माह पुराने मॉडलों को फेंक कर एकदम नया वाला मार्केट में ताज़ा जारी किया मॉडल लाकर अपना हवापानी बदलने की असफल कोशिश करते हैं. कार्निंग गोरिल्ला ग्लास का वर्जन 3 हो या 4, वे यह भूल जाते हैं कि यदि स्मार्टफ़ोन चार फ़ीट की ऊंचाई से गिरेगा, तो उसका टचस्क्रीन तो टूटेगा ही! आईपी 67 या 68 सर्टिफ़िकेशन वाला वाटर-डस्ट प्रूफ़ उपकरण होगा तो भी, यकीन मानिए, भारतीय भूमि में जहाँ हर आमो-खास का कदम कदम पर पसीना निकलने लगता है और धूल-गर्द से साबिका पड़ता है, ये उपकरण खुद के पसीने से भीग जाएंगे और खुद का धूल-गर्द बनाने लगेंगे और इस तरह खराब होने लगेंगे और आपको फिर से एक बार गॅजेटीय हवापानी बदलना पड़ सकता है – इस बार अवांछित रूप से.
नई तकनीकें और उनके कैची विज्ञापन आपको अपने उपकरणों के हवापानी बदलने को हर वक्त उत्साहित करते रहते हैं. आपने नया, इन-सेल एक्टिव 4के टीवी इधर खरीदा नहीं, इसका हवापानी बदलने को लालायित करता, 8के वाला मॉडल पीछे पीछे चला आता है. कुछ नहीं तो कंपनियाँ और ऑनलाइन स्टोर जब चाहे तब, त्यौहारों से परिपूर्ण भारत के ऑलटाइम त्यौहारी सीजन में अच्छे खासे छूट देकर हवापानी बदलने का लोभ देते रहते हैं जिनसे पीछा छुड़ाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी होता है. जरा याद करें, पिछली छूट में आपने न चाहते हुए भी, अनावश्यक होते हुए भी 32 जीबी का कार्ड लिया था या नहीं, जो कि आपके कबाड़ संग्रह में बिना उपयोग के पड़ा हुआ है. और, आप अपने पीसी/लैपटॉप के हार्डडिस्क की बात करना चाहेंगे? उसके हवापानी बदलने के चक्कर में आपने उसके भीतर कितना कूड़ा कबाड़ा एकत्र कर लिया है?
अंत में, एक प्रश्न - आपने अपनी ज्वैलरी का हवापानी बदला या नहीं? ऊपर दिए विज्ञापन का चित्र ध्यान से देखें. एवरीथिंग स्मार्ट के जमाने में स्मार्ट ज्वैलरी खरीदी या नहीं? नहीं? चलिए, जल्द ही अपनी ज्वैलरी संग्रह का हवापानी बदल डालिए.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन महिला असामनता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
हटाएंस्मार्ट ज्वैलरी की हवा पानी सही जमी है
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