अब आप यदि कन्फ़्यूज़ हो रहे हों, कि ये ‘अंकीय भारत’ क्या बला है, तो, केवल आपके लिए क्लीयर करे दे रहे हैं – दुकालूज़ डिजिटल इंडिया. तो, ...
अब आप यदि कन्फ़्यूज़ हो रहे हों, कि ये ‘अंकीय भारत’ क्या बला है, तो, केवल आपके लिए क्लीयर करे दे रहे हैं – दुकालूज़ डिजिटल इंडिया.
तो, किस्सा ये है कि जब दुकालू को पता चला कि उसका भारत, उसका अपना भारत, डिजिटल इंडिया बन गया है तो जाहिर है कि वो भी बड़ा खुश हुआ.
मारे खुशी के, उसने अपना स्मार्टफ़ोन उठाया और सोशल मीडिया में अपना खुशी वाला स्टेटस अपडेट करना चाहा. मगर ये क्या? उसके स्मार्टफ़ोन ने चेताया कि इंटरनेट अभी बंद है.
हद है! ब्रॉडबैंड फिर से बंद. कल ही तो पिछले पंद्रह दिनों से बंद ब्रॉडबैंड ठीक हुआ था. कोई न कोई सरकारी महकमा कोई न कोई प्लान जब देखो तब ले आता है और सड़क को खोद डालता है, जिसके कारण केबल कट जाता है. इन अनवरत किस्म के कामों के चलते पिछले छः महीने में सड़क पर कोई पचासवीं बार खुदाई हुई थी, और कोई उतनी ही बार दुकालू का इंटरनेट ब्रॉडबैंड बंद रहा था. लगता है कि किसी महकमे को कोई नया फंड जारी हुआ है, और अब वो इस फंड को खपाने को इस सड़क का इक्यावनवीं बार पोस्टमार्टम करेगा. यानी अब अगले पंद्रह दिनों के लिए ब्रॉडबैंड फिर से बंद.
चलो, कोई बात नहीं. दुकालू ने सोचा, डिजिटल होना है तो बैकअप प्लान से काम करना ही होगा. उसने मोबाइल डेटा चालू किया. यहाँ पर भी सिग्नल के आइकन में प्रश्नवाचक चिह्न लगा हुआ था – याने सिग्नल नहीं था. पिछले सप्ताह उसका मोबाइल डेटा कोई दो दिन बंद रहा था. बाद में अखबारों में समाचार पढ़कर पता चला था कि उसके क्षेत्र के मोबाइल टावर को कुर्क कर लिया गया था क्योंकि वो बिना अनुमति के पिछले दस सालों से चल रहा था. उड़ती खबर ये थी कि टावर चलाने वालों ने स्थानीय प्रशासन को हफ़्ता-महीना नहीं चुकाया तो कुर्की हो गई थी. अबकी बार भी शायद इसी तरह का कोई दूसरा मसला हो जिसके कारण मोबाइल सिग्नल बंद है.
दुकालू ने शांति बनाए रखी. स्टेटस अपडेट की ही तो बात है. अपनी डिजिटल होने की खुशी वो बाद में भी किसी अच्छे दिनों में व्यक्त कर लेगा.
दुकालू को याद आया कि उसे तो आज एक ई-फ़ॉर्म जरूरी में भरना था. इंडिया डिजिटल हो गई थी, सो ऑफ़िसों में अब काग़ज़ी फ़ॉर्म भरना मना था. उसका नेट बंद था, सो उसने सोचा कि चलो किसी साइबर कैफ़े या डिजिटल इंडिया सर्टिफ़ाइड कियास्क से वो ई-फ़ॉर्म भर लिया जाए.
कियास्कों में लंबी लाइनें लगी हुई थीं. हर किसी को कोई न कोई ई-फ़ॉर्म भरना था. पता चला कि कई मुहल्लों के इंटरनेट बंद हैं और कियास्कों पर लोग टूटे पड़ रहे हैं. भीड़ के कारण अथवा अन्य किसी दीगर कारण के चलते कियास्कों पर इंटरनेट स्लो है, जिससे लाइन बढ़ती ही जा रही थी. दुकालू को लगा कि इस कियास्क वालों ने कॉन्सपीरेसी कर उनके जैसों का ब्रॉडबैंड बंद करवाया है ताकि इनका धंधा बढ़िया चले. वह इस बारे में सोच ही रहा था कि एक रहस्यमय किस्म का आदमी उसके पास पहुँचा, और धीरे से उसी रहस्यमयी अंदाज से दुकालू को समझाया कि यदि उसे इस लंबी लाइन से छुटकारा पाना है और जल्दी से ई-फ़ॉर्म भरना है तो उसका काम प्रायरिटी में करवा सकता है जिसके लिए अलग से पैसे लगेंगे.
दुकालू खुश हो गया. उसे लंबी लाइन से निजात मिल गई. उसने तयशुदा ऊपरी पैसे देकर सौदा किया और मिनटों में अपना ई-फ़ॉर्म जमा की रसीद लेकर घर आ गया. इंडिया डिजिटल हुआ तो क्या हुआ, काम करने करवाने के रास्ते तो अब भी बढ़िया ही हैं – एनॉलॉग किस्म के.
दुकालू वापस घर आया. नेट नहीं है तो क्या हुआ. आज वो दिन भर टीवी देखेगा.
उसने टीवी सेटटॉप बॉक्स का रिमोट उठाया. अपना पसंदीदा सूर्यटीवी लगाया. वह ब्लैंक था. और उस पर कोई सूचना आ रही थी.
अरे! यह क्या? इस पर तो सरकार ने बैन लगा दिया है!
डिजिटल इंडिया जिंदाबाद! दुकालू फ्रस्ट्रेट होकर चिल्लाया. इधर पड़ोसियों को गपशप का नया विषय मिल गया – दुकालू पर फिर से देशभक्ति का दौरा पड़ा है.
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