ख बर है कि सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम एक अध्यादेश के जरिए ला रही है. लोकसभा चुनाव जो होने हैं अगले साल. इधर अपने एमपी में एक योजना चालू हुई...
खबर है कि सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम एक अध्यादेश के जरिए ला रही है. लोकसभा चुनाव जो होने हैं अगले साल. इधर अपने एमपी में एक योजना चालू हुई है, जाहिर है अपने इधर भी चुनाव होने का है - 1 रुपया किलो गेहूं-चावल की, जिसका टैगलाइन है – एक दिन कमाओ, महीने भर खाओ. यानी कि एक दिन कमा लो, बाकी के 29 दिन ठलुहा बैठे रहो और बस बैठे बैठे खाते रहो. उधर छत्तीसगढ़ में 2 रुपए किलो चावल प्रदान कर एक चाउर वाले बाबा प्रसिद्ध भी हो गए हैं – लोगों को अलाल बना कर – सुना है वहाँ लोगों को महीने में बस चार दिन काम करना होता है – महीने भर बैठ कर खाने के लिए. इस मामले में अपना एमपी आगे आ गया है. यहाँ आपको महीने में केवल एक दिन ही काम करना होगा, महीने भर खाने के लिए. और यदि खाद्य सुरक्षा अध्यादेश लागू हो गया तो आपके खाने की गारंटी जब सरकार ले ही रही है तो फिर एक या दो दिन भी काम करने की जरूरत ही क्या है.
ऐसे में यदि मुझे खाद्य सुरक्षा अधिनियम के साथ साथ इंटरनेट सुरक्षा अधिनियम जैसा कुछ मिल जाए, तो मेरे तो बल्ले बल्ले. मुझे किसी काम-धाम की कौनो जरूरत नाहीं, भले ही वो दुनिया का सर्वश्रेष्ठ काम क्यों न हो. जब घर बैठे बिना काम धाम किए खाना पीना और इंटरनेट मिलता रहे तो आदमी आखिर काम क्यों, किसलिए करे? और अगर यह योजना चल निकले तो कुछ दिनों बाद पता चलेगा कि इस देश का कोई भी आदमी काम ही नहीं करता है!
इसलिए, खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे बिल के बजाय सरकार को मॉल सुरक्षा अधिनियम बनाना चाहिए, जिसमें हर भारतीय को यह अधिकार मिले कि उसके रहने के ठौर ठिकाने के अधिकतम पाँच किलोमीटर के भीतर कोई न कोई एक मॉल (जी हाँ, शॉपिंग मॉल) हो.
अब आप पूछेंगे कि इससे होगा क्या? भाई, जरा ठंड रखिए और धीरज से सोचिए –
· शहर-शहर, गांव-गांव, मुहल्ले-मुहल्ले में शॉपिंग मॉल होने से सोचिए, कितनी नौकरियाँ निकलेंगी, कितना इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा होगा, कितना जीडीपी बढ़ेगा, कितना फ़ॉरेन इन्वेस्टमेंट आएगा!
· हजारों वर्गफुट में फैले मॉल में नित्य जा-जा कर घूम-घूम कर लोगों का बढ़िया व्यायाम होता रहेगा और स्वास्थ्य भी बढ़िया रहेगा. लोगों का दवाई दारू का खर्चा कम होगा.
· रीबॉक, नाईकी, बेन्नेटॉन और कलरप्लस के परिधानों और एपेरल की दुकानों में टंगे वस्त्रों और फ़ैशन परिधानों को देख देख कर लोगों में और ज्यादा धन कमाने की लालसा जागृत होगी, न कि एक दिन कमाओ तीस दिन खाओ जैसी अलाली प्रवृत्ति आएगी. आदमी इस तरह से दो-दो, तीन-तीन शिफ़्ट में काम करना प्रारंभ कर देगा. वो एक साथ एक नहीं, दो नहीं, बल्कि तीन-तीन नौकरियाँ करेगा – दिन में तीन-तीन शिफ़्ट में काम करेगा – जिससे – जीडीपी फिर से बढ़ेगा. कहाँ तो महीने में एक दिन काम करने वाली योजना और कहाँ यह – दिन में तीन शिफ़्ट में काम करने की योजना – अब बताइए भला, है कोई तुलना?
· नक्सली समस्या का चुटकियों में हल होगा - नक्सली इलाकों में हर पाँच किलोमीटर की दूरी पर मॉल खुल जाने से पहले तो नक्सली हथियार फेंक मॉल में चले आएगें, मॉल की वजह से जंगल कट जाएंगे उन्हें छिपने का स्थान ही नहीं मिलेगा, गांव के गांव मॉल में तबदील हो जाएंगे तो जंगल, गांव बचाने का नक्सलियों का एजेंडा ही ध्वस्त हो जाएगा, और इस तरह से नक्सली ही ध्वस्त हो जाएंगे बिना किसी प्रयास किए. हार्डकोर नक्सली भी मॉल में जब एक बार आएंगे तो उन्हें अपने दर्शन अपनी आइडियोलॉजी की फूहड़ता का अहसास हो जाएगा और वे भी आत्मसमर्पण कर मॉल कल्चर में शामिल हो जाएंगे.
· गांव वासी भी जब अपने गांव में खुले मॉल के आईनॉक्स में नई सुपरमैन फिल्म देखेंगे तो अरुंधतियों, मेधापाटकरों को जी भर कोसेंगे कि अभी तक उन्होंने अपने पर्सनल एजेंडे के तहत, गांव और संस्कृति बचाने के नाम पर उनका भयादोहन ही किया है, और गांवों में विकास नहीं होने दिया है – असली मजा तो शहर और मॉल में ही है, जिसके आनंद से अछूते रहे थे अब तक – बुरा हो इन जैसे विदेशी पैसों से पल रहे कार्यकर्ताओं का और धन्यवाद सरकार का कि उसने गांव वालों की सुन ली और मॉल सुरक्षा अधिनियम ले आए जिससे अब गांव-गांव मॉल खुल गए हैं और अब वे किसी मामले में शहर वालों से कम नहीं हैं.
· गांव के गांव मॉल खुल जाएंगे तो इकॉनामी भी तेज रफ़्तार पकड़ेगी और फिर अकाल-अवर्षा-सूखा जैसी बात भी नहीं रहेगी. मॉल में तो खाने पीने की चीजें, कोल्डड्रिंक, मिनरल वॉटर भरी पड़ी रहती हैं और अकसर इनमें एक खरीदो एक मुफ़्त पाओ की योजना भी चलती रहती है.
वैसे मॉल महिमा सूची अंतहीन है इतने कि गूगल के सर्वर भी टें बोल जाएं. मूल मुद्दा ये है कि सरकार को मॉल सुरक्षा अधिनियम जल्द से जल्द लाना चाहिए! देश के हर राज्य, हर शहर, हर गांव, हर मुहल्ले के हर नागरिक को मॉल मिले!
ताऊ की इच्छा हो रही है कि क्यों ना आपको मोंटेक सिंह अहलूवालिया की जगह deputy chairman of the Planning Commission बना दिया जाये, फ़िर देश को डायरेक्ट 25 वीं सदी में जाने से कौन रोक सकता है?
हटाएंरामराम.
वाह उस्ताद वाह!
हटाएंultimate.
हटाएंविकास की नयी नयी परिभाषायें और नये नये मानक।
हटाएंबहुत बढ़िया.. नक्सलियों ने दंबूकें शायद इसलिये ही तो उठायीं थीं
हटाएंक्या लिखा है. सच लिखा है. काँग्रेस भजपा और सारे नेता. लोगों को उल्लू बना रहे हैं. समस्याओं का नहीं खुद के लिए समाधान कर रहे हैं. इधर काम कर के भी भोजन नसीब नहीं वहां मजे मजे हैं. दो चार दिन नरेगा में जाना है. हा हा हा. कैसे और किसका होगा विकास. कुछ तो आम आदमी के लिए काला है?
हटाएंएकदम मौलिक चिन्तन- सब के बस का कहाँ !
हटाएंसही है
हटाएंमज़े हैं जिंदगानी के,कि जब तक सांस चलती है
हटाएंजिन्हें लेना है मौजें वे,भगे हालात से कब हैं !
- कितने-कितने पात्रों के रोल और एक जीवन,कोई भाग पाये भी कहाँ!
भाई मॉल की मांग का समर्थन हम तभी कर सकते हैं जब मॉल में बैठने के लिये बेंच भी लगवायीं जायें।
हटाएंमॉल सुरक्षा अधिनियम जल्द से जल्द लाना चाहिए :-)
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