हिंदी कंप्‍यूटिंग व इंटरनेटी हिंदी के छुपे रुस्‍तम (अनसंग हीरोज़)

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कुछ लोग घेले भर का काम करते हैं और टनों हल्‍ला मचाते हैं. कुछ हैं जो शांति से चुपचाप अपना काम पूरी शिद्दत से, पूरे मनोयोग से, पूरे समर्पण से...

कुछ लोग घेले भर का काम करते हैं और टनों हल्‍ला मचाते हैं. कुछ हैं जो शांति से चुपचाप अपना काम पूरी शिद्दत से, पूरे मनोयोग से, पूरे समर्पण से करते रहते हैं. ऐसे लोगों को न तो प्रसिद्धि की चाह होती है न लाइमलाइट की. हिंदी कंप्‍यूटिंग व इंटरनेटी हिंदी के लिए समर्पित भाव से काम कर रहे ऐसे ही हिंदी के कुछ मनीषियों से आपका परिचय करवाते हैं.

कंप्‍यूटिंग के लिहाज से हिंदी को बेहद जटिल भाषा माना जाता रहा है. क्‍योंकि इसके वर्ण आपस में असीमित संभावनाओं के साथ युग्‍म बना सकने की क्षमता रखते हैं जिन्‍हें समझ कर सही तरीके से प्रदर्शित कर पाना बड़े बड़े कंप्‍यूटर और सॉफ़टवेयर के बूते का भी नहीं हो पाया है आजतक. पेजमेकर और फोटो शॉप के नवीनतम संस्‍करणों में भी यूनिकोड हिंदी सही तरीके से आज भी नहीं दिखती. परंतु कंप्‍यूटरों में हिंदी को स्‍थापित करने के प्रयास कंप्‍यूटिंग इतिहास के जमाने से ही हो रहे हैं. आज हिंदी में विंडोज और लिनक्‍स आपरेटिंग सिस्‍टम उपलब्‍ध हैं. आपरेटिंग सिस्‍टम को हिंदी समेत भारतीय भाषाओं में लाने का एक प्रयास सीडैक द्वारा इंडिक्‍स नाम की परियोजना से किया गया था, परंतु वह असफल रहा था. इसी दौरान एक शख्‍स के दिमाग में आया कि क्‍यों न भारतीय भाषाओं में लिनक्‍स आपरेटिंग सिस्‍टम को लाया जाए. और उन्‍होंने अपनी कंपनी में एक अलग डेडिकेटेड सेल स्‍थापित किया और इंडलिनक्‍स नाम की परियोजना को पोषित किया. वह शख्‍स हैं - प्रकाश आडवाणी.

 

प्रकाश आडवाणी

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प्रकाश आडवाणी ने 1999 के आसपास फ्री-ओएस.कॉम नामक लिनक्‍स सेवा प्रदाता कंपनी की स्‍थापना की. इन्‍होंने अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर इंडलिनक्‍स नामक ईग्रुप की स्‍थापना की, जिसका उद्देश्‍य था भारतीय भाषाओं में कंप्‍यूटिंग सुविधा प्रदान करना. इंडलिनक्‍स नामक यह ईग्रुप बाद में इंडलिनक्‍स परियोजना बन गया और इसमें लिनक्‍स आपरेटिंग सिस्‍टम को भारतीय भाषाओं में लाने के प्रयोग प्रारंभ कर दिए गए. इसके लिए आरंभिक आधार भाषा हिंदी चुनी गई. प्रकाश आडवाणी ने इंडलिनक्‍स को अपनी कंपनी फ्री-ओएस.कॉम के जरिए पोषित करना जारी रखा. और जब प्रकाश आडवाणी बाद में अपनी कंपनी बंद कर नेटकोर सॉल्‍यूशन में अपनी सेवा देने चले गए तो इंडलिनक्‍स परियोजना को भी वहाँ ले गए और लंबे समय तक आर्थिक और तकनीकी सहायता प्रदान करते रहे.

तकनीकी दक्ष प्रकाश आडवाणी ने जल्‍द ही महसूस किया कि इंडलिनक्‍स परियोजना के लिए किसी सॉफ़टवेयर इंजीनियर की पूर्णकालिक सेवा लेना आवश्‍यक है तो उन्‍होंने जी. करूणाकर को इस काम के लिए रखा. करूणाकर की दक्षता से जल्‍द ही परिणाम आने लगे और वर्ष 2000 में लिनक्‍स तंत्र में पहला स्‍थानीयकृत प्रोग्राम सुषा फ़ॉन्‍ट की सहायता से तैयार कर लिया गया. उसी वर्ष विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी का यूनिकोड फ़ॉन्‍ट बना लिया गया, लिनक्‍स तंत्र में यूनिकोड समर्थन आ गया और यूनिकोड हिंदी प्रदर्शन हेतु भी तकनीक धीरे धीरे परिपूर्ण होने लगी. इसका प्रतिफल ये रहा कि वर्ष 2002 के आते आते लिनक्‍स बैंगलोर में हिंदी लिनक्‍स को जनता के समक्ष प्रदर्शित भी कर दिया गया.

प्रकाश आडवाणी तकनीकी लेखक भी हैं और अपने ब्‍लॉग http://cityblogger.com/  पर कंप्‍यूटिंग की नई तकनीकों के बारे में नित्‍य लिखते हैं.

 

जी. करूणाकर

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बेहद मितभाषी और शांत स्‍वभाव के जी. करुणाकर ने इंडलिनक्‍स परियोजना में अपनी सेवाएं जून 2000 से देना शुरु किया. प्रारंभ में हिंदी कंप्‍यूटिंग या भाषाई कंप्‍यूटिंग की तकनीकों पर न कोई दस्‍तावेज उपलब्‍ध थे और न ही कोई गाइडलाइन. तकनीक भी धीरे धीरे उपलब्‍ध हो रही थी. जी. करूणाकर ने ईंट-पर-ईंट रख कर इन बिखरी हुई चीजों को जोड़ा और दर्जनों फ़ोरमों में सक्रिय भागीदारी निभाते हुए न सिर्फ अपने लिए भाषाई कंप्‍यूटिंग का ज्ञान अर्जित किया, बल्‍कि दूसरों को भी शिक्षित किया. तेलुगु भाषी जी. करुणाकर लिनक्‍स के हिंदी स्‍थानीयकरण के आरंभिक हिंदी अनुवादक भी रहे और दो वर्ष के अल्‍प समय में ही जी. करूणाकर ने अथक प्रयास कर विश्‍व का पहला, भारतीय बहुभाषी लाइव लिनक्‍स सीडी मिलन व लिनक्‍स रंगोली के संस्‍करण जारी किए जो बेहद सफल रहे थे.

जी. करुणाकर ने अपने भाषाई कंप्‍यूटिंग संबंधी तकनीकी ज्ञान को समुद्र पारीय देशों में भी पहुँचाया है. मध्‍यपूर्व के देश और नेपाल और भूटान जाकर वहाँ के भाषाओं में भाषाई कंप्‍यूटिंग की नींव रखने में मदद की है. इंडलिनक्‍स के कोआर्डिनेटर के रूप में इन्‍होंने ग्‍नोम और केडीई के न सिर्फ हिंदी भाषा में स्‍थानीयकरण को कोआर्डिनेट किया बल्‍कि अन्‍य भारतीय भाषाओं के लिए भी तकनीकी सहायता मुहैया करवाई. खगोलशास्‍त्र के भी शौकीन जी. करूणाकर पिछले सूर्य ग्रहण के समय अपनी बड़ी सी दूरबीन लेकर सूर्य ग्रहण का पीछा करने निकल पड़े थे. अभी वर्तमान में इंटरनेट व कंप्‍यूटरों की सुरक्षा प्रदान करने हेतु एंटीवायरस बनाने वाली कंपनी सायमन्‍टेक में भाषाई इंजीनियर के रूप में कार्य कर रहे हैं.

 

देबाशीष चक्रवर्ती

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देबाशीष चक्रवर्ती इलेक्‍ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्‍नातक हैं और अपनी सेवाएं आरंभ में इन्‍होंने इलेक्‍ट्रिकल इंजीनियरिंग इंडस्‍ट्री में देना प्रारंभ किया. परंतु कुछ तो किशोर-वय के शौक और कुछ नया और विशिष्‍ट करने के शौक के तहत इन्‍होंने वेब दुनिया को अपनी सेवाएं देनी प्रारंभ की तो हिंदी कंप्‍यूटिंग व इंटरनेटी हिंदी व भाषाई कंप्‍यूटिंग टेक्‍नोलॉजी से परिचय हुआ. वर्तमान में वरिष्‍ठ सॉफ़टवेयर सलाहकार देबाशीष चक्रवर्ती को भारत के वरिष्‍ठ चिट्ठाकारों में गिना जाता है. वे कई चिट्ठे (ब्‍लॉग) लिखते हैं जिनमें भारतीय भाषाओं में कम्‍प्‍यूटिंग से लेकर जावा प्रोग्रामिंग तक के विषयों पर सामग्रियाँ होती हैं. उन्‍होंने विश्‍व का पहला हिंदी ब्‍लॉग एग्रीगेटर - चिट्ठा-विश्‍व बनाया. बाद में उन्‍होंने इंडीब्‍लॉगीज़ नाम का एक पोर्टल संस्‍थापित जिसने 2003 से 2008 तक भारतीय चिट्ठाजगत के सभी भारतीय भाषाओं के सर्वोत्‍कृष्‍ट चिट्ठों को प्रशंसित और पुर‍स्‍कृत कर विश्‍व के सम्‍मुख लाने का कार्य किया.

देबाशीष.डीमॉज संपादक.रहे हैं, तथा भारतीय भाषाओं में चिट्ठों के बारे में जानकारियाँ देने वाला पोर्टल चिट्ठाविश्‍व, अक्षरग्राम, निरंतर व सामयिकी नामक हिंदी ब्‍लॉग जीन और हिंदी पॉडकास्‍ट पॉडभारती जैसे प्रकल्‍पों को भी प्रारंभ किया या उनसे जुड़े. आपने बहुत सारे सॉफ़टवेयर जैसे कि वर्डप्रेस, इंडिकजूमला, आई-जूमला,पेबल, स्‍कटल इत्‍यादि के स्‍थानीयकरण (सॉफ़टवेयर इंटरफ़ेसों का हिन्‍दी में अनुवाद) का कार्य भी किया है. आपने हिंदी इंटरनेट जगत में बहुत से नए विचारों को जन्‍म दिया जैसे कि बुनो-कहानी नाम का समूह चिट्ठा, जिसमें बहुत से चिट्ठाकार मिल जुल कर एक ही कहानी को अपने अंदाज से आगे बढ़ाते हुए लिखते हैं तथा अनुगूंज जिसमें एक ही विषय पर तमाम चिट्ठाकार अपने विचारों को अपने अंदाज में लिखते हैं इत्‍यादि. उन्‍होंने हिन्‍दी विकिपीडिया, सर्वज्ञ तथा शून्‍य.कॉम पर भी हिन्‍दी संदर्भित विषयों पर अच्‍छा खासा लिखा. देबाशीष चक्रवर्ती हालांकि आजकल हिंदी कंप्‍यूटिंग व हिंदी इंटरनेट पर उतने सक्रिय नहीं हैं, मगर इनके आरंभिक योगदान को नकारा नहीं जा सकता.

 

आलोक कुमार

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आदि चिट्ठाकार के नाम से मशहूर आलोक कुमार को हिंदी के पहले ब्‍लॉगर होने का श्रेय जाता है. वैसे तो विनय जैन ने अपने मूल अंग्रेजी भाषी चिट्ठे हिंदी में जांच परख हेतु हिंदी में सर्वप्रथम ब्‍लॉग पोस्‍ट लिख लिया था, मगर हिंदी का परिपूर्ण, पहला ब्‍लॉग आलोक कुमार ने नौ-दो-ग्‍यारह नाम से बनाया. आलोक ने जब देखा कि कंप्‍यूटरों में यूनिकोड हिंदी में काम करने में लोगों को बड़ी समस्‍या आती है तो उन्‍होंने देवनागरी.नेट नाम का एक हिंदी-संसाधन साइट बनाया जिसमें हिंदी कंप्‍यूटिंग से संबंधी तमाम समस्‍याओं को दूर करने के उपाय व अन्‍य संसाधन उसमें मुहैया करवाए. सैकड़ों हजारों लोगों ने इस साइट का प्रयोग हिंदी कंप्‍यूटिंग व इंटरनेटी हिंदी सेटअप करने में प्रयोग किया और अभी भी करते हैं. देवनागरी.नेट नाम की साइट अगर नहीं होती तो हिंदी कंप्‍यूटिंग के लिए लोग बाग़ और भटकते तथा लोगों के लिए हिंदी कंप्‍यूटिंग की राह उतनी आसान नहीं होती. आलोक कुमार ने हिंदी ब्‍लॉग के बहुभाषी, लोकप्रिय एग्रीगेटर चिट्ठाजगत को बनाने व मेंटेन करने में भी अपनी सेवाएं दी तथा गिरगिट नामक लिपि-परिवर्तक को आनलाइन प्रस्‍तुत करने में भी योगदान दिया. आपने लिनक्‍स के अंग्रेजी गाइड को हिंदी में अनुवाद कर प्रस्‍तुत करने का आरंभिक काम भी किया.

 

अनुनाद सिंह

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हिंदी के प्रति जी जान से समर्पित अनुनाद सिंह बिना किसी शोर के, बिना किसी लाइम लाइट में आए, अपना काम करते रहते हैं. उनके द्वारा किए गए योगदानों को अगर यहाँ सूचीबद्ध किया जाए तो इस पत्रिका के पूरे पन्ने भी कम पड़ें और एक अतिरिक्त विशेषांक निकालना पड़े. यही नहीं, नाम व यश से निस्‍पृह अनुनाद सिंह ने अपना प्रोफ़ाइल इंटरनेट पर कहीं भी सार्वजनिक नहीं किया है. अनुनाद सिंह हिंदी कंप्‍यूटिंग व हिंदी इंटरनेट टेक्‍नोलॉजी की ओर अपनी व्‍यक्तिगत रुचि से जुड़े और सैकड़ों लोगों की हिंदी तकनीकी संबंधी समस्‍याओं को स्‍वयं सीख कर फिर दूसरों को समझाने व सुलझाने का प्रयास किया. तकनीकी हिंदी समूह के मॉडरेटर के रूप में हिंदी कंप्‍यूटिंग संबंधी हजारों प्रश्‍नों के त्‍वरित उत्तर प्रदान किए तथा श्री नारायण प्रसाद के साथ मिलकर सैकड़ों फ़ॉन्‍टों हेतु ब्राउजर आधारित फॉन्‍ट कन्‍वर्टरों को निःशुल्‍क प्रयोग के लिए जारी किया. इस पत्रिका समेत तमाम दुनियाभर में त्‍वरित फ़ॉन्‍ट कन्‍वर्टरों के लिए इसी समूह के फ़ॉन्‍ट कन्‍वर्टरों का ही प्रयोग करते हैं. आपने यूनिकोड हिंदी से ब्रेल लिपि परिवर्तक भी तैयार किया जिससे हिंदी के किसी भी पन्ने का ब्रेल लिपि प्रिंटर पर प्रिंटआउट लिया जा सकता है.

हिंदी विकिपीडिया में एक लाख से अधिक पन्ने जोड़ने का काम अनुनाद सिंह के अथक प्रयत्‍नों के जरिए ही संभव हुआ. मोजिल्‍ला फायरफाक्‍स के हिंदी के लिए कई एक्‍सटेंशन आपने बनाए तथा अभी हाल ही में आपने हिंदी के सिंपल डिक्‍शनरी एप्‍लीकेशन हेतु शब्‍दकोश मुहैया कराने में बड़ी भूमिका निभाई है.

वैसे तो और भी महारथी हुए हैं हिंदी कंप्‍यूटिंग और इंटरनेटी हिंदी के क्षेत्र में, मगर सभी के बारे में चर्चा कर सकना यहाँ संभव नहीं है, अतः उनके बारे में भविष्‍य में फिर कभी बातें होंगी.

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हिंदी सप्ताह में आपके लिए एक धमाकेदार खबर लेकर आने वाले हैं. तो देखते रहिए इन पृष्ठों को.

COMMENTS

BLOGGER: 32
  1. बढिया आलेख और जानकारी , काफी मेहनत से सं​कलित

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  2. इस पोस्ट के माध्यम से कुछ नया जान पाया।

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  3. अधिकतर के संपर्क में रहा जब हिन्दी ब्लॉगिंग शुरू की थी, उनके बारे में पढ़कर अच्छा लगा ।

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  4. हिंदी पुत्रों को उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं.

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  5. आप सबको प्रणाम है, स्तुत्य कार्य है यह।

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  6. इन महानुभाओं का समर्पण अनुकरणीय है!

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  7. सभी महानुभावों को हमारा भी प्रणाम है ... जिन्होंने भाषा की सच्ची सेवा की है ...

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  8. सच में इनका योगदान अतीव महत्व का है। सर्वश्री आलोक, देबाशीष व अनुनाद से तो पूर्व परिचित हूँ किन्तु बाकी 2 दूसरे नाम मेरे लिए भी नए हैं।
    सभी को हमारी ढेरों शुभकामनाएँ !

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  9. हिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें ...

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  10. धमाकेदार खबर का इंतजार है।
    इन सबों के काम का महत्व हमेशा रहेगा।

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  11. हिन्‍दी दिवस के दिन हिन्‍दी के लिए सार्थक तौर पर हो रहे कार्यों और कर्मयोगियों से परिचय ने दिन को कुछ तो सार्थक बनाया ही है।

    प्रकाश आडवाणीजी और जी करुणाकर के बारे में पहली बार जानकारी मिली है, बाकी लोगों के बारे में तो अर्से से पता है..

    बेहतरीन जानकारी के लिए आभार...

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  12. मुझे लगता है इस पोस्ट के आगे शायद हमारे देश के सभी हिंदी न्यूज़ पेपर फ़ैल हैं. वही काम चालू लेख हिंदी दिवस पर. मुझे आज बहुत ही अच्छी जानकारी प्राप्त हुई. मुझे लगता है कि गवर्नमेंट को इन हिंदी के नायकों को पुरुस्कृत करना चाहिए.

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    उत्तर
    1. भगत सिंह जी,
      ऐसा नहीं है, यह आलेख जागरण के राष्ट्रीय एडीशन में भी आज ही छपा है.

      आज का जागरण राष्ट्रीय संस्करण पेपर पेज 9 देखें.

      पेज 1 ईपेपर की लिंक है जहाँ से आप पेज 9 पर जा सकते हैं -
      http://epaper.jagran.com/epaper/14-sep-2012-262-delhi-edition-national-Page-1.html

      हटाएं
    2. लेकिन वहां भी लेखक तो आप ही हैं

      हटाएं
  13. जय हो !
    सरजी, एक नाम छुट गया है - रवि रतलामी.

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    उत्तर
    1. abhishek ji aapke blog pe ja nhi pata hu, page baar baar expire ho jata hai, kya baat hai?

      हटाएं
  14. जय हो .
    एक नाम छुट गया है - रवि रतलामी.

    जवाब देंहटाएं
  15. रविजी,
    आप बडे विनम्र हैं!
    लीजिए, यदि आप अपना नाम नहीं जोड सकते, तो हम जोड देते हैं।
    आपका योगदान भी कम नहीं है।
    आपके लेखों से हमें बहुत जानकारी मिली और सहायता भी।

    देबाशीषजी ओर अनुनादजी से पहले से ही परिचित था।
    कुछ साल पहले, जब मैं पहली बार कम्प्यूटर पर हिन्दी में लिखने की कोशिश कर रहा था तो बडी मुसीबतों का सामना करना पडा था।
    देबाशीषजी को लिखकर मदद माँगी थी।
    मुझे याद है देबाशीष के कुछ सुझावों से मुझे सफ़लता मिली और तबसे हम हिंदी ब्लॉग जगत से जुडने में सफ़ल हुए।

    अनुनादजी मेरे साथ एक हिन्दी ई ग्रूप के सदस्य रहे हैं और उनके नाम से भी मैं परिचित हूँ।
    पता नहीं देबाशीषजी और अनुनादजी को मेरा नाम याद है कि नहीं।
    उन दोनों को और अन्य लोगों को भी मेरा धन्यवाद और प्रणाम।

    इन सब लोगों के बारे में जानकारी देने के लिए आपको भी मेरा धन्यवाद और प्रणाम।
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  16. सभी ज्ञान दाताओं को प्रणाम जिनके कारन अभी मैं नेट पर लिख रहा हूँ . साथ ही ज्ञान वर्धन के लिए आप भी प्रणाम स्वीकारें

    जवाब देंहटाएं
  17. ये सभी महानुभाव हमारे लिए प्रेरणास्रोत हैं। सभी को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  18. कृतज्ञ है हम इन कर्म योगियोँ के.

    आप सहित

    जवाब देंहटाएं
  19. .
    .
    .
    वाकई कृतज्ञ हैं और रहेंगे हमेशा हम, इन कर्म योगियोँ-मनीषियों के... और आपके भी... सोचता हूँ कभी कभी कि आज के युग में यदि ऋषि होते तो वे आप छहों जैसे ही तो दिखते...

    पुन: आभार!


    ...

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  20. charcchakar cha charchit hindi-putra ko naman



    pranam.

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  21. अनसंग हीरोज के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। इस पोस्ट के लिये धन्यवाद!!

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  22. बहुत बहुत शुक्रिया आपका गुप्त सेनानियों के बारे में जानकारी देने के लिए.

    जवाब देंहटाएं
  23. हिन्दी के इन अभूतपर्व हिन्दी सेवकों से आज परिचित हुआ और इसका आपकों धन्यवाद और आपके तथा इन लोगों का साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  24. धन्यवाद रविजी, आपका योगदान भी महत्वपूर्ण है.हिंदी ब्लॉग जगत आप लोगो का कृतज्ञ है .

    जवाब देंहटाएं
  25. रवि जी सहित हिन्दी कम्प्यूटिंग के सभी निर्माताओं को प्रणाम। रवि जी, इन गुमनाम अग्रदूतों की जानकारी देने के लिए बहुत धन्यवाद और आभार।

    जवाब देंहटाएं
  26. ये सब (आप सहित) स्तम्भ हैं जिनके आधार पर हम जैसे बहुत से लोग खुद को अभिव्यक्त कर पा रहे हैं| आप सबको, और ऐसे ही अन्य unsung heroes को हार्दिक धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं
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छींटे और बौछारें: हिंदी कंप्‍यूटिंग व इंटरनेटी हिंदी के छुपे रुस्‍तम (अनसंग हीरोज़)
हिंदी कंप्‍यूटिंग व इंटरनेटी हिंदी के छुपे रुस्‍तम (अनसंग हीरोज़)
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छींटे और बौछारें
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