आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 497 वकील और दादी माँ वकीलों को दाद...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
497
वकील और दादी माँ
वकीलों को दादी माँ से ऐसे प्रश्न करने ही नहीं चाहिए थे जिनके उत्तर वे सुन न सकें। एक छोटे शहर की अदालत में अभियोजन पक्ष के वकील ने अपने पहले गवाह के रूप में एक बुजुर्ग दादी माँ को कटघरे में बुलाया।
उनके पास जाकर वकील ने उनसे पूछा - “श्रीमती जोन्स, क्या आप मुझे जानती हैं? “
दादी ने उत्तर दिया - “हां-हां क्यों नहीं मि. विलियम्स! मैं तुम्हें तब से जानती हूं जब तुम जवान थे। और यदि मैं साफ-साफ कहूं तो तुमने मुझे बहुत निराश किया है। तुम झूठे हो, तुमने अपनी पत्नी को धोखा दिया है, तुम लोगों से झूठ बोलकर उन्हें फुसलाते हो और पीठ पीछे उनकी बुराई करते हो। तुम अपने आप को तीसमार खां समझते हो जबकि तुम्हारे पास इतनी भी अक्ल नहीं है कि अपने आप को समझ सको। हां मैं तुम्हें जानती हूं मि. विलियम्स! “
वकील भौचक्का रह गया! जब उसे कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करे, उसने बचाव पक्ष के वकील की ओर इशारा करते हुए पूछा - “श्रीमती जोन्स, क्या आप बचाव पक्ष के वकील को जानती हैं? “
दादी ने फिर उत्तर दिया - “क्यों नहीं, जरूर जानती हूं! मैं मि. ब्रैडले को उनकी जवानी के समय से जानती हू। वे आलसी, कट्टर और शराबी हैं। वे किसी से भी सामान्य संबंध नहीं रख सकते और उनकी वकालत पूरे राज्य में सबसे खराब है। यह कहने की बात नहीं है कि उन्होंने अपनी पत्नी को धोखा दिया है और उसके तीन महिलाओं के साथ संबंध रहे हैं जिसमें से एक तुम्हारी पत्नी है। हां मैं उसे जानती हूं! “
बचाव पक्ष का वकील सन्न रह गया।
यह सुनकर जज महोदय ने दोनों वकीलों को अपने नजदीक बुलाया और धीरे से कहा - “खबरदार जो तुम लोगों ने उस महिला से मेरे बारे में पूछा। मैं तुम दोनों को हवालात भेज दूंगा। “
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तीन गहरे दार्शनिक मजाक
जेल के वार्डन से पूछा गया - “कैदियों के भाग जाने के बारे में तुम क्या जानते हो? क्या तुमने बाहर जाने के सभी दरवाज़ों पर ताला नहीं लगाया था? “
वार्डन ने संकोचपूर्वक उत्तर दिया - “हम बाहर जाने के सभी दरवाज़ों पर ताले लगाते हैं। शायद कैदी अंदर आने के दरवाज़े से भागे होंगे? “
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पिता ने खेल के मैदान में अपने पुत्र जिमी को दूसरे लड़के के ऊपर बैठा हुआ पाया।
जिमी के पिता ने उससे पूछा - “तुम जॉर्ज को इस तरह क्यों दबाये हुए हो? “
“उसने मुझे आँख में मारा है। “
पिता ने पूछा - “कितनी बार मारा है? मैंने तुमसे कितनी बार कहा है कि अपना आपा खोने के पूर्व सौ तक गिनती गिना करो। “
जिमी ने उत्तर दिया - “मैं सौ तक गिनती गिन रहा हूं। मैं उसके ऊपर इसलिए बैठा हूं ताकि वह गिनती पूरा होने तक भाग न जाए। “
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जॉनी को टीका लगाने के तुरंत बाद डॉक्टर ने टीका लगाने की जगह पर पट्टी बांधनी शुरू की। जॉनी ने डॉक्टर को रोकते हुए दूसरे हाथ पर पट्टी बांधने को कहा।
डॉक्टर ने पूछा - “ऐसा क्यों जॉनी? पट्टी तो उसी हाथ में बंधनी चाहिए जिस पर जख्म है ताकि तुम्हारे स्कूल के साथी उस पर चोट न पहुंचायें। “
जॉनी ने जिद करते हुए कहा - “डॉक्टर साहब, दूसरे हाथ पर ही पट्टी बांधिये। आप मेरे स्कूल के बच्चों को नहीं जानते। “
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पुत्र की तस्वीर
कृपा बहुत बूढ़ा हो गया था। उसका शरीद दुर्बल और कमजोर हो गया था।
उसके चेहरे पर दुःख और उम्र की परछाईं थी। उसकी दृष्टि भी धुंधली पड़ गयी थी। उसका इकलौता पुत्र युद्ध में शहीद हो गया था। उसको अपने पुत्र की मृत्यु का इतना ग़म था कि उसने जीने की आस ही छोड़ दी थी। एक दोपहर उसके दरवाज़े पर एक व्यक्ति ने दस्तक दी - “मैं भी आपके पुत्र की रेजीमेंट में सैनिक था। मैं उसकी मृत्यु के समय उसके साथ था। जो गोली उसे लगी दरअसल उसपर मेरा नाम लिखा था। वह गोली और मेरे बीच में आ गया। मेरा ये जीवन उसी का दिया हुआ है। मैंने आपके पुत्र की तस्वीर बनायी है। कृपया इसे उपहार के रूप में स्वीकार करें। “ कृपा कला का सच्चा पारखी था। उसके घर की दीवारों पर बहुमूल्य कलाकृतियां लगी हुयी थीं लेकिन यह तस्वीर उसके दिल को छू गयी।
कई वर्ष बाद कृपा का भी निधन हो गया। उसके वकील के पास अंत्येष्टि क्रिया के बाद पढ़े जाने के लिए एक पत्र था। वकील ने कहा - “इसके पहले कि मैं कृपा द्वारा संपत्ति के बारे में की गयी वसीयत को पढ़ूं, मेरे पास उनकी सबसे बहुमूल्य चीज, इन कलाकृतियों, के बारे में दिए गए निर्देश हैं। निर्देशों के अनुसार मुझे इन कलाकृतियों की नीलामी करनी होगी और सबसे पहले उनके पुत्र की तस्वीर की नीलामी होगी। “ यह कहते हुए वकील ने उस सैनिक द्वारा बनायी गयी तस्वीर को सामने रखा। लेकिन उस तस्वीर का कोई खरीददार सामने नहीं आया। बार-बार वकील ने उस तस्वीर की नीलामी के लिए आवाज़ लगायी किंतु कोई भी उस तस्वीर को खरीदने के लिए तैयार नहीं हुआ।
अंत में परिवार का एक पुराना माली सामने आया। अपनी फटी हुयी जेब से पैसे निकालते हुए बोला - “मेरे पास इस तस्वीर को खरीदने के लिए सिर्फ रु. 27/- हैं। “ वकील ने एक....दो...तीन...बोला और कहा - “ये तस्वीर तुम्हारी हुयी। “ इसके बाद उसने अपनी जेब में रखा लिफाफा निकाला और उसे फाड़ते हुए वसीयत को बाहर निकाला। वसीयत में लिखा था - “जो भी वयक्ति मेरे पुत्र की तस्वीर को खरीदेगा, उसे मेरी बाकी सभी कलाकृतियां दे दी जायें। मेरी बाकी संपत्ति नीलामी कर दी जाए और उससे प्राप्त धन से युद्ध में मारे गए सैनिकों के अनाथ बच्चों के लिए अनाथालय बनवाया जाये। “
इस तरह उसकी वसीयत पूरी हुयी।
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मैं फिर कभी शिकायत नहीं करूंगा
1970 के दशक की बात है। एरिजोना इलाके से गुजर रहा एक व्यक्ति भारी बारिश के बीच एक गैस स्टेशन पर अपनी कार में गैस भरवाने के लिए रुका। भारी बारिश के बीच वह अपनी कार में ही बैठा रहा जबकि उस गैस स्टेशन पर मौजूद कर्मचारी ने भीगते हुए उसकी कार में गैस भरी। वहां से जाते समय उसने गैस स्टेशन के कर्मचारी से कहा - “मुझे माफ करना। मैंने तुम्हें इतनी बारिश में परेशान किया। “
कर्मचारी ने उत्तर दिया - “आपको माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं है। इस काम में मुझे कोई तकलीफ नहीं हुयी। जब मैं वियतनाम युद्ध के दौरान शत्रुओं की घेराबंदी में फंसा हुआ था, उसी समय मैंने निश्चय कर लिया था कि यदि मैं वहां से जीवित निकलने में कामयाब हो जाता हूं तो जीवनभर फिर कभी शिकायत नहीं करूंगा। इसके बाद मैंने कभी शिकायत नहीं की। “
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मुँह पर तमाचा
प्रायः कई लोग (मैं भी) शिक्षकों को कहते रहते हैं कि उन्हें ऐसा होना चाहिए, उन्हें वैसा होना चाहिए....इत्यादि।
एक दिन एकलव्य स्कूल की एक टीचर से मैंने कहा कि मैं स्वयं कुछ कक्षायें लूंगा और बताऊंगा कि कैसे पढ़ाया जाता है।
कक्षा 7 (या शायद कक्षा 8 की, मुझे ठीक से याद नहीं) की अंग्रेजी पुस्तक में डी.एच.लॉरेंस की कविता “द मॉसक्वीटो “ है। लॉरेंस मेरे पसंदीदा कवि हैं इसलिए मैंने सोचा कि पहले मैं ओवरहैड प्रोजैक्टर पर लॉरेंस का विस्तृत परिचय दूंगा। मैंने सोचा कि मैं उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में बताऊंगा कि वे कितने गरीब थे और किस तरह गर्मी से भरे किचन में ही सोया करते थे (मैंने नाटिंघम, इंग्लैड स्थित डी.एच.एल. का वह घर देखा है जहां वे बड़े हुए थे।) मैंने सोचा कि मैं विद्यार्थियों को यह बताऊंगा कि किस तरह डी.एच.एल. अपने प्रोफेसर की पत्नी के प्रेम में पड़कर इटली या जर्मनी भाग गए थे, जहाँ उनके द्वारा सर्वश्रेष्ठ साहित्य की रचना की गयी। (मेरा यह सोचना था कि लोगों को यह विचार बेहद पसंद आएगा।)
स्कूल टीचर ने जून में (जब शैक्षणिक सत्र प्रारंभ हुआ।) मुझे बताया कि पाठ्यक्रम के अनुसार वह कविता मध्य सितंबर में पढ़ायी जानी है। मेरे पास काफी क्त था इसलिए मैंने अच्छी तरह से तैयारी की और आकर्षक प्रस्तुतियां तैयार कीं। मैंने सितंबर आने का इंतजार किया। टीचर ने मुझे बताया कि उन्होंने इस कक्षा के दो पीरियड लिए जाने की योजना बनायी है। मैंने उनसे कहा कि दो अलग-अलग पीरियड की जगह एक सम्मिलित पीरियड आयोजित किया जाए। टीचर ने मेरी बात मानकर सम्मिलित पीरियड आयोजित किया (लेकिन इसके कारण कक्षाओं की समय-सारणी में व्यापक परिवर्तन करने पड़े। इसके बाद मैंने निर्णय लिया कि यह सभी के लिए कष्टदायी होता है और भविष्य में ऐसे सम्मिलित पीरियड आयोजित करने की आवश्यकता नहीं है।)
मैंने अपनी कक्षा प्रारंभ की। यह कक्षा 8ए और 8बी की सम्मिलित कक्षा थी अतः मुझे एक ही विषय दो बार पढ़ाने की आवश्यकता नहीं थी। छात्र उत्तेजित थे कि सुनील सर स्वयं पढ़ाने आ रहे हैं। मेरे लिए भी यह अनूठा अनुभव था जिससे मेरे बचपन की वे यादें ताजा हो गयीं जब मैंने अपने अंग्रेजी टीचर एस.डब्ल्यु. चंद्रशेखर से यह कविता पढ़ी थी (1971 में हैदराबाद पब्लिक स्कूल में)। मैंने छात्रों में डी.एच.एल. को लेकर उत्सुकता जागृत कर दी (उन दिनों डी.एच.एल. नामक कोरियर कंपनी अपने जंबो बॉक्स का खूब विज्ञापन कर रही थी, जिससे जब भी मैं डी.एच.एल. का नाम लेता, छात्रों को उनका नाम सुनकर हंसी-ठिठोली करने का अवसर प्राप्त होता।)
इन सभी प्रस्तावनाओं के बाद मैंने सोचा कि अब सभी छात्र कविता पढ़ाये जाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं अतः मैंने कक्षा में मौजूद छात्रों से कविता की पहली दो पंक्तियां पढ़ने के लिए कहा। कविता पढ़ने के लिए उठे हाथों में से मैंने एक छात्र का चयन किया जिसने पूरी गंभीरता से उस कविता की पहली दो पंक्तियां पढ़कर सुनायीं और बैठ गया। अब उस बेहतरीन और अविस्मरणीय कविता का सार समझाने की मेरी बारी थी!
तभी घंटी बज गयी!
मैंने समय तो खर्च किया परंतु अपना कार्य पूरा नहीं कर पाया (सच कहें तो मैंने अभी शुरू ही किया था)। यह मेरे मुंह पर करारा तमाचा था। ऐसे सभी लोग जो हर समय टीचरों को यह कहते रहते हैं कि उन्हें कैसे पढ़ाना चाहिए और कैसे नहीं, क्या करना चाहिए और क्या नहीं...........अब ऐसे लोगों के बारे में मैं क्या कहूं? यह जाहिर ही है, है ना?
(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.)
(समाप्त)
जज, पहले ही डर गया की कंही उसके कर्मो का भांडा ना फूट जाये. इसीलिए उसने दोनों वकीलों को कहा की वह उन्हें हवालात में भेज देगा.
जवाब देंहटाएंअच्छा है.
दादी को सब मालूम है..
जवाब देंहटाएंलाजावाब संग्रह..
जवाब देंहटाएंBahut pyara va sacha prayas hai.kahania bahut pyari va shikshaprad hai .dhayavad
जवाब देंहटाएंलाजावाब संग्रह
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन संग्रह है आप दोनो को साधुवाद
जवाब देंहटाएंNic
जवाब देंहटाएंNic
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा संग्रह,,,,,,
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