आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 493 चार्ली चैपलिन एक बार चार्ली ...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
493
चार्ली चैपलिन
एक बार चार्ली चैपलिन ने समाचार पत्र में एक विज्ञापन देखा कि शहर में “चार्ली चैपलिन जैसा दिखो “ प्रतियोगिता का आयोजन हो रहा है। चार्ली चैपलिन ने भी उस प्रतियोगिता में भाग लिया, परंतु हार गए।
प्रतियोगिता में हारने के बाद वे बोले - “बनावटी वेशधारी व्यक्ति जीत गया और वास्तविक व्यक्ति हार गया। वे मेरी वेशभूषा की नकल तो कर सकते हैं किंतु मेरे दिमाग और सोच की नहीं। मुझे इस प्रतियोगिता को हारने की खुशी जीतने वाले व्यक्ति से ज्यादा है क्योंकि मैं ही वास्तविक चार्ली चैपलिन हूं। “
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सबसे सटीक उत्तर
गणित की टीचर ने 07 वर्ष के अर्नब को गणित पढ़ाते समय पूछा - “यदि मैं तुम्हें एक सेब, एक सेब और एक सेब दूं तो तुम्हारे पास कुल कितने सेब हो जायेंगे? “ कुछ ही सेकेण्ड में अर्नब ने उत्तर दिया - “चार! “
नाराज टीचर को अर्नब से इस सरल से प्रश्न के सही उत्तर (तीन) की आशा थी। वह नाराज होकर सोचने लगी - “शायद उसने ठीक से प्रश्न नहीं सुना। “ यह सोचकर उसने फिर प्रश्न किया - “अर्नब ध्यान से सुनो, यदि मैं तुम्हें एक सेब, एक सेब और एक सेब दूं तो तुम्हारे पास कुल कितने सेब हो जायेंगे? “
अर्नब को भी टीचर के चेहरे पर गुस्सा नजर आया। उसने अपनी अंगुलियों पर गिना और अपनी टीचर के चेहरे पर खुशी देखने के लिए थोड़ा हिचकिचाते हुए उत्तर दिया - “चार! “
टीचर के चेहरे पर कोई खुशी नज़र नहीं आयी। तभी टीचर को याद आया कि अर्नब को स्ट्राबेरी पसंद हैं। उसे सेब पसंद नहीं हैं इसीलिए वह प्रश्न पर एकाग्रचित्त नहीं हो पा रहा है। बढ़े हुए उत्साह के साथ अपनी आँखें मटकाते हुए टीचर ने फिर पूछा - “यदि मैं तुम्हें एक स्ट्राबेरी, एक स्ट्राबेरी और एक स्ट्राबेरी दूं तो तुम्हारे पास कुल कितनी स्ट्राबेरी हो जायेंगी? “
टीचर को खुश देखकर अर्नब ने फिर से अपनी अंगुलियों पर गिनना शुरू किया। इस बार उसके ऊपर कोई दबाव नहीं था बल्कि टीचर के ऊपर दबाव था। वह अपनी नयी योजना को सफल होते देखना चाहती थीं। थोड़ा सकुचाते हुए अर्नब ने टीचर से पूछा - “तीन? “
टीचर के चेहरे पर सफलता की मुस्कराहट थी। उनका तरीका सफल हो गया था। वे अपने आप को बधाई देना चाहती थीं। लेकिन एक चीज बची हुयी थी। उन्होंने अर्नब से फिर पूछा - “अब यदि मैं तुम्हें एक सेब, एक सेब और एक सेब दूं तो तुम्हारे पास कुल कितने सेब हो जायेंगे? “
अर्नब ने तत्परता से उत्तर दिया - “चार। “
टीचर भौचक्की रह गयीं। उन्होंने खिसियाते हुए कठोर स्वर में पूछा - “कैसे अर्नब, कैसे? “ अर्नब ने मंद स्वर में संकुचाते हुए उत्तर दिया - “क्योंकि मेरे पास पहले से ही एक सेब है। “
जब भी कोई व्यक्ति आपको अपेक्षा के अनुरूप उत्तर न दे तो यह कतई न समझें कि वह गलत है। उसके पीछे भी कोई न कोई कारण हो सकता है। आप उस उत्तर को सुनें और समझने की कोशिश करें। लेकिन पूर्वाग्रह ग्रस्त होकर न सुनें।
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वह बुजुर्ग लकड़हारा राजा था!
राजा भोज एक दिन खाली समय में नदी के किनारे टहल रहे थे। वे हरे-भरे वृक्षों और सुंदर फूलों को निहार रहे थे। तभी उन्हें सिर पर लकड़ियों का बंडल लादकर ले जाता एक व्यक्ति दिखायी दिया। उस वृद्ध व्यक्ति के सिर पर लदा बोझ बहुत भारी था और वह पसीने से तर हो रहा था। लेकिन वह प्रसन्न दिखायी दे रहा था। राजा ने उस व्यक्ति को रोकते हुए पूछा - “सुनो, तुम कौन हो? “ उस व्यक्ति ने प्रसन्नतापूर्वक उत्तर दिया - “मैं राजा भोज हूं। “ यह सुनकर राजा भोज भौचक्के रह गए और पूछा - “कौन? “
उस व्यक्ति ने पुनः उत्तर दिया - “राजा भोज! “ राजा भोज जिज्ञासा से भर गए। वे बोले - “यदि तुम राजा भोज हो तो अपनी आय के बारे में बताओ? “ लकड़हारे ने उत्तर दिया - “हां, हां क्यों नहीं, मैं प्रतिदिन छह पैसा कमाता हूं। “
राजा ने उसकी जेब में मौजूद इस भारी धन के बारे में सोचा। कोई व्यक्ति छह पैसे प्रतिदिन कमाकर भी अपनेआप को राजा कैसे मान सकता है? और वह इतना खुश कैसे रह सकता है? राजा ने अपनी अनगिनत समस्याओं और चिंताओं के बारे में विचार किया। वह उस व्यक्ति के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा - “यदि तुम सिर्फ छह पैसे प्रतिदिन कमाते हो तो तुम्हारा खर्च कितना है? क्या तुम वास्तव में राजा भोज हो? “
उस वृद्ध व्यक्ति ने उत्तर दिया - “यदि आप वास्तव में जानना चाहते हैं तो मैं बताता हूं। मैं प्रतिदिन छह पैसा कमाता हूं। उसमें से एक पैसा मैं अपनी पूंजी के मालिक को देता हूं, एक पैसा मंत्री को और एक ऋणी को। एक पैसा मैं बचत के रूप में जमा करता हूं, एक पैसा अतिथियों के लिए और शेष एक पैसा मैं अपने खर्च के लिए रखता हूं। “ अब तक राजा भोज पूर्णतः विस्मित हो चुके थे। “क्या खूब योजना है! क्या खूब दृष्टिकोण! वह भी इतनी कम आय वाले व्यक्ति की!..... लेकिन यह कैसे संभव है? इस पहेली में उलझकर राजा ने फिर पूछा - “कृपया विस्तार से बतायें, मुझे कुछ ठीक से समझ में नहीं आया। “
लकड़हारे ने उत्तर दिया - “ठीक है! मेरे माता-पिता मेरी पूंजी के मालिक हैं। क्योंकि उन्होंने मेरे लालन-पालन में निवेश किया है। उन्हें मुझसे यह आशा है कि बुढ़ापे में मैं उनकी देखभाल करूं। उन्होंने मेरे लालन-पालन में यह निवेश इसीलिए किया था कि समय आने पर मैं उन्हें उनका निवेश ब्याज समेत लौटा सकूं। क्या सभी माता-पिता अपनी संतान से यह अपेक्षा नहीं करते? “
राजा ने तत्परता से पूछा - “और तुम्हारा ऋणी कौन है? “ वृद्ध व्यक्ति ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया - “मेरे बच्चे! वे नौजवान हैं। यह मेरा फर्ज़ है कि मैं उनका सहारा बनूं। लेकिन जब वे वयस्क और कमाने योग्य हो जायेंगे, वे उसी तरह मेरा निवेश लौटाना चाहिये जैसे मैं अपने माता-पिता को लौटा रहा हूं। इस तरह उन्हें भी अपना पितृऋण चुकाना होगा। “
राजा ने कम शब्दों में पूछा - “और तुम्हारा मंत्री कौन है? “ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया - “मेरी पत्नी! वही मेरा घर चलाती है। मैं उसके ऊपर शारीरिक और भावनात्मक रूप से निर्भर हूं। वही मेरी सबसे अच्छी मित्र और सलाहकार है। “
राजा ने संकोचपूर्वक पूछा - “तुम्हारा बचत खाता कहां है? “ वृद्ध व्यक्ति ने उत्तर दिया - “जो व्यक्ति अपने भविष्य के लिए बचत नहीं करता, उससे बड़ा बेवकूफ और कोई नहीं होता। जीवन अनिश्चितताओं से भरा हुआ है। प्रतिदिन मैं एक पैसा अपने खजाने में जमा करता हूं। “
राजा बोले - “कृपया बताना जारी रखें। “ लकड़हारे ने उत्तर दिया - “पांचवा पैसा मैं अपने अतिथियों की खातिरदारी के लिए सुरक्षित रखता हूं। एक गृहस्थ होने के नाते यह मेरा कर्तव्य है कि मेरे घर के द्वार सदैव अतिथियों के लिए खुले रहें। कौन जाने कब कोई अतिथि आ जाये? मुझे पहले से ही तैयारी रखनी होती है। “
उसने मुस्काराते हुए अपनी बात जारी रखी - “और छठवां पैसा मैं अपने लिए रखता हूं। जिससे मैं अपने रोजमर्रा के खर्च चलाता हूं। “
अपनी समस्त जिज्ञासाओं का समाधान पाकर राजा भोज उस लकड़हारे से बहुत प्रसन्न हुए।
निश्चित रूप से प्रसन्नता और संतुष्टि का धनसंपदा, पद और सांसारिक वैभव से कोई लेना-देना नहीं है। वर्तमान स्थिति के प्रति आपका व्यवहार और स्वभाव ही सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। यदि कोई व्यक्ति अपने को उपलब्ध साधनों के अनुरूप ही जीवनजीने की कला सीख ले तो वह काफी कुछ प्राप्त कर सकता है। यही सकारात्मक सोच और सही व्यवहार की शक्ति है। वह बुजुर्ग लकड़हारा वास्तव में राजा था क्योंकि उसका नजरिया ही राजा की तरह था!
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फैसला न करें।
एक ड्यूक की हीरों से जड़ी सुंघनी खो गयी। अपने कुछ पुराने अधिकारियों के सम्मान में दिए गए रात्रिभोज के बाद उन्होंने खोई हुयी सुंघनी को खोजना शुरू किया। लेकिन वह कहीं नहीं मिली। उस समय उस कक्ष में कोई भी नौकर मौजूद नहीं था इसलिए सभी अतिथि अपनी तलाशी देने को तैयार हो गए। लेकिन एक अधिकारी ने तलाशी का तीव्रता से विरोध किया, यहां तक कि वह वहां से जाने को तैयार हो गया। सभी लोगों का संदेह उसी अधिकारी पर गया क्योंकि कोई भी उसके बारे में अधिक जानकारी नहीं रखता था।
अगले वर्ष जब उस ड्यूक ने अपना वही कोट पहना तो उसकी अंदर की जेब में वह सुंघनी मिल गयी। ड्यूक ने उस अधिकारी को तलाश किया जिस पर सभी को संदेह था। वह अधिकारी छत पर बने एक बेकार से फ्लैट में मिल गया। ड्यूक ने उससे क्षमा मांगी।
ड्यूक ने उससे पूछा - “लेकिन तुमने उस समय तलाशी का विरोध क्यों किया था? अन्य अधिकारियों की बात न मानकर तुमने अपनेआप को शर्मिंदगी का पात्र क्यों बनाया? “
उस बुजुर्ग सज्जन ने उत्तर दिया - “क्योंकि,....मेरी जेब माँस के जूठे टुकड़ों से भरी हुयीं थी जो मैंने भूख से मरणासन्न अपनी पत्नी और परिवार के लिए खाने की मेज से चुराये थे! “
उसकी बात सुनकर ड्यूक की आँखों से आँसू छलक पड़े।
(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
आजकल की दुनिया में असली की हार होती है।
हटाएंआज बहुत दिनों बाद आया यहाँ पर कहानी पढ़ने, हम भी कभी पूर्वाग्रस से ग्रसित नहीं होते।
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