आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there - 87

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  आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 411 पुत्रों का उपहार एक माँ के ती...

 

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आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ

संकलन – सुनील हांडा

अनुवाद – परितोष मालवीयरवि-रतलामी

411

पुत्रों का उपहार

एक माँ के तीन बच्चों ने अपने भविष्य को संवारने के लिए घर छोड़ दिया था एवं अपनी - अपनी राह पर चले गए थे। तीनों सफल रहे। जब वे एक साथ लौटे तो अपनी वृद्ध माँ को उपहार देने योग्य बन चुके थे।

पहले पुत्र ने कहा - "मैंने माँ के लिए एक बड़ा सा बंगला बनवाया है।"

दूसरे ने कहा - "मैंने माँ के लिए एक शानदार मर्सडीज़ कार और ड्राइवर भेजा है।

तीसरे ने मुस्कराते हुए कहा - "मैंने तुम दोनों को पीछे छोड़ दिया है। तुम्हें याद है, माँ किस तरह बाईबिल पढ़ना पसंद किया करती थी? क्या तुम लोग यह नहीं जानते कि अब वे ठीक से देख भी नहीं पाती हैं? मैंने उन्हें एक अद्वितीय तोता उपहार में भेजा है जो पूरी बाईबिल का उच्चारण कर सकता है। उसे 12 वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद प्रशिक्षित किया गया है। वह अपनी तरह का अनूठा तोता है। बाईबिल के अध्याय और छंद का नाम लेते ही वह तोता उसका सस्वर उच्चारण करने लगता है।"

कुछ ही समय बाद माँ ने तीनों पुत्रों को धन्यवाद पत्र लिखा। अपने पुत्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने लिखा - "मिल्टन!, तुमने जो घर बनवाया है वह बहुत बड़ा है। मैं केवल एक कमरे में ही रहती हूं। लेकिन मुझे पूरा घर साफ करना पड़ता है।"

"गेराल्ड! मैं इतनी बूढ़ी हो चुकी हूं कि घूमने-फिरने में असमर्थ हूं। मेरी आँखों की रोशनी भी अब पहले जैसी नहीं रही। मैं ज्यादातर समय घर पर ही रहती हूं जिस कारण मैं तुम्हारी कार का इस्तेमाल नहीं कर पाती और उस ड्राइवर का व्यवहार भी रूखा है।"

"प्रिय डोनाल्ड! केवल तुम ही यह बात जान पाये कि तुम्हारी माँ को क्या पसंद है। तुम्हारे द्वारा भेजा गया चिकन बेहद लज़ीज़ था।"

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412

कभी बेवकूफों को सलाह मत दो

एक समय की बात है, नर्मदा नदी के तट पर एक बड़ा सा बरगद का पेड़ था जिसकी मोटी शाखाऐं दूर-दूर तक फैली हुयी थीं। उस पेड़ पर चिड़ियों का एक परिवार रहता था। बरगद का पेड़ भारी बारिश के दिनों में भी चिड़ियों की रक्षा करता था।

मानसून के समय एक दिन आकाश में काले बादल छाए हुए थे। जल्द ही भयंकर बारिश शुरू हो गयी। भयंकर तूफानी बारिश से बचने के लिए बंदरों का एक समूह उस पेड़ के नीचे शरण लिए हुए था। वे ठंड के मारे कांप रहे थे। चिड़ियों ने बंदरों की दुर्दशा देखी।

उनमें से एक चिड़िया ने बंदरों से कहा - "अरे बंदरों! हर बारिश के मौसम में तुम लोग इसी तरह क्यों परेशान होते रहते हो? हमें देखो, हम लोग अपनी सुरक्षा के लिए इस चोंच की सहायता से घास का तिनका-तिनका जोड़ कर घोंसला बनाते हैं। परंतु ईश्वर ने तुम्हें दो हाथ और दो पैर दिए हैं जिनका उपयोग तुम लोग खेलने-कूदने में ही करते हो। तुम लोग अपनी सुरक्षा के लिए घर क्यों नहीं बनाते?"

इन शब्दों को सुनकर बंदरों को गुस्सा आ गया। उन्होंने सोचा कि चिड़ियों की हमसे इस तरह से बोलने की हिम्मत कैसे हुयी। बंदरों के सरदार ने कहा - "सुरक्षित तरीके से अपने घोसले में बैठकर हमे उपदेश दे रही हैं। रुकने दो बारिश को, तब हम उन्हें मजा चखायेंगे।"

जैसे ही बारिश रुकी, बंदर पेड़ पर चढ़ गये और उन्होंने चिड़ियों को घोंसलों को तबाह करना शुरू कर दिया। उन्होंने घोंसलों और उसमें रखे अंडों को उठाकर जमीन पर पटक दिया। बेचारी चिड़ियाँ अपनी जान बचाकर इधर-उधर भागने लगीं।

किसी ने सही ही कहा है, सच्ची सलाह केवल गंभीर लोगों को ही देनी चाहिए और वह भी केवल मांगे जाने पर। बेवकूफ व्यक्ति को सलाह देने का अर्थ है

अपने विरुद्ध उसके गुस्से को भड़काना।

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156

स्वयं पर नियंत्रण

चीन में एक बौद्ध भिक्षु ध्यान योग में तल्लीन रहता था. उसकी देखभाल एक बूढ़ी स्त्री करती थी. कई वर्षों की सेवा-सुश्रूषा के बाद एक दिन बूढ़ी महिला ने उस बौद्ध भिक्षु की परीक्षा लेनी चाही.

उसने एक युवती को बुला कर कहा कि वो ध्यानस्थ बौद्ध भिक्षु के कमरे में जाए और उसे आलिंगन में ले ले और उससे प्यार जताए.

युवती ने ऐसा ही किया. मगर बौद्ध भिक्षु यह अप्रत्याशित हरकत देख कर ताव में आ गया और आनन फानन में उस युवती को झाड़ू से मारते हुए बाहर कर दिया.

यह देख उस बूढ़ी स्त्री ने उस बौद्ध भिक्षु से दूरी बना ली क्योंकि उसके अनुसार इतने दिनों की तपस्या और ध्यान योग के बाद भिक्षु को युवती की आवश्यकताओं की समझ होनी चाहिए थी और इस हेतु उसे शांति पूर्वक समझाना था. साथ ही उसे स्वयं पर भी नियंत्रण बनाए रखना था.

---.

157

व्याकरण की गलती

खोजा नसरूद्दीन एक बार बैलगाड़ी की सवारी कर कहीं जा रहा था. यात्रा लंबी थी और साथ में एक सहयात्री भी था. अतः समय पास करने के लिए खोजा ने सहयात्री से बातें शुरू कर दी. सहयात्री थोड़ा अनपढ़ किस्म का था अतः वह बातचीत में वर्तनी, व्याकरण और लिंग भेद की गलतियाँ कर रहा था. तो खोजा ने उसे डांट दिया कि या तो वह शुद्धता से बोले या फिर बोले ही नहीं.

जाहिर है, अब दोनों के बीच वार्तालाप बंद हो गया. थोड़ी ही देर में खोजा झपकियाँ लेने लगा. इस बीच खोजा के थैले का मुंह खुल गया और बैलगाड़ी के हिचकोलों में उसके थैले में रखे सामान एक एक कर गिरने लगे.

कुछ देर बाद जब खोजा की नींद खुली तो उसने देखा कि उसका थैला तो खाली है. खोजा ने सहयात्री से पूछा कि उसका सामान कहाँ है.

सहयात्री ने इशारे से खोजा को बताया कि उसका सामान तो रास्ते में ही गिर गया था, परंतु चूंकि खोजा ने उसे सिर्फ और सिर्फ शुद्ध बोलने को कहा था और चूंकि उसे नहीं पता था कि क्या वो शुद्ध बोल पा रहा है, लिहाजा उसने खोजा से यह बात बोली ही नहीं!

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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)

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