आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 407 कोई भी बात गलत नहीं , बस अधूरी ...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
407
कोई भी बात गलत नहीं, बस अधूरी
एक सूफी संत अपने सहयोगी के साथ एक शहर में शिक्षा प्रदान करने पहुंचे। जल्द ही उनका एक अनुयायी उनके पास आया और बोला - "हे महात्मा, इस शहर में सिवाए बेवकूफों के और कोई नहीं रहता। यहाँ के निवासी इतने जिद्दी और बेवकूफ हैं कि आप एक भी व्यक्ति के विचार नहीं बदल सकते।"
संत ने उत्तर दिया - "आप सही कह रहे हैं।"
इसके ठीक बाद एक और व्यक्ति वहां आया और प्रसन्नतापूर्वक बोला - "हे महात्मा, आप एक भाग्यशाली शहर में हैं। यहां के लोग सच्ची शिक्षा चाहते हैं और वे आपके वचनों पर न्यौछावर हो जायेंगे।"
संत ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया - "आप सही कह रहे हैं।"
संत की बात सुनकर उनका सहयोगी बोला - "हे महात्मा, आपने पहले व्यक्ति से कहा कि वह सही कह रहा है। और दूसरा व्यक्ति जो उसके ठीक विपरीत बात बोल रहा था, उसे भी आपने कहा कि वह सही बोल रहा है। आखिर यह कैसे संभव है कि काला रंग सफेद हो जाये।"
संत ने उत्तर दिया - "हर व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार इस संसार को देखता है। मैं उन दोनों की बात का क्यों खंडन करूं? एक व्यक्ति अच्छी बात देख रहा है, दूसरा बुरी। क्या तुम यह कहोगे कि उनमें से एक गलत समझ रहा है। क्या हर जगह अच्छे और बुरे लोग नहीं होते? इन दोनों में से किसी ने भी गलत बात नहीं कही, बस अधूरी बात कही।"
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408
परीक्षण का जोखिम उठाने का साहस
एक राजा के दरबार में एक महत्त्वपूर्ण पद रिक्त था। इस पद के लिए वह योग्य उम्मीदवार की तलाश में था। उसके दरबार में बहुत से बुद्धिमान और शक्तिशाली उम्मीदवार मौजूद थे।
राजा ने उनसे कहा - "मेरे बुद्धिमान साथियों! मेरे समक्ष एक समस्या है और मैं यह देखना चाहता हूं कि तुम लोगों में से कौन इसे सुलझा पाता है।"
इसके उपरांत वह सभी लोगों को लेकर एक विशाल दरवाज़े के पास पहुंचा। इतना बड़ा दरवाज़ा उनमें से किसी ने नहीं देखा था। राजा बोला - "यह मेरे राज्य का सबसे बड़ा और भारी दरवाज़ा है। तुममें से कौन इसे खोल सकता है?"
कुछ दरबारियों ने इंकार की मुद्रा में तुरंत अपने सिर हिला दिए। कुछ अन्य बुद्धिमान दरबारियों ने नजदीकी से दरवाज़े को देखा ओर अपनी असमर्थता जाहिर की।
बुद्धिमान दरबारियों को इंकार करते देख बाकी सभी दरबारी भी इस बात पर सहमत हो गए कि यह बहुत बड़ी समस्या है और इसका सुलझना असंभव है।
केवल एक दरबारी उस दरवाज़े के पास तक गया। उसने अपनी आँखों और अंगुलियों से दरवाज़े का परीक्षण किया तथा उसे हिलाने की कोशिश की। अंततः काफी ताकत लगाकर उसने दरवाज़े को खींचा और दरवाज़ा खुल गया। हालाकि दरवाज़ा अधखुला ही रह गया था परंतु इसे बंद करने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि उसके साहस की परीक्षा हो चुकी थी।
राजा ने कहा - "तुम ही दरबार में उस महत्त्वपूर्ण पद पर बैठने के योग्य हो क्योंकि तुमने सिर्फ देखकर और सुनकर ही विश्वास नहीं कर लिया। तुमने कार्य को संपन्न करने के लिए अपनी ताकत का प्रयोग किया और परीक्षण का जोखिम उठाया।"
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147
फ़ीयर इज द की
खाने का शौकीन एक राजा खा खाकर इतना मोटा हो गया कि उसका चलना फिरना दूभर हो गया . उसने कई डॉक्टरों से अपने मोटापे का इलाज करवाया मगर इलाज का कुछ असर नहीं हुआ क्योंकि राजा खाना छोड़ नहीं सकता था .
जो डॉक्टर उसे कम खाने या नहीं खाने की सलाह देते , उन्हें वह प्राण दण्ड दे देता .
राजा ने अंततः अपने मोटापे के इलाज के लिए बड़े इनाम की घोषणा की . परंतु प्राणदण्ड के भय के कारण कोई डॉक्टर आया ही नहीं .
एक दिन एक भविष्यवक्ता राज दरबार में आया और उसने भविष्यवाणी की कि अब राजा का कोई इलाज नहीं हो सकता . क्योंकि राजा के दिन गिने चुने हैं . राजा अब सिर्फ एक महीने का मेहमान है . आज से ठीक एक महीने के बाद राजा की मृत्यु हो जाएगी . और इस बीच यदि राजा ने आईना देख लिया तो उसकी मृत्यु की तिथि और पहले खिसक आएगी .
राजा घबरा गया . उसने ज्योतिषी को कैद कर लिया और कहा कि यदि उसकी भविष्यवाणी सच नहीं हुई तो एक महीने बाद राजा नहीं , वह ज्योतिषी मरेगा .
राजा रोज दिन गिनने लगा . दरअसल वह घंटा मिनट और सेकंड गिनने लगा . एक महीना उसे एकदम पास और प्रत्यक्ष दिख रहा था . सामने मौत दिख रही थी . उसकी भूख - प्यास मिट गई थी .
रोते गाते एक महीना बीत गया . राजा को कुछ नहीं हुआ . राजा ने ज्योतिषी को बुलवा भेजा और व्यंग्य से कहा - महीना बीत गया और मैं जिंदा हूँ . तुम्हारी भविष्यवाणी गलत निकली . तुम्हें फांसी पर लटकाया जाने का हुक्म दिया जाता है .
उस भविष्यवक्ता ने कहा - पहली बात तो यह कि मैं भविष्यवक्ता नहीं हूँ . दूसरी बात यह कि मैं पेशे से डाक्टर हूँ . तीसरी बात यह कि आपने पिछले तीस दिनों से आईना नहीं देखा होगा , तो जरा देखें .
राजा ने तुरंत आईना मंगा कर देखा . राजा का मुंह खुला रह गया . उसका मोटापा जाता रहा था . पिछले तीस दिनों से मृत्यु भय से उसने कुछ खाया पीया जो नहीं था !
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१४८
सही कीमत
एक गरीब आदमी को राह चलते एक चमकीला पत्थर मिला . वास्तव में वह चमकीला पत्थर बिना तराशा हीरा था . इसकी कीमत वह गरीब आदमी जानता नहीं था . संयोग से उसी वक्त एक जौहरी उधर से गुजर रहा था . उसने वह चमकीला पत्थर गरीब के हाथ में देखा तो उसने वह हीरा उससे सौ रुपए में खरीदना चाहा . जौहरी की पारखी नजरों ने उसकी सही कीमत पहचान ली थी .
उस गरीब को थोड़ा संदेह हुआ कि जौहरी इस पत्थर की इतनी कीमत क्यों दे रहा है . तो उसने उस पत्थर को सौ रुपए में बेचने से इंकार कर दिया . उसने जौहरी से कहा कि वो इसके पांच सौ लेगा .
जौहरी ने गरीब से कहा कि मूर्ख , इस सड़े पत्थर के पांच सौ कौन देगा . चल चार सौ में दे दे .
गरीब ने सोचा कि चलो ये भी फायदे का सौदा है , तो उसने हामी भर दी .
परंतु जब जौहरी ने अपनी जेब टटोली तो उसमें सिर्फ तीन सौ निकले . जौहरी ने गरीब से कहा कि वो इंतजार करे , जल्दी ही मैं बाकी रुपये लेकर लौटता हूं .
और जब जौहरी पूरे पैसे लेकर वापस आया तो उसने देखा कि गरीब के हाथ में चमकीले पत्थर की जगह रुपए थे . जौहरी ने गरीब से पूछा कि माजरा क्या है .
गरीब ने जौहरी को बताया कि उस पत्थर की सही कीमत तुम लगा ही नहीं रहे थे . उसकी असली कीमत तो उस दूसरे जौहरी ने लगाई , और मुझे पूरे हजार रुपए दिए !
इस पर वह जौहरी झल्लाया और बोला - मूर्ख ! उस पत्थर की असली कीमत लाख रूपए थी . तुम्हें तो वो हजार रुपए में मूर्ख बना गया !
मूर्ख तो तुम बन गए - गरीब आगे बोला - तुम तो मुझे चार सौ रुपल्ली में मूर्ख बनाने चले थे कि नहीं ? और मैंने तुम्हें मूर्ख बना दिया .
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लकीर छोटी या बड़ी
कक्षा में गुरूजी ने एक लकीर खींची और प्रश्न पूछा कि इस लकीर को छोटा कैसे किया जा सकता है .
अधिकांश बच्चों ने कहा कि किसी एक तरफ से लकीर को मिटाकर .
परंतु एक बच्चा खड़ा हुआ , उसने गुरुजी के हाथ से कलम ली और उस लकीर के ऊपर एक बड़ी लकीर खींच दी . फिर गुरूजी से मुखातिब होकर बोला - लीजिए गुरुजी , यह लकीर मैंने छोटी कर दी . इस बड़ी लकीर के सामने यह छोटी है . और यदि आप कहें तो मैं बड़ी भी बना सकता हूँ !
अपनी लकीर आप स्वयं के कृत्य से बड़ा बनाएं , न कि दूसरों की लकीरें छोटी कर !
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बादामी दिमाग
पहले मेरी मां मुझे रोज सुबह नाश्ते में पांच बादाम देती थी और कहती थी कि इससे दिमाग सुधरेगा . बाद में मेरी बीवी भी नाश्ते में पांच बादाम देती रही .
परंतु मेरे पिता अकसर मुझे बादाम खाते देखते और मुझसे कहते - बादाम खाने से दिमाग तेज नहीं होता .
मैंने उनके इस वाक्य को सैकड़ों मर्तबा सुना था . मगर फिर भी मैं इंतजार करता . उनके आगे के वाक्य का . आगे वे कहते -
दिमाग सुधरता है जीवन के थपेड़े खाने से !
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151
दुनिया एक सराय है
एक सूफी संत राजा के दरबार में आए और राजा से बोले - मुझे इस सराय में सोने के लिए थोड़ी सी जगह चाहिए .
राजा ने अप्रसन्नता से कहा - यह सराय नहीं है , यह राजमहल है !
संत ने राजा से पूछा - तुमसे पहले यहाँ कौन रहता था ?
राजा ने कहा - मेरे पिता .
संत ने फिर पूछा - और उससे पहले ?
राजा ने फिर तनिक अप्रसन्नता से बताया - मेरे पितामह .
तो , जब लोग यहाँ आते जाते रहते हैं , फिर भी तुम कहते हो यह सराय नहीं है ! संत ने राजा से प्रश्न किया .
हर कोई सराय में रहता है ! कोई उसे प्रासाद कहता है , कोई होम , स्वीट होम .
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सोचने के लिए एक दिन दे दो
खोजा ने अपने मित्र अब्दुल के साथ शर्त लगाया कि मैच में पाकिस्तान नहीं , इंडिया जीतेगा . और जब खोजा अपने मित्र से शर्त हार गया तो उसने अपने मित्र को कहा कि वो शर्त जीतने के उपलक्ष्य में खोजा से कुछ मांग ले .
अब्दुल ने खोजा से कहा कि अभी तो कुछ सूझ नहीं रहा है , अतः सोचने के लिए खोजा उसे एक दिन का समय दे .
खोजा ने कहा - दिया , खुशी खुशी दिया .
दूसरे दिन अब्दुल खोजा के पास पहुँचा और उसका सबसे ताकतवर घोड़ा शर्त जीतने के नाम पर मांगने लगा .
परंतु खोजा ने स्पष्ट किया - मैंने तुम्हें शर्त जीतने पर मुझसे कुछ मांगने को कहा था . तो तुमने एक दिन सोचने के लिए मांगा था . तो वो मैंने तुम्हें दे दिया था . दिया था कि नहीं ?
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सधन्यवाद,
रवि
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
अपनी मनस्थिति के अनुसार विश्व दिखता है...
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