आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 393 विचार शुद्धि स्वामी रामकृष्ण प...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
393
विचार शुद्धि
स्वामी रामकृष्ण परमहंस के एक पक्के शिष्य मथुराबाबू ने एकबार उन्हें बहुत महंगे वस्त्र भेंट किए। परमहंस ने उन वस्त्रों को धारण किया और माँ काली का ध्यान करने बैठ गए। ध्यान के बाद जब वे दंडवत प्रणाम करने लगे तब उनके दिमाग में वह विचार कौंधा कि कही ये महंगे वस्त्र मैले न हो जायें।
बाद में जब उन्होंने विचार मंथन किया तो यह पाया कि उन्हें ऐसे वस्त्र कतई नहीं पहनने चाहिए जो ध्यान में बाधा पहुंचाते हों और उन्होंने वे वस्त्र वापस कर दिए।
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प्रवाह के साथ बहना
ताओ दंतकथा के अनुसार एक बार एक वयस्क व्यक्ति दुर्घटनावश नदी में गिर कर भंवर में फंस गया और एक खतरनाक जलप्रपात की ओर बहने लगा।
सभी प्रत्यक्षदर्शी यह दृश्य देखकर घबड़ा गए क्योंकि उस प्रपात में गिरकर मनुष्य का मरना तय था। तभी आश्चर्यजनक रूप से वह व्यक्ति जलप्रपात में गिरकर भी सकुशल नदी से बाहर निकल आया। लोगों ने उससे पूछा कि उसके जीवित बचने का क्या राज़ है?
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया - "मैंने नदी के प्रवाह को अपने अनुरूप बदलने के बजाए स्वयं को नदी के प्रवाह के अनुरूप ढ़ाल लिया। बिना कुछ भी सोचे हुए मैं नदी के प्रवाह के अनुरूप बहने लगा। मैं भंवर के साथ ही डूबा और भंवर के साथ ही ऊपर निकल आया। इस तरह मैं जीवित बच गया।"
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
धारा कठिन हो तो प्रवाह के साथ बह चलें..थोड़ी दूर तक ही सही..
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