आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there - 61

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आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 109 बापू का पर्यावरणमित्र दातुन यरवदा...

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आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ

संकलन – सुनील हांडा

अनुवाद – परितोष मालवीयरवि-रतलामी

109

बापू का पर्यावरणमित्र दातुन

यरवदा जेल में एक बार गांधी जी ने नोटिस किया कि आश्रम के उनके सहयोगी काका कालेलकर नीम की कुछ पत्तियों की आवश्यकता होने पर भी पूरी की पूरी टहनी तोड़ लाते थे. बापू ने उन्हें समझाया कि यह भी एक किस्म की हिंसा है. और यदि हमें दो पत्ते भी किसी वृक्ष से तोड़ने हैं तो हमें वह प्रेमपूर्वक तोड़ना चाहिए, और पेड़-पौधों से क्षमायाचना करते हुए तोड़ना चाहिए.

काका कालेलकर ने अपने संस्मरण में इससे संबंधित एक अन्य वृत्तांत को बताया – “हमें बाहर से दातुन मिलना बंद हो गया, तो मैंने बापू के लिए नीम का एक बढ़िया दातुन तैयार किया, उसके सिरे को कुचल कर बढ़िया ब्रश बनाया और बापू को दिया. बापू ने ब्रश करने के बाद मुझे उसे दिया और कहा कि इसे फेंकना नहीं, बल्कि इसके ब्रश वाले हिस्से को काट कर फेंको और बाकी का पूरा अच्छा हिस्सा कल के लिए बचा कर रखो. इसका प्रयोग इसी तरह तब तक होना चाहिए जब तक कि यह पूरी तरह सूख ना जाए या फिर आसानी से पकड़ में न आए.

मैंने बापू से प्रतिवाद किया कि हम तो नित्य नया दातुन तोड़ सकते हैं क्योंकि आश्रम में नीम के पेड़ों की भरमार है. बापू ने कहा कि यह बात उन्हें भी मालूम है, मगर इसका अर्थ यह नहीं कि हम इस तरह प्रकृति पर अत्याचार करें.”

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110

गुस्सा न करें

पांडवों को उनके गुरु ने पहला सबक यह सिखाया कि जो सबक वे उन्हें सिखाते हैं उन्हें वे अपने जीवन में भी उतारें. एक बार गुरु ने एक और सबक सिखाया – गुस्सा न हों. फिर गुरु ने अपने शिष्यों को कहा कि वे आज के सबक की परीक्षा कल लेंगे.

दूसरे दिन गुरु ने पांडव बंधुओं से पूछा कि क्या उन्होंने कल का सबक सीख लिया? युधिष्ठिर को छोड़कर बाकी चारों भाइयों ने स्वीकृति में सर हिलाया.

गुरु ने तीक्ष्ण दृष्टि से युधिष्ठिर की ओर देखा और पूछा – युधिष्ठिर, तुम्हें यह जरा सा सबक सीखने में क्या समस्या है? तुम्हारे चारों छोटे भाई इसे सीख लिए. सबक याद करो और मैं फिर कल तुमसे पूछूंगा.

अगले दिन गुरु ने कक्षा प्रारंभ होते ही सबसे पहले युधिष्ठिर से पूछा कि क्या उन्होंने सबक सीख लिया? युधिष्ठिर ने फिर से इंकार में सर हिलाकर जवाब दिया – “अभी नहीं गुरूदेव!”

गुरु ने आव देखा न ताव और तड़ से युधिष्ठिर को एक तमाचा जड़ दिया. और कहा “कैसे मूर्ख हो! जरा सा एक लाइन का सबक सीख नहीं सकते!”

युधिष्ठिर मार खाकर भी मुस्कुराते खड़े थे. गुरु को और ताव आ गया. बोले “मूर्ख, दंड पाकर भी किसलिए मुस्कुरा रहे हो! कारण बताओ नहीं तो तुम्हें और सज़ा मिलेगी.”

युधिष्ठिर ने उत्तर दिया – “गुरुदेव, अब मैंने सबक सीख लिया!”

एक क्षण को गुरु को समझ में नहीं आया कि युधिष्ठिर क्या कह रहे हैं. परंतु दूसरे ही क्षण वे जड़वत हो गए. जो बात वे युधिष्ठिर को, अपने शिष्यों को सिखाना चाह रहे थे, वह बात युधिष्ठिर ने उन्हें सिखा दी थी!

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111

संसदीय हास-परिहास -5

राजाजी की बुद्धिमत्ता, सेंस ऑफ़ ह्यूमर और प्रत्युत्पन्नमति बेमिसाल थी. संसद में आयकर संबंधी चर्चा में एक बार उन्होंने बयान दिया –

“सरकार जनता पर दो तरीके से कर लगाती है. प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर. प्रत्यक्ष कर धनिकों पर लगता है और अप्रत्यक्ष कर आम, गरीब जनता पर. सरकार प्रत्यक्ष कर धनिकों पर उनके बर्दाश्त की सीमा तक लगाती है जब कि अप्रत्यक्ष कर आम जनता पर उस सीमा तक लगाती है जब तक कि वे इसे समझ नहीं सकते.”

(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)

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