आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 351 क्या मुझे ही हर चीज के बारे में...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
351
क्या मुझे ही हर चीज के बारे में सोचना होगा?
एक समय की बात है अहमदाबाद शहर में कई दिनों तक एक निर्माण कार्य चलता रहा। उस कार्य में लगे श्रमिकों ने निर्माण कार्य समाप्त होने के बाद गंदगी और धूल का ढेर नहीं समेटा जिससे चारों ओर गंदगी के ढ़ेर नज़र आने लगे।
"वो देखो कितनी गंदगी पड़ी हुयी है!", "कोई है जो इसकी सफाई का प्रबंध करे!", "उनके गंदगी न समेटने के कारण उड़ती धूल से मेरे कीमती कपड़े गंदे हो गए है!", "आखिर नगर निगम कब इस गंदगी को साफ कराएगा!", "इस गंदगी के कारण हमारा शहर भिखारियों का अड्डा लगने लगा है!"
इस तरह की बातें सुनते-सुनते जब नसरुद्दीन ऊब गए तो एक दिन उन्होंने एक गडढ़ा बनाना शुरू कर दिया। उस गडढ़े की खुदाई के कारण गंदगी और धूल का एक और ढ़ेर बनने लगा।
यह देखकर एक नागरिक ने उनसे कहा - "नसरुद्दीन तुम गडढ़ा क्यों कर रहे हो?"
नसरुद्दीन ने उत्तर दिया - "मैं लोगों की शिकायतें सुनते-सुनते थक गया हूँ और मैंने यह निर्णय लिया है कि एक गडढ़ा खोदकर सारी गंदगी उसमे दफना दूं।"
"लेकिन तुम्हारे गडढ़ा खोदने से तो गंदगी का एक नया ढ़ेर बन रहा है।"- उस व्यक्ति ने कहा।
नसरुद्दीन चिल्लाये - "क्या मुझे ही हर चीज के बारे में सोचना होगा?"
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तुम्हारे बच्चों को इसकी जरूरत पड़ सकती है।
एक किसान इतना बूढ़ा हो गया था कि शारीरिक श्रम नहीं कर पाता था। वह अपने घर के छज्जे पर ही बैठा रहता और अपने बेटे को खेती करते हुए देखता रहता। उसका बेटा भी खेती करते समय थोड़ी-थोड़ी देर में अपने बाप को छज्जे पर बैठा देखता रहता। वह सोचने लगा कि उसका बाप बहुत बूढ़ा हो गया और किसी काम का नहीं है। उसका मर जाना ही अच्छा होगा।
एक दिन वह इतना परेशान हो उठा कि उसने अपने बाप के लिए एक ताबूत बनाया। छज्जे पर जाकर वह अपने बाप से बोला कि वह उस ताबूत में लेट जाए। बाप बिना एक भी शब्द बोले चुपचाप उस ताबूत में जाकर लेट गया। उसका बेटा ताबूत को सरकाता हुआ खेत के उस कोने तक ले गया जहाँ एक गहरी खाई थी। वह उस ताबूत को खाई में फेंकने ही वाला था कि उसे ताबूत में कुछ हलचल महसूस हुई। उसने ताबूत का ढक्कन सरकाया तो बूढ़ा बाप बोला - "मुझे मालूम है कि तुम मुझे खाई में फेकने जा रहे हो पर तुम इस ताबूत को मेरे साथ मत फेंको, तुम्हारे बच्चों को इसकी जरूरत पड़ सकती है।"
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बीच रस्ते से अपने आप को हटा लें
एक काष्ठ शिल्पी था, जिसकी मूर्तियाँ सजीव प्रतीत होती थीं. किसी ने उससे पूछा कि उसकी मूर्तियाँ इतनी सजीव कैसे होती हैं.
शिल्पी ने बताया – “जब मैं कोई शिल्प बनाने जाता हूँ तो सबसे पहले मन में एक आकार ले आता हूँ. फिर उस आकार के हिसाब से लकड़ी ढूंढने जंगल में चला जाता हूँ. वहाँ वृक्षों में उस आकृति को ढूंढता हूँ, और जब वह आकृति मुझे किसी वृक्ष में दिखाई दे जाती है तो मैं उसका वह हिस्सा काट कर ले आता हूँ और मनोयोग से शिल्प उकेरता हूँ.”
मनोयोग से किए गए कार्य जीवन से परिपूर्ण होते हैं. एक विश्वप्रसिद्ध वायलिन वादक ने कभी कहा था – मेरे पास शानदार संगीत के नोट्स हैं, शानदार वायलिन है. मैं इन दोनों को मिलाकर इनके रास्ते से हट जाता हूँ!
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अपने आप को बख्श दें
एक संत को किसी मुद्दे पर अपने आप पर गुस्सा आ गया और शर्मिंदा होकर उन्होंने अपना वह आश्रम छोड़कर जाने की ठान ली.
वे उठे और अपना खड़ाऊँ पहनने लगे.
थोड़ी ही दूरी पर ठीक उनके जैसा ही दिखने वाला संत भी खड़ाऊं पहन रहा था. इस संत ने उससे पूछा कि वो कौन है और कहाँ से आया है. क्योंकि इससे पहले उस संत को वहाँ कभी देखा नहीं गया था.
उस संत ने कहा – मैं आप ही हूँ. आपका प्रतिरूप. यदि आप मेरी वजह से आश्रम छोड़कर जा रहे हैं तो मैं भी यह आश्रम छोड़कर जाऊंगा. स्वर्ग हो या नरक, जहाँ आप जाएंगे, वहीं मैं भी जाऊंगा!
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
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