आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 349 कोई भी वरदान मांग लो उपनिषदों म...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
349
कोई भी वरदान मांग लो
उपनिषदों में एक कहानी का जिक्र है। प्रभु ने एक व्यक्ति की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न होते हुए कहा - "हे मनुष्य! तुम मुझसे कोई भी वरदान मांग लो।"
भक्त ने कहा - "भगवन! मैं ठहरा अज्ञानी। मुझे इस बात का ज्ञान नहीं है कि मुझे आपसे क्या वरदान मांगना चाहिए। मुझे इस बात की भी जानकारी नहीं है कि मेरे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। आप मेरे लिए जो भी अच्छा समझें, वही मुझे प्रदान करें।"
इस तरह वह भक्त परीक्षा में खरा उतरा।
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छोटी मछली
एक बार एक नैतिकतावादी दार्शनिक मुल्ला नसरुद्दीन के गांव से गुजर रहे थे। उन्होंने नसरुद्दीन से एक अच्छे भोजनालय के बारे में पूछा। नसरुद्दीन ने उन्हें भोजनालय का रास्ता बता दिया। दार्शनिक महोदय नसरुद्दीन के साथ शास्त्रार्थ के इच्छुक थे अतः उन्होंने नसरुद्दीन को भी भोजन के लिए आमंत्रित कर लिया। नसरुद्दीन खुशी-खुशी उनके साथ भोजनालय पहुंच गए। उन्होंने भोजनालय के बैरे से सबसे अच्छे व्यंजन के बारे में पूछा।
बैरे ने उत्तर दिया - "मछली! ताजी मछली!"
उन्होंने बैरे को दो मछली परोसने का आदेश दिया।
कुछ देर बाद वह बैरा एक बड़ी सी प्लेट में दो मछलियां लेकर आया। उनमें से एक मछली दूसरी से पर्याप्त बड़ी थी। बिना किसी झिझक के नसरुद्दीन ने बड़ी मछली उठाकर अपनी प्लेट में रख ली। दार्शनिक ने नसरुद्दीन की ओर गुस्से और अविश्वास के साथ देखा और कहने लगा कि उसका यह कार्य स्वार्थ की श्रेणी में आता है और यह नैतिक, धार्मिक और सदाचार मूल्यों का सरासर उल्लंघन है.......। नसरुद्दीन ने दार्शनिक का भाषण पूर्ण शांति के साथ सुना और जब वे चुप हो गए तो नसरुद्दीन ने उनसे कहा - "तो ऐसे में आप क्या करते?"
दार्शनिक ने उत्तर दिया - "एक भला इंसान होने के नाते मैं अपने लिए छोटी मछली उठाता।"
नसरुद्दीन ने तपाक से छोटी मछली उनकी प्लेट में रखते हुए कहा - "तो ये लीजिए जनाब। मैं भी तो यही कर रहा हूं।"
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एक फूटे हुए घड़े की कहानी
उस गांव के निवासियों को दूर नदी से पानी लाना पड़ता था. गांव के एक निवासी के पास दो घड़े थे जिसे वह कांवर में दोनों सिरों पर टाँग लेता था और उनमें पानी लाता था. एक घड़ा सही था, पर दूसरे घड़े में छेद था जिससे पानी टपकता था. नदी से घर तक आते आते सही वाले घड़े में तो पूरा पानी रहता था, मगर छेद वाले घड़े का पानी आधा रह जाता था.
एक दिन उसकी पत्नी ने उससे कहा – तुम यह छेद वाला घड़ा बदल क्यों नहीं देते हो. तुम जो पानी लेकर आते हो वो सारे रास्ते में एक तो गिराते हुए आते हो और फालतू की मेहनत भी करते हो.
उस निवासी ने पत्नी को जवाब देने के बजाए कहा कि वो कल उसके साथ पानी लेने को चले.
दूसरे दिन नियत समय पर वह निवासी अपनी पत्नी के साथ पानी लेने गया. लौटते समय उसके फूटे घड़े से पानी बूंद बूंद रास्ते भर टपक रहा था. और, उसकी पत्नी ने देखा कि पूरे रास्ते रंगबिरंगे फूलों के पौधे उगे हुए हैं उनमें टपक विधि से सिंचाई हो रही है. अब उसे ध्यान आया कि उसका पति रोज सुबह पूजा के लिए ताजे फूल इन्हीं पौधों से लेकर आता था.
हम सभी में कुछ न कुछ खामियाँ होती हैं. हम सभी फूटे घड़े के माफिक हैं. हमें अपनी खामियों को समझते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ देने की सदैव कोशिश करना चाहिए.
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शिष्टता की स्वर्णजयंती
एक दंपति ने अपनी वैवाहिक स्वर्णजयंती धूमधाम से मनाई. दूसरे दिन सुबह रोज की तरह दंपति नाश्ते की टेबल पर बैठे. आज स्त्री ने सोचा – “पिछले पचास वर्षों से नित्य ही मैंने अपने पति को ब्रेकफास्ट रोल का बढ़िया कुरकुरा ऊपरी हिस्सा खाने को दिया है और हमेशा अपने लिए निचला हिस्सा रखा है. आज मैं इस ऊपरी हिस्से को अपने लिए रखती हूँ, और उन्हें इसका निचला हिस्सा पेश करती हूँ.”
और उसने ऊपरी हिस्से में बढ़िया, डबल बटर लगाया और उसे अपने लिए रख लिया. और रोल का निचला हिस्सा बटर लगाकर पति को पेश किया.
यह देख उसका पति बेहद प्रसन्न हो गया और बोला – “डार्लिंग, आज तो मजा आ गया. पिछले पचास वर्षों से मैंने इस रोल का निचला हिस्सा खाया नहीं था, जो सदा से मुझे बेहद पसंद रहा है. परंतु मैंने कभी कहा नहीं क्योंकि तुम्हें यह खाना हमेशा अच्छा लगता रहा है.”
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
यत् श्रेय ब्रूहि तन्मे..
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