आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there - 30

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  आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी   293 हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं ...

 

आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ

संकलन – सुनील हांडा

अनुवाद – परितोष मालवीयरवि-रतलामी

 

293

हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं

सिकंदर महान जब भारत से लौटने को हुआ तो उसे याद आया कि उसकी जनता ने उसे अपने साथ एक भारतीय योगी को लाने के लिए कहा था। उसने योगी की खोज़ प्रारंभ कर दी। उसे जंगल में पेड़ के नीचे ध्यानमग्न बैठे हुए एक योगी दिखायी दिये। सिकंदर, शाति से उनके सामने जाकर बैठ गया।

जब योगी ने अपनी आँखें खोलीं, तो सिकंदर ने पाया कि उनके इर्द-गिर्द एक दैवीय प्रकाश फैल गया है। उसने योगी से कहा -"क्या आप मेरे साथ यूनान चलना पसंद करेंगे ? मैं आपको सब कुछ दूँगा। मेरे महल का एक भाग आपके लिए आरक्षित रहेगा और आपकी सेवा में हर समय सेवक तैयार रहेंगे।'

योगी ने मुस्कराते हुए कहा - "मेरी कोई आवश्यकतायें नहीं हैं। मुझे किसी भी सेवक की आवश्यकता नहीं है और मेरी यूनान जाने की भी कोई इच्छा नहीं है।'

योगी द्वारा दो-टूक मना करने पर सिकंदर नाराज हो गया। वह क्रोधित हो उठा। अपनी तलवार निकालते हुए उसने योगी से कहा, "क्या तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े भी कर सकता हूँ ? मैं विश्व विजेता सिकंदर महान हूँ।'

योगी ने पुनः शांत भाव से मुस्कराते हुए कहा - "तुमने दो बातें कहीं हैं। पहली यह कि तुम मुझे कई टुकड़ों में काट सकते हो। नहीं, तुम कभी मुझे टुकड़ों में नहीं काट सकते। हाँ, तुम सिर्फ मेरे शरीर को काट सकते हो जिसे मैं सिर्फ एक आभूषण की तरह धारण किए हुए हूँ। मैं अमर और नश्वर हूँ। दूसरी बात तुमने यह कही है कि तुम विश्व-विजेता हो। मेरे विचार से तुम केवल मेरे गुलाम के गुलाम हो।'

अचंभित सिकंदर ने पूछा - "मैं कुछ समझा नहीं ?'

तब योगी ने कहा - "क्रोध मेरा गुलाम है। यह पूर्णतः मेरे नियंत्रण में है। लेकिन तुम क्रोध के गुलाम हो। कितनी आसानी से तुम क्रोधित हो जाते हो। इसलिये तुम मेरे गुलाम के गुलाम हुये।'

 

294

प्रशिक्षक का घूंसा

जिटोकू एक बेहतरीन कवि था। उसने एक बार ज़ेन नामक कला का अध्ययन करने का इरादा किया। इसलिए वह इस कला के माहिर प्रशिक्षक इक्की के पास गया। काफी उम्मीदों के साथ वह उनके पास पहुँचा। जैसे ही उसने प्रवेश किया, उसे एक जोरदार घूंसे का सामना करना पड़ा। उसे काफी आश्चर्य और उत्पीड़न महसूस हुआ। इसके पहले किसी ने भी उस पर हमला करने की हिम्मत नहीं की थी। लेकिन ज़ेन कला का यह बेहद सख्त नियम था कि जब तक गुरू की आज्ञा न हो, तब तक कुछ कहने या करने की मनाही थी। इसलिये वह चुपचाप बाहर चला गया। वह उनके प्रमुख शिष्य डोकुओन के पास गया एवं उसे पूरी घटना का वृतांत सुनाया। उसने गुरू को द्वन्द्व युद्ध के लिये आमंत्रित करने का अपना इरादा भी बताया।

डोकुओन ने पूरी बात सुनने के बाद कहा - "लेकिन गुरूदेव तो तुम्हारे प्रति कुछ अधिक ही दयालुता से पेश आये। अपने आप को ज़ैन के अभ्यास के लिए समर्पित कर दो। तुम स्वयं में फर्क देखोगे।'

जिटोकू ने ऐसा ही किया। तीन दिन और रात के कठोर परिश्रम के बाद उसे उसकी कल्पना के परे अंतर्रात्मा में दिव्‍य प्रकाश का अनुभव हुआ। गुरू इक्की ने भी उसके अंतर्रात्मा प्रकाश को मान्यता प्रदान की।

जिटोकू पुनः डोकुओन के पास गया। उसने उसे धन्यवाद देते हुए कहा- "यदि उस दिन तुमने मुझे सही राह नहीं दिखाई होती, तो मैं कभी भी ऐसा अलौकिक अनुभव नहीं कर पाता। अब मुझे यह भी ज्ञान हो गया है कि गुरू जी ने मुझे बहुत जोर से घूंसा नहीं मारा था।'

 

47

सही या गलत

जापान के प्रसिद्ध ध्यान योग गुरु बेनकेई की कक्षा में पूरे जापान से विद्यार्था शिक्षा लेने पहुँचते थे. एक बार एक विद्यार्थी को वहाँ चोरी करते पकड़ लिया गया. कुछ विद्यार्थियों ने उस चोर को बेनकेई के सामने प्रस्तुत किया. परंतु बेनकेई ने किसी तरह का कोई एक्शन लेने या उस चोर को दंडित करने के बजाय उसे छोड़ दिया और कहा कि कक्षा में मन लगाए.

कुछ दिनों बाद वही विद्यार्थी फिर से चोरी करते पकड़ा गया. बेनकेई ने इस बार भी उस चोर को कुछ नहीं कहा. न तो दंडित किया और न ही उसे कक्षा से निकाला. विद्यार्थियों में से कुछ ने बेनकेई से शिकायत की कि आप उस चोर को यदि दंडित कर शाला से बाहर नहीं निकालेंगे तो हम शाला छोड़ देंगे.

बेनकेई ने कहा – “आप सभी लोग बुद्धिमान हो. क्या गलत है और क्या सही यह सब समझते हो, इसलिए चोरी नहीं करते हो. तुम्हारा वह भाई, जो चोरी करता है, वो तुमसे थोड़ा कम बुद्धिमान है. उसे सही और गलत में फर्क नहीं मालूम. यदि मैं ही उसे यह न सिखाऊं कि चोरी करना गलत है तो फिर उसे यह बात और कौन सिखाएगा? तुम ही क्या, यदि शाला के पूरे विद्यार्थी भी मुझे छोड़कर चले जाएं, तो भी मैं उसे बाहर नहीं निकालूंगा.”

जब यह बात उस चोर विद्यार्थी के पास पहुंची तो, उसकी अश्रुधारा बह निकली और उसके मन से चोरी चकारी इत्यादि के विचार अश्रु में घुल गए, मिट गए.

 

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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. सिकन्दर की कथा तो डायोजेनिज की कथा लगती है, कुछ बदलाव के साथ। ओशो बहुत सुनाते थे इसे।

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