इस बेहद दिलचस्प, मजेदार, मच्छर-चालीसा को मेरे एक जहीन मित्र ने मुझे ईमेल फ़ॉरवर्ड से भेजा है. इसके मूल रचयिता का नाम नहीं मालूम है, परंतु उ...
इस बेहद दिलचस्प, मजेदार, मच्छर-चालीसा को मेरे एक जहीन मित्र ने मुझे ईमेल फ़ॉरवर्ड से भेजा है. इसके मूल रचयिता का नाम नहीं मालूम है, परंतु उन अज्ञात अनाम रचनाकार को सलाम. उनके प्रति बेहद आदर, सम्मान व आभार सहित इसे यहाँ पुनर्प्रकाशित कर रहा हूँ. यदि वे इन पंक्तियों को पढ़ पा रहे हों तो कृपया सूचित करें, ताकि उन्हें श्रेय दिया जा सके. या सुधी पाठकों को पता हो कि ये पंक्तियाँ किनकी हैं?
------.
मच्छर चालीसा
जय मच्छर बलवान उजागर, जय अगणित रोगों के सागर ।
नगर दूत अतुलित बलधामा, तुमको जीत न पाए रामा ।
गुप्त रूप घर तुम आ जाते, भीम रूप घर तुम खा जाते ।
मधुर मधुर खुजलाहट लाते, सबकी देह लाल कर जाते ।
वैद्य हकीम के तुम रखवाले, हर घर में हो रहने वाले ।
हो मलेरिया के तुम दाता, तुम खटमल के छोटे भ्राता ।
नाम तुम्हारे बाजे डंका ,तुमको नहीं काल की शंका ।
मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारा, हर घर में हो परचम तुम्हारा ।
सभी जगह तुम आदर पाते, बिना इजाजत के घुस जाते ।
कोई जगह न ऐसी छोड़ी, जहां न रिश्तेदारी जोड़ी ।
जनता तुम्हे खूब पहचाने, नगर पालिका लोहा माने ।
डरकर तुमको यह वर दीना, जब तक जी चाहे सो जीना ।
भेदभाव तुमको नही भावें, प्रेम तुम्हारा सब कोई पावे ।
रूप कुरूप न तुमने जाना, छोटा बडा न तुमने माना ।
खावन-पढन न सोवन देते, दुख देते सब सुख हर लेते ।
भिन्न भिन्न जब राग सुनाते, ढोलक पेटी तक शर्माते ।
बाद में रोग मिले बहु पीड़ा, जगत निरन्तर मच्छर क्रीड़ा ।
जो मच्छर चालीसा गाये, सब दुख मिले रोग सब पाये ।
बहुत पहले मैंने भी एक मच्छरिया ग़ज़ल (व्यंज़ल) लिखा था. यह मच्छरिया ग़ज़ल कोई पंद्रह साल पुरानी है, जब मलेरिया ने मुझे अच्छा खासा जकड़ा था, और, तब उस बीमारी के दर्द से यह व्यंज़ल उपजा था---
मच्छरिया ग़ज़ल 10
मच्छरों ने हमको काटकर चूसा है इस तरह आदमकद आइना भी अब जरा छोटा चाहिए ।
घर हो या दालान मच्छर भरे हैं हर तरफ
इनसे बचने सोने का कमरा छोटा चाहिए ।
डीडीटी, ओडोमॉस, अगरबत्ती, और आलआउट
अब तो मसहरी का हर छेद छोटा चाहिए ।
एक चादर सरोपा बदन ढंकने नाकाफी है
इस आफत से बचने क़द भी छोटा चाहिए ।
सुहानी यादों का वक्त हो या ग़म पीने का
मच्छरों से बचने अब शाम छोटा चाहिए ।
------.
गर्मी बढ़ रही है, और नतीजतन मच्छरों की संख्या भी. मेरा घर, मेरा शहर मच्छरों से अंटा-पटा पड़ा है. इंटरनेट पर कितने मच्छर हैं? मैंने जरा मच्छरों को इंटरनेट पर ढूंढने की कोशिश की- परिणाम ये रहे-गूगल पर 4500
और याहू! पर 12000 से ऊपर!
अब समझ में आया, माइक्रोसॉफ़्ट, याहू पर क्यों निगाहें डाले बैठा है! और, हम याहू! से क्यों दूर रहते हैं? मच्छरों की भरमार जो है!अद्यतन # 1 - देवेन्द्र पाण्डेय ने निम्न ईमेल कर बताया है कि इस मच्छर चालीसा के रचयिता श्री कैलाश (या कलश) पाण्डेय हैं.
पाण्डेय जी को धन्यवाद, एवं आभार.
----.
(मच्छर का चित्र - साभार, बीबीसी)
हा हा हा ! मज़ा आ गया । ऐसी ही मच्छर मानस हमने बचपन मे बहुत बनाई । वैसे बचपना किसी का कहाँ जाता है । लौट लौट आता है ।
जवाब देंहटाएंवाकई बहुत मज़ेदार !
बडे भाई नमस्कार .इस मच्छर चालिसा को पढने के बाद मेरे आस पास के मच्छर तो भाग ही गये .बहुत अच्छा लगा .......
जवाब देंहटाएंमजेदार ५ स्टार रेटेड!
जवाब देंहटाएंएकदम मस्त चालीसा
जवाब देंहटाएंमैने आपकी तरह रेटिंग का विजेट अपने ब्लाग में लगाया है पर केवल शीर्षक दिखता है. रेटिंग नही.
जवाब देंहटाएंआप खुद देख सकते हैं. http://ankurthoughts.blogspot.com
इसे कैसे ठीक करें?
बहुत सही..मजा आ गया...घंटी की जगह मच्छर मार रैकेट हिला रहा हूँ इसे गाते हुए. :)
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद कोई मजेदार चीज देखने में आई है.
जवाब देंहटाएंbahut sahi rahi ye machhar chalisa, thora swad bhi badla in machhoron ne
जवाब देंहटाएंअंकुर जी आपके ब्लॉग में रेटिंग कोड सही नहीं लगा है. फिर से कोशिश करें. मेरे विचार में आप इसे एक विजेट या पेज एलीमेंट के रूप में लगाएँ.
जवाब देंहटाएंरवि जी ये मजेदार मच्छर चालिसा मैने पहले टी वी पर लाफ़्टर प्रोग्राम में सुना था, एक श्री श्रीवास्तव सुना रहे थे, उनका पहला नाम इस समय याद नहीं आ रहा लेकिन वो काफ़ी मशहूर कॉमेडियन है…।:)
जवाब देंहटाएंअनीता जी, कहीं वो राजू श्रीवास्तव तो नहीं?
जवाब देंहटाएंआह ! कितना सुखद लगता है यह जानकर कि यूं खुजलाने वाले आप अकेले नहीं हैं :)
जवाब देंहटाएं