तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं? मैं अपने ज्ञान और स्वज्ञान के भरोसे अपने ब्लॉग पोस्टों में, अपने हिसाब से, अपने विचार से, स्तरी...
तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं?
मैं अपने ज्ञान और स्वज्ञान के भरोसे अपने ब्लॉग पोस्टों में, अपने हिसाब से, अपने विचार से, स्तरीय सामग्री ही लिखता हूं. मेरे ये पोस्ट दूसरों को मेरे अज्ञान, अल्पज्ञान से भरे कूड़ा लगते हैं तो इसमें मैं क्या करूं? मैं अपने ब्लॉग में अपने संपूर्ण होशोहवास व ज्ञान के हिसाब से, अपने हिसाब से सही-सही ही लिखता हूँ. दूसरों को ये भले ही गलत लगें. अब मैं दूसरों के हिसाब से तो नहीं लिख सकता. ....क्योंकि ये ब्लॉग मेरा है.
मेरे विश्वास, मेरी धारणाएँ मेरे अपने हैं. मैं उन्हें किसी के कहने से और किसी वाजिब-ग़ैर-वाजिब तर्क-कुतर्क से तो नहीं बदल सकता और मैं अपने उन्हीं विश्वासों और उन्हीं धारणाओं की बदौलत और अकसर उन्हें पुख्ता करने के लिए, दुनिया को बताने-समझाने के लिए, अपने ब्लॉग पोस्ट लिखता हूँ. मैं दूसरों के विश्वास और दूसरों की धारणाओं के अनुसार तो नहीं लिख सकता. ....क्योंकि ये ब्लॉग मेरा है.
मैं अपनी भाषा, अपनी शैली में लिखता हूँ. अपने ब्लॉग पोस्ट पर किसी को गाली देता हूँ या किसी की वंदना करता हूँ तो इससे किसी को क्या? मैं अपने ब्लॉग पर छिछली उथली भाषा का इस्तेमाल कर भाषा पर बलात्कार करने को या शुद्ध-सुसंस्कृत भाषा लिखने को स्वतंत्र हूँ. सरल भाषा में लिखता हूँ या जटिल इससे किसी को क्या सरोकार? मैं अपनी उथली-छिछली-खिचड़ी भाषा में लिखता हूँ. मैं दूसरों के कहे अनुसार तथाकथित सभ्य बनकर नहीं लिख सकता. ...क्योंकि ये ब्लॉग मेरा है.
अपडेट - मैं किसी भी विषय पर, चाहे उस पर मेरी जानकारी हो या न हो, बड़े ही एक्सपर्ट तरीके से, प्रोफ़ेशनल अंदाज में, बड़ी गंभीरता से, दमदारी से लिख सकता हूँ. वह भी अपने एंगिल से, अपने तर्कों-कुतर्कों से सही ठहराते हुए. मैं आधे-अधूरे और अपने हिसाब से संपादित उद्धरणों के द्वारा अपनी किसी भी बात को सत्य सिद्ध कर सकता हूँ. .... क्योंकि ये ब्लॉग मेरा है .
अब, मेरे लेखों से, मेरे ब्लॉग पोस्टों से किसी को मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं?
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व्यंज़ल
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सभ्य बनने की कोशिश यूँ मेरी भी पूरी थी
तेरे शहर की फ़िजाँ में कोई बात रही होगी
ये तो कबूल लो पार्टनर कि इस रुसवाई में
हमेशा की तरह जरा सी कोई बात रही होगी
दंगे-फ़साद यूं मुफ़्त में कहीं भी नहीं होते
मानो न मानो कोई न कोई बात रही होगी
सब ने यहाँ पे सी लिए हैं होंठ अपने अपने
पता कैसे चले कि क्या कोई बात रही होगी
हमें भी कोई शौक नहीं था बतंगड़ का रवि
बात पे निकली थी तो कोई बात रही होगी
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Tag व्यंग्य,ब्लॉग,मिर्ची,व्यंज़ल
आप हमारे हैं तो ये ब्लाग भी तो हमारा ही हुआ ना!
जवाब देंहटाएंमुझे मिर्ची लगेगी तो आप कुछ नहीं कर सकते. मगर मैं जरूर गाली गलौच कर सकता हूँ, आपको साम्प्रदायिक कह सकता हूँ, आपके लिखे को कुड़ा कह सकता हूँ, फोन पर धमका सकता हूँ, कोई क्या उखाड़ लेगा. मेरे समर्थक नारद को गिरयाने में उस्ताद भी है.
जवाब देंहटाएंवैसे मिर्ची सुर्ख लाल है!
जवाब देंहटाएंमैं अपने ब्लॉग में अपने संपूर्ण होशोहवास व ज्ञान के हिसाब से, अपने हिसाब से सही-सही ही लिखता हूँ
जवाब देंहटाएंऐसे मे ये लिखना कुछ और ही सबक देता है :)।
ये ब्लॉग भले ही आपका है, परंतु टिप्पणी तो मेरी है। इसलिए मैं अपने स्वज्ञान से, विचार से, स्तरीय टिप्पणी ही लिखता हूँ। मेरे विश्वास, मेरी धारणाएँ मेरे अपने हैं। मैं अपनी भाषा, अपनी शैली में लिखता हूँ। अपनी टिप्पणी पर किसी को गाली देता हूँ या किसी की वंदना करता हूँ तो इससे किसी को क्या?
जवाब देंहटाएंअब मेरी टिप्पणी से आपको या किसी को भी मिर्ची, नमक, हल्दी, राई, जीरा कुछ भी लगे तो मैं क्या करूँ।
गालियाँ मैने कभी दी ही नहीं जाने जिगर
जवाब देंहटाएंतेरी सोचों में ही ऐसी कोई बात रही होगी
फूल चुन चुन के सजाये थे तुम्हारी खातिर
तुमको कांटे जो नजर आये, कोई बात रही होगी
घोल कर चाशनी में हमने परोसी थी तुम्हें
मिर्चियाण तुमको लगीं कोई बात रही होगी
अब इतनी ऐठ भी अच्छी नही..? ब्लोग आपका होगा,लेख आपका होगा,पर टिपियाते हम ही हैऔर उसके बिना ब्लोग विधवा जैसा लगता है ये सर्व विदित है
जवाब देंहटाएं:) रह गई थी
जवाब देंहटाएंबहुत जम के मिर्ची लग गई भाई!! यह कौन सी वाली है. :)
जवाब देंहटाएंवैसे भी हमारी मिठाई की दुकान है इसमें हम मिर्ची का इस्तेमाल नहीं करते और न ही मिर्ची से बने व्यंजन सजाते हैं. कोई और भजिये वाले की दुकान देखो, शायद खरीद लेगा और अपने यहाँ सजा भी लेगा... हा हा!!! :) :) (दो स्माईली)
वैसे भी हमारी मिठाई की दुकान है इसमें हम मिर्ची का इस्तेमाल नहीं करते और न ही मिर्ची से बने व्यंजन सजाते हैं.
जवाब देंहटाएंकाहे झूठ बोलते हो समीर जी, आप खुद ही तो बोले थे कि मिठाई के धंधे में कोई मुनाफ़ा नहीं रहा, कनाडा में दुकान नहीं चल रही, इसलिए दारू का अड्डा खोला। लगता है कि वो खोलने के बाद स्वयं ही भोग लगाने लगे, अरे हमको भी पिलाओ कुछ मिर्ची वाली!! ;)
sahee hai jee!!!
जवाब देंहटाएंओह मिर्ची का धंधा अब आपने भी- पंकज भाई उर्फ मिर्ची सेठ से कोई सांठ-गांठ ??
जवाब देंहटाएंदद्दा ;
जवाब देंहटाएंमन की ही सुनियेगा हमेंशा.बस वहीं तो ठाकुरजी बिराजमान हैं.मन को आनन्द में तिरोहित करने के लिये ही तो ये सारा जंजाल है.शब्द की आराधना करने वाले को हमेशा दिल से काम लेना चाहिये ...दिमाग़ से नहीं..
हरि ओम.
लगता है मिर्ची सेठ् ने इंडिया की पार्टनरशिप आपको दे दी। अच्छा है नया धंधा, कुछ मिर्ची इधर भी भेज दीजिएगा।
जवाब देंहटाएंव्यंग मजेदार रहा!
कभी जीवविज्ञान में पढ़ा था कि अडेप्टेशन(adaptation) सजीवता का एक लक्षण है।
जवाब देंहटाएंभैया ! आपको विवादो मे न पडता देख खुशी होती है ! आप शिव है मोर भोले भंडारी बेल पतिया मे घलोक खुस रहने वाले ! धंयवाद
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