आजकल के अत्याधुनिक जमाने में, मैं अपने घर के कम्फ़र्ट को छोड़कर कभी कहीं भी, किसी से भी मेहमान-नवाज़ी करवाने नहीं जाता. किसी से भी, रिपीट कि...
आजकल के अत्याधुनिक जमाने में, मैं अपने घर के कम्फ़र्ट को छोड़कर कभी कहीं भी, किसी से भी मेहमान-नवाज़ी करवाने नहीं जाता. किसी से भी, रिपीट किसी से भी अपनी मेहमान-नवाज़ी नहीं करवाता. कानपुर से फुरसतिया से लेकर कैनेड्डा से उड़नतश्तरी तक ने मनुहारों में कहीं कोई कमी न रखी है, मगर मैं नहीं पसीजा तो नहीं ही पसीजा. दरअसल, मेहमान-नवाज़ी का सुख हासिल करने में अब तक के बुरे अनुभवों ने मजबूरन मुझे ऐसा बना दिया है – निष्ठुर अंतर्मुखी.
आप पूछेंगे ऐसा क्या हो गया था? अरे, यह भी कोई बताने की बात है. कारण जग जाहिर हैं, और आपने भी यदा कदा भुगता होगा. रीफ्रेश होने के लिए, कुछेक, अच्छी भली वज़हें ये हैं –
1 – वाईफ़ाई की क्वांटिटी और क्वालिटी – कहीं आप मेहमान बनकर जाते हैं तो आजकल आप पहले पहल किस चीज की आशा करते हैं? पहले मेहमान आता था तो एक डल्ली गुड़ और एक लोटा पानी से स्वागत होता था. दूर देश की यात्रा से थक हारकर आता था तो हाथ-गोड़ धोकर गुड़ खाकर पानी पीता था तो मेहमान की आत्मा तृप्त होती थी और थकान दूर हो जाती थी. अब, भले ही जियो ने खेल में कुछ बदलाव लाने की भरपूर कोशिश की हो, मगर अभी भी वाई-फ़ाई का कहीं कोई मुकाबला नहीं. आज का मेहमान आते ही वाई-फ़ाई पासवर्ड की आशा तत्काल रखता है. साथ ही वो ये भी आशा रखता है कि ब्रॉडबैण्ड मिनिमम 8 एमबीपीएस का, अनलिमिटेड हो, नहीं तो क्या खाक मेहमान-नवाज़ी. कुछ उन्नत किस्म के मेज़बान भी पीछे नहीं रहते, आते ही 13 डिजिट का डबल्यूएपी पासवर्ड टिकाते हैं, और बातों बातों में गर्वीले अंदाज में बताते हैं कि हाल ही में एक्टिव मैट्रिक्स में अनलिमिटेड अपग्रेड करवाया है, फ़ाइबर लगवाया है! मेहमान यदि मेजबान की तरह तकनीकी उन्नत हुआ तो मन में बोलता है – वॉव! फ़ाइबर!, नहीं तो वो सामने वाले का मुंह ताकता है और मन में सोचता है यह फाइबर वाला नया भोज्य पदार्थ है क्या? शायद आज के रात्रि भोज में यह नया आइटम खाने को मिलेगा. और, हमारे जैसा अर्ली एडॉप्टर किस्म का मेजबान तो, भारत में भले ही 5 जी की बातें अभी हो रही हैं, सेवा शुरू होने में साल दो साल लगेंगे ही लगेंगे, मगर वो, अपने मेहमानों के लिए, खास विदेश से 5जी राउटर पहले ही मंगवा कर रख लेता है. जस्ट इन केस.
2 – आपके घर में आरो है क्या – पानी का तो ऐसा है कि हर कोस में उसका स्वाद बदल जाता है. ऊपर से आजकल म्यूनिसिपल पाइपलाइन से मिलने वाले पानी में पानी की मात्रा कितनी है और सीवर के लीकेज की कितनी ये अंदाजा लगाना बड़ी टेढ़ी खीर है. अंडरग्राउंड वाटर (हाँ, वही नलकूप का पानी,) की तो बात ही मत करें, कितने टॉक्सिक मिनरल होंगे कोई नहीं बता सकता. ऐसे में आरो (वही, मशीन वाला पानी,) ही मुंह लग गया है तो उसकी आदत अब छूटती नहीं. और दूसरा कोई भी पानी अब सुहाता नहीं. पेट खराब होने का डर अलग से. ऊपर से, बोतलबंद आरो पानी की आदत रेलवे के सदा सूखे नलों ने ऐसी लगाई, कि अब तो मृत्युपर्यंत ही यह आदत जाएगी. यूँ, क्लोरीनेटेड पानी से आधी जिंदगी तो आराम से निकल गई थी, और पानी का असली स्वाद क्लोरीन वाला ही होता है ऐसा मन में बैठ गया था, मगर बोतलबंद पानी बेचने वालों के मार्केटिंगि गिमिकों ने पानी का असली स्वाद भुला दिया. अब तो 100% प्योर H2O का कड़वा स्वाद ही मन को भाता है. तो, जब तक विश्वस्त सूत्रों से पता नहीं चल जाता कि सामने वाले के घर में आरो का पानी ही चलता है – भले ही वो बिना धुले, फफूंद लगे कैन में सप्लाई होता हो, अपन मेहमान-नवाज़ी करवाने नहीं ही जाते.
3 - एसी और एयरप्यूरीफ़ायर – यूँ मेरे शहर का मौसम और आबो हवा और वातावरण कोई जन्नत जैसा नहीं है, मैं भी आधुनिक युग के जहन्नुम में रहता हूँ जहाँ धूल-धुँआ-गर्द आदि इत्यादि चहुँओर से घेरे रहते हैं, मगर मेहमान-नवाज़ी भी कोई चीज होती है. अब आप कहीं अपनी मेहमान-नवाज़ी करवाने जाएँ, और वहाँ भी वही धूल भरी हवा खाएँ, तो इसमें क्या तुक? फिर तो हमारा अपना शहर अच्छा भला. इसलिए, जब तक किसी के पास से ये पुख्ता प्रमाण नहीं मिलते कि अगले ने अपने मेहमान के कमरे में क्लाइमेट कंट्रोल एसी और एयरप्यूरिफ़ायर नहीं लगवा रखा है, उसके आमंत्रण-निमंत्रण प्रस्तावों पर नजर ही नहीं मारते. भले ही अगला मनुहार करते करते स्वर्ग सिधार जाए. प्रदूषित वातावरण के चलते, हमें अपने आकस्मिक स्वर्ग सिधारने की चिंता करनी चाहिए कि दूसरों की?
4 – आपके घर का, आपके घर के मेहमान के कमरे का स्टैंडर्ड कैसा है? कहने का अर्थ यह कि घर में, एसी लगवा लेने से या 4के स्मार्ट टीवी लगवा लेने से स्टैंडर्ड नहीं बढ़ जाता. अच्छे अच्छे लोग, एसी तो लगवा लेते हैं मगर कमरे को हीट इंसुलेशन नहीं करवाते. इसी तरह, और भी अच्छे-अच्छे लोग 4के स्मार्ट टीवी तो लगवा लेते हैं, मगर उनका सेट-टॉप-बॉक्स बाबा आदम के जमाने का एसडी क्वालिटी का ही लगा हुआ होता है. माने, सारा तबेला गया पानी में! इधर अपन ठहरे डब्ल्यू-डबल्यू-ई को फुल-एचडी में, और डॉल्बी एटमॉस साउंड सिस्टम के साथ देखने के लती, तो आप समझ सकते हैं, आपकी मेहमान-नवाज़ी हमारे जैसों के किसी काम की नहीं. अब तो जमाना अपने-अपने घरों को आईएसओ 9000 सर्टिफ़िकेशन करवाने का आ गया है. तो, भई, सीधी सी बात है, बात तब करना जब आपका घर कम से कम आधा दर्जन सर्टिफ़िकेशन से लैस हो – जिसमें डीटीएस सर्टिफ़िकेशन अनिवार्य रूप से शामिल हो.
है किसी में, हम जैसों को अपना मेहमान बनाने की क़ूवत?
रोचक लेख, बिल्कुल सच लिखा है, कहीं भी जाने से पहले ये बातें ज़रूर ध्यान में आती है, RO की मजबूरियां ....ऐसा लगा जैसे आपने हमारी मन की बातें ही लिखी हों।
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