आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 277 लोमड़ी एवं सेही एक बार एक लोमड़ी नदी...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
277
लोमड़ी एवं सेही
एक बार एक लोमड़ी नदी पार करते समय तेज धार में बहकर एक सकरी घाटी में फंस गई और काफी प्रयास करने के बावजूद वहां से निकल न पाने के कारण थककर वही लेट गई। तभी दुर्भाग्यवश रक्त चूसने वाली मक्खियों का एक झुंड उस पर टूट पड़ा और वे उसे काटने और डंक मारने लगीं। तभी एक सेही वहां से गुजरी। लोमड़ी को बुरी हालत में देखकर दयावश उसने उसे वहां से निकालकर मक्खियों से दूर ले जाने का प्रस्ताव दिया। हालाकि, लोमड़ी ने उसे ऐसा कुछ भी करने को साफ मना कर दिया।
सेही ने उससे पूछा - "ऐसा क्यों?"
लोमड़ी बोली - "ऐसा इसलिए कह रही हूं कि जो मक्खियां अब तक मेरा खून पी रहीं थीं, अब उनका पेट भर चुका है। यदि तुम उनसे मुझे बचाकर नदी के उस पार ले भी जाओगे तो भूखे भेड़ियों का झुंड मुझ पर टूट पड़ेगा और मुझे चट कर जाएगा।"
भूखे भेड़ियों की बजाए रक्त चूसने वाली मक्खियों से जूझना बेहतर है।
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278
सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज़
बीरबल की ही तरह नसरुद्दीन भी अपने सुल्तान को अत्यंत प्रिय था। एक दिन कदी (मुस्लिम देशों, विशेषकर तुर्की में जज को कदी कहते थे) और वजीर (सुल्तान का विशेष सिपहसालार) ने ईर्ष्यावश कुछ ऐसा करने का निर्णय लिया जिससे नसरुद्दीन सुल्तान की नजरों से गिर जाये। एक दिन उन्हें ऐसा करने का मौका उस समय मिला जब सुल्तान ने कहा - "मैं अपने तीरंदाज़ों का अभ्यास देखने जा रहा हूं। मैं चाहता हूं कि आप सभी लोग भी आयें।"
जल्द ही वे उस जगह पहुंच गए जहां तीरंदाज़ अभ्यास कर रहे थे। अपने तीरंदाज़ों को सटीक निशाना लगाते हुए देखकर सुल्तान ने प्रसन्नतापूर्वक कहा - "बेहतरीन ! शाबास ! निस्संदेह मेरे तीरंदाज़ सल्तनत के सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज़ हैं।"
"माफ कीजिए सुल्तान ! पर हम लोगों में एक ऐसा भी शख्स मौजूद है जो स्वयं ही आपकी सल्तनत का सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज़ होने का दावा करता है।" - कदी ने ईर्ष्यावश कहा।
सुल्तान ने कहा - "वो कौन है?"
कदी ने उत्तर दिया - "अपने नसरुद्दीन ही वो शख्स हैं"
सुल्तान ने नसरुद्दीन को धनुष और तीर देते हुए कहा - "ठीक है नसरुद्दीन। तुम अपनी काबिलियत साबित करो।"
नसरुद्दीन को तो तीरंदाज़ी आती ही नहीं थी। भय से कांपते हुए उसने सुल्तान से धनुष और तीर लिया। इसी बीच, कदी और वजीर आपस में बात करने लगे कि - "जहां तक हम जानते हैं, नसरुद्दीन अनाड़ी तीरंदाज़ है। आज वह निश्चय ही सुल्तान की नज़रों से गिर जाएगा।"
नसरुद्दीन भी सोचने गया कि - "हो न हो, यह कदी और वजीर की ही साजिश है। पर मैं उन्हें सबक सिखा कर ही दम लूंगा।"
नसरुद्दीन ने जैसे ही पहला तीर चलाया, अनाड़ी तीरंदाज़ होने के कारण उसका निशाना चूक गया। पर वह अपने को संभालते हुए बोला - "इस तरह कदी तीर चलाते हैं।" उसने दूसरा तीर चलाया तो वह भी निशाना चूक गया। वह बोला - "और इस वजीर निशाना लगाते हैं।" जैसे ही उसने तीसरा तीर चलाया, भाग्यवश वह सटीक निशाने पर लगा। खुश होते हुए वह बोला - "और इस तरह मैं निशाना लगाता हूं।"
वहां मौजूद लोगों ने नसरुद्दीन की जमकर तारीफ की और सुल्तान से खुश होकर उसे बहुमूल्य उपहार प्रदान किये।
अपनी शिकस्त देखकर कदी और वजीर उससे और अधिक ईर्ष्या करने लग गए।
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ईश्वर पर भरोसा करने से पहले अपने ऊँट को तो खूंटे से बाँध लो.
इस सूफ़ी कहावत का गूढ़ अर्थ है. कहावत में दरअसल एक ऐसे व्यक्ति की रचना करने की कोशिश की गई है जो विश्वासी है तो कर्ता भी है. अकर्मण्य विश्वासी नहीं. एक ऐसा व्यक्ति जो दिन में पूरी तरह सजग और जगा हुआ होता है तो रात में भी गहन निद्रा में सोता है, मगर घोड़े बेचकर कतई नहीं. यह व्यक्ति जानता है कि कब सांस लेनी और कब नहीं. वस्तुतः उसे जीवन के संतुलन का पता है.
यह कहावत एक छोटे से दृष्टान्त से निकली है –
एक बार एक गुरु अपने शिष्य के साथ यात्रा पर था. यात्रा कठिन थी और शाम होते तक सभी बेतरह थक गए थे. यात्रा में उनके साथ एक ऊँट था, जिसके देखरेख की जिम्मेदारी शिष्य पर थी. परंतु थकान से बेहाल शिष्य ने ऊँट का पगहा किसी वृक्ष के तने पर बांधने की जहमत भी नहीं उठाई और ईश्वर से यह प्रार्थना करते हुए कि वो ऊँट की रक्षा करें, सो गया.
दूसरे दिन सुबह नींद खुलने पर गुरु ने देखा कि शिष्य सो रहा है और आसपास ऊँट नहीं दिख रहा. तो उसने शिष्य को उठाया और पूछा – “ऊँट कहाँ है?”
“मुझे क्या पता. ईश्वर से पूछो.” शिष्य ने आगे कहा – “मैंने तो ईश्वर से प्रार्थना की थी कि वे मेरे ऊँट की रक्षा करें. और एक बार नहीं, तीन तीन बार की थी. आप ही कहते हैं कि ईश्वर पर भरोसा रखो. मैंने ईश्वर पर भरोसा रखा, पूरा भरोसा रखा और उनके भरोसे ही ऊँट को बांधा नहीं और उनके भरोसे खुला ही रहने दिया. अब आप कृपया मेरी ओर भृकुटि टेढ़ी नहीं करें.”
गुरु ने ठहाका लगाया और कहा – “भले आदमी, ईश्वर पर भरोसा रखो, मगर पहले अपने ऊँट को खूंटे से बाँध लो. ईश्वर के असली हाथ तो दरअसल तुम ही हो.”
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33
अमरता का वरदान
एक दिन वेदव्यास से उनके मामाश्री ने कहा – भांजे मुझे अमरता का वरदान चाहिए. मुझे भगवान ब्रह्मा के पास ले चलो.
भगवान ब्रह्मा ने असमर्थता जाहिर की पर कहा कि वे उन्हें विष्णु के पास ले चलते हैं जो कोई हल अवश्य निकालेंगे.
वे सभी भगवान विष्णु के पास पहुँचे. विष्णु ने भी वही बात कही, और उन्हें लेकर भगवान शंकर के पास गए.
भगवान शंकर ने बताया कि जीवन-मृत्यु का लेखा जोखा तो यमराज के पास रहता है. शायद वे कोई हल निकालें. और वे सभी यमराज के पास गए.
यमराज ने कहा कि पहले देखें तो सही कि मामाश्री की मृत्यु की तिथि क्या दर्ज है. चित्रगुप्त को तलब किया गया जिनकी पोथी में ब्रह्माण्ड के सभी जीवों की मृत्यु की तिथि दर्ज रहती है.
चित्रगुप्त से यमराज ने पूछा कि वेदव्यास के मामा की मृत्यु की तिथि कौन सी है. चित्रगुप्त ने अपनी पोथी खोली, और उस प्रविष्टि पर गए जिस पर मामाश्री की मृत्यु की तिथि अंकित थी. प्रविष्टि पर नजर पड़ते ही चित्रगुप्त का मुँह खुला का खुला रह गया. उन्होंने मामाश्री की ओर अपनी नजरें घुमाई. मामाश्री स्वर्ग सिधार चुके थे.
प्रविष्टि में दर्ज था – जिस घड़ी त्रिदेव, यमराज, चित्रगुप्त और वेदव्यास एक साथ मिलेंगे, वह घड़ी मामाश्री की मृत्यु की घड़ी होगी!
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
अमरता का वरदान तो अन्त में हँसा गई, ज्ञान-वान मिलना बाद में। मुल्ला जी के मुरीद तो हम हैं ही। एक बार फिर आपकी कृपा से पढने को मिला। ऊँट वाली कथा फिर शरणागति का उल्लंघन करती है लेकिन सच तो वैसा ही है…
हटाएंछोटी पर घाव करे गंभीर।
हटाएंsari kahaniyan pahli bar padhne ko mili aur rochak lagi. dhanywad.
हटाएंहा हा, सब एक से बढ़कर एक हैं
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