बात अयोध्या की नहीं हो रही है. कण-कण में भगवान जैसी विचारधारा के जनक, भारत भूमि के एक राज्य में स्थित एक शहर के हृदय-स्थल स्थित एक पॉश कॉलोन...
बात अयोध्या की नहीं हो रही है.
कण-कण में भगवान जैसी विचारधारा के जनक, भारत भूमि के एक राज्य में स्थित एक शहर के हृदय-स्थल स्थित एक पॉश कॉलोनी की हो रही है.
एक कॉलोनी के निवासियों के वाट्एएप्प ग्रुप में किसी भक्त ने पोस्ट किया कि कॉलोनी के निवासियों में भक्तिभाव की मात्रा क्रमशः कम होती जा रही है लिहाजा कैंपस में एक अदद भव्य मंदिर का निर्माण किया जाना चाहिए.
अब, जाहिर है, किसी खांटी फ़ेसबुकिया के पोस्ट की तरह ही यह पोस्ट थी - एक लाइन की विवादित पोस्ट डाल दो, और अपने मित्र-मंडली और अनुसरणकर्ताओं में हो रही सिर-फुटौव्वल का मजा लो.
यहाँ भी उसी तरह की, मजेदार मारामारी प्रारंभ हो गई.
कुछ ने समर्थन में हुंकार भरी, तो कुछ ने इसे सिरे से खारिज करने के अकाट्य तर्क दिए. कुछ सदा की तरह तटस्थ बने रहे और दूर से सिरफुटौव्वल का मजा लेते रहे.
समर्थन में वे लोग बहुत आगे थे, और पूरी शक्ति व भक्ति से आगे थे जो कॉलोनी के रखरखाव की मासिक किश्तें भी भरने में सदैव आगा-पीछा करते थे.
एक ने भली बात कही – भइए, मंदिर तो बनेगा, ठीक है. पर किसका? गणेश जी का या शंकर जी का या ब्रह्मा जी का या दुर्गा देवी का या राम-सीता का या राधा-कृष्ण का? यदि गणेश जी का बनाओगे तो शंकर जी नाराज हो जाएंगे और यदि दुर्गा जी का बनाओगे तो संतोषी मां क्रुद्ध हो पड़ेंगी और कॉलोनी को श्राप दे देंगी. और, मंदिर कितना भव्य होगा? शहर का सबसे बड़ा? राज्य का सबसे बड़ा? देश का सबसे बड़ा? या, विश्व का सबसे बड़ा?
इससे मामला थोड़ा सा उलझ गया था.
एक सदस्य ने पोस्ट किया – इस कॉलोनी में कई धर्मों के लोग रहते हैं. मंदिर बने यह तो ठीक है, मगर दूसरे धर्मों के ईश्वर को नाराज नहीं किया जा सकता. लिहाजा कॉलोनी में मस्जिद भी बने, इमामबाड़ा भी बने, चर्च भी बने, गुरूद्वारा भी बने और जिनालय भी. बूढ़ादेव (जनजातियों के देवता) का मंदिर भी बनना ही चाहिए- इसे तो हरगिज छोड़ा नहीं जा सकता.
प्रकटतः यह विशाल प्रश्न उठाता जेनुइन सा पोस्ट था, जिसका एकाध को छोड़कर ग्रुप के अधिकांश लोगों ने नोटिस ही नहीं लिया. यानी यह विचार स्वतः ही खारिज हो गया. जेनुइन चीजें, यूँ ही, अमूमन स्वतः ही खारिज हो जाया करती हैं.
एक ने पोस्ट में अपना चिंतन लिखा – सर्वधर्म स्थल बनना चाहिए.
अब, अलग-अलग ईश्वर के अलग-अलग बंदे एक जगह, एक विचार पर तो एक नहीं हो सकते, उनके ईश्वर एक कैसे होंगे? यह बहुत बड़ा सवाल था, जिसका कोई उत्तर किसी के पास नहीं था, अतः उसे तो खारिज होना ही था. सर्वधर्म समभाव केवल अक्षर और वाक्य में एक साथ होते हैं, अन्यथा कहीं नहीं.
एक ने कानूनी राय दी – कॉलोनी में किसी भी निर्माण कार्य के लिए सदस्यों की जनरल मीटिंग बुलवा कर प्रस्ताव पास किया जाना चाहिए अन्यथा समस्या हो सकती है और बिना प्रस्ताव पास किए गए निर्माण कार्य अवैध हो सकते हैं.
मगर, तब तक मंदिर बनाने की भावना लोगों में प्रबल हो उठी थी और कई लोगों ने इसे इसलिए खारिज किया कि इससे मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ करने में अनावश्यक देर हो सकती है. अवैध कार्यों की गति अत्यधिक तीव्र होती है और यहाँ गति व त्वरण का कोई भी नियम लागू नहीं होता. यहाँ सिंगुलैरिटी जैसा अलग, हाइपोथिटिकल नियम लागू होता है जहाँ कोई नियम नहीं चलता. जितना विशालकाय भव्य अवैध कार्य, उतना ही तत्काल उसके पूरे होने की संभावना – यहाँ तक कि बैक डेट में भी उसके पूरे होने की संभावना. यहाँ गनीमत यह रही कि किसी ने यह नहीं कहा कि कॉलोनी में पहले से ही मंदिर रहा है, बस उसका जीर्णोद्धार करना है.
एक बंदे ने आगाह किया – चलिए, मान लिया कि मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा (आदि, आदि) बन गया. अब इनके नियमित रख-रखाव, पूजा अर्चना, अजान, ग्रंथ पाठ आदि आदि के लिए क्या और कहां से प्रावधान होगा? पिछली बार कॉलोनी के ओवर हेड टेंक की पानी की मोटर जल गई थी तो उसे ही बदलने के लिए पैसा जुटाना भारी पड़ गया था.
जवाब में बहुतों ने तन-मन-धन से इसमें सहयोग करने का वादा किया. इनमें अधिसंख्य वो थे जिनके कॉलोनी की सोसायटी के खाते में बकाया निकल रहे थे और जिन्होंने जले मोटर को बदलने के लिए चन्दा भी नहीं दिया था. जिस ईश्वर के बगैर पत्ता तक नहीं खड़कता, वहाँ ईश्वर के मंदिर के लिए ऐसे लोग तन-मन-धन लिए खड़क रहे थे, तो ऐसे ईश्वर को मानना ही पड़ेगा और मंदिर तो बनाना ही पड़ेगा. मंदिर बनने के लिए कायनात की सारी शक्तियों ने साजिश शुरू कर दी थी.
एक ने लिखा – धर्म और ईश्वर ने दुनिया में बहुत फसाद फैलाया है, अब और नहीं. इसलिए यदि बनाना ही है तो ज्ञानमंदिर – यानी लाइब्रेरी बनाया जाए.
क्या कहा? सोशल मीडिया - वाट्सएप्प, टिकटॉक और फ़ेसबुक के जमाने में लाइब्रेरी? कौन जाएगा वहाँ? यह तो संसाधनों की राष्ट्रीय क्षति होगी! – ऐसा अधिकांश सदस्यों ने सोचा होगा और इस संदेश को भी भारी अनदेखा कर दिया.
बहरहाल, मंदिर निर्माण पर बहस जारी है.
आपको क्या लगता है? मंदिर बनेगा?
साधुवाद । बहुत ही बढ़िया आलेख ।
हटाएंBahut sundar
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