ये लीजिए, आपके लिए मुफ़्त की, घर बैठे कमाई की बरसात के लिए एक और सरकारी योजना. आज एक अखबार में विस्तार पूर्वक खबर छपी है कि लोग यूपीआई कैशब...
ये लीजिए, आपके लिए मुफ़्त की, घर बैठे कमाई की बरसात के लिए एक और सरकारी योजना.
आज एक अखबार में विस्तार पूर्वक खबर छपी है कि लोग यूपीआई कैशबैक स्कीम से किस तरह से फोकट में कमाई कर रहे हैं. और यही नहीं, तमाम सोशल मीडिया पोस्टों, स्टेटस और यूट्यूब वीडियो चैनलों से लोगों को यह बता कर शिक्षित भी कर रहे हैं कि हींग लगाओ न फिटकरी, और कमाओ जी भर के!
दरअसल सरकार ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए यूपीआई के जरिए भुगतान करने पर ग्राहक को कैशबैक की सुविधा दी है. जब से यह सुविधा हासिल हुई है, मैंने भी अपने बिजली, टेलिफोन आदि बिलों के भुगतान के लिए काउंटरों पर जाना बंद कर दिया है. इसके दो कारण हैं. पहला तो काउंटरों पर जाना, वहाँ लाइन लगा कर खड़ा होना और फिर काउंटर पर चिल्लर की कमी के चलते रुपया दो रुपया काउंटर क्लर्क द्वारा वापस न कर हजम किया जाना (कृपया इस बात को दिल पर न लें, मैंने दस में से आठ बार इस तरह की समस्या भुगती है, खासकर सरकारी भुगतान काउंटरों पर). मगर अब डिजिटल भुगतान सुविधा (कई हैं, पेटीएम से लेकर भीम से लेकर तेज तक. अभी तेज वाकई तेज है, यह आपके जीमेल, संदेश आदि से जुड़ कर एआई के जरिए स्वचालित रूप से यह बताता है कि भइए, नया बिल आ गया है, इस तारीख को इसकी आखिरी तारीख है, भुगतान कर दो. आखिरी तारीख से पहले भी यह आपको याद दिलाता है कि आपने भुगतान किया या नहीं!) से न केवल इंस्टैंट भुगतान होता है, कहीं जाने और लाइन वाइन में लगने की झंझट नहीं, ऊपर से चिल्लर का कोई चक्कर नहीं कि रुपया दो रूपया हजम करवाओ, बल्कि कैशबैक में ईनाम पाओ.
तो, जल्दी ही भाई लोगों ने इस कैशबैक स्कीम में कमाई का जरिया ढूंढ निकाला. जब भी आप किसी नए खाते या नए बिल का भुगतान पहली बार करते हैं तो आपके खाते में कुछ कैशबैक आता है. तो भाई लोगों ने पहले तो अपने मित्रों के बीच आपसी भुगतान की बारिश चलाई जिससे कि उनके खाते में पैसे आए, फिर उन्होंने ग्राहक तलाशने चालू किए. बाकायदा फ़ेसबुक ट्विटर और वाट्सएप्प ग्रुपों में और एक दूसरे के खाते में आपसी भुगतान की बरसात फेंकी. यानी पहले मैंने हजार रुपए आपको भुगतान किया, 25 रुपए कैशबैक पाया, फिर आपने वह पैसा मुझे वापस भेज दिया और आपने भी 25 रुपए का कैशबैक पाया. जब सीमा खत्म हो गई तो दूसरे खाता धारक की तलाश हो गई. इस तरह, सदैव की तरह इस सरकारी योजना की भी वाट लगा दी गई. व्यक्तिगत तौर पर इस योजना से असीमित या हजारों रुपए भले ही नहीं कमाया जा सकता हो, मगर अगर चूना लगाने वाले लाखों हो जाएँ, तो फिर आंकड़ों का खेल दिलचस्प तो होगा ही.
यूँ देखा जाए तो सरकारी योजनाएँ इस तरह अपरिपक्व बनाई जाती हैं कि जनता उन्हें फेल कर दे. एक सरकारी योजना कुँआरों का विवाह करवाने की है. कई-कई कुँआरे कई-कई बार विविध नामों से बारंबार विवाह कर रहे हैं तो कई शादी-शुदा दोबारा-तिबारा. बुद्धिजीवी वर्ग किसान किसान चिल्लाता है. एक किसान हितैषी योजना है फसलों के समर्थन मूल्य में खरीदी की. तो इस योजना में पलीता लगाने वाले क्या करते हैं? पड़ोसी राज्यों से ट्रक भर कर सस्ते में माल लाते हैं और जहाँ समर्थन मूल्य ज्यादा होता है वहाँ की उपज बता कर सरकारी खजाने की लूट मचाते हैं. प्रदेश में जितना तो रकबा नहीं है, और रकबे में जितना यील्ड (संभावित उत्पाद) नहीं है उससे कई गुना कृषि उत्पाद समर्थन मूल्य में बिक जाता है. एक योजना कृषि उत्पादों के भावांतर की भी आई है. उत्पाद आभासी हैं, और भावांतर की रकमें असली. यानी फ़ोकटी कमाई की बरसात. पिछले साल सरकारी प्याज खरीदी योजना चली थी. खरीदी गई सरकारी प्याज रैक की रैक बाजारों में चली गई और इधर रेकॉर्ड में सड़ा दी गईं. सड़े प्याजों के उठावने और भंडारण का चूना अलग से. यानी सरकारी योजनाओं से कमाई की मूसलाधार बरसात. योजना आने से पहले, लागू होने से पहले, भाई लोग कमाई की बरसात की तरकीबें ले आते हैं!
मेरे क्षेत्र में अभी एक और सरकारी योजना आई है. गरीबों को 200 यूनिट बिजली फ्री मिलेगी, और उनके पुराने बिजली बिल माफ होंगे. अगले कुछ महीनों के बाद चुनाव जो हैं, भाई तो योजनाओं की बरसात तो आनी ही है. उसके लिए रजिस्ट्रेशन करवाया जा रहा है. पता चला है कि रजिस्ट्रेशन के लिए भागमभाग मची हुई है. क्या अमीर क्या गरीब सब लाइन में लगे हैं. मैं भी सोचता हूँ कि सरकारी योजनाओं की इस चुनावी बरसात में भीगे नहीं तो फिर क्या भीगे. क्या खयाल है आपका? मैं भी रजिस्ट्रेशन करवा आऊँ?
हो-हल्ला बहुत ज्यादा होता है। योजनाओं को बनाने वाले अलग, देखने वाले अलग, उन पर अमल करने वाले अलग और उनका मटियामेट करने वाले अलग, बस इसी में खेल चलता रहता है।
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