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व्यंग्य जुगलबंदी - 40 - योग करो, सुख से जियो

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भूमिका : जबकि हिंदी व्यंग्य की दुनिया व्यंग्य क्या है, व्यंग्यकार क्या है, क्या व्यंग्य केवल उंगली में गिने जाने वाले व्यंग्यकारों तक सिमट ग...

यह है एक पैसे की असली क़ीमत...
व्यंग्य जुगलबंदी - 86 : व्यंग्यकार के मन के भीतर का आंधी-तूफ़ान
साहित्य जगत् के कास्टिंग काउच

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भूमिका : जबकि हिंदी व्यंग्य की दुनिया व्यंग्य क्या है, व्यंग्यकार क्या है, क्या व्यंग्य केवल उंगली में गिने जाने वाले व्यंग्यकारों तक सिमट गया है, समकालीन टॉप 10 कितने व्यंग्यकार हैं, वन लाइनर को व्यंग्य मानें या नहीं, व्यंग्य में करुणा और सरोकार होने चय्ये कि नईं आदि आदि पर उलझी हुई है, इधर तकनीकी क्रांति अपनी रफ़्तार से चल रही है, और एक ऐसा ऐप्प ईजाद हो गया है जो महज एक टच पर व्यंग्य पैदा कर देता है. आपको विश्वास नहीं हो रहा? मुझे भी नहीं हो रहा था. तो मैंने इस ऐप्प की टेस्टिंग की. इस ऐप्प में गूगल एलो, अलेक्सा, सिरी आदि की सम्मिलित एआई की शक्ति है और यह सचमुच महज एक टच पर झकास व्यंग्य पैदा कर देता है. मैंने इस बार की जुगलबंदी के लिए अपने स्मार्टफ़ोन पर इस ऐप्प को इंस्टाल किया और विषय दर्ज कर केवल एक टच मारा और इसने संपूर्ण ब्रह्मांड में से खोज खंगाल कर बढ़िया तरतीब से लाइनें जमाकर एक शानदार व्यंग्य लिख कर मेरे सामने पेश कर दिया. नीचे इस झकास व्यंग्य को पढ़ें – इस व्यंग्य आलेख में मेरा कोई योगदान नहीं है, बल्कि इस व्यंग्य-लेखक ऐप्प का योगदान है. यह ऐप्प किसी भी – जी हाँ, किसी भी (मेरे जैसे?) ऐरे-गैरे को व्यंग्यकार बना सकता है. ऐसा कि व्यंग्य और व्यंग्य क्या है आदि आदि की बहसें फ़िजूल हो जाएँ. नीचे व्यंग्य पढ़ें और व्यंग्य पसंद आने पर आप भी इस ऐप्प को अपने ऐप्प स्टोर से इंस्टाल करें और व्यंग्यकार बनें. सबसे बड़ी बात ये है कि ये ऐप्प पूरी तरह निःशुल्क है (ऐड सपोर्टेड – मुफ़्त खजूर की तरह की कोई चीज नहीं होती हुजूर! – बीयर अपने इधर नहीं चलता, सो तुकबंदी के लिए खजूर सही है ना?)

व्यंग्य -

योग करो, सुख से जियो
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हमने दोस्त के यहां फोन किया। उसके बच्चे ने उठाया।

मैंने पूछा -पापा कहां हैं।

वो बोला- पापा योग कर रहे हैं।

क्यों, क्या हुआ? कोई समस्या है क्या? -मैं योगी हो गया।

नहीं,नहीं अंकल कोई परेशानी नहीं। पापा तो आजकल रोज योग करते हैं। उनका डेली रूटीन है। कहते हैं इससे तबियत ठीक् रहती है। बच्चा शांत आवाज में बता कम समझा ज्यादा रहा था।

हम बच्चे की समझाइश के झांसे में आने ही वाले थे कि हमारे दिमाग में तुलसीदास् टुनटुनाये- जे न मित्र दुख होंहिं योगारी/ तिनहिं बिलोकत पातक भारी।

हमारा मित्र रोज डेली योग कर रहा है, माने कि सुखी है। उसके सुख में सुखी न हुये तो वो सुख हमारे पास पातक बनकर आयेग। भारी वाला। विलोकेगा। लफ़ड़ा होगा। आफ़त है।

हमने सोचा मित्र् के सुख में सुखी हो आते हैं। अपना पातक बचा लेते हैं। सावधानी सटा के , दुर्घटना घटा लें। प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योरे भी हो जायेगा। इतवार है, छुट्टी है।

चाहे जितना सुखी हो चाय-साय तो पिलायेगा ही। यहां तो अब कोई चौथी चाय पूछने से रहा।

पांच मिनट में हम सुख जाहिर करने के लिये दौड़े। पहुंचे दोस्त-द्वारे। सोचा पूछेंगे-क्या हाल हैं प्यारे। क्या हुआ अब हम इतने गैर हो गये कि बताते भी नहीं और अकेले-अकेले सुखी हो लेते हो। कम से कम हमारा तो सोचते क्या होगा! ये तो कहो हमने फोन कर लिया वर्ना हम तुम्हारे सुख में सुखी न हो पाते और हमें तो बड़ा सुख पकड़ लेता। तुम इतने खुदगर्ज निकलोगे, सोचा भी न था। तुमसे ऐसी आशा तो न थी।

लेकिन हम अपनी सोच को अमली जामा न् पहना पाये। हम कुछ पूछे इससे पहले ही दोस्त ढीले नाड़े वाला पायजामा संभालते हुये बोला- आओ, आओ। बैठो। इतनी सुबह। सब खैरियत तो है। बेटा मून्नू देखो अंकल आये हैं। चाय-पानी लाओ। मम्मी को बुलाओ। देखते आओ सूरज किधर निकला है।

हम जिसका हाल पूछने आये वह खुद हमारी खैरियत पूंछ रहा है। कौन कहता है दुनिया में साधुवाद युग का श्राद्ध हो गया। ये तो हमींअस्तो, हमीअस्तो वाला सीन है।

हमने पूछना शुरू किया-सुना है आजकल तुम रोज योग करते हो!

हां यार तुमको बताना भूल गया। आजकल रोज नियम् से योगी हो लेता हूं। बड़ा फ़ायदा है। -दोस्त ने बताया।

अबे योगी होने से फ़ायदा! ये क्या के रे हो? दिमाग तो नहीं फिर गया! क्या ताजमहल को वोट देने आगरा गये थे और वहीं टिक गये पागलखाने में कुछ दिन और कहीं जगह न मिलने के कारण।-हमने फ़ार्म में आने का प्रयास किया।

अरे हम भी यही सोचते थे। लेकिन जब से योगी होना शुरू किया है बहुत फ़ायदा है। वजन कंट्रोल में हैं। टाइम बचता है। घर बैठे सेहत चकाचक। -दोस्त के चेहरे पर हमको मूढ़मति मानने वाली दिव्य मुस्कान विराज रही थी।

योगी होने से फ़ायदा! ये क्या पहेलियां बुझा रहे हो? सबेरे से कोई मिला नहीं क्या? -हम पानी पीते हुये बोले।

हां भाई, सच कहता हूं। योगी होने से बहुत फ़ायदा होता है। दिखता नहीं तुमको कि मेरा वजन कितना कम हो गया। -दोस्त उवाचा।

हां सो तो देख रहा हूं पहले से आधे हो गये। ऐसा कैसे हुआ? हम जिज्ञासु बन गये।

ये इसी ‘योग थेरेपी’ से हुआ। हम रोज नियमित एक घंटा योगी हो लेते हैं।

नियमित योग करने मात्र से वजन कंटोल में है। पहले हम ये मत खाओ, वो मत छुओ, इत्ती कैलोरी, उत्ती वसा के झमेले में हलकान रहते थे। कैलोरी चार्ट रटते-रटते इतना दुखी हुयी जितना बचपन में पहाड़ा रटने में नहीं हुये। अब जब से योगी होना शुरू किया सब झंझट से मुक्ति। अब शान से खाते हैं, शान से सोते हैं। मार्निंग वाक, एवनिंग वाक को अपने रूटीन से डिलीट कर दिया। हम तो कहते हैं कि जिसको अपने स्वास्थ्य की रत्ती भर भी योग है उसे योग करना शुरू कर देना चाहिये। -दोस्त सूचना मोड से प्रवचन मोड में आ रहा था।

तुम यार पहेलिया मत बुझाऒ। सीधे-सीधे काम की बात पर आओ। अपनी बात के पीछे की थ्योरी बताओ। उदाहरण सहित समझाऒ। -दोस्त के सूचना ज्ञान से हम झल्लाने लगे।

यार, बताता हूं। योग का ऐसा है कि हमारे यहां सब पुराने लोग बता गये हैं। हम बुड़बक की तरह उसे देखते नहीं और सारी बातों के लिये विकसित देशों की तरफ़ ताकते रहते हैं।

हमारे यहां पहले बहुत से लोग बता गये हैं योग से आदमी दुबला होता है। कहावत में इशारा भी है- काजी शहर के अंदेशे में दुबला। बीरबल की कहानियों में भी बताया गया है न कि एक बकरे को खूब खिलाया-पिलाया और सामने शेर को बैठा दिया गया। शेर की योग में बकरे का वजन रत्ती भर नहीं बढ़ा। माल-मत्ता खाने से जितना बढ़ा उतना ही शेर को देखकर घटता गया। इसी सिद्धान्त पर योग थेरेपी की नींव टिकी है। आदमी नियमित योग करता रहे तो उसका वजन घटता रहता है। चाहे जो खाये नियंत्रण में रहता है।

इसीलिये ये देखो हमने अपने घर की दीवारों पर योग थेरेपी वाले पोस्टर लगा रखे हैं- योग करो, सुख से जियो। योग सरोवर में डुबकी लगायें, अपना वजन मनचाहा घटायें। बढ़ते वजन से परेशान, नियमित योग से तुरंत आराम। योगी होते ही वजन की चर्बी गायब।

लेकिन हमने तो देखा है लोग खूब योगी रहते हैं फिर भी दुबले नहीं होते। कैसे तुम्हारी बात सच मान लें। -हमने प्रतिवाद किया।

अब ये तो श्रद्धा-विश्वास की बात है। जिसको श्रद्धा होगी उसकी फ़ायदा मिलेगा। जिसको नहीं होगी नहीं मिलेगा। और फिर योग में भी ईमानदारी होनी चाहिये। श्रद्धा में खोंट होगी तो योग का फ़ायदा नहीं मिलेगा। योग शुद्ध होनी चाहिये, २४ कैरेट सोने की तरह तभी आपको लाभ मिलेगा।- दोस्त सांस लेने के लिये रुका।
यार पता नहीं तुम कैसी बातें करते हो। मुझे कुछ समझ में नहीं आता। -हम भ्रमित थे।

हमको भी पहले ऐसा ही लगता था। अच्छा ये बताओ कि ये अमेरिका के राष्ट्रपति इतना स्लिम-ट्रिम, स्मार्ट छैला बाबू टाइप कैसे बने रहते हैं? -दोस्त अब सवाल करने लगा।

उनके खान-पान का ध्यान रखने के लिये डाक्टरों की फ़ौज लगी रहती है। दवा-दारू के लिये उनको किसी सरकारी अस्पताल में लाइन नहीं लगानी पड़ती। नियमित चेकअप होते हैं। व्यायाम-स्यायाम करते रहते हैं। यही कारण होंगे और क्या!

अरे भैया की बातें। ये सुविधायें तो किसी भी अमीर आदमी को मिल सकती हैं। लेकिन उससे वो अमेरिकी राष्ट्रपति के तरह स्मार्ट, स्लिम-ट्रिम, छैला बाबू टाइप थोडी़ हो जायेगा। और फिर समझने की बात है कि जो शख्स पूरी दुनिया को अपने ठेंगे रखने की ऐंठ रखता है। जरा-जरा सी बात पर दुनिया भर में जहां मन आये बम की कालीन बिछा देता है जिस देश को मन आये पाषाण युग में ठेले देता है वो भला डाक्टर-हकीम के इशारे पर चलेगा! हमें तुम्हारी अकल पर तरस आता है।- दोस्त हम पर दया भाव दिखाने लगे।

अच्छा तुम ही बताओ भला अमेरिकन राष्ट्रपति की स्लिमनेश का राज- हमने सवाल किया।

इसका राज यह है कि वह योगी रहता है। उसके जिनती योग खुदा भी नहीं करता होगा। वह एक देश में लोकतंत्र बहाल करने के लिये इतना योगी होता है कि उस देश को तहस-नहस कर देता है। एक अपराधी को पकड़ने की योग में पूरी दुनिया को जहां शक होता है रौंद देता है। पूरी दुनिया भर में शांति बहाल करने के लिये अपनी इतना योगी रहता है कि हर जगह अपने हथियार तैनात कर देता है। अपने पास हजारों बम होते हुये भी दूसरे देश के परमाणु परीक्षण को दुनिया भर के लिये खतरा मानकर योगी होता रहता है। इसी तरह के तमाम योगऒं के कारण ही वह दुबला-पतला, स्लिम-ट्रिम, स्मार्ट-छैला बाबू टाइप बना रहता है।

इसके बाद न जाने कितने उदाहरण से हमारे दोस्त ने यह साबित करने का पूरा इंतजाम किया कि अगर हम ईमानदारी से योगी हो सकें तो सारे सुख हमारी झोली में होंगें। योग करना शुरू करते ही हम तड़ से खुशहाल हो जायेंगे। उनके वक्तव्य के कुछ अंश जो हमें याद रह गये वे यहां दे रहा हूं।

भगवान रामचंद्र पहले राज्य जाने के कारण योगी हुये, फिर पत्नी के अपहरण से, फिर धोबी द्वारा अपनी बदनामी से फिर अपने पुत्रों द्वारा अपनी सेना की पराजय से और बाद में सीतागमन से। इन्हीं तमाम बातों के चलते वे योगी होते रहे और कालांतर में मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये। यही बात कृष्णजी के बारे में सही है। पहले अनगिनत गोपियों की योग फ़िर सोलह हजार पटरानियों के चलते उनकी योग की कल्पना ही की जा सकती है। इसी योग के चलते वे सोलह कलाऒं युक्त सम्पूर्ण अवतार् माने गये। डबीरदास ने तो डंके की चोट पर कहा- सुखिया सब संसार है खावै अरु सोवै, योगी दास डबीर है जागै अरु रोवै। इसी योगीपने के कारण डबीर दुबले पतले बने रहकर सौ से ज्यादा साल जीये और इतने प्रसिद्ध हस्ती कहलाये।

योग करना आजकल स्वास्थ्य के लिये बहुत आवश्यक है। अगर हम ठीक से योगी होना सीख गये तो समझिये स्वस्थ हो गये। पुराने समय में भी जितने महान लोग हुये, जितने दीर्घायु हुये वे सब योग करने के ही कारण हुये।

आजकल भी देखिये ये जो जीवन अवधि बढ़ गयी है, लोग ज्यादा दिन तक जीने लगे हैं तो इसीलिये कि लोग तमाम तरह की योग मुद्राएँ करने लगे हैं। दुनिया की हालत से योगी बने हैं, अपने बच्चों की वजह से योगी हैं, बुढ़ापे में जवान पत्नी की बेवफ़ाई से योगी हैं, जवानी में किसी हसीन, अमीर बुढिया के इश्क में फ़ंसकर योगी हैं। इन सब योग मुद्राऒं के चलते आदमी दुबला होता है और उसकी जीवन अवधि बढ़ जाती है।

दुनिया जटिल हो रही है। लोगों की योग मुद्रायें भी जटिल हो रही हैं। हर समय अंग्रेजीपूर्ण माहौल में रहने वाला हिंदी की स्थिति के लिये योगी है। बात-बात पर गाली निकालने वाले को समाज में घटते भाईचारे की भावना योगी बनाती है। कुछ लोग अपनी योग का स्तर उठाकर देश तक ले जाते हैं। देश की योग के बाद भी जिनकी योग का स्टाक खतम नहीं होता वो अपनी योग का तंबू पूरे विश्व में तान देते हैं। ब्रह्मांड में अपनी योग मुद्राएँ छितरा देते हैं। वे योगी रहते हैं ताकि योग के चलते वे दुबले रह सकें और सुखी रह सकें। जो शख्स कायदे से योगी होना सीख गया उसकी सारी योग मुद्राएँ समाप्त हो जाती हैं।

योग थेरेपी की सम्भावनायें अनन्त हैं। अगर इसे मान्यता मिल सके तो सरकार की तमाम कमियां भगवान की कमियों की तरह छुप सकती हैं। अभी भूख से मरने वालों के लिये सरकार तमाम तरह से साबित करती है कि मरने वाला भूख से नहीं मरा। लेकिन इसके लिए उसकी बहुत छीछालेदर होती है। जैसे ही योग थेरेपी को मान्यता मिली सरकार हर मौत के लिये कह सकेगी ये भूख से नहीं अन्न की कमीं की योग से मरा है। यह अपनी यौगिक मौत मरा है। हजारों लाखों लोग जिनको आज असहाय होकर भूख से मरने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है वे योगी होकर मरने लगेंगे। इससे सरकारें भी योगी हो जायेंगी। बिना किसी खर्च के मरने वाली की भावनाओं और सरकार की स्पिरिट के हो जायेगी।

दुनिया में आज जहां भी परिवर्तन हुये हैं वे सब के सब योगी लोगों के कारण हुये। अपने देश की आजादी की लड़ाई में जो भी महान नेता हुये वे देश के लिये योगी रहते थे। देश की योग में दुबले रहते थे तब जाकर हमें आजादी मिल पायी। गांधीजी देश की इतनी योग करते थे। देश की योग के ही कारण वे इतने दुबले-पतले थे कि सरपट चलकर हर क्षेत्र में पहुंचकर योगी हो जाते थे। इसीलिये देश को आजाद कराने में उनका नाम आदर से लिया जाता है।

इसीलिये यह योगी रहना बहुत जरूरी है। अगर अभी तक आप योगी रहना नहीं सीख पाये तो समझ लीजिये आपकी जीवन शिक्षा अधूरी है। आप तुरंत उठिये और योग करना शुरू कर दीजिये।

उद्बोधन इसके बाद समाप्त हो गया। हम उठकर चल दिये। रास्ते में हमने अपने साथ के युवा दोस्त, जो दोस्त के घर मेरे साथ गया था और जिसने अपने स्वभाव के विपरीत अब तक चुप रहकर अपनी समझदारी का परिचय से दिया था, से पूछा- क्यों यार ये योग थेरेपी के बारे में तुम्हारा क्या कहना, क्या विचार है?
भाई अगर आप बुरा न मानें तो मुझे तो आपका यह दोस्त सिरफ़िरा लगता है।-युवा साथी ने राय दी!

नहीं यार, इसमें बुरा मानने की क्या बात। जो सच है सो है। सच को कोई थोड़ी झुठला सकता है। लेकिन तुमको मेरा दोस्त क्यों सिरफिरा लगता है?-मैंने कारण जानना चाहा।

अरे उसको ये तक नहीं पता कि आजादी के समय यहां कोई गांधी नहीं थे। प्रियंका, राहुल, वरुण गांधी उस समय पैदा नहीं हुये थे। सोनिया गांधी, मेनका गांधी दोनों की उस समय शादियां हुयीं नहीं थी लिहाजा उनके आजादी दिलाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। फिर कहां से गांधीजी आजादी के समय आ गये। जबकि आपका दोस्त बताता है कि गांधीजी ने देश को आजाद कराने में योग-दान दिया। आपके जिस दोस्त की इतिहास की समझ इस हद दर्जे की माशाअल्लाह है उसकी किसी भी बात पर गौर करने के पहले से मैं हजार बार विचार करूंगा। मुझे तो योग होने लगी है कि कैसी-कैसी योग की समझ वाले निर्योगी लोग आपके दोस्त हैं।

अपने नौजवान दोस्त की बात सुनकर मैं भी योगी होने लगा।

आपके क्या हाल हैं? आपने योगी होना शुरू किया कि नहीं!

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(अस्वीकरण – अनूप शुक्ल के चिंता विषयक आलेख से इस आलेख की समानता केवल फ़ाइंड-एंड-रीप्लेस तकनीकी संयोग मात्र है)

COMMENTS

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  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ईद मुबारक और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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छींटे और बौछारें: व्यंग्य जुगलबंदी - 40 - योग करो, सुख से जियो
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