129 आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there

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आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 489 अच्छी प्रतिष्ठा को नुक्सान नहीं मु...

sunil handa story book stories from here and there in Hindi

आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ

संकलन – सुनील हांडा

अनुवाद – परितोष मालवीयरवि-रतलामी

489

अच्छी प्रतिष्ठा को नुक्सान नहीं

मुल्ला नसरुद्दीन को एक व्यक्ति ने सूचना दी कि एक समाचार पत्र में उसके खिलाफ बुरी बातें छपीं है। तुम उस अखबार के खिलाफ क्या कार्रवाई करोगे?

मुल्ला ने उत्तर दिया - "कोई कार्रवाई नहीं करूंगा। जितने लोगों के यहां यह अखबार आता है, उनमें से आधे लोगों ने यह खबर पढ़ी नहीं होगी। जिन्होंने यह खबर पढ़ी होगी, उनमें से आधे लोगों को समझ में नहीं आयी होगी। जितने लोगों को यह खबर समझ में आयी होगी, उनमें से आधे लोगों ने इसपर कोई विश्वास नहीं किया होगा। और जिन लोगों ने इस खबर पर विश्वास किया होगा, उनमें से आधे लोगों से मुझे कोई लेना-देना नहीं है।

ऐसे प्रश्नों का यही सबसे बेहतर उत्तर है। भले ही कोई व्यक्ति तुम्हारे बारे में जानबूझकर दुष्प्रचार करे, तुम्हारे सच्चे मित्र और सगे-संबंधी उस बात पर यकीन नहीं करेंगे और जो यकीन करेंगे, उनसे तुम्हें कोई लेना-देना नहीं होता।

 

490

पूर्वग्रह

मेरे एक साथी ने मुझसे कहा कि उसने विधानसभा में यह वाक्य सुना है -

"वह धोखेबाज है। उसने अपना वोट हमारे विरोध में डाला है, और वह हमारा साथ छोड़कर विपक्षी दल में शामिल हो गया है। "

"तुम मुझे यह बताओ कि दूसरे दल को छोड़कर अपने साथ आए व्यक्ति को भी क्या तुम धोखेबाज कहोगे?

"निश्चित रूप से नहीं।........... उसे धोखेबाज नहीं बल्कि परिवर्तित व्यक्ति कहा जायेगा। "


491

बढ़ा रखी है

एक दिन मैं एकलव्य परिसर में टहल रहा था। तभी मैंने एक बस कंडेक्टर को देखा जिसने अपनी दाढ़ी बढ़ा रखी थी। मैंने उससे दाढ़ी बढ़ाने का कारण पूछा। उसने कहा - "मैंने बढ़ा रखी है। " उसकी पत्नी गर्भवती थी और उसने यह शपथ ले रखी थी कि जब तक उसकी डिलेवरी नहीं हो जायेगी, वह दाढ़ी नहीं बनायेगा। मैंने उससे कहा - "ऐसा वादा करो जिससे मुझे कोई बाधा नहीं हो। "

फिर मैंने उसे समझाया कि अपने आप से ऐसा वायदा मत करो जिसका पालन आसान हो और जिसमें कोई मेहनत न लगे। (मैं चाहता था कि सभी ड्राइवर और कंडक्टर साफ-सुथरे, दाढ़ी बनाए हुए और स्वच्छ कपड़े पहने हुए दिखने चाहिये।)

दाढ़ी बढ़ाने की बजाए वह ऐसी शपथ भी ले सकता है कि पत्नी की डिलेवरी होने तक वह चाय नहीं पियेगा(यदि उसे चाय पीना पसंद हो)। ऐसा करने से उसे दिन में कई बार उसे मनोवैज्ञानिक दबाव से गुजरना पड़ेगा। इस आंतरिक संघर्ष में वह विजयी भी हो सकता है और पराजित भी। अतः शपथ ऐसी ही होनी चाहिए। हो सकता है कि वह सच में चाय पीना छोड़ दे।

चाय की जगह वह अपनी ऐसी ही अन्य किसी वासना का भी त्याग कर सकता है। इसी बहाने पैसा भी बचेगा और बुरी आदत भी छूट जायेगी।

वह मुझे देखता ही रह गया।

 

492

पर्स में फोटो


यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन में टी.टी.ई. को एक पुराना फटा सा पर्स मिला। उसने पर्स को खोलकर यह पता लगाने की कोशिश की कि वह किसका है। लेकिन पर्स में ऐसा कुछ नहीं था जिससे कोई सुराग मिल सके। पर्स में कुछ पैसे और भगवान श्रीकृष्ण की फोटो थी। फिर उस टी.टी.ई. ने हवा में पर्स हिलाते हुए पूछा - "यह किसका पर्स है? "

एक बूढ़ा यात्री बोला - "यह मेरा पर्स है। इसे कृपया मुझे दे दें। " टी.टी.ई. ने कहा - "तुम्हें यह साबित करना होगा कि यह पर्स तुम्हारा ही है। केवल तभी मैं यह पर्स तुम्हें लौटा सकता हूं। " उस बूढ़े व्यक्ति ने दंतविहीन मुस्कान के साथ उत्तर दिया - "इसमें भगवान श्रीकृष्ण की फोटो है। " टी.टी.ई. ने कहा - "यह कोई ठोस सबूत नहीं है। किसी भी व्यक्ति के पर्स में भगवान श्रीकृष्ण की फोटो हो सकती है। इसमें क्या खास बात है? पर्स में तुम्हारी फोटो क्यों नहीं है? "

बूढ़ा व्यक्ति ठंडी गहरी सांस भरते हुए बोला - "मैं तुम्हें बताता हूं कि मेरा फोटो इस पर्स में क्यों नहीं है। जब मैं स्कूल में पढ़ रहा था, तब ये पर्स मेरे पिता ने मुझे दिया था। उस समय मुझे जेबखर्च के रूप में कुछ पैसे मिलते थे। मैंने पर्स में अपने माता-पिता की फोटो रखी हुयी थी।

जब मैं किशोर अवस्था में पहुंचा, मैं अपनी कद-काठी पर मोहित था। मैंने पर्स में से माता-पिता की फोटो हटाकर अपनी फोटो लगा ली। मैं अपने सुंदर चेहरे और काले घने बालों को देखकर खुश हुआ करता था। कुछ साल बाद मेरी शादी हो गयी। मेरी पत्नी बहुत सुंदर थी और मैं उससे बहुत प्रेम करता था। मैंने पर्स में से अपनी फोटो हटाकर उसकी लगा ली। मैं घंटों उसके सुंदर चेहरे को निहारा करता।

जब मेरी पहली संतान का जन्म हुआ, तब मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ। मैं अपने बच्चे के साथ खेलने के लिए काम पर कम समय खर्च करने लगा। मैं देर से काम पर जाता ओर जल्दी लौट आता। कहने की बात नहीं, अब मेरे पर्स में मेरे बच्चे की फोटो आ गयी थी। "

बूढ़े व्यक्ति ने डबडबाती आँखों के साथ बोलना जारी रखा - "कई वर्ष पहले मेरे माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। पिछले वर्ष मेरी पत्नी भी मेरा साथ छोड़ गयी। मेरा इकलौता पुत्र अपने परिवार में व्यस्त है। उसके पास मेरी देखभाल का क्त नहीं है। जिसे मैंने अपने जिगर के टुकड़े की तरह पाला था, वह अब मुझसे बहुत दूर हो चुका है। अब मैंने भगवान कृष्ण की फोटो पर्स में लगा ली है। अब जाकर मुझे एहसास हुआ है कि श्रीकृष्ण ही मेरे शाश्वत साथी हैं। वे हमेशा मेरे साथ रहेंगे। काश मुझे पहले ही यह एहसास हो गया होता। जैसा प्रेम मैंने अपने परिवार से किया, वैसा प्रेम यदि मैंने ईश्वर के साथ किया होता तो आज मैं इतना अकेला नहीं होता। "

टी.टी.ई. ने उस बूढ़े व्यक्ति को पर्स लौटा दिया। अगले स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही वह टी.टी.ई. प्लेटफार्म पर बने बुकस्टाल पर पहुंचा और विक्रेता से बोला - "क्या तुम्हारे पास भगवान की कोई फोटो है? मुझे अपने पर्स में रखने के लिए चाहिए। "

(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)

COMMENTS

BLOGGER: 4
  1. बेनामी2:05 pm

    बहुत ही ज्ञानवर्धक कहानियाँ है.
    कभी फुरसत मिले तो हमारे इस नए ब्लॉग पर भी आये. आपका तहे दिल के साथ स्वागत है.

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रतिष्ठा के बारे में यही सम्यक दृष्टि है।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेनामी11:28 pm

    Good stories

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही मार्मिक कहानियाँ है.

    जवाब देंहटाएं
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छींटे और बौछारें: 129 आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there
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