आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 247 स्वर्ग से ऊपर एक संत हर दूसरे ...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
247
स्वर्ग से ऊपर
एक संत हर दूसरे चौथे दिन अपने मठ से कुछ घंटों के लिए बिना बताए कहीं चले जाते थे.
संत के भक्तों व शिष्यों ने सोचा कि गुरु अवश्य ही किसी स्वर्गिक गुप्त स्थल पर जाते हैं जहाँ शायद वे ईश्वर से गुप्त रूप से मिलते हों.
इस बात का पता लगाने के लिए उन्होंने एक भक्त को जासूसी करने भेजा.
अगली दफा जब गुरु चुप चाप बिना बताए कहीं निकले तो उन पर नजर रखने वाला भक्त भी चुपचाप पीछे हो लिया.
भक्त ने देखा कि संत एक गरीब, बेसहारा बूढ़ी औरत की कुटिया में गए, वहाँ साफ सफाई की, खाने पीने की चीजों का इंतजाम किया और उनकी सेवा करने लगे.
भक्त यह देख वापस आ गया.
साथियों ने पूछा कि कुछ पता चला कि संत कहाँ जाते हैं?
“संत तो स्वर्ग से भी ऊपर की जगह पर जाते हैं” जासूस का जवाब था.
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248
अभी भी जेल में
नाजी कंसनट्रेशन कैंप में रह चुका एक व्यक्ति अपने मित्र से मिलने पहुँचा. मित्र भी कैंप में साथ था और अत्याचारों का गवाह था.
बात बात में बात निकली तो मित्र ने पूछा –
“क्या तुम नाजी अत्याचारों को भूल गए हो? और क्या तुमने उन्हें माफ कर दिया”
“हाँ”
“मैं तो नहीं भूला, और उन्हें माफ करने का तो सवाल ही नहीं है”
“ऐसी स्थिति में तो नाजियों ने अब भी तुम्हें बंधक बनाया हुआ है और मानसिक अत्याचार दे रहे हैं!”
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249
सबकी मृत्यु निश्चित है
जेन गुरु इक्कयु बचपन से ही तीव्र बुद्धि के थे. उनके शिक्षक के पास एक बेशकीमती एंटीक चाय का कप था जिसे वे बड़े ध्यान और प्यार से रखते थे. इक्कयु एक दिन उस कप को उलट पुलट कर देख रहे थे. अचानक उनके हाथ से वह कप छूट कर जमीन पर जा गिरा और टूट गया.
इक्कयु को कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने कप के टुकड़ों को अपने जेब में रख लिया. उन्हें लगा कि उनके शिक्षक अब उनसे बेहद नाराज होंगे.
डरते डरते इक्कयु अपने शिक्षक के पास पहुँचे और उनसे प्रश्न किया – “लोग मरते क्यों हैं?”
“क्योंकि एक न एक दिन सबको मरना है. यह प्राकृतिक है. लोगों का क्या, ये चाँद, तारे, पृथ्वी सब के सब एक न एक दिन मृत्यु को प्राप्त होंगे.” शिक्षक ने बताया.
इक्कुयु अपनी जेब से कप के टुकड़े निकालते हुए बोला – “आज आपके कप को मृत्यु को प्राप्त होना था”
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250
ज्ञान की प्राप्ति के लिए कितना समय?
एक युवक भगवान महावीर के पास पहुँचा और पूछा –
“ज्ञान प्राप्ति के लिए कितना समय लगेगा”
“दस वर्ष” भगवान महावीर ने कहा.
“बाप रे! दस वर्ष!”
“नहीं, मैंने गलती से दस वर्ष कह दिया, दरअसल बीस वर्ष लगेंगे.”
“अरे, आपने तो दोगुना समय कर दिया!”
“नहीं, तुम्हारे लिए तो शायद तीस वर्ष भी कम पड़ेंगे.” भगवान महावीर बोले.
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
सच में यही स्वर्ग..
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