आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there - 82

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  आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी   401 आखिर तुम कब छोड़ोगे !....... ...

 

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आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ

संकलन – सुनील हांडा

अनुवाद – परितोष मालवीयरवि-रतलामी

 

401

आखिर तुम कब छोड़ोगे !.......

एक व्यक्ति जीवन भर कपड़े का सफल व्यवसायी रहा था। अब वह 78 वर्ष का हो गया था। उसके दोनों पुत्र कारोबार को भलीभांति संभाल रहे थे लेकिन वह फिर भी दुकान आता और हर मामले में हस्तक्षेप करता रहता था। उसे अब भी अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की लालसा थी।

तंग आकर उसके पुत्रों ने अपने पारिवारिक पंडित को बुलाया और उनसे निवेदन किया कि वे उनके पिताजी को अपने साथ वर्ष भर की तीर्थयात्रा पर ले जायें ताकि उनका ध्यान धनसंपत्ति से हटकर पूजापाठ में लगे। पंडित जी सहमत हो गए और वे दोनों तीर्थयात्रा पर चले गए।

एक वर्ष तक बद्रीनाथ, केदारनाथ और भारत के समस्त तीर्थस्थलों की यात्रा के बाद भी व्यापारी के मन से धनसंपदा के प्रति लालसा जरा भी कम नहीं हुई। निराश होकर पंडितजी उन्हें अंत में वाराणसी के एक बड़े श्मशान घाट पर ले गए।

अचानक पंडितजी ने यह पाया कि बूढ़े व्यापारी को एकाएक कुछ हुआ। उसके चेहरे पर नई आभा बिखर गई। इसकी आँखें सूरज की तरह दमकने लगीं। उसके शरीर की भाषा एकदम बदल गयी और वह फुर्तीला और ऊर्जावान लगने लगा।

और वह बुजुर्ग व्यापारी बोला - "अरे पंडित जी, तुम मुझे इस स्थान पर पहले क्यों नहीं लाये? तुमने तो मेरी आँखें खोल दीं। सारा जीवन मैं कपड़े का व्यापार करता रहा लेकिन आज मुझे लगा कि मैं गलत था। मुझे तो लकड़ी का कारोबार करना चाहिए था। देखो यहाँ लकड़ी की कितनी मांग है। मैने अब तक कितना मुनाफा कमा लिया होता।"

आखिर तुम कब छोड़ोगे !.......

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402

सब कुछ एक साथ नहीं

एक धर्मोपदेशक मुल्ला जी उपदेश देने के लिए हॉल में पहुंचे। एक दूल्हे को छोड़कर उस हॉल में और कोई मौजूद नहीं था। वह दूल्हा सामने की सीट पर बैठा था।

असमंजस में पड़े मुल्ला जी ने दूल्हे से पूछा - "सिर्फ तुम ही यहाँ मौजूद हो। मुझे उपदेश देना चाहिए या नहीं?"

दूल्हे ने उनसे कहा - "श्रीमान। मैं बहुत साधारण आदमी हूं और मुझे यह सब ठीक से समझ में नही आता। लेकिन यदि मैं एक अस्तबल में आऊँ और यह देखूं कि एक घोड़े को छोड़कर सभी घोड़े भाग गए हैं, तब भी मैं उस अकेले घोड़े को खाने के लिए चारा तो दूंगा ही।"

मुल्ला जी को यह बात लग गई और उन्होंने उस अकेले व्यक्ति को दो घंटे तक उपदेश दिया। इसके बाद मुल्ला जी ने अतिउत्साहित होकर उससे पूछा - "तो तुम्हें मेरा उपदेश कैसा लगा?"

दूल्हे ने उत्तर दिया - "मैंने आपको पहले ही कहा था कि मैं बहुत साधारण आदमी हूं और मुझे यह सब ठीक से समझ में नही आता। लेकिन यदि मैं एक अस्तबल में आऊँ और यह देखूं कि एक घोड़े को छोड़कर सभी घोड़े भाग गए हैं, तब मैं उस अकेले घोड़े को खाने के लिए चारा तो दूंगा परंतु सारा चारा एकबार में ही नहीं दे दूंगा।"

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141

देश के लिए बलिदान

भगत सिंह को पढ़ने लिखने में भी रूचि थी (भगत सिंह का लिखा मैं नास्तिक क्यों हूँ आप यहाँ पर पढ़ सकते हैं). वे जितना स्वतंत्रता संग्राम और क्रांतिकारियों के बारे में पढ़ते, इस संग्राम में सक्रिय रूप से जुड़ने की उनकी इच्छा उतनी ही बलवती होती जाती. उन्होंने रिवोल्यूशनरी पार्टी में शामिल होने के लिए शचीन्द्रनाथ सान्याल को पत्र लिखा. रिवोल्यूशनरी पार्टी में शामिल होने की एक शर्त यह भी थी – पार्टी के बुलावे पर बिना किसी देरी किए तुंरत ही घर परिवार छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना होगा.

इस बीच भगत सिंह की दादी की इच्छा-स्वरूप उनकी शादी तय कर दी गई. शादी की तारीख करीब आ गई. उसी दौरान, शादी के कुछ दिन पहले रिवोल्यूशनरी पार्टी से बुलावा आ गया. भगत सिंह ने चुपचाप बिना किसी को बताए घर छोड़ दिया और पार्टी कार्यालय लाहौर चले गए.

परंतु घर छोड़ने से पहले उन्होंने एक पत्र लिखा. पत्र में उन्होंने लिखा था “मेरे जीवन का उद्देश्य है भारत की स्वतंत्रता के लिए मर मिटना. मेरे उपनयन संस्कार के समय मुझसे मन में कोई शपथ लेने को कहा गया था. मैंने शपथ ली थी कि मैं देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा. अब समय आ गया है और मैं देश की सेवा के लिए जा रहा हूं.”

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142

गांधी की फटी धोती

गांधी जी जब एक बार ट्रेन से यात्रा कर रहे थे. जब ट्रेन स्टेशन पर आई तो उनकी धोती फट गई. ट्रेन से उतरते ही गांधी जी को सम्मेलन स्थल पर जाना था. साथ चल रहे कार्यकर्ता ने कहा कि ट्रेन थोड़ा समय ही रुकती है अतः वे जल्दी से अपनी धोती ट्रेन के टॉयलट में बदल लें.

गांधी जी ने कहा, क्यों बदल लूं? और फिर वे टायलट में गए और धोती को उलटी तरफ से पहन कर आधे मिनट में ही बाहर आ गए. धोती का फटा हिस्सा अंदर की तरफ पहनने से छुप गया था. फिर उतरते हुए कार्यकर्ता से बोले – “जब मैं लंदन में पढ़ता था तो अपने बाल संवारने के लिए दस मिनट लगाता था. अब मैं आधे मिनट में ही तैयार हो जाता हूँ!”

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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)

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