आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी -- 397 दो खरगोशों का पीछा करना ...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
--
397
दो खरगोशों का पीछा करना
एक शिष्य, जो अपने समय के सुप्रसिद्ध गुरूजी से धनुर्विद्या सीख रहा था, उनके समक्ष एक प्रश्न लेकर गया - मैं धनुर्विद्या की कला में और पारंगत होना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि आपसे धनुर्विद्या सीखने के अलावा मैं दूसरे गुरूजी के पास भी धनुर्विद्या सीखने जाऊं ताकि मैं कुछ और गुर सीख सकूं। इस बारे में आपका क्या विचार है।"
गुरूजी ने उत्तर दिया - "वह शिकारी जो एकबार में दो खरगोशों का पीछा करता है, उसके हाथ एक भी खरगोश नहीं लगता।"
--
398
बेसुरा गाओ लेकिन गाते रहो.......
जब भी उसे समय मिलता, वह कमरे में अकेला जा बैठता, प्रार्थना करता और प्रेरणादायी गाने गाया करता। वह गाने में इतना तल्लीन हो जाता कि उसे यह भी ध्यान नहीं रहता कि उसके आस-पास क्या घटित हो रहा है।
एकबार उसके मित्र ने उससे कहा - "तुम किसी दूसरे का गाना भी सुन सकते हो। तुम रेडियो या टेपरिकॉर्डर भी बजा सकते हो। आखिर तुम इतना बेसुरा होने के बावजूद भी क्यों गाते हो?"
उसने उत्तर दिया - "तो क्या हुआ यदि मैं बेसुरा हूं? जब मैं गाता हूं तो मैं सुधबुध खोकर इतना मगन हो जाता हूं कि मेरी आत्मा जागृत हो उठती है। जो आनन्द मुझे इसमें प्राप्त होता है, वह टेपरिकॉर्डर से कभी प्राप्त नहीं हो सकता।"
--
137
उधारी
एक शाम नसरूद्दीन अपने घर के बरामदे में बड़ी चिंतित मुद्रा में घूम रहा था. बार बार पसीना पोंछे जा रहा था. उसकी पत्नी से आखिर रहा नहीं गया तो पूछा – “क्या बात है, बहुत चिंतित लग रहे हो?”
“मैंने इब्राहीम से सौ दीनार उधार लिया था. आज शाम को यह उधारी चुकानी थी. मेरे पास आज यह उधारी चुकाने को पैसा नहीं है”
“इब्राहीम तो बहुत ही भला आदमी है. उससे जाकर बोल क्यों नहीं देते कि आज उधारी नहीं चुका पाओगे. वो भला आदमी जरूर मान जाएगा.”
“तुम ठीक कहती हो.” यह कहकर नसरूद्दीन इब्राहीम के पास चला गया.
जब नसरूद्दीन वापस आया तो उसकी बीवी ने पूछा – “क्या हुआ?”
“हुआ तो कुछ खास नहीं, मगर जब मैंने उसे अपनी परेशानी बताई तो अब वो अपने बरामदे में टहल रहा है और पसीना पोंछे जा रहा है.” नसरूद्दीन ने बताया.
--
138
बराबर न्याय
नसरूद्दीन एक बार कहीं जा रहा था. पीछे से किसी आदमी ने उसके सिर पर चपत लगाया और पुकारा अफजल!
नसरूद्दीन ने उस आदमी से पूछा कि अकारण उसने सिर पर चांटा क्यों मारा. उस आदमी ने बताया कि नसरूद्दीन पीछे से ठीक उसके दोस्त अफजल की तरह दिखता है और उसी गफलत में उसने उसे चांटा मार दिया.
नसरूद्दीन को यह बात हजम नहीं हुई और उसने पंचायत में जाकर शिकायत कर दी.
पंच ने मामला सुना और निर्णय दिया कि वह आदमी नुकसान व दंड स्वरूप नसरूद्दीन को दो पैसा भुगतान करे.
नसरूद्दीन को यह बात नागवार गुजरी. उसने आव देखा न ताव और पंच के सिर पर चांटा जड़ दिया.
पंच ने नाराज होकर पूछा कि यह क्या बदतमीजी है.
“कोई बदतमीजी नहीं है. एक चांटे की कीमत दो पैसे है. तो इस आदमी ने मुझे चांटा मारा, मैंने आपको. अब आप इस आदमी से दो पैसा ले लें. हिसाब बराबर.” नसरूद्दीन ने कहा.
--
(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
एकदृष्टि और एकनिष्ठ..
जवाब देंहटाएं