आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there - 48

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  आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 329 ओक एवं बांस ओक का एक वृक्ष तू...

 

आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ

संकलन – सुनील हांडा

अनुवाद – परितोष मालवीयरवि-रतलामी

329

ओक एवं बांस

ओक का एक वृक्ष तूफान की चपेट में आकर अपनी जड़ से उखड़ गया और नदी के किनारे बहते - बहते उस जगह तक पहुँच गया जहाँ बांस के कई पेड़ लगे हुए थे। उसे यह देखकर बहुत अचरज हुआ कि बांस जैसे हल्के और दुबले पेड़ तूफान गुजर जाने के बाद भी आराम से खड़े हुए थे जबकि उस जैसे बड़े और मजबूत पेड़ जड़ से उखड़ गए थे।

बांस ने कहा - "दरअसल इसमें अचरज की कोई बात नहीं है। तुम इसलिए तबाह हो गए क्योंकि तुम लोग तूफान से लड़ रहे थे जबकि हम हल्की सी हवा में भी झुककर अपनी जगह बने रहते हैं।"

"परिस्थिति के अनुरूप घमंड और गुमराह आत्मसम्मान की जगह

दूरदर्शिता और सामंजस्य कहीं अधिक श्रेयस्कर है।"

330

खरगोश और शिकारी कुत्ता

एक शिकारी कुत्ते ने गुर्राकर खरगोश को डरा दिया और कुछ दूरी तक उसका पीछा किया। फुर्तीला खरगोश तेजी से भागकर अपनी जान बचाने में सफल हो गया। बकरियों का एक झुंड वहीं से गुजर रहा था। उस झुड ने दुर्बल खरगोश को न पकड़ पाने पर कुत्ते का मजाक बनाया।

कुत्ते ने उत्तर दिया - "अपने भोजन के लिए भागने और जान बचाने के लिए भागने में अंतर होता है।"

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82

हनुमान चालीसा -1

प्रभु मुद्रिका मेली मुख माही

जलदि लांघी गये अचरज नाही.

हनुमान समुद्र को लांघने के लिए खड़े थे. राम ने अपनी मुद्रिका सीता को देने के लिए इस लिए दी थी कि कहीं वे वानर रूप हनुमान को देख कर डर न जाएँ और उन्हें राम-दूत समझने से इंकार न कर दें.

हनुमान के पास अब समस्या यह थी कि समुद्र को लांघते समय मुद्रिका को कहाँ रखें, ताकि वो सुरक्षित रहे. एक सुलभ तरीका यह था कि वे उस मुद्रिका को अपनी उँगली में पहन लेते, मगर चूंकि वह माता सीता द्वारा श्रीराम को पहनाई गई अंगूठी थी, अतः उन्होंने यह विचार त्याग दिया. मुट्ठी में रखने से उसके कहीं टपक पड़ने का खतरा था.

आखिर में सोच विचार कर हनुमान जी ने वह अंगूठी अपने मुख में रख ली और समुद्र को एक छलांग में ही लांघ गए.

प्रभु का नाम मन में रखो और अपना काम करो. सफलता अवश्य मिलेगी

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83

आवश्यकता अनुष्ठान की जननी है

एक आश्रम में स्वामी जी ने एक बिल्ली पाली हुई थी. बिल्ली ने शिष्यों का प्यार पाकर एक गंदी आदत पाल ली. भोजन के समय वह सभी थालियों को सूंघ-चाटकर जूठा करने लगी.

अंततः एक दिन स्वामी जी ने आदेश दिया कि नित्य भोजन के समय बिल्ली को वृक्ष से बाँध दिया जाए.

कुछ दिनों के बाद स्वामी जी की मृत्यु हो गई. इसके कुछ समय पश्चात् उस बिल्ली की भी मृत्यु हो गई.

आश्रम में कई वर्षों से भोजन के पूर्व वृक्ष पर उस बिल्ली को बांधने का रस्म निभाया जा रहा था. उस बिल्ली की मृत्यु के पश्चात आश्रम के शिष्यों ने भोजन पूर्व वृक्ष से बिल्ली बदस्तूर बांधते रहने के लिए ढूंढ ढांढ कर एक नई बिल्ली ले आए.

पुराने जमाने में लोग जमीन पर बैठकर भोजन करते थे. थाली के चारों ओर पानी का आचमन किया जाता था ताकि जमीन से चींटिंया और कीड़े इत्यादि थाली में नहीं चढ़ें. अब लोग डाइनिंग टेबल पर बैठकर भोजन करते हैं, मगर थाली के चारों ओर आचमन करना नहीं भूलते.

इंग्लैंड की प्रधान मंत्री मार्गरेट थैचर एक दफा दक्षिणी इंग्लैंड का दौरा करने गईं. वहाँ पर एक टॉवर उन्हें दिखा. उत्सुकता से उन्होंने पूछा कि यह क्या है. उन्हें बताया गया कि यह वाटरलू के युद्ध के समय नेपोलियन की सेना को देखने के लिए बनाया गया था. वहाँ एक सैनिक तैनात रहता था जो आती हुई नेपोलियन की सेना को देख कर खबरदार करने का काम करता था. वहाँ इंग्लैंड आर्मी का एक सैनिक अभी भी नित्य तैनात रहता था! और, उसका काम भी वही था! जबकि वाटरलू का युद्ध वर्ष 1815 में हुआ था और यह वर्ष 1978 था, जब योरोप में चहुँओर शांति छाई हुई थी!

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय तोपें इस्तेमाल की जाती थीं. इन तोपों को 2 घोड़ों की गाड़ी द्वारा खींचा जाता था और 5 सैनिक तोपें चलाने में सहयोग करते थे. एक तोप में गोला भरता था, दूसरा तोप के बारूद में आग लगाता था, और तीसरा तोप को साफ करता था. दो सैनिक गाड़ी चलाते और निशाने की तरफ तोप रखने का काम करते थे. जनरल मॉनेक शॉ जब फ़ील्ड मार्शल बने, तब उन्होंने देखा कि मोटराइज्ड, स्वचालित तोपों में प्रत्येक में उतने ही – यानी 5 सैनिक तैनात रहते थे!

(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)

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