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आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there - 47

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  आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 327 प्रेम की देवी " वीनस ...

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आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ

संकलन – सुनील हांडा

अनुवाद – परितोष मालवीयरवि-रतलामी

327

प्रेम की देवी "वीनस ' और बिल्ली

एक बार एक बिल्ली को एक नौजवान से प्यार हो गया। उसने प्रेम की देवी "वीनस' से प्रार्थना की कि वे उसे एक सुंदर लड़की बना दें।

देवी वीनस को उस पर तरस आ गया और उन्होंने बिल्ली को एक सुंदर लड़की बना दिया। परिणाम स्वरूप वह नौज़वान सुंदर लड़की बनी बिल्ली के प्रेम पाश में फंस गया और उसने उससे विवाह कर लिया।

एकदिन वे दोनों कमरे में बैठे थे, तब वीनस ने यह जानने के लिए कि बिल्ली ने अपने रूप के साथ-साथ अपनी प्रकृति को बदला है या नहीं, उसके सामने एक चूहा फेंका।

जैसे ही बिल्ली ने उस चूहे को देखा, वह भूल गयी कि अब वह एक लड़की है। वह तुरंत चूहे पर झपटी और उसे अपने मुँह में दबोच लिया। इस भयावह दृश्य से क्रोधित होकर प्रेम की देवी ने उसे दोबारा बिल्ली बना दिया।

"अपनी जन्मजात आदतों को बदलना बहुत मुश्किल है।'

328

किसे नौकरी मिली

एक व्यापारी को एक क्लर्क की आवश्यकता थी। उसने क्लर्क के पद पर भर्ती के लिए विज्ञापन दिया। उसे कई आवेदन प्राप्त हुए। उसने बारह अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया। व्यापारी ने एक-एक करके उन्हें कमरे में बुलाया और अंत में एक अभ्यर्थी का चयन किया।

उस व्यापारी का मित्र भी साक्षात्कार कक्ष में मौजूद था। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि जिस लड़के का चयन हुआ है, वह अन्य लड़कों की तुलना में उतना योग्य नहीं था। उसने अपने मित्र से प्रश्न किया - "तुमने इस लड़के को ही क्यों चुना ? वह तो हाईस्कूल उत्तीर्ण भी नहीं है और इस नौकरी के लिए कम पढ़ा-लिखा है ?'

व्यापारी ने उत्तर दिया - "तुम सही कर रहे हो कि यह लड़का हाई स्कूल भी उत्तीर्ण नहीं है। लेकिन तुम यह गलत कह रहे हो कि उस लड़के के पास इस नौकरी के लायक योग्यता नहीं है। वास्तव में वह बहुत योग्य है।'

व्यापारी ने आगे कहा - "सबसे पहले जब उसने कमरे में प्रवेश किया, तो अंदर आने के बाद उसने आहिस्ता से दरवाज़े को बंद किया। यह दर्शाता है कि वह सावधान व चिंतनशील व्यक्ति है और दूसरों की भावनाओं का ख्याल रखता है। फिर उसने जमीन पर पड़ी किताब को उठाकर मेज पर रखा। इसके अलावा उसके बाल ठीक से झड़े हुए थे और कपड़े पुराने होने के बावजूद साफ और व्यवस्थित थे। इससे अधिक और क्या योग्यता हो सकती है किसी व्यक्ति में ?'

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80

असली गुनहगार

यह कहानी गांधी जी की जीवनी से है.

परंतु यह कहानी ‘महात्मा गांधी’ की कहानी नहीं है, बल्कि एक आम, नटखट किस्म के बच्चे मोहन की कहानी है.

एक बार मोहन ने वास्तव में बड़ी शरारत की. उन्होंने घर से सोने का गहना चुराया और बाजार में बेच दिया, और इसके बारे में झूठ भी बोला. जब मोहन के पिता ने यह सुना तो उन्होंने मोहन को बुलाया और कहा – “मोहन, मुझे पता है कि तुमने यह चोरी की है, और झूठ भी बोला है.”

पिता के सामने अपनी करतूत खुल जाने के कारण मोहन की बोलती बंद थी. उनके पिता धीरे से उठे और एक छड़ी निकाली. मोहन को यह भय लगा कि अब उनकी छड़ी से धुनाई होगी. उनके पिता ने अपनी कमीज की बांह ऊपर समेटी. छड़ी भारी व मोटी थी. डर के कारण मोहन पसीना पसीना हो रहे थे.

परंतु पिता ने मोहन को छड़ी से पीटने के बजाए, अपने आप को पीटना शुरू कर दिया. मोहन ने कहा – “यह क्या कर रहे हैं पिता जी, अपने आप को क्यों सज़ा दे रहे हैं?”

मोहन के पिता ने जवाब दिया - “मैं ही सज़ा का हकदार हूं. मैं तुम्हारा पिता हूँ, तुममें अच्छे संस्कार लाने की जिम्मेदारी मेरी है. मैं इस जिम्मेदारी में असफल हो गया हूँ. अतः मुझे सज़ा भोग लेने दो!”

मोहन के लिए यह एक सबक था. ताउम्र यह घटना उनके जेहन में जीवंत बनी रही...

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81

तेतसुगन के तीन सूत्र

जेन गुरु तेतसुगन ने एक बार चीनी सूत्रों को प्रकाशित करने का संकल्प लिया. चीनी सूत्रों को लकड़ी के ब्लॉक में उकेर कर ही छपवाया जा सकता था जो बेहद लंबा व धन-ऊर्जा खर्चने वाला कार्य था. तेतसुगन ने इसके लिए चंदा प्राप्त करने के लिए यात्रा प्रारंभ की. यात्रा में लोग यथा शक्ति दान देते, जो कि अकसर बेहद मामूली ही होती थी. परंतु वे हर दानदाता को उसी जज्बे व दिल से धन्यवाद देते थे. दस वर्ष की यात्रा के पश्चात उनके पास इस कार्य के लिए पर्याप्त धन एकत्र हो गया था.

परंतु उसी समय ऊजी नदी में भीषण बाढ़ आ गई और अकाल भी पड़ गया. तेतसुगन ने अपने पास की सारी जमा पूंजी नागरिकों की सेवा सुश्रूषा में लगा दी और सूत्रों के प्रकाशन हेतु नए सिरे से चंदा एकत्र करना प्रारंभ कर दिया.

कई वर्षों के पश्चात् उनके पास फिर चीनी सूत्रों को प्रकाशित करने लायक पर्याप्त धन एकत्र हो गया. परंतु दैवयोग से उन्हीं दिनों महामारी फैल गई. तेतसुगन ने फिर से एक बार अपनी तमाम एकत्र पूंजी महामारी से निपटने में लगा दी. और तीसरी बार फिर चंदा लेने यात्रा पर निकल पड़े.

अंततः तीसरी बार, कोई बीस वर्ष पश्चात् उन्हें अपने इस कार्य को पूरा करने में सफलता मिली.

जापानी कहते हैं कि तेतसुगन ने तीन सूत्र प्रकाशित किए. और, पहले के दो अदृश्य सूत्र तो इस तीसरे वाले से भी ज्यादा उत्तम हैं.

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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. कड़ी- 47 अब तक की सबसे अच्छी कड़ियों में से है। आदतें जन्मजात नहीं होतीं, आधुनिक विज्ञान- मनोविज्ञान यही कहते हैं। हाँ, सिर्फ जैविक व्यवहार आनुवांशिक हैं।

    जवाब दें हटाएं
  2. मोहन की तथा तेतसुगन की कथा तो अत्यंत प्रेरक है! तेतसुगन ...

    जवाब दें हटाएं
  3. बेनामी8:34 pm

    असली गुनहगार बहोत अच्छी लगी ।

    हिंदी ब्लॉग
    हिन्दी दुनिया ब्लॉग

    जवाब दें हटाएं
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