आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी (273) मूल्यवान हार नसरूद्दीन हौजा क...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
(273)
मूल्यवान हार
नसरूद्दीन हौजा के पास अपने दादा के दिए हुए बीस दुर्लभ मोती थे। एक दिन वह एक सुनार के पास गया और बोला कि वह इन मोतियों का एक हार बनवाना चाहता है। सुनार एक लालची व्यक्ति था।
सुनार ने नसरूद्दीन से कहा - "ठीक है, पर पहले मैं तुम्हारे सामने इन मोतियों को गिन लूँ।"
मोती गिनते समय उसने अपने हाथ की सफाई दिखाते हुए एक मोती अपनी हथेली में छुपा लिया और बोला - "ये उन्नीस हैं।"
नसरूद्दीन ने सुनार को मोती छुपाते हुए देख लिया लेकिन वह उसे जाहिर करना नहीं चाहता था। इसलिए वह बोला - "एक बार मैं भी गिन लूँ।"
नसरूद्दीन ने मोतियों की गिनती की और सुनार की ही तरह हाथ की सफाई दिखाते हुए एक और मोती कम कर दिया और बोला - "हाँ ये उन्नीस ही हैं।"
सुनार बोला - "मैं कल तक हार बना दूंगा। तुम कल हार ले जाना।"
बाद में जब शाम को सुनार ने मोतियों की गिनती की तो उसे पता चला कि मोती तो सिर्फ अठारह ही हैं। वह अपने आप से बोला - "लेकिन नसरूद्दीन ने तो मेरे सामने उन्नीस मोती गिने थे। अब मैं क्या करूँ। किसी और मोती से तो काम भी नहीं चलेगा।"
इस तरह सुनार के पास चुराये हुए मोती को ही हार में लगाने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा।
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(274)
सुरक्षा का उपाय
एक बार नसरूद्दीन ने एक लड़के से उसके लिए कुँऐं से पानी खींचने का अनुरोध किया। जैसे ही वह लड़का कुँए से पानी खींचने को झुका, नसरूद्दीन ने उसके सिर में जोर से थप्पड़ मारा और कहा, "ध्यान रहे। मेरे लिए पानी खींचते समय घड़ा न टूटे।"
वहाँ से गुजरते हुए एक राहगीर ने यह सब देखा तो उसने नसरूद्दीन से कहा - "जब उस लड़के ने कोई गल्ती ही नहीं की तो तुमने उसे क्यों मारा?"
नसरूद्दीन ने दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया - "यदि मैं यह चेतावनी घड़े के फूटने के बाद देता तो उसका कोई फायदा नहीं होता।"
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28
कौन बड़ा?
एक बार एक आश्रम के दो शिष्य आपस में झगड़ने लगे – मैं बड़ा, मैं बड़ा.
झगड़ा बढ़ता गया तो फैसले के लिए वे गुरु के पास पहुँचे.
गुरु ने बताया कि बड़ा वो जो दूसरे को बड़ा समझे.
अब दोनों नए सिरे से झगड़ने लगे – तू बड़ा, तू बड़ा!
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29
मैं तुझे तो कल देख लूंगा
सूफी संत जुनैद के बारे में एक कथा है.
एक बार संत को एक व्यक्ति ने खूब अपशब्द कहे और उनका अपमान किया. संत ने उस व्यक्ति से कहा कि मैं कल वापस आकर तुम्हें अपना जवाब दूंगा.
अगले दिन वापस जाकर उस व्यक्ति से कहा कि अब तो तुम्हें जवाब देने की जरूरत ही नहीं है.
उस व्यक्ति को बेहद आश्चर्य हुआ. उस व्यक्ति ने संत से कहा कि जिस तरीके से मैंने आपका अपमान किया और आपको अपशब्द कहे, तो घोर शांतिप्रिय व्यक्ति भी उत्तेजित हो जाता और जवाब देता. आप तो सचमुच विलक्षण, महान हैं.
संत ने कहा – मेरे गुरु ने मुझे सिखाया है कि यदि आप त्वरित जवाब देते हैं तो वह आपके अवचेतन मस्तिष्क से निकली हुई बात होती है. इसलिए कुछ समय गुजर जाने दो. चिंतन मनन हो जाने दो. कड़वाहट खुद ही घुल जाएगी. तुम्हारे दिमाग की गरमी यूँ ही ठंडी हो जाएगी. आपके आँखों के सामने का अँधेरा जल्द ही छंट जाएगा. चौबीस घंटे गुजर जाने दो फिर जवाब दो.
क्या आपने कभी सोचा है कि कोई व्यक्ति पूरे 24 घंटों के लिए गुस्सा रह सकता है? 24 घंटे क्या, जरा अपने आप को 24 मिनट का ही समय देकर देखें. गुस्सा क्षणिक ही होता है, और बहुत संभव है कि आपका गुस्सा, हो सकता है 24 सेकण्ड भी न ठहरता हो.
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
बड़े ही प्रेरक प्रसंग।
हटाएंमान गए मुल्ला साहब को…क्रोध पर बहुत प्रेरक कथा…
हटाएंमूल्यवान हार - नहले पे नसीर!
हटाएंरोचक और सूझ भरी.
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