अपने पिछले प्रवास में खींची गई कुछ तस्वीरें. बहुत कुछ बोलती तो बहुत कुछ सोचती सी... ड्रीमहाउस माँ चूड़ियाँ -1 चूड़ियाँ 2 ...
अपने पिछले प्रवास में खींची गई कुछ तस्वीरें. बहुत कुछ बोलती तो बहुत कुछ सोचती सी...
ड्रीमहाउस
माँ
चूड़ियाँ -1
चूड़ियाँ 2
दो-स्त्रियाँ
बस स्टैण्ड
चूड़ियाँ 3
चूड़ियाँ 4
घर-आंगन
हीरो नं 1
शीर्षक-हीन
धूल का फूल
बस स्टैण्ड 2
गुड़िया
फ्रूट-बाजार
हुम्म्...
और, अंत में ...
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हटाएंबहुक कुछ बतियाती तस्वीरें।
हटाएंमां के बजाय, मंदिर के आलिंद में विराजमान अंबिका. इसी तरह अन्य तस्वीरें कुछ और भी बोल रही हैं.
हटाएंआप तो चित्र भी खूब खींचते हैं। धूल का फूल और घर-आंगन समझ में नहीं आए ठीक से। अच्छे चित्र।
हटाएंपिछली बार खून हो गया था।
तस्वीरें सभी अच्छी हैं, लेकिन पहली तस्वीर सबसे अच्छी लगी। देखते ही किसी सुरम्य ग्रामीण परिवेश की कल्पना में खो गया।
हटाएंVery nice!
हटाएंसारे चित्र अपनी कहानी ,खुद कहते लगते हैं।
हटाएंआजकल फोटोग्राफी बढिया चल रही है। कैमराकौन सा इस्तेमाल में लाते हैं।
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लो जी, मैं तो डॉक्टर बन गया..
क्या साहित्यकार आउट ऑफ डेट हो गये हैं ?
तस्वीरों में भी जान होती है.
हटाएंचित्र काफ़ी अच्छे लगे। यद्यपि सभी चित्र अच्छे हैं तथापि एक चित्र 'घर आंगन' अपने शीर्षक के साथ न्याय नहीं कर पा रहा लगा। प्रथम चित्र सर्वोत्कृष्ट है। इसमें समग्र ग्रामीण परिवेश दृष्टिगत हो रहा है। द्वितीय चित्र वात्सल्य रस से सराबोर है जिसमें माँ की ममता के दर्शन होते हैं। दरअसल ये दोनों चित्र ऐसे हैं जिनसे देश का हर व्यक्ति स्वयं को जुड़ा हुआ अनुभव करेगा।
हटाएंगोपाल कुमार, छात्र (स्नातकोत्तर, हिंदी)
अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद