पहले, पहली बात. इतिहास की बात. मैं 1988 से कंप्यूटरों पर हिंदी में काम कर रहा हूँ, तब बिना हार्ड-डिस्क या 20 मेबा की हार्डडिस्क युक्त 286 ...
पहले, पहली बात. इतिहास की बात.
मैं 1988 से कंप्यूटरों पर हिंदी में काम कर रहा हूँ, तब बिना हार्ड-डिस्क या 20 मेबा की हार्डडिस्क युक्त 286 कंप्यूटर होते थे जिनकी स्पीड 33 मेहर्त्ज होती थी और जिनमें रैम 1-2 मेबा होता था. अविश्वसनीय? जी हाँ. और फिर भी हमारा काम हो जाता था. हम खुश थे कि कंप्यूटर हमारा काम कितना आसान कर देता है!
तब डास ऑपरेटिंग सिस्टम से फ्लापी से बूट कर काम करते थे. बूटेबल फ्लॉपी में ही कुछ प्रोग्राम होते थे. हिंदी के लिए उन दिनों अक्षर नामक वर्ड प्रोसेसर होता था. उसमें हिंदी कीबोर्ड हिंदी रेमिंगटन टाइपराइटर के कीबोर्ड जैसा होता था.
बहुत दिनों तक इसी में काम करते रहे. बाद में विंडोज 3.x / 95 आया तो डास आधारित अक्षर कालातीत हो गया, और एमएस ऑफ़िस आ गया जिसमें तोड़ निकाल कर कृतिदेव जैसे हिंदी टाइफ़ेस दिखने वाले मूल रूप में अंग्रेज़ी फ़ॉन्टों से काम चलाना पड़ा. कृतिदेव भी रेमिंगटन हिंदी कीबोर्ड आधारित था. चूंकि अक्षर भी रेमिंगटन कीबोर्ड पर था, अतः यहाँ कुछ अक्षरों के अलावा समस्या उतनी नहीं हुई, मगर लिखी हिंदी सामग्री में से माल ढूंढना टेढ़ी खीर होती थी क्योंकि बैकग्राउण्ड में तो अंग्रेज़ी का ही फ़ॉन्ट होता था.
कृतिदेव यूँ तो कमर्शियल फ़ॉन्ट है, मगर पायरेटेड रूप में यह हर जगह आसानी से मिल जाता है, और आसान विकल्प के रूप में यह बेहद प्रचलित भी हुआ. मगर इसमें प्रिंटिंग में उतनी सफाई दिखती नहीं, इसीलिए दूसरे फ़ॉन्टों का - मसलन चाणक्य का चलन भी प्रारंभ हुआ.
इस बीच इंटरनेट चला आया. नेट पर सामग्री डालने में कृतिदेव फ़ॉन्ट में समस्या थी कि जब तक सामने वाले के कंप्यूटर में फ़ॉन्ट न हो तो यह दिखेगी नहीं. इसका मुफ़्त वितरण भी संभव नहीं था. इसके तोड़ में कुछ कंपनियों ने डायनामिक फ़ॉन्ट निकाले, मगर वो भी सिर्फ इंटरनेट एक्सप्लोरर में चले. इस बीच शुषा नामक फ़ॉन्ट निकला जो न सिर्फ मुफ़्त था, बाद में इसके डायनामिक फ़ॉन्ट भी निकले जो नेट पर बढ़िया चले. यह बहुत कुछ हिंदी रोमन फ़ोनेटिक आधारित था, और इस फ़ॉन्ट में अभिव्यक्ति.ऑर्ग जैसी हिंदी की बहुत सी साइटें बेहद लोकप्रिय भी हुईं. मगर शुषा का कीबोर्ड लेआउट भिन्न था. मुझे इंटरनेट में शुषा में सामग्री डालने में बेहद कष्टों का सामना करना पड़ा क्योंकि मुझे रेमिंगटन आती थी, और उसे जबरदस्ती भूल कर मुझे शुषा सीखना पड़ा.
सन् 2000 के आसपास यूनिकोड हिंदी का प्रचलन चालू हुआ, और नवीन टेक्नोलॉजी के रूप में इसका एडॉप्शन तेजी से हुआ. यूनिकोड हिंदी के साथ लफ़ड़ा ये हुआ कि इसके मानकीकरण में सीडैक का हाथ रहा जिसके कारण सीडैक ने बेहद अदूरदर्शिता पूर्ण तरीके से सदा सर्वदा लोकप्रिय व सर्वाधिक प्रचलित हिंदी कीबोर्ड रेमिंगटन के बजाए अपने जिस्ट व इस्की में प्रयुक्त इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड को प्रस्तुत कर दिया, और रेमिंगटन का विकल्प ही नहीं दिया. यदि रेमिंगटन हिंदी कीबोर्ड ही रहता, या कम से कम एक वैकल्पिक कीबोर्ड के रूप में रहता तो भी ठीक था, मगर इस रद्दी निर्णय के कारण यूनिकोड हिंदी फ़ॉन्ट में टाइप करने के लिए डिफ़ॉल्ट रूप में इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड के अलावा कोई विकल्प ही नहीं रहा. तब न तो कन्वर्टर उपलब्ध थे, और न ही की-बोर्ड लेआउट क्रियेटर जैसी तकनीकें. लिहाजा, लिनक्स प्रोग्रामों के हिंदी अनुवादों के लिए मुझे एक बार फिर शुषा फ़ॉन्ट के कीबोर्ड को भूल कर इनस्क्रिप्ट अपनाना पड़ा. पहले रेमिंगटन, फिर शुषा और फिर इनस्क्रिप्ट - सोचिए इन कीबोर्ड में महारत हासिल कर लेने के बाद उन्हें भूल कर नया सीखने को कहा जाए तो क्या होगा? माइक्रोसॉफ़्ट के इंडिकआईएमई व बरहा में एक से अधिक हिंदी कीबोर्ड मिलने लगे थे, मगर ये लिनक्स तंत्रों में चलते नहीं थे.
इस बीच हिंदी के कई तरह के फ़ॉन्ट व कीबोर्ड प्रचलित हुए. तमाम छोटे बड़े वेंडरों ने अपने मुताबिक स्टाप गेप अरेंजमेंट के तहत तात्कालिक उपाय निकाले और माल बाजार में ठेल दिए. इस कारण हिंदी कंप्यूटिंग बाजार में 200 से अधिक कीबोर्ड चलते रहे. अलबत्ता सर्वाधिक प्रचलित अभी भी हैं - कृतिदेव और चाणक्य. कृतिदेव फ़ॉन्ट में इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड से लिखने के लिए बालेंदु दाधीच ने एक औजार भी निकाला था, जिसका प्रयोग मैं करता था - मगर मामला यहाँ भी कट-पेस्ट वाला झंझट भरा होता था.
अब मेरी इस समस्या का सामाधान ई-पण्डित के नए आइऍमई हो गया है.
नया आइऍमई क्या कर सकता है -
मोटे तौर पर यह इनस्क्रिप्ट कुंजीपट के जरिए यूनिकोड हिंदी, कृतिदेव तथा चाणक्य तीनों में ही मैटर तैयार करता है. यानी अब आपको अपने मैटर को न तो कन्वर्टरों से कन्वर्ट करने की जरूरत है और न ही अलग-अलग डिमांड के मुताबिक अलग अलग कीबोर्ड से टाइप कर मैटर भेजने की जरूरत. हिंदी में भिन्न फ़ॉन्टों में टाइपिंग इतनी आसान कभी नहीं थी.
एक फ़ीडबैक मैं देना चाहूँगा - यदि यह .net से बना है तो इसे लिनक्स तंत्रों के लिए भी कम्पाइल कर जारी किया जाए. या इसका सोर्स कोड मुक्त कर दिया जाए ताकि इसमें और भी चीजें आसानी से जोड़ी जा सकें.
इस औजार की अन्य सुविधाएँ हैं-
» बिना कॉपी-पेस्ट के झंझट के किसी भी ऍप्लिकेशन में सीधे टाइप करने की सुविधा।
» यूनिकोड हिन्दी एवं लिगेसी फॉण्टों में टाइप करने की सुविधा। चाणक्य तथा कृतिदेव फॉण्टों हेतु समर्थन।
» लिगेसी फॉण्टों हेतु शुद्धतम ऍल्गोरिद्म। संयुक्ताक्षरों तथा मात्राओं आदि को किसी भी अन्य नॉन-यूनिकोड टैक्स्ट ऍडीटर की तुलना में अत्यधिक शुद्धता से रैण्डर करता है।
» Ctrl कुञ्जी से बिना भाषा बदले बहुधा प्रयोग होने वाले रोमन चिह्न भी टाइप किये जा सकते हैं जिससे बार-बार हिन्दी-अंग्रेजी में कूद-फाँद नहीं करनी पड़ती।
» डिफॉल्ट फॉण्ट, अंकों का प्रारुप, विण्डोज़ के साथ ऑटोस्टार्ट होने आदि सैट करने की सुविधायें।
» विशेष चिह्नों को बटनों द्वारा आसानी से टाइप करने की सुविधा।
» इन्स्क्रिप्ट न जानने वालों के लिये कीबोर्ड हेतु इन्स्क्रिप्ट लेआउट के स्टीकर छापने की सुविधा।
» प्रयोक्ता गाइड (हैल्प फाइल) अन्य ऑनलाइन उपयोगी कड़ियों सहित।
» छोटा आकार एवं सरल इंस्टालेशन।
» व्यावसायिक स्तर का सॉफ्टवेयर होने के बावजूद निःशुल्क।
औजार की कार्यप्रणाली सम्बन्धी सम्पूर्ण जानकारी, कीबोर्ड लेआउट, टिप्स तथा अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न प्रोग्राम के साथ संलग्न यूजर गाइड में दिये गये हैं।
प्रोग्राम की डाउनलोड कड़ी व अन्य विस्तृत जानकारी हेतु यहाँ http://epandit.shrish.in/labs/ePanditIME/ जाएँ.
ई-पण्डित को साधुवाद.
ई-पण्डित को साधुवाद.
जवाब देंहटाएंले लिया है, अच्छा लगा है
जवाब देंहटाएंसराहनीय कार्य किया गया है हिन्दी टाइपिंग की दिशा में।
जवाब देंहटाएंबढ़िया. तख्ती अपना पहला औजार था. तब से गूगल और माइक्रोसोफ्ट के टूल ही इस्तेमाल कर रहा हूँ. इसे भी ट्राई करता हूँ.
जवाब देंहटाएंमेरे जैसा आलसी आदमी तो हिन्दी राइटर से आगे नहीं जाना चाहता। लेकिन कमी खलती है अलग-अलग डिजाइनों की। फांटों के अलग-अलग डिजाइन नहीं मिल पाते। फिर भी और थोड़ा कम समझने पर भी श्रीश जी के काम की प्रशंसा करना तो पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंश्रीश भाई को इसके लिए हार्दिक बधाई। साथ ही आपका भी आभार, इसके बारे में इतने विस्तार से बताने के लिए।
जवाब देंहटाएंरवि जी मैं रैमिंग्टन का आदी हूं, क्या मुझे इंडिक आई एम ई छोड कर इसे अपनाना चाहिए।?
------
टॉप हिन्दी ब्लॉग्स!
लोग चमत्कारों पर विश्वास क्यों करते हैं ?
जाकिर जी,
जवाब देंहटाएंयदि आप सिर्फ विंडोज पर काम करते हैं, तो कतई जरूरत नहीं है. अलबत्ता आप यदि भिन्न प्लेटफ़ॉर्मौ में काम करते हैं तो चूंकि आजकल हर एक तंत्र में इनस्क्रिप्ट डिफ़ॉल्ट रूप में उपलब्ध होता है, रेमिंगटन नहीं, इसीलिए आपको समस्या हो सकती है, तब आपको इनस्क्रिप्ट सीख लेना चाहिए.
समीक्षा के लिये धन्यवाद रवि जी। साथ ही आपसे हिन्दी कम्प्यूटिंग के इतिहास के कुछ पहलू भी जानने को मिले। सच कहें तो यूनिकोड के आने पर रेमिंगटन प्रयोक्ताओं हेतु इसमें टाइप करने के लिये औजार (Indic IME जैसा) बन जाना चाहिये था तथा इन्स्क्रिप्ट आने पर इससे पुराने फॉण्टों में टाइप करने हेतु औजार (ePandit IME जैसा) बन जाना चाहिये था फिर किसी को दिक्कत न होती। पुराने रेमिंगटन टाइपिस्टों को (यूनिकोड हेतु) नया इन्स्क्रिप्ट न सीखना पड़ता तथा नये टाइपिस्टों को (लिगेसी फॉण्टों हेतु) पुराना कठिन रेमिंगटन न सीखना पड़ता।
जवाब देंहटाएंखैर अब विश्वास है कि नये लोगों को रेमिंगटन सीखने की जरुरत नहीं रहेगी। लिगेसी फॉण्टों में टाइप कर सकना इसके लिये आखिरी कारण था। अब धीरे-धीरे रेमिंगटन कीबोर्ड स्वतः प्रचलन से बाहर हो जायेगा। मुझे ये देखकर बड़ा अजीब लगता था कि इन्स्क्रिप्ट जैसा सरल कीबोर्ड होने पर भी छपायी उद्योग में काम करने वालों को मजबूरन रेमिंगटन जैसा महाकठिन कीबोर्ड सीखना पड़ता था।
आपने लिनक्स हेतु कम्पाइल करने की बात कही। यह औजार विण्डोज़ API कॉल्स का उपयोग करता है, इस कारण लिनक्स पर नहीं चलेगा। .नेट प्रोग्रामों को मोनो के जरिये लिनक्स हेतु कम्पाइल किया जा सकता है परन्तु कोड लगभग नये सिरे से ही लिखना पड़ता है। यहाँ तक कि जावा जैसी क्रॉस प्लेटफॉर्म भाषा में भी एक ही कोड को उसी रुप में हर ओऍस के लिये कम्पाइल नहीं किया जाता बल्कि हर ओऍस के हिसाब से कोड भिन्न होता है तथा कम्पाइल किया जाता है। मैंने मोनो द्वारा ई-पण्डित कन्वर्टर को कम्पाइल करके उबुण्टू में चलाने की कोशिश की थी पर बात नहीं बनी। लिनक्स में बनाने हेतु जावा में बनाना मेरे विचार से बेहतर रहेगा।
जवाब देंहटाएंफिर एक बात और है कि क्या लिनक्स तन्त्र प्रयोग करने वाला कोई व्यक्ति वाकयी उसमें लिगेसी फॉण्टों में टाइप करता होगा। यह औजार फोटोशॉप, इनडिजाइन, कोरल ड्रॉ जैसे ग्राफिक्स, डीटीपी में प्रयुक्त होने वाले सॉफ्टवेयरों जिनमें अयूनिकोडित फॉण्टों को ध्यान में रखकर बनाया गया है जो कि विण्डोज़ के लिये ही हैं। इसलिये मुझे नहीं लगता कि प्रैक्टिकल रुप से यह लिनक्स के लिये बनाना उपयोगी होगा।
फिर एक बात और है कि क्या लिनक्स तन्त्र प्रयोग करने वाला कोई व्यक्ति वाकयी उसमें लिगेसी फॉण्टों में टाइप करता होगा।
जवाब देंहटाएंश्रीश जी,
कम से कम मैं तो करता हूं.
साथ ही उसमें भी छपाई के प्रोग्रामों में यूनिकोड हिंदी नहीं चलती, कृतिदेव जैसे फ़ॉन्टों का प्रयोग करना पड़ता है :(
बहुत उपयोगी औज़ार है . मैंने डाउनलोड कर लिया है ...आप से एक निवेदन है ...क्या आप मुझे "चाणक्य" फॉण्ट भेज सकते है? पहले भी आप से "मंगल" फॉण्ट प्राप्त कर चुका हूँ . आशा है इस बार भी आप मेरी मदद करेंगे ...हार्दिक आभार ...
जवाब देंहटाएंअतुल्य
atulyakirti@gmai.com
@Atulya,
जवाब देंहटाएंअतुल्य जी, यहाँ देखें।
https://sites.google.com/site/technicalhindi/home/fonts
पूरा पढ लेने के बाद भी मैं तो वहीं हूँ जहॉं आप मुझे छोड गए थे - कृति में टाइप कर कन्वर्टर की सहायता से अपनी पोस्ट प्रकाशित करना। मैं एमएस वर्ड में ही काम करता हूँ। मुझ जैसे नासमझों के लिए कोई सुझाव हो ता दीजिएगा।
जवाब देंहटाएंसबसे पहले शिरीष भाई को बधाई और सलाम। क्या इसे 64 बिट विंडो 7 पर इंस्टाल किया जा सकता है या नहीं? वहां ये काम करेगा या नहीं? क्योंकि मै हिंदी टूल कीट का शुरु से ही प्रयोग करता रहा हूँ पर जब से नया लेपटाप लिया है उस पर हिंदीटूल कीट नही चलता और जो माईक्रोसाफ्ट का इंडिक चलता है वो मुझे पसंद नही पर क्या करुं मजबूरी का नाम...। मुझे लगता है यह मेरे उपयोगी होगा। वैसे ये यूजर अकाऊंट कंटोल डिसबेल का क्या मतलब है और डॉट नेट फ्रेमवर्क २.० क्या विडो ७ में होगा या नहीं? या फिर सब बातों का लबोलुबाब यह कि यह 64बिट विंडो 7 पर चलेगा या नही।
जवाब देंहटाएं