व्यक्ति आमतौर पर स्प्लिट पर्सनलिटी का साइलेंट शिकार होता है - उसे पता नहीं होता कि उसके कई कई मुखौटे होते हैं. वो घर पर कुछ और मुखौटा धारण क...
व्यक्ति आमतौर पर स्प्लिट पर्सनलिटी का साइलेंट शिकार होता है - उसे पता नहीं होता कि उसके कई कई मुखौटे होते हैं. वो घर पर कुछ और मुखौटा धारण करता है तो बाहर कुछ और. ऑफ़िस में कुछ और, सड़क में कुछ और. ड्राइंग रूम में अलग तो बाथरूम में अलग.
पेश हैं कुछ मुखौटे - क्या इनमें से कुछ एक को आप पहचान सकते हैं जो आपके भीतर बाहर कहीं छुपा हुआ होता है और जो जब-तब यदा-कदा बाहर निकल आता है?
कुछ और -
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मस्त हैं सारे मुखौटे, रवि साहब।
जवाब देंहटाएंचेहरों पे चेहरे, वाह.
जवाब देंहटाएंसब लग तो बड़े शानदार हैं; पर अपने चेहरे पे इनमें से कोई न लगाना चाहूंगा! :(
जवाब देंहटाएंbahut hi badiya...
जवाब देंहटाएंहेडिंग भी सही पोस्ट भी सही.
जवाब देंहटाएंखूब बढ़िया...
जवाब देंहटाएंइनमें से सभी चेहरे हम सभी के अंदर हैं.. समय-समय पर बाहर आते हैं...
चेहरे बदलते-बदलते अपना असली चेहरा ही भूल चुका हूँ मैं तो
जवाब देंहटाएंप्रणाम
बहुत बढ़िया...मजा आ गया...
जवाब देंहटाएं*गद्य-सर्जना*:-“तुम्हारे वो गीत याद है मुझे”
ha ha ha ha Badhiya hain...
जवाब देंहटाएंघर में ही मुखौटा संग्रहालय खोलने का इरादा लग रहा है गुरुजी। आनन्दायी है।
जवाब देंहटाएंअपना भी लगा दिए होते -या नहीं है ? :)
जवाब देंहटाएं@अरविन्द मिश्र -
जवाब देंहटाएंमेरा तो सबसे बड़ा वाला है - सबसे ऊपर लगा हुआ - रावण से भी डबल, पूरे 20 चेहरे. :)