एक ग़रीब का पहचान पत्र

SHARE:

  भारत देश में एक ग़रीब आदमी रहता था. वह बड़ी बेसब्री से पहचान पत्र के लिए बाट जोह रहा था क्योंकि सब तरफ चर्चा चल रही थी कि कोई पहचान ...

image

 

भारत देश में एक ग़रीब आदमी रहता था. वह बड़ी बेसब्री से पहचान पत्र के लिए बाट जोह रहा था क्योंकि सब तरफ चर्चा चल रही थी कि कोई पहचान पत्र मिलने वाला है जिससे उसकी गरीबी देश में बाघों की तरह ग़ायब हो जाएगी.

अंतत: वो दिन आ ही गया जब एक दिन उसे पता चला कि पहचान पत्र बनाने के लिए सरकारी ऑफ़िस में आवेदन मिल रहा है और जिसे भर कर जमा करना होगा तभी पहचान पत्र मिलेगा. चूंकि उसे अपनी गरीबी दूर करने हेतु, अमीरों के समकक्ष खड़ा रहने हेतु किसी भी कीमत पर पहचान पत्र बनवाना था, अतः वो अपनी दिहाड़ी छोड़कर आवेदन लेने वाली लाइन में लग गया.

लाइन बहुत लंबी थी. उसका ओर छोर नहीं दिखाई दे रहा था. उसका नंबर आते आते शाम हो गई और दफ़्तर बंद होने का टाइम आ गया. इधर आजू-बाजू से बहुत से लोग ब्लैक में फ़ॉर्म बांट रहे थे. परंतु उसके पास ब्लैक में खरीदने लायक पैसा नहीं था, सो वह लाइन में ही लगा रहा. जैसे ही उसका नंबर आया, उस वक्त ठीक चार बजकर उनसठ मिनट और अट्ठावन सेकंड हो रहे थे. यह समय तो सरकारी दफ़्तर के बंद होने का होता है. बाबू ने उसके नाक के सामने यह कहकर फ़ॉर्म देने की खिड़की बंद कर दी कि ‘दफ़्तर बंद होने का समय क्या तुम्हें नहीं मालूम? फिर भी बुड़बक की तरह लाइन में खड़े हो?’.

वह दूसरे दिन जल्दी ही लाइन में लगने के लिए आ गया ताकि आज तो आवेदन पत्र मिल ही जाए. दिन भर धूप में वो लाइन में भूख प्यास भूलकर खड़ा रहा ताकि लाइन में उसकी जगह बनी रहे. ले देकर शाम होते होते उसे फार्म मिल ही गया. बारह पन्नों के फ़ार्म में पता नहीं क्या क्या पूछा गया था, उसे समझ नहीं आया. उसे पूरा भर कर जमा करवाने के पश्चात् जांच परख पूरी होने के पश्चात ही पहचान पत्र मिलेगा ऐसी बातें हो रही थी. उसने एक से पूछा – भइए, ये फ़ॉर्म को कैसे भरना है? मैं तो ग़रीब आदमी हूं, अंगूठा छाप, मैं कैसे भरूंगा? उसने बाजू में सड़क के परले किनारे नए नए बने कई गुमटियों की ओर इशारा किया – वहाँ चले जाओ. वो तुम्हारे जैसे लोगों के फ़ॉर्म भरवाने के लिए ही खुले हैं.

वो बड़ा खुशी खुशी वहाँ पहुंचा – अपना फ़ॉर्म भरवाने के लिए. बड़ी भीड़ लग रही थी – भारत की अधिकांश जनता अशिक्षित जो है. और इसी वजह से नामालूम जैसे धंधे भी निकल आते हैं और पनपने लगते हैं. पर उस गरीब आदमी की खुशी थोड़ी ही देर में काफूर हो गई, जब उसे पता चला कि फ़ॉर्म भरवाने के अच्छे खासे पैसे लगेंगे.

वो ग़रीब आदमी दो दिन से वैसे ही दिहाड़ी पर नहीं गया था. उसके पास अच्छे क्या रद्दी पैसे भी नहीं थे. उसने सोचा कि चलो फ़ॉर्म तो मिल ही गया है, एक दो दिन मजूरी कर फ़ॉर्म भरवाने का पैसा जुटा लेंगे.

हफ़्ते भर की अतिरिक्त मजदूरी कर उस ग़रीब आदमी ने फ़ॉर्म भरवाने लायक पैसे जुटा लिए और अंतत: फ़ॉर्म भरवा ही लिया. अब बारी आई फ़ॉर्म को जमा करवाने की. उसके लिए एक अलग काउंटर था. वहाँ भी बड़ी भीड़ हो रही थी. लोग अपना फ़ॉर्म पहले जमा करवाने के चक्कर में पिले पड़ रहे थे. आजू बाजू में कई ब्लैकिये इशारों में फ़ॉर्म जमा करवाने की बातें कर रहे थे जो कई को समझ में तत्काल आ रहे थे तो उस ग़रीब आदमी जैसे लोग भी थे जो समझते हुए भी उन इशारों को अनदेखा कर रहे थे. वहाँ भी दिन भर की जद्दोजहद के बाद, और फ़ॉर्म में तीन गलतियाँ बताने और उसे सुधरवाने के बाद अंततः उस ग़रीब आदमी ने अपना फ़ॉर्म जमा कर ही दिया. उस रात वो बड़े आराम की और बड़ी गहरी निद्रा में सोया और सपने में उसने देखा कि वो लालू यादव, ललित मोदी और केतन देसाई के साथ गलबहियाँ डाले, गले में पहचान पत्र युक्त सोने की माला पहने, अपने प्राइवेट जेट में उड़ रहा है.

फ़ॉर्म जमा किए हुए दो हफ्ते गुजर गए. पहचान पत्र का कोई अता पता नहीं था. उसने ऑफ़िस में तलाश की तो बताया गया कि पहले ठोंक बजाकर जाँच परख होगी फिर पहचान पत्र मिलेगा. कोई ऐसे थोड़े ही न मिलेगा. आवेदकों के बारे में विभागीय कर्मचारियों, पुलिस – आईबी इत्यादि से पुख्ता जानकारी मिलने के बाद ही उन्हें पहचान पत्र मिलेगा. कोई डेढ़ महीने बाद पुलिस का कोई कांस्टेबल सुबह सुबह उसके घर आ धमका. उसने सोचा कि उससे या उसके घर वालों से क्या जुर्म हो गया है जो ये पुलिसिया घर पर आ धमका है.

‘क्यों रे, पहचान पत्र के लिए तूने फ़ॉर्म भरेला है?’ पुलिसिया ने रौब झाड़ा - मानों उसने फ़ॉर्म भर कर कोई अपराध कर दिया हो.

‘हाँ, हुजूर...’ ग़रीब के मुँह से ले देकर बोल छूटे – वह अपने आप को बिना कारण ही अपराधी मानने लग गया था.

‘मैं वेरीफ़िकेशन के लिए आया हूँ...’ पुलिसिये ने और गोल मोल बातें कीं, जो ग़रीब आदमी के समझ में नहीं आईं. आखिर पुलिसिये के सीधे-सीधे सही भाषा में उतर आने पर उसे पता चला कि ‘सरकारी वेरीफ़िकेशन’ के लिए उसे कई दिन की दिहाड़ी भेंट में चढ़ानी होगी. उसे तो पहचान पत्र चाहिए ही था – हर कीमत में – चलो, कुछ दिन और भूखे पेट मजूरी सही.

वेरीफ़िकेशन के बाद कई दिन गुजर गए. वो दफ़्तर के चक्कर लगाता रहा. कोई उसे सही जानकारी नहीं देता था. कोई कहता था कि बन रहे हैं. कोई कहता था कि बन कर आपके घर में सीधे रजिस्ट्री से पहुँच जाएगा. कोई कहता था कि भइए, कुछ भेंट पूजा चढ़ाओ, तभी पहचान पत्र मिलेगा. ऐसे ही नहीं मिल जाएगा. सब बना हुआ रखा है. जब तक भेंट पूजा नहीं चढ़ेगी कुछ नहीं होगा.

एक दिन उसके पते पर पहचान पत्र कार्यालय से एक पत्र आया जिसमें लिखा था कि अपनी पहचान बताकर कार्यालय से पहचान पत्र ले लें. वो खुशी खुशी कार्यालय पहुँचा. मगर उससे पूछा गया कि उसकी पहचान क्या है कि वो वही आदमी है जिसके लिए वो पहचान पत्र लेने आया है?

दफ़्तर में किसी ने जब उसे हवा नहीं दी तो एक बिचौलिये को उस पर दया आ गई. उसने उससे कहा कि वो आधी पहचान में उसका काम करा देगा – उसे पहचान पत्र दिलवा देगा. आधी पहचान? उस ग़रीब आदमी ने प्रश्न वाचक नेत्रों से बिचौलिये को देखा. भई, यहाँ की भेंट पूजा का एक रेट है. अब चूंकि तुम गरीब हो, और यहाँ के चक्कर लगा के थक गए हो – मैं तुम्हें रोज देखता आ रहा हूँ यहाँ, तो तुम्हारी मैं पहचान करवा देता हूं – आधे रेट पर और तुम्हें पहचान पत्र मिल जाएगा.

उस ग़रीब आदमी ने सोचा कि चलो अब सब मामला सुलट तो गया ही है, पहचान पत्र मिलने में भूखे पेट चार दिन की दिहाड़ी और सही.

अंततः वो दिन आ ही गया. बिचौलिये की कृपा से मामला आधे में ही निपट गया था. वो बड़ा खुश था. उसके हाथ में पहचान पत्र था. वो भी अमीर बन गया था. वो पहचान पत्र को अपने हाथों में कसकर पकड़ा हुआ था – अपनी जान से भी ज्यादा प्यारा लग रहा था उसका नया यूनीक आई डी पहचान पत्र. उसका होलोग्राम कड़कती धूप में नौरंगे हीरे की तरह चमक रहा था. उसकी आँखें पहचान पत्र की चमक से चुंधिया रही थी.

------

दूसरे दिन समाचार पत्रों में एक गुमनाम सी खबर छपी थी – कल दोपहर सरे चौराहे पर एक व्यक्ति गश खाकर गिर पडा और अस्पताल ले जाते समय उसकी मृत्यु हो गई. पोस्टमार्टम की रपट में भूख से मृत्यु बताया गया है, मगर सरकारी नुमाइंदों ने इस बात का खंडन किया है और इसकी जाँच कमेटी बिठाई है. उस व्यक्ति की अब तक पहचान नहीं हो सकी है. अलबत्ता मृतक के हाथ में एक नया पहचान पत्र बरामद हुआ है जिसमें सूरत किसी और की लगी हुई पाई गई है और पता किसी और का दर्ज है.

----

COMMENTS

BLOGGER: 14
  1. बहुत ही उम्दा प्रस्तुती / खोजी ब्लोगिंग को आपने सपने से साकार रूप में बदल दिया है / आज इसी तरह की ब्लोगिंग करने की जरूरत है जिससे देश और समाज को बदला जा सके /आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे /

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी9:02 am

    रविजी,

    हमारी सरकारी कार्यप्रणाली पर आप का व्यंग अच्छा है पर UID का अच्छे से कार्यान्वित होना हमारे देश के लिये बहूत जरूरी है. भारत जैसे बडे देशमें यह लागू करना बहूत ही विकट चूनौती है पर उम्मीद करता हूं के यह काम जल्द और अच्छे से होगा.

    जवाब देंहटाएं
  3. गरीबों को पहचान तो मिल जायेगी पर पहचान पेट नहीं भरती ।

    जवाब देंहटाएं
  4. पहचान पत्र न भी मिले... बस पहचान मिल जाए..


    आमीन..

    जवाब देंहटाएं
  5. तीखा कमेंट। यूआईडी से इसी तरह गरीबी(गरीब) खत्‍म होने वाली है।

    जवाब देंहटाएं
  6. jabardast!!

    kal ko pahle hi dekh liya aapne shayad aur likha dhansu......

    जवाब देंहटाएं
  7. हमारे गाँव में रहने वाले अधिकतर लोगों के साथ यही सब गुजरती है रवि भाई ! मार्मिक शब्द चित्र खींचा है आपने ..मगर पढ़ेगा कौन ...?
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. मान गए रवि जी.
    क्या तीखा प्रहार किया है आपने!

    जवाब देंहटाएं
  9. मान गए रवि जी.
    क्या तीखा प्रहार किया है आपने!

    जवाब देंहटाएं
  10. गाँव में वोटर कार्ड तो लोगों को अभी तक नहीं मिल पाया है पता नहीं ये यूआईडी लोगों को कब मिलेगा ....

    जवाब देंहटाएं
  11. jitendra jeengar4:40 pm

    badiya lekh he

    जवाब देंहटाएं
आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.
कृपया ध्यान दें - स्पैम (वायरस, ट्रोजन व रद्दी साइटों इत्यादि की कड़ियों युक्त)टिप्पणियों की समस्या के कारण टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहां पर प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

तकनीकी ,1,अनूप शुक्ल,1,आलेख,6,आसपास की कहानियाँ,127,एलो,1,ऐलो,1,कहानी,1,गूगल,1,गूगल एल्लो,1,चोरी,4,छींटे और बौछारें,148,छींटें और बौछारें,341,जियो सिम,1,जुगलबंदी,49,तकनीक,56,तकनीकी,709,फ़िशिंग,1,मंजीत ठाकुर,1,मोबाइल,1,रिलायंस जियो,3,रेंसमवेयर,1,विंडोज रेस्क्यू,1,विविध,384,व्यंग्य,515,संस्मरण,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,स्पैम,10,स्प्लॉग,2,हास्य,2,हिंदी,5,हिन्दी,509,hindi,1,
ltr
item
छींटे और बौछारें: एक ग़रीब का पहचान पत्र
एक ग़रीब का पहचान पत्र
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjs5liSiTsAOtXr4SjfvmQxlOn4dySGC4DnWYmWXVCdLhnuqoVJCHfo2S8pQAo4T8z3OjUCjATD9QHIfKl-eEDqRgVXCRcOIzLq3fcpJJckgfUBS1OigrLMH6tpUYZ5jTR5xzMP/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjs5liSiTsAOtXr4SjfvmQxlOn4dySGC4DnWYmWXVCdLhnuqoVJCHfo2S8pQAo4T8z3OjUCjATD9QHIfKl-eEDqRgVXCRcOIzLq3fcpJJckgfUBS1OigrLMH6tpUYZ5jTR5xzMP/s72-c/?imgmax=800
छींटे और बौछारें
https://raviratlami.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
https://raviratlami.blogspot.com/
https://raviratlami.blogspot.com/
https://raviratlami.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
true
7370482
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content