आदम और हव्वा... व्यंज़ल : जमाने की दुश्वारियाँ रही होंगी वरना हम भी तो एक कवि थे जलसे में उस दिन हादसा हुआ सुना है वहाँ ब...
आदम और हव्वा...
व्यंज़ल :
जमाने की दुश्वारियाँ रही होंगी
वरना हम भी तो एक कवि थे
जलसे में उस दिन हादसा हुआ
सुना है वहाँ बहुत से कवि थे
कोई ये कैसे स्वीकारेगा भला
संगीन लिए लोग कभी कवि थे
कुपोषण से मर गया शहर मेरा
क्योंकि शहर में सभी कवि थे
तुम क्या बताओगे हक़ीक़त रवि
सबको मालूम है तुम कवि थे
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(समाचार कतरन – साभार टाइम्स ऑफ इंडिया)
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कुपोषण से मर गया शहर मेरा
हटाएंक्योंकि शहर में सभी कवि थे
--सबसे बुरा ये हुआ!!
"कुपोषण से मर गया शहर मेरा
हटाएंक्योंकि शहर में सभी कवि थे "
:-)
"कुपोषण से मर गया शहर मेरा
हटाएंक्योंकि शहर में सभी कवि थे "
यह बड़ी मजेदार रही.
रवि भइया आप ठीक कह रहे हैं,,,,कवियों की छवि कुछ इसी तरह की होती जा रही है....की ज़माने की दुश्वारियां , कुपोषण , संगीन, और जलसे में हादसे के लिए इन्हें साधन और साध्य दोनों समझा जाने लगा है.
हटाएंकवि से बन गया वह अल्लाह का जिहादी एजेंट. मरने के बाद पायेगा हूरें.
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