बचपन के दिन, अगर सटीकता में कहें तो. अभी चिट्ठाकार समूह पर हिन्दी के भविष्य के बारे में बात करते-करते रुख़ कुछ मुड़ा और बचपन और कॉमिक्स ...

बचपन के दिन, अगर सटीकता में कहें तो. अभी चिट्ठाकार समूह पर हिन्दी के भविष्य के बारे में बात करते-करते रुख़ कुछ मुड़ा और बचपन और कॉमिक्स विषय पर बहुत ही बढ़िया चर्चा चली. इसी तारतम्य में मेरा पन्ना पर अपने जमाने के कॉमिक्स के बारे में मजेदार आलेख पढ़ने को भी मिला.
आजकल के हिन्दी कॉमिक्स में सुपर कमांडो ध्रुव, तिरंगा, भोकाल डोगा, (डोगा के कुछ मुफ़्त ईकॉमिक्स डाउनलोड यहाँ से करें) इंसपेक्टर स्टील, नागराज, फ़ाइटर टोड्स इत्यादि बड़े ही ऊटपटांग नाम सहित ऊटपटांग कैरेक्टर्स आते हैं. इनमें एक्शन और विजुअल्स तो ग़ज़ब के होते हैं, परंतु स्टोरी लाइन बहुत ही बकवास होती है. जो मजा फैंटम और मैनड्रेक को पढ़ने में आता था वो इनमें नहीं आता. और, चाचा चौधरी, उनका दिमाग तो कम्प्यूटर से भी तेज चलता है. मगर बच्चे, उन्हें तो कॉमिक्स चाहिए चाहे वो जैसा भी हो. उन्हें ये भी, और वो भी, और पढ़ा-बिनपढ़ा सब बड़े अच्छे लगते हैं और जाहिर है, छीना-झपटी मचती रहती है. नए कॉमिक्स चरित्रों में गमराज और बांकेलाल मुझे भी पसंद हैं क्योंकि वे हास्य व्यंग्य बिखेरते हैं. आर्ची तो आज भी पसंद है :)
बाल-पत्रिकाओं में चंपक का अपना अलग स्थान है. इसका स्थाई कॉमिक कैरेक्टर चीकू भी बहुत प्यारा है. अब तो चंपक का जोगो डिस्क युक्त मल्टीमीडिया संस्करण भी आता है. महज बीस रुपए में मल्टीमीडिया सीडी रॉम युक्त चंपक तो वाकई लाजवाब होता है.
(चंपक जोगो डिस्क के बच्चों के फ्लैश आधारित गेम्स लिनक्स पर कॉन्करर ब्राउज़र पर चलते हुए)
चंपक के मल्टीमीडिया संस्करण के सीडी रॉम में बच्चों के लिहाज से फ्लैश आधारित कम्प्यूटर गेम्स व चित्रकारी करने के प्रोग्राम (जो कि लिनक्स में भी बढ़िया चलते हैं) और ढेर सारे वीडियो व वालपेपर इत्यादि होते हैं.
कॉमिक्स की बातें करते बचपन लौट आया... वैसे भी हम यदा कदा बचपना और बचपन-भरी शरारतें करते ही रहते हैं... अपने ब्लॉग पोस्टों में .... टिप्पणियों में.... (माफ़ कीजिए, यहाँ कड़ियाँ नहीं, :) – जस्ट किडिंग...? ! & $ #^)
चाहो तो दुनिया में तमाम खताएं कर लेना यारों
पर अपने अंदर के बच्चे को मरने मत देना यारों
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व्यंज़ल
वो मेरा कथन नहीं था जस्ट किडिंग
दुनिया बड़ी आसान है जस्ट किडिंग
मेरी उम्मीद में सदैव रहा था हिमालय
मेरे पैर कुछ यूं चले कि जस्ट किडिंग
मैंने मुहब्बत में अलाव तक जला दिए
वो देखकर हँस दिए पूछे जस्ट किडिंग
मेरी संजीदा वाकयों को अनदेखा किया
भृकुटियाँ तनीं जब किया जस्ट किडिंग
मुश्किल घड़ियाँ आसानी से कटेंगे रवि
जीवन को यूं जियो जैसे जस्ट किडिंग
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अरे वाह चंपक का यह संस्करण भी आने लगा है!! गुड है यह तो!!
जवाब देंहटाएंनए कॉमिक्स में बांकेलाल तो मुझे भी पसंद रहा!!
फैण्टम, मैन्ड्रेक की तो बात ही क्या,
चिट्ठाकार ग्रुप पर फैण्टम से संबंधित फिल्म के बारे में इसलिए पूछा था मैने क्योंकि कई बार बैटमैन-सुपरमैन आदि फिल्में देखते समय दिमाग में सवाल उठा कि क्या फैण्टम और मेन्ड्रेक आदि पर फिल्में बनी होंगी।
व्यंजल बढ़िया है लेकिन उससे भी बढ़िया यह
"चाहो तो दुनिया में तमाम खताएं कर लेना यारों
पर अपने अंदर के बच्चे को मरने मत देना यारों"
एकदम सही!!!
आजकल के हिन्दी कॉमिक्स में सुपर कमांडो ध्रुव, तिरंगा, भोकाल डोगा, इंसपेक्टर स्टील, नागराज, फ़ाइटर टोड्स इत्यादि बड़े ही ऊटपटांग नाम सहित ऊटपटांग कैरेक्टर्स आते हैं. इनमें एक्शन और विजुअल्स तो ग़ज़ब के होते हैं, परंतु स्टोरी लाइन बहुत ही बकवास होती है.
जवाब देंहटाएंफाइटर टोड्स में भी हास्य आता है रवि जी, भोले-भाले टाइप का हास्य, कम से कम जब मैं इनको पढ़ता था कोई ५-६ साल पहले तक तब तो यही आता था। :) बाकी नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, भोकाल की कॉमिक्स मुझे पसंद हैं लेकिन आजकल इनमें वो बात नहीं रही जो पहले होती थी जब इनकी कहानियाँ दमदार होती थीं। ऐसे ही आपको थोड़ा हास्य और थोड़ा एक्शन का मिला जुला रुप देखना हो तो कोबी-भेड़िया की कॉमिक्स अच्छी होती हैं।
बांकेलाल तो हर दिल अज़ीज़ है, उसकी अपनी अलग ही लीग है और शुरु से लेकर आज तक उसका कोई मुकाबला नहीं है। :)
रहना है सच्चा।
जवाब देंहटाएंबने रहो बच्चा।।
'जो कि लिनक्स में भी बढ़िया चलते हैं' - अरे वाह!
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है..आपकी यही तो तारीफी है कि बीच बीच में व्यंजल लाकर मेरी बात रख लेते हो..बहुत खूब:
जवाब देंहटाएंवो मेरा कथन नहीं था जस्ट किडिंग
दुनिया बड़ी आसान है जस्ट किडिंग
--क्या बात है!! सिरियसली..नॉट किडिंग...
लीजिये हम लौटा देते हैं आपका बचपन:
जवाब देंहटाएंhttp://indrajal-comics.blogspot.com/
http://comic-guy.blogspot.com/
http://thephantomhead.blogspot.com/
http://www.theskullcavetreasures.blogspot.com/
http://mandrake-comics.blogspot.com/
और भी हैं.
'बहादुर' भी याद आ रहा है। इस भारतीय पात्र को भी बडे अच्छे से प्रस्तुत किया जाता था। पता नही अब यह छपता है या नही।
जवाब देंहटाएंरवि जी आप की इस पोस्ट के बाद हम बचपन की सारी यादों की ताज़ा कर आए है. घोस्ट बसटर के लिंक के बाद घंटो सारी कॉमिक्स पढ़ने का दिल करता रहा. यह देख कर और भी अच्छा लगा की राज कॉमिक्स वाले अब समय की माँग को देखते हुए ऑनलाइन कॉमिक भी डाल रहे है
जवाब देंहटाएंअब इंटरनेट पर पैसा दो और ऑनलाइन कोँमिक पढ़ो! सही जा रहे है ये लोग. पोस्ट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ब लिंक के लिए घोस्ट बसटर का भी आभार
ટ્રોજન વ રદ્દી સાઇટોં ઇત્યાદિ કી કડ઼િયોં યુક્ત)ટિપ્પણિયોં કી સમસ્યા કે કારણ ટિપ્પણિયોં કા મૉડરેશન ન ચાહતે હુએ ભી લાગૂ હૈ. અતઃ આપકી ટિપ્પણિયોં કો યહાં પર પ્રકટ વ પ્રદર્શિત હોને મેં કુછ સમય લગ સકતા હૈ.
जवाब देंहटाएंरवि जी, आपने मेरा यह चिट्ठा देखा है या नहीं?
जवाब देंहटाएंhttp://comics-diwane.blogspot.com/