(अंतर्देशीय दोस्त : शरद व सुधाकर) एक दूसरे पर जान तक न्यौछावर कर देने की दोस्ती की मिसालें यूँ तो कई मिलेंगीं परंतु एक दूसरे पर पिछले तीस...
(अंतर्देशीय दोस्त : शरद व सुधाकर)
एक दूसरे पर जान तक न्यौछावर कर देने की दोस्ती की मिसालें यूँ तो कई मिलेंगीं परंतु एक दूसरे पर पिछले तीस वर्षों से अंतर्देशीय पत्रों की नियमित, नित्य न्यौछावर करने की ऐसी मिसाल अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगी.
जी हां, यह मिसाल है दो दोस्तों सुधाकर जोशी व शरद भारद्वाज की, जो पिछले तीस वर्षों से नित्य, नियमित, बिना ब्रेक किए, एक दूसरे को अंतर्देशीय पत्र लिखते चले आ रहे हैं.
इंदौर के अभ्यंकर क्लासेज में साथ-साथ पढ़ने वाले इन दो दोस्तों के बीच नित्य अंतर्देशीय पत्र लेखन सफर 1 जुलाई 1977 में प्रारंभ हुआ जब शरद भारद्वाज नौकरी के सिलसिले में भोपाल चले गए. रेडियो कॉलोनी इंदौर में सुधाकर जोशी के घर के सामने क्रिकेट से जुड़े ए. डब्ल्यू. कनमडीकर रहते थे. उनके घर नित्य पोस्टमैन आता और पत्रों का पुलिंदा लाता. सुधाकर को लगा कि मेरे घर पोस्टमैन क्यों नित्य नहीं आता? उसने अपने दोस्त शरद से बात की और इस तरह उनके बीच नित्य अंतर्देशीय पत्र लेखन का सिलसिला चल निकला.
(श्री सुधाकर जोशी, अपनी धर्मपत्नी व पत्रों के पुलंदों के साथ)
सुधाकर बताते हैं कि शुरुआत में अंतर्देशीय पत्र 15 पैसे का आता था, जिसे अब डाक विभाग ने 2.50 रुपए का कर दिया है, और उसे प्रिंट भी नहीं करता. लिहाजा अब अपना स्वयं का जुगाड़ लगाकर उसे अंतर्देशीय पत्र का आकार देकर काम चलाना पड़ता है.
अब आप कहेंगे कि दो दोस्त आपस में रोज क्या बातें लिखते होंगे?
सुधाकर का कहना है कि आज भी जब वे पत्र लिखने बैठते हैं तो उन्हें पत्र में जगह की कमी पड़ जाती है और कुछ मसाला अगले दिन के लिए छोड़ना पड़ता है.
उन्होंने पत्राचार के जरिए अपने दोस्त को मराठी पढ़ना लिखना सिखाया, आपस में एक कूट भाषा बना डाली, उलटी हैंडराइटिंग से चिट्ठियाँ लिखते रहे, पहेलियाँ, चुटकुले, सवाल-जवाब अंतर्देशीय पत्रों के जरिए चलते रहे. कभी नीचे से ऊपर पत्र लिखा तो वाक्य अंत से आरंभ की ओर लिखा. कुल मिलाकर दोनों ने अपने पत्रों में रोचकता बनाए रखे आज भी सुधाकर को शरद के पत्र का बेसब्री से इंतजार रहता है और वे पोस्टमैन के आने की बाट जोहते रहते हैं. आज के मोबाइल इंटरनेट ईमेल युग में भी उनका अंतर्देशीय पत्र लेखन नित्य, नियमित जारी है. सुधाकर जोशी वर्तमान में स्टेटबैंक ऑफ इंडिया रतलाम में कार्यरत हैं और शरद भारद्वाज भोपाल में हैं.
साल के कोई दस-पंद्रह अंतर्देशीय पत्र जो डाक विभाग की लापरवाही के चलते खो जाते हैं, बाकी सारा का सारा पत्राचार – जो ग्यारह हजार से ऊपर की संख्या में है, सुधाकर के पास उपलब्ध हैं. और इतना ही शरद के पास भी. यह एक किस्म का दस्तावेज है जिसे दोस्ती की मिसाल के नाम पर सुरक्षित रखा जाना चाहिए. सुधाकर ने इन्हें पैकिंग सामग्री के कार्टन में भर रखा है जिसके इसमें दीमक इत्यादि से खराब होने की संभावना है. इन पत्रों को सुरक्षित रखे जाने की आवश्यकता है.
विभिन्न प्रिंट मीडिया में इस बेमिसाल दोस्ती के चर्चे यदा कदा होते रहे हैं. डीडी1 में विनोद दुआ ने परख कार्यक्रम में इन पर एक कहानी भी प्रसारित किया था. लिम्का बुक ऑफ़ रेकार्ड में इनकी दोस्ती की मिसाल दर्ज है. गिनीज बुक के लिए इन्हें मार्गदर्शन की आवश्यकता है.
आइए, इनकी दोस्ती को नमन् करें एवं इनसे प्रेरणा लें.
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वाकई!! वाकई इसे आज के जमाने में एक मिसाल के रुप मे देखा जाएगा!!
हटाएंनमन है इनकी दोस्ती को!
दोस्ती हो तो ऐसी,अत्यंत सुंदर है.बहुत बढ़िया है,नमन है इनकी दोस्ती को, बधाइयाँ .
हटाएंवाह। ये दोनों दोस्त अपने पत्र ब्लाग पोस्ट के रूप में लिखें तो कैसा रहे?
हटाएंऐसी मित्रता को नमन है। साथ ही नमन है उन मित्रों की संकल्प और इच्छा-शक्ति को भी।
हटाएंक्या बात है।
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