पिछला वर्ष : एक त्वरित नज़र ************************. पिछले वर्ष इन्हीं दिनों मैंने संकल्प लिया था नियमित चिट्ठा लिखने का. नियमित, नि...
पिछला वर्ष : एक त्वरित नज़र
************************.
पिछले वर्ष इन्हीं दिनों मैंने संकल्प लिया था नियमित चिट्ठा लिखने का. नियमित,
नित्य लिखने का यानी महीने में करीब 20-22 पोस्ट लिखने का.
पिछला वर्ष : एक त्वरित नज़र ************************.
पिछले वर्ष इन्हीं दिनों मैंने संकल्प लिया था नियमित चिट्ठा लिखने का. नियमित, नित्य लिखने का यानी महीने में करीब 20-22 पोस्ट लिखने का.
अगर भीषण गर्मियों के दो-एक महीने निकाल दें, जब मेरे पास कम्प्यूटर पर हिन्दी में लिखने के साधन नहीं थे, तो मुझे खुशी है कि एक तरह से मैं अपने संकल्प को कुछ हद तक निबाह सका. अगर रचनाकार और निरंतर को भी संकल्प का हिस्सा शामिल कर लिया जाए, तो आंकड़ा संभवतः आगे भी निकल सकता है.
इस बीच चिट्ठा जगत में काफी सारे नए लोग आए और खुशी की बात यह है कि अब बहुत से लोग नियमित लिखने लगे हैं. उम्मीद है वर्ष 2006 में नए लोगों के आने का सिलसिला और तेज़ी पकड़ेगा, और ढेर सारे लोग नियमित लिखेंगे. हम पाठकों को पढ़ने के लिए और ढेरों सामग्रियाँ, विविध विषयों की, पढ़ने को तो मिलेंगी ही, इंटरनेट - हिन्दी समृद्ध भी होता जाएगा. इस वर्ष के लिए खुद से किए गए कुछ वादे : ************************************.
रचनाकार के लिए नित्य एक रचना का प्रकाशन - प्रयास इस वर्ष भी जारी रखने की योजना है. देखें, यह प्रयास कब तक चल पाता है. छींटे और बौछारें पर नित्य लिखने के बजाए नियमित, साप्ताहिक, लिखने की योजना है- कुछ भिन्न सा – प्रति सोमवार. देखते हैं यह भी कितने सोमवार बिला नागा निकल पाता है.
इस मौक़े पर, खास तौर से अपने से किए वादों पर - कुछ छींटे उड़ाता यह व्यंज़ल पेश है:
ईमान से कोई एक मकान बनाओगे दुनिया को तनिक चलकर दिखाओगे
खुद से किए वादे कभी निबाहे हो गैरों से किए वादे बहुत निबाहोगे
भूखा बेजार है तमाम मुल्क अब कितनों को तसल्ली दे के सुलाओगे
बातें बहुत करते हो मगर मौक़े पे तुम भी चमड़े का सिक्का चलाओगे
मैदाने जंग में अकेले कूद तो गए देखें किस किसको पानी पिलाओगे
बहुत दिनों से रोया नहीं है रवि हँसी का एक टुकड़ा उसे दिलाओगे
***-***
त्रिवेणी मेला : जीवन के शाश्वत् सत्य पर हँसने का माद्दा देने का एक प्रयास *********************************************************.
रतलाम में एक श्मशान स्थल है त्रिवेणी संगम. इस स्थल पर अति प्राचीन काल से ही एक कुण्ड (बावड़ी) बना हुआ है, जिसके जल में दाह-संस्कार के पश्चात् लोग स्नानादि करते हैं. इस श्मशान स्थल पर हर वर्ष, इन्हीं दिनों एक मेला लगता है. मेले में तमाम हँसी-खुशी के आयोजन होते हैं. मेले में विक्रय के लिए खेल-खिलौने, खाने-पीने की चीजें, मनोरंजन के लिए तमाशा-झूले इत्यादि तो होते ही हैं, रात्रि में प्रतिदिन, अलग-अलग दिन कविसम्मेलन, संगीत और नाटक इत्यादि का आयोजन भी इस दस दिवसीय मेले में किया जाता है. मेले का उत्साह रतलाम शहर के नागरिकों को तो थोड़ा सा कम, परंतु आसपास के ग्रामीणों को ज्यादा रहता है और भीड़ की भीड़ खिंची चली आती है. विशाल मेला खेतों पर लगता है जिसे अस्थाई रूप से साफ सफाई कर तैयार किया गया होता है, लिहाजा, जब आप मेले में घूम फिर कर वापस आते हैं तो धूल से नहाए हुए होते हैं.
मेले में उत्साहित लोग जम कर मौज मनाते हैं, खरीदारी करते हैं, खाते-पीते हैं. श्मशान स्थल के ऐन पार्श्व में.
जीवन के शाश्वत् सत्य, मृत्यु को हंसी खुशी और मौज से स्वीकारने का इससे सटीक उदाहरण और क्या हो सकता है.
नीचे का चित्र त्रिवेणी मेला स्थल के प्रवेश मार्ग का है. गोधूलि बेला में, मेले की भीड़ में से उठता धूल का गुबार उड़ता स्पष्ट दिखाई दे रहा है.
मृत्यु के भय को, सांसारिक नश्वरता को, मेले में मौज कर हमने भी धूल के गुबार में उड़ा दिया ...
********.
88888888।।सृजन-सम्मान, भारत द्वारा रचनाकारों से प्रविष्टियाँ आमंत्रित ।।
रायपुर । भारत ।। छत्तीसगढ राज्य की बहुआयामी सांस्कृतिक संस्था "सृजन-सम्मान " की प्रादेशिक कार्यालय द्वारा साहित्य, संस्कृति , भाषा एवं शिक्षा की विभिन्न 27 विधाओं में प्रतिष्ठित रचनाकारों को पिछले 6 वर्षों से प्रतिवर्ष दिये जाने वाले वैश्विव स्तर के सम्मान हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित की जा रही हैं । प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथि 15 अगस्त 2006 है । छत्तीसगढ राज्य के गौरव पुरुषों की स्मृति में दिये जाने वाले यह सम्मान प्रतिवर्ष आयोजित 2 दिवसीय अखिल भारतीय साहित्य महोत्सव में प्रदान किये जाते हैं । संस्था द्वारा सम्मान स्वरुप रचनाकारों को 21, 11, 5, हजार नगद, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह, शॉल, श्रीफल एवं 500 रुपयों की कृतियाँ प्रदान की जाती हैं । यह सम्मान राज्य के महामहिम राज्यपाल एवं देश के चुनिंदे वरिष्ठ साहित्यकारों की उपिस्थित में दिया जाता है । पुरस्कारों का विवरण निम्नानुसार है –
क्र. सम्मान का नाम विधा, जिस पर प्रविष्टि भेज सकते हैं
1. हिन्दी गौरव सम्मान- बेबसाईट संपादक या ब्लाग
2. पद्मश्री मुकुटधर पांडेय सम्मान - लघुपत्रिका संपादन (अंतरजाल मैग्जीन भी )
3. पद्मभूषण झावरमल्ल शर्मा सम्मान- पत्रकारिता हेतु समर्पित समग्र व्यक्तित्व
4. महाराज चक्रधर सम्मान- ललित निंबध
5. मंहत बिसाहू दास सम्मान- कबीर साहित्य या संगीत पर विशिष्ट कार्य
6. प.गोपाल मिश्र सम्मान- कविता
7. नारायण लाल परमार सम्मान - गीत-नवगीत, बाल साहित्य एवं कविता
8. डॉ.बल्देव प्रसाद मिश्र सम्मान - कहानी आध्यात्मिक साहित्य
9. डॉ.कन्हैया लाल शर्मा सम्मान - पर्यावरण, (लेखन सहित)
10. माधव राव सप्रे सम्मान- लघुकथा विधा में महत्वपूर्ण लेखन
11. दादा अवधूत सम्मान - शिक्षा, शैक्षिक लेखन
12. प्रमोद वर्मा सम्मान - आलोचना
13. रामचंद्र देशमुख सम्मान- लोक पर आधारित लेखन
14. प्रो.शंकर तिवारी सम्मान- पुरातात्विव अनुसंधान या पुरातत्व लेखन
15. प्रवासी सम्मान - विदेश में रहकर हिन्दी में योगदान
16. समरथ गंवईहा सम्मान- व्यंग्य लेखन में उल्लेखनीय कार्य
17. विश्वम्भर नाथ सम्मान- छंद की किसी भी विधा में महत्वपूर्ण लेखन
18. मावजी चावडा सम्मान - बाल साहित्य लेखन, शोध, अनुसंधान
19. मुस्तफा हुसैन सम्मान - गजल विधा में अप्रतिम योगदान या लेखन
20. रजा हैदरी सम्मान- ऊर्दू गजल लेखन
21. राजकुमारी पटनायक सम्मान - भाषा, लोकभाषा हेतु उल्लेखनीय भूमिका
22. हरि ठाकुर सम्मान- समग्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व
23. अनुवाद सम्मान- अनुवाद कार्य
24. अहिन्दीभाषी सम्मान- गैर हिन्दीभाषी द्वारा हिन्दीभाषा पर कार्य
25. प्रथम कृति सम्मान- किसी भी विधा में पहली किताब
26. कृति सम्मान- महत्वपूर्ण अप्रकाशित पांडुलिपि
27. सृजन-श्री सम्मान- किसी भी विशिष्ट किन्तु प्रकाशित कृति
नियमः-
प्रथम कृति सम्मान के अंतर्गत नये रचनाकार की अप्रकाशित पांडुलिपि को चयन उपरांत प्रकाशित की जायेगी । जिसकी 100 प्रतियाँ रचनाकार को प्रदान की जायेगी । इसमें इस वर्ष कविता, या ललित निंबध विधा पर ही विचार किया जायेगा । प्रवासी सम्मान हेतु उन हिन्दी रचनाकारों पर विचार किया जायेगा जो स्थायी रुप से भारत से बाहर किसी देश में रह रहे हों ।
कृति सम्मान हेतु किसी वरिष्ठ रचनाकार की प्रकाशित या अप्रकाशित किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण पांडुलिपि को चयन उपरांत प्रकाशित की जायेगी । जिसकी 100 प्रतियाँ रचनाकार को प्रदान की जायेगी । इसमें इस वर्ष आलोचना या ललित निंबध विधा पर ही विचार किया जायेगा ।
हिन्दी गौरव सम्मान हेतु अपने बेबसाईट या ब्लाग का विस्तृत विवरण, तकनीकी पक्ष, प्रवंधन, पता, ई-मेल आदि हमारे पते पर भेजना होगा । सभी सम्मान हेतु रचनाकार स्वयं या उसके लिए अनुशंसा करने वाले को रचनाकार सहित स्वयं का बायोडाटा, 1 छायाचित्र, कृति की दो प्रतियां अनिवार्यतः भेजनी होगी । प्रविष्टि वाले डाक में अ.भा.अलंकरण-2006 एवं सम्मान का नाम लिखा होना अपेक्षित रहेगा ।
कोई भी रचनाकार एक से अधिक सम्मान हेतु भी तदनुसार विधा की प्रविष्टियाँ विचारार्थ भेज सकता है ।
अंतिम चयन हेतु गठित उच्च स्तरीय चयन मंडल का निर्णय सर्वमान्य होगा । प्रविष्टि हेतु संपर्कः- अ. जयप्रकाश मानस, संयोजक,चयन समिति, सृजन-सम्मान (प्रादेशिक कार्यालय ), छत्तीसगढ माध्यमिक शिक्षा मंडल, आवासीय कॉलोनी, पेंशनवाडा, रायपुर, छत्तीसगढ, पिन-492001, (भारत)
आ. E-mail : srijansamman@yahoo.co.in या rathjayprakash@gmail.com
सत्यनारायण शर्मा
अध्यक्ष
सृजन-सम्मान, छ्त्तीसगढ
8888888गूगल ने तो यह ठान ही लिया लगता है कि वह जालघरों का नक्शा ही बदल कर रख देगा. वर्ष 2005 में जितनी बातें और अफ़वाहें गूगल के क्रियाकलापों के बारे में हुईं और उड़ीं, उतनी अन्य किसी भी जाल-सेवा के बारे में नहीं हुईं. इस दौरान सबसे बड़ी अफ़वाह यह रही कि गूगल ने कमर कस ली है कि वह ओपनऑफ़िस.ऑर्ग जो कि मुक्त स्रोत का ऑफ़िस सूट है, उसे परिवर्धित कर उसे जाल-अनुप्रयोग के रूप में जारी करने वाला है, जिससे कि उपयोक्ताओं को अपने कम्प्यूटर तंत्र में किसी ऑफ़िस अनुप्रयोग को संस्थापित करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी. उपयोक्ता अपने ब्राउज़र के जरिए ही, गूगल के वेब-सर्वरों पर स्थापित जीवंत ऑफ़िस सूट का हर प्रकार मुक्त एवं मुफ़्त इस्तेमाल कर सकेगा और वहाँ अपनी फ़ाइलों को भंडारित भी कर सकेगा. इस अफ़वाह के दरमियान माइक्रोसॉफ़्ट के कान भी खड़े हुए और उसने भी विंडोज़ लाइव की घोषणा कर डाली और माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस सूट को एक प्रकार से जाल-अनुप्रयोग के रूप में ब्राउज़र के जरिए ही इस्तेमाल के लिए जारी करने के लिए उसका घनघोर परीक्षणों का दौर जारी है.
आने वाले कुछ समय के भीतर, आमतौर पर लगभग सभी विशिष्ट अनुप्रयोग, जाल-अनुप्रयोग के रूप में ही हमारे सामने उपस्थित होंगे, और हमें अपने कम्प्यूटर पर ऑपरेटिंग सिस्टम का कर्नेल और एक छुद्र किस्म के ब्राउज़र के अलावा अन्य किसी अनुप्रयोग की आवश्यकता ही नहीं रहेगी. सारा तामझाम सर्वरों पर होगा, और संभवतः सभी के निजी-व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए मुक्त और मुफ़्त ही रहेगा. आइए देखते हैं कि वर्ष 2005 में जाल-अनुप्रयोगों की दुनिया में कुछ नायाब क़िस्म के अनुप्रयोगों ने, जिनमें अधिकतर निजी-व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए मुफ़्त उपलब्ध हैं, किस तरह हमारी कम्प्यूटिंग दुनिया बदलने की पुरजोर कोशिशें कीं:
1 जाल-स्थल आधारित शब्द संसाधक माइक्रोसॉफ़्ट का ऑफ़िस लाइव अभी तो कुछ विशिष्ट आमंत्रित बीटा जाँचकर्ताओं तक सीमित है, और गूगल का जाल-स्थल आधारित शब्द संसाधक अभी अफ़वाहों के बीच फंसा हुआ है. मगर, इस बीच कुछ अच्छे ऑफ़िस-नुमा अनुप्रयोग जारी किए जा चुके हैं जो जाल-स्थल आधारित हैं और सचमुच उपयोगी हैं. इनमें आने वाले समय में निश्चित ही सुधार होगा और एक दिन सचमुच वे हमारी कम्प्यूटिंग आदतों को बदलकर रख देंगे. वर्ष 2005 में जाल-स्थल आधारित कुछ अच्छे शब्द संसाधक जारी किए गए – जिनमें राइटली, जॉट-स्पॉट-लाइव, वेब-नोट , थिंकफ्री तथा टाइनी-एमसीई सम्मिलित हैं.
राइटली में आपको पंजीकृत होकर एक खाता खोलना होता है, तत्पश्चात् न सिर्फ आप अपने ब्राउजर पर ही एक बढ़िया शब्द संसाधक का ऑनलाइन इस्तेमाल कर सकेंगे, बल्कि अपनी फ़ाइलों को ऑनलाइन भंडारित भी कर सकेंगे. यही नहीं, आप अपनी फ़ाइलों को अन्य दूसरे उपयोक्ताओं के साथ सम्मिलित रूप से संपादित भी कर सकेंगे. इसी तरह की भिन्न-भिन्न सुविधाएँ वेब-नोट, जॉट-स्पॉट-लाइव तथा टाइनी-एमसीई में भी मिलेंगी. राइटली एजेक्स तकनॉलाज़ी पर आधारित है और ब्राउज़र पर एक सम्पूर्ण शब्द संसाधक का अनुभव प्रदान करता है.
2 जाल-स्थल आधारित व्यापारिक अनुप्रयोग छोटे-मोटे व्यापार को संभालने के लिए अब आपको किसी किस्म के मंहगे व्यापारिक अनुप्रयोगों को खरीद कर अपने कम्प्यूटर पर संस्थापित करने की आवश्यकता नहीं है. ब्राउज़र आधारित जाल-स्थल के कई अनुप्रयोग हैं जो अब आपकी समस्त जरूरतों को पूरा करने में पूर्ण रुपेण सक्षम हैं. सेकण्ड साइट नाम का जाल-स्थल आधारित अनुप्रयोग बिलिंग तथा एनवाइसिंग की समस्त जरूरतों को एक ही स्थल पर नियंत्रित करने देता है. इसी प्रकार नेटवर्थ-आईक्यू से आप अपने व्यक्तिगत आय-व्यय का प्रबंध कर सकते हैं, तो बैकपैक के जरिए अपना व्यक्तिगत-व्यापारिक-जानकारी प्रबंधन का कार्य कर सकते हैं.
3 जाल-स्थल आधारित ई-मेल सेवा गूगल का जाल-स्थल आधारित ई-मेल सेवा जी-मेल निःसंदेह वर्ष 2005 का सर्वश्रेष्ठ ई-मेल सेवा माना जा सकता है. ई-मेल को सदा-सर्वदा के लिए भंडारित रखने के साथ ही पॉप-3 एक्सेस सुविधा, 2 गी.बा. मेमोरी जो कि घड़ी की टिक-टिक के साथ बढ़ती रहती है, तथा सम्पूर्ण यूनीकोड समर्थन इस सेवा को नायाब बना देते हैं. सिटाडेल एजेक्स आधारित ईमेल सेवा है – जिस तरह का अनुभव आप आउटलुक एक्सप्रेस में करते हैं – उसी तरह का अनुभव यह जाल-स्थल आधारित अनुप्रयोग आपको देता है. याहू मेल के नए संस्करण का भी परीक्षण चल रहा है जिसमें लगभग इसी तरह की सुविधाएँ उपयोक्ताओं को मिलेंगी.
4 जाल-स्थल पर फ़ाइल भंडारण सेवा जाल स्थल पर अब आप अपनी फ़ाइलों को सदा सर्वदा के लिए सुरक्षित रख सकते हैं. वह भी बिना किसी खर्च के या अत्यंत न्यूनतम खर्च के. यदि आपके पास जीमेल खाता है तो कुछ अनुप्रयोगों का इस्तेमाल कर आप जीमेल के खाते को ऑनलाइन डिस्क की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं जहाँ आपकी फ़ाइलें सुरक्षित तो रहेंगी ही, विश्व में किसी भी कोने से इंटरनेट के जरिए इन पर पहुँचा जा सकता है. जीमेल को ऑनलाइन डिस्क की तरह इस्तेमाल करने के लिए तो भले ही आपको कुछ अतिरिक्त अनुप्रयोगों की जरूरत होगी, और ऊपर से गूगल की शर्तों के विपरीत होगी, पर जाल-स्थल पर ऐसे कई ऑनलाइन भंडारण सेवाएँ हैं जिनका इस्तेमाल बखूबी किया जा सकता है. ओपनमाई जाल-स्थल आधारित भंडारण सेवा है जो आपको 1 गी.बा. तक फ़ाइलों को मुफ़्त भंडारित करने की सुविधा देता है. ओमनीड्राइव, आलमाईडाटा, स्ट्रीमलोड तथा सेंडस्पेस भी ऐसी ही साइटें हैं जहाँ आप अपनी फ़ाइलों को जाल-स्थल पर ऑनलाइन सुरक्षित रख सकते हैं.
5 चित्र भंडारण एवं साझा डिज़िटल कैमरों ने हर व्यक्ति को फोटोग्राफर बनाकर रख दिया है. बिना किसी आवृत्तिक खर्च के आप मुफ़्त में हजारों-हजार डिजिटल फोटो खींच सकते हैं. अब समस्या इन्हें भंडारित करने की है. जाल-स्थल जैसा उपयुक्त स्थल और कोई हो सकता है भला? फ़्लिकर, फोटोबकेटग्लाइड-डिजिटल जैसी अनेकानेक सेवाएँ आपके लिए तैयार हैं जो आपके डिजिटल फोटो को जाल-स्थल पर न सिर्फ भंडारित करती हैं, बल्कि उन्हें सार्वजनिक या मित्रों-परिचितों के बीच साझा करने देती हैं.
6 ऑनलाइन कैलेण्डर एवं कार्य-सूची अब जब आपका अधिकांश समय जाल-स्थलों के भ्रमण या जाल-स्थल के जरिए कार्य पर बीतता है तो फिर आपने अपना कैलेण्डर एवं कार्य सूची (टू डू लिस्ट) अपने कम्प्यूटर पर क्यों बना रखा है? जबकि जाल-स्थल आधारित कुछ बहुत ही खूबसूरत ऑनलाइन कैलेण्डर आपकी हर किस्म की सेवा करने को तत्पर, तैयार बैठे हैं? हिपकैल, एयरसेट, किको , वू2डू तथा कैलेण्डर-हब ऐसे ही कुछ जाल-अनुप्रयोग हैं जो आपकी दैनंदिनी कार्यों को सालों साल संभाल सकते हैं – उनका लेखा जोखा रख सकते हैं – आपको स्मरण दिला सकते हैं और न जाने क्या-क्या कर सकते हैं.
7 जाल-स्थल के सामाजिक पृष्ठ-चिह्नक अरबों-खरबों की संख्या में उपलब्ध जाल-पृष्ठों में से काम की चीजें ढूंढ निकालना तथा उन पृष्ठों को याद रखना कितना मुश्किल कार्य होता जा रहा है, यह तो आप भी अनुभव करते होंगे. आपकी इन्हीं मुश्किलों को हल करने के लिए जाल-स्थल पर कई पृष्ठ-चिह्नक मिलेंगे, जिनका इस्तेमाल कर न सिर्फ आप अपने व्यक्तिगत-निजी-गोपनीय या सार्वजनिक पृष्ठों को चिह्नित कर जाल-स्थल पर ही रख छोड़ सकते हैं. जिसे कालान्तर में परिवर्तित भी किया जा सकता है. सामाजिक पृष्ठ-चिह्नों के जरिए अच्छे, सचमुच काम के जाल-स्थलों पर आसानी से पहुँचा जा सकता है एवं उन्हें न सिर्फ श्रेणी बद्ध किया जा सकता है, बल्कि और भी अनेक रुपों में इस्तेमाल किया जा सकता है. सामाजिक पृष्ठ-चिह्नक में सर्वाधिक प्रसिद्ध डेलिशियस सेवा है, परंतु कई अन्य अच्छे सामाजिक पृष्ठ-चिह्नकों में शेडोज़, सिम्पी, स्पर्ल इत्यादि शामिल हैं *******.
8888888*****. यूँ तो रुपए के बारे में इस दफा के अनुगूंज के विषय से मेल खाता एक व्यंग्य पहले ही लिखा जा चुका है. पर उसे यहाँ चिपकाने से बात नहीं बनेगी. कुछ नई बात लिखनी होगी.
बात बहुत पुरानी नहीं है. चार-पांच साल पहले तक चिल्लर की भयानक मारा-मारी रहती थी. सरकार को एक, दो, और पांच रुपयों के नोट जरूरी तादाद में छापना भारी पड़ रहा था, और मांग के हिसाब से नए नोट छप नहीं पा रहे थे. लिहाजा बाजार में चिल्लर मिलता ही नहीं था. सड़े-गले फटे पुराने नोटों को सेलो टेप से चिपका-चिपका कर काम में लिया जाता था. कुछ दुकानदारों ने चिल्लर के बदले टॉफ़ियाँ देना शुरू कर दी थीं तो कुछ ने अपने कूपन ही छपवा लिए थे कि भाई, अगली दफा इस कूपन को दे कर बदले में कुछ ले लेना. कुछ स्थानों में बाजार के कुछ दूकानदारों ने तो साझा समझौता कर लिया था और एक सम्मिलित कूपन निकाला गया था, उसे वहां के तमाम दुकानदार चिल्लर नोटों के स्थान पर बाकायदा इस्तेमाल करते थे. चिल्लर लेने के लिए आपको प्रीमियम अदा करना पड़ता था. बिचौलिए सक्रिय थे जो आपको प्रीमियम पर चिल्लर देते थे. यानी जब आपको 100 रुपए के चिल्लर लेना होता था तो एवज में आपको 110 रुपए देना होते थे.
चिल्लरों की मारामारी खत्म करने के लिए सरकार ने छोटे नोटों की जगह सिक्के चला दिए. ये सिक्के भी यूरोप से ढलवा कर आयात किए गए. बाजार को सिक्कों से पाट दिया गया. अब स्थिति यह है कि कहीं भी बाजार जाते हैं, कुछ खरीदारी कर घर आते हैं तो जेब हल्का होने के बजाए भारी हो जाता है - एक, दो और पांच रुपयों के सिक्कों से जेब भर जाता है. अब दुकानदार ज्यादा चिल्लर लेते नहीं. कई दुकानदारों के पास लाखों रुपयों के चिल्लर जमा हो गए हैं. बैंकें भी चिल्लर लेती नहीं. ग्राहक उल्टे सामान लेकर चिल्लर थमाए जा रहे हैं. उन्हें अपने चिल्लर को ठिकाने लगाने के लिए अब प्रीमियम अदा करना पड़ रहा है. बिचौलिए अब भी सक्रिय हैं. अब वे आपके 110 रुपए के चिल्लर सिक्कों के बदले 100 रुपये का कड़कड़ाता नोट पकड़ा देते हैं.
इस बीच, एक, दो और पांच रुपयों के नोटों के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं. एक और दो के नोट तो छपना ही बन्द हो गए हैं. यदा-कदा पांच रुपए के नोट की सूरत कहीं दिखती है, तो दिल को सुकून सा मिलता है. उसे सहेज कर रखने का मन करता है.
शुभ कार्यों में शगुन के इक्यावन, एक-सौ-एक और एक-सौ-ग्यारह रुपयों के भेंट का फंडा बदलना होगा. या तो लिफ़ाफ़े में अजीब सा कॉम्बीनेशन एक रूपये के सिक्के के साथ पचास या सौ का पत्ता रखें या कोरा पचास - सौ का नोट. शुभ कार्यों के लिए भी एक रुपए का नोट मिलना अब दूभर है.
यूँ तो एक रुपए में सौ पैसे होते हैं. पर अब पैसे का क्या अर्थ रह गया है? सब्जी बाजार में जाओ तो हरा-धनिया का एक डंठल भी पचास पैसे में नहीं मिलता. पैसा अब चलन से बाहर हो चुका है और, जाहिर है, अब इसका महत्व ऐतिहासिक ही रह गया है.
असली और नकली रुपए की बात छोड़ भी दें तो देश में दो-नंबर का रुपया एक नंबर के रुपए से कहीं ज्यादा तादाद में प्रचलन में है. ऐसे में, एक नंबर के रुपये के बने रहने का कोई हक है क्या? रुपया ऐसा हो जिसे देश का हर नागरिक इमानदारी से कमा सके और दो-जून की रोटी खा सके.
रुपया कम से कम ऐसा तो बना ही रहे जिससे कोई बच्चा अपने लिए शक्कर की एक गोली (टॉफ़ी) तो खरीद ही सके.
**-**
88888****.
स्वीडन के गोथनबर्ग विश्वविद्यालय के शिक्षाविदों ने तीन साल के कठिन परिश्रम युक्त सर्वे से यह निष्कर्ष निकाला है कि मनुष्य द्वारा कठिन परिश्रम करके प्राप्त किया गया लक्ष्य ही उसके लिए चिरस्थायी खुशी लेकर आता है.
सर्वे में यह भी उजागर किया गया है कि पैसा, प्यार, सफलता सिर्फ क्षणिक आनंद देते हैं. शीघ्र ही आप इनके आदी हो जाते हैं और खुशी काफूर हो जाती है.
बहुत से लोग जो यह मानते हैं कि जाड़े की गुनगुनी धूप में बिना कोई काम किए आराम फरमाना ही खुशी हासिल करने का सटीक तरीका है, तो यह गलत है.
यह तो रही सर्वे की बात. पता नहीं आप इस सर्वे से कितना इत्तफाक रखते हैं, परंतु लगता है कि सर्वे वालों का साबका मुझ जैसे अलालों से नहीं पड़ा, या उन्होंने मेरे जैसों के विचार जानबूझ कर दर्ज नहीं किए. मुझे तो लगता है कि पूरे विश्व को काम के जुनून में झोंकने की उनकी यह कोई चाल है.
ठिठुरन भरी सर्दी में कम्बल लपेट कर सोने या पूरी दोपहरी धूप में निठल्ले निकाल देने से बढ़कर भला कोई आनन्द हो सकता है? गरमी की लू चल रही हो तो कूलर / एसी लगा कर आनंद से सोफे में लेटे रहने का मजा क्या कम है? बारिश में रिमझिम आवाज़ों के बीच गर्म पकौड़ों के साथ बिताए मजेदार समय को आप कम आंकते हैं?
मैं इस सर्वे को सिरे से खारिज करता हूँ.
मेरे लिए आनंद और परम आनंद का पल तो आराम का पल होता है. कहीं भी कभी भी – सुबह-दोपहर-शाम-रात आराम ही आराम.
**-** व्यंज़लनसीब में न थे शायद आनंद के पल ढूंढने में ही बिता दिए आनंद के पल
गलियों शहरों तलाशा था पर अंततः माथे के पसीने में मिले आनंद के पल
बच्चे की हँसी, कहीं कोयल की कूक क्या नहीं हैं ये परम आनंद के पल
क्या ये बात पता भी है कि वस्तुतः दूसरों की खुशी में ही हैं आनंद के पल
नादान नहीं होगा जो ढूंढता है रवि दूसरों के दुःख में अपने आनंद के पल **-**
लिनक्स = लाल्टू **-**
ये क्या? एक नया समीकरण! लाल्टू = लिनक्स !
इस माह के लिनक्स फ़ॉर यू पत्रिका में लाल्टू जी के लिनक्स प्रेम पर पृष्ठ भर का आलेख छपा है कि कैसे उन्होंने अपने विभाग में ओपन सोर्स के प्रति लोगों में जागरूकता जगाई और कैसे रेडहेट फेदोरा कोर 4, जिसमें हिन्दी पूर्ण का समर्थन है, के जरिए इंटरनेट पर हिन्दी में काम करना शुरू किया.
लाल्टू जी, अगर आप अपने अनुभवों को एक ट्यूटोरियल के रूप में लिख कर प्रकाशित करें तो बहुत से लोग लाभान्वित होंगे जो लिनक्स पर हिन्दी में काम प्रारंभ करने में अड़चनें महसूस करते हैं.
बहरहाल, लाल्टू जी आपको बहुत-2 बधाईयाँ.
**-**
अगर भीषण गर्मियों के दो-एक महीने निकाल दें, जब मेरे पास कम्प्यूटर पर
हिन्दी में लिखने के साधन नहीं थे, तो मुझे खुशी है कि एक तरह से मैं अपने
संकल्प को कुछ हद तक निबाह सका. अगर रचनाकार और निरंतर को भी संकल्प
का हिस्सा शामिल कर लिया जाए, तो आंकड़ा संभवतः आगे भी निकल सकता
है.
इस बीच चिट्ठा जगत में काफी सारे नए लोग आए और खुशी की बात यह
है कि अब बहुत से लोग नियमित लिखने लगे हैं. उम्मीद है वर्ष 2006 में नए
लोगों के आने का सिलसिला और तेज़ी पकड़ेगा, और ढेर सारे लोग नियमित
लिखेंगे. हम पाठकों को पढ़ने के लिए और ढेरों सामग्रियाँ, विविध विषयों की,
पढ़ने को तो मिलेंगी ही, इंटरनेट - हिन्दी समृद्ध भी होता जाएगा.
इस वर्ष के लिए खुद से किए गए कुछ वादे :
************************************.
रचनाकार के लिए नित्य एक रचना का प्रकाशन - प्रयास इस वर्ष भी जारी
रखने की योजना है. देखें, यह प्रयास कब तक चल पाता है. छींटे और बौछारें पर
नित्य लिखने के बजाए नियमित, साप्ताहिक, लिखने की योजना है- कुछ भिन्न
सा – प्रति सोमवार. देखते हैं यह भी कितने सोमवार बिला नागा निकल पाता
है.
इस मौक़े पर, खास तौर से अपने से किए वादों पर - कुछ छींटे उड़ाता यह
व्यंज़ल पेश है:
ईमान से कोई एक मकान बनाओगे
दुनिया को तनिक चलकर दिखाओगे
खुद से किए वादे कभी निबाहे हो
गैरों से किए वादे बहुत निबाहोगे
भूखा बेजार है तमाम मुल्क अब
कितनों को तसल्ली दे के सुलाओगे
बातें बहुत करते हो मगर मौक़े पे
तुम भी चमड़े का सिक्का चलाओगे
मैदाने जंग में अकेले कूद तो गए
देखें किस किसको पानी पिलाओगे
बहुत दिनों से रोया नहीं है रवि
हँसी का एक टुकड़ा उसे दिलाओगे
***-***
त्रिवेणी मेला : जीवन के शाश्वत् सत्य पर हँसने का माद्दा देने
का एक प्रयास
*********************************************************.
रतलाम में एक श्मशान स्थल है त्रिवेणी संगम. इस स्थल पर अति प्राचीन
काल से ही एक कुण्ड (बावड़ी) बना हुआ है, जिसके जल में दाह-संस्कार के पश्चात्
लोग स्नानादि करते हैं. इस श्मशान स्थल पर हर वर्ष, इन्हीं दिनों एक मेला
लगता है. मेले में तमाम हँसी-खुशी के आयोजन होते हैं. मेले में विक्रय के लिए
खेल-खिलौने, खाने-पीने की चीजें, मनोरंजन के लिए तमाशा-झूले इत्यादि तो होते
ही हैं, रात्रि में प्रतिदिन, अलग-अलग दिन कविसम्मेलन, संगीत और नाटक
इत्यादि का आयोजन भी इस दस दिवसीय मेले में किया जाता है. मेले का
उत्साह रतलाम शहर के नागरिकों को तो थोड़ा सा कम, परंतु आसपास के
ग्रामीणों को ज्यादा रहता है और भीड़ की भीड़ खिंची चली आती है. विशाल मेला
खेतों पर लगता है जिसे अस्थाई रूप से साफ सफाई कर तैयार किया गया होता
है, लिहाजा, जब आप मेले में घूम फिर कर वापस आते हैं तो धूल से नहाए हुए
होते हैं.
मेले में उत्साहित लोग जम कर मौज मनाते हैं, खरीदारी करते हैं, खाते-पीते
हैं. श्मशान स्थल के ऐन पार्श्व में.
जीवन के शाश्वत् सत्य, मृत्यु को हंसी खुशी और मौज से स्वीकारने का
इससे सटीक उदाहरण और क्या हो सकता है.
नीचे का चित्र त्रिवेणी मेला स्थल के प्रवेश मार्ग का है. गोधूलि बेला में, मेले
की भीड़ में से उठता धूल का गुबार उड़ता स्पष्ट दिखाई दे रहा है.
मृत्यु के भय को, सांसारिक नश्वरता को, मेले में मौज कर हमने भी धूल के
गुबार में उड़ा दिया ...
********.
88888888
।।सृजन-सम्मान, भारत द्वारा रचनाकारों से प्रविष्टियाँ आमंत्रित
।।
रायपुर । भारत ।। छत्तीसगढ राज्य की बहुआयामी सांस्कृतिक संस्था
"सृजन-सम्मान " की प्रादेशिक कार्यालय द्वारा साहित्य, संस्कृति , भाषा एवं शिक्षा
की विभिन्न 27 विधाओं में प्रतिष्ठित रचनाकारों को पिछले 6 वर्षों से प्रतिवर्ष दिये
जाने वाले वैश्विव स्तर के सम्मान हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित की जा रही हैं । प्रविष्टि
भेजने की अंतिम तिथि 15 अगस्त 2006 है । छत्तीसगढ राज्य के गौरव पुरुषों
की स्मृति में दिये जाने वाले यह सम्मान प्रतिवर्ष आयोजित 2 दिवसीय अखिल
भारतीय साहित्य महोत्सव में प्रदान किये जाते हैं । संस्था द्वारा सम्मान स्वरुप
रचनाकारों को 21, 11, 5, हजार नगद, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह, शॉल, श्रीफल
एवं 500 रुपयों की कृतियाँ प्रदान की जाती हैं । यह सम्मान राज्य के महामहिम
राज्यपाल एवं देश के चुनिंदे वरिष्ठ साहित्यकारों की उपिस्थित में दिया जाता है ।
पुरस्कारों का विवरण निम्नानुसार है –
क्र. सम्मान का नाम विधा, जिस पर प्रविष्टि भेज सकते
हैं
1. हिन्दी गौरव सम्मान- बेबसाईट संपादक या
ब्लाग
2. पद्मश्री मुकुटधर पांडेय सम्मान - लघुपत्रिका संपादन
(अंतरजाल मैग्जीन भी )
3. पद्मभूषण झावरमल्ल शर्मा सम्मान- पत्रकारिता हेतु समर्पित
समग्र व्यक्तित्व
4. महाराज चक्रधर सम्मान- ललित निंबध
5. मंहत बिसाहू दास सम्मान- कबीर साहित्य या संगीत पर
विशिष्ट कार्य
6. प.गोपाल मिश्र सम्मान- कविता
7. नारायण लाल परमार सम्मान - गीत-नवगीत, बाल साहित्य
एवं कविता
8. डॉ.बल्देव प्रसाद मिश्र सम्मान - कहानी आध्यात्मिक
साहित्य
9. डॉ.कन्हैया लाल शर्मा सम्मान - पर्यावरण, (लेखन
सहित)
10. माधव राव सप्रे सम्मान- लघुकथा विधा में महत्वपूर्ण
लेखन
11. दादा अवधूत सम्मान - शिक्षा, शैक्षिक लेखन
12. प्रमोद वर्मा सम्मान - आलोचना
13. रामचंद्र देशमुख सम्मान- लोक पर आधारित लेखन
14. प्रो.शंकर तिवारी सम्मान- पुरातात्विव अनुसंधान या पुरातत्व
लेखन
15. प्रवासी सम्मान - विदेश में रहकर हिन्दी में
योगदान
16. समरथ गंवईहा सम्मान- व्यंग्य लेखन में उल्लेखनीय
कार्य
17. विश्वम्भर नाथ सम्मान- छंद की किसी भी विधा में
महत्वपूर्ण लेखन
18. मावजी चावडा सम्मान - बाल साहित्य लेखन, शोध,
अनुसंधान
19. मुस्तफा हुसैन सम्मान - गजल विधा में अप्रतिम
योगदान या लेखन
20. रजा हैदरी सम्मान- ऊर्दू गजल लेखन
21. राजकुमारी पटनायक सम्मान - भाषा, लोकभाषा हेतु
उल्लेखनीय भूमिका
22. हरि ठाकुर सम्मान- समग्र व्यक्तित्व एवं
कृतित्व
23. अनुवाद सम्मान- अनुवाद कार्य
24. अहिन्दीभाषी सम्मान- गैर हिन्दीभाषी द्वारा
हिन्दीभाषा पर कार्य
25. प्रथम कृति सम्मान- किसी भी विधा में पहली
किताब
26. कृति सम्मान- महत्वपूर्ण अप्रकाशित
पांडुलिपि
27. सृजन-श्री सम्मान- किसी भी विशिष्ट किन्तु प्रकाशित
कृति
नियमः-
प्रथम कृति सम्मान के अंतर्गत नये रचनाकार की अप्रकाशित पांडुलिपि को
चयन उपरांत प्रकाशित की जायेगी । जिसकी 100 प्रतियाँ रचनाकार को प्रदान की
जायेगी । इसमें इस वर्ष कविता, या ललित निंबध विधा पर ही विचार
किया जायेगा ।
प्रवासी सम्मान हेतु उन हिन्दी रचनाकारों पर विचार किया जायेगा जो स्थायी रुप
से भारत से बाहर किसी देश में रह रहे हों ।
कृति सम्मान हेतु किसी वरिष्ठ रचनाकार की प्रकाशित या अप्रकाशित किन्तु
अत्यंत महत्वपूर्ण पांडुलिपि को चयन उपरांत प्रकाशित की जायेगी । जिसकी 100
प्रतियाँ रचनाकार को प्रदान की जायेगी । इसमें इस वर्ष आलोचना या ललित
निंबध विधा पर ही विचार किया जायेगा ।
हिन्दी गौरव सम्मान हेतु अपने बेबसाईट या ब्लाग का विस्तृत विवरण,
तकनीकी पक्ष, प्रवंधन, पता, ई-मेल आदि हमारे पते पर भेजना होगा ।
सभी सम्मान हेतु रचनाकार स्वयं या उसके लिए अनुशंसा करने वाले को
रचनाकार सहित स्वयं का बायोडाटा, 1 छायाचित्र, कृति की दो प्रतियां अनिवार्यतः
भेजनी होगी ।
प्रविष्टि वाले डाक में अ.भा.अलंकरण-2006 एवं सम्मान का नाम लिखा होना
अपेक्षित रहेगा ।
कोई भी रचनाकार एक से अधिक सम्मान हेतु भी तदनुसार विधा की
प्रविष्टियाँ विचारार्थ भेज सकता है ।
अंतिम चयन हेतु गठित उच्च स्तरीय चयन मंडल का निर्णय सर्वमान्य होगा
।
प्रविष्टि हेतु संपर्कः-
अ. जयप्रकाश मानस, संयोजक,चयन समिति, सृजन-सम्मान (प्रादेशिक कार्यालय
), छत्तीसगढ माध्यमिक शिक्षा मंडल, आवासीय कॉलोनी, पेंशनवाडा, रायपुर,
छत्तीसगढ, पिन-492001, (भारत)
आ. E-mail : srijansamman@yahoo.co.in या
rathjayprakash@gmail.com
सत्यनारायण शर्मा
अध्यक्ष
सृजन-सम्मान, छ्त्तीसगढ
8888888
गूगल ने तो यह ठान ही लिया लगता है कि वह जालघरों का नक्शा ही
बदल कर रख देगा. वर्ष 2005 में जितनी बातें और अफ़वाहें गूगल के क्रियाकलापों
के बारे में हुईं और उड़ीं, उतनी अन्य किसी भी जाल-सेवा के बारे में नहीं हुईं. इस
दौरान सबसे बड़ी अफ़वाह यह रही कि गूगल ने कमर कस ली है कि वह
ओपनऑफ़िस.ऑर्ग जो कि मुक्त स्रोत का ऑफ़िस सूट है, उसे परिवर्धित कर उसे
जाल-अनुप्रयोग के रूप में जारी करने वाला है, जिससे कि उपयोक्ताओं को अपने
कम्प्यूटर तंत्र में किसी ऑफ़िस अनुप्रयोग को संस्थापित करने की आवश्यकता ही
नहीं रहेगी. उपयोक्ता अपने ब्राउज़र के जरिए ही, गूगल के वेब-सर्वरों पर स्थापित
जीवंत ऑफ़िस सूट का हर प्रकार मुक्त एवं मुफ़्त इस्तेमाल कर सकेगा और वहाँ
अपनी फ़ाइलों को भंडारित भी कर सकेगा. इस अफ़वाह के दरमियान माइक्रोसॉफ़्ट
के कान भी खड़े हुए और उसने भी विंडोज़ लाइव की घोषणा कर डाली और
माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस सूट को एक प्रकार से जाल-अनुप्रयोग के रूप में ब्राउज़र के
जरिए ही इस्तेमाल के लिए जारी करने के लिए उसका घनघोर परीक्षणों का दौर
जारी है.
आने वाले कुछ समय के भीतर, आमतौर पर लगभग सभी विशिष्ट अनुप्रयोग,
जाल-अनुप्रयोग के रूप में ही हमारे सामने उपस्थित होंगे, और हमें अपने कम्प्यूटर
पर ऑपरेटिंग सिस्टम का कर्नेल और एक छुद्र किस्म के ब्राउज़र के अलावा अन्य
किसी अनुप्रयोग की आवश्यकता ही नहीं रहेगी. सारा तामझाम सर्वरों पर होगा,
और संभवतः सभी के निजी-व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए मुक्त और मुफ़्त ही रहेगा.
आइए देखते हैं कि वर्ष 2005 में जाल-अनुप्रयोगों की दुनिया में कुछ नायाब
क़िस्म के अनुप्रयोगों ने, जिनमें अधिकतर निजी-व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए मुफ़्त
उपलब्ध हैं, किस तरह हमारी कम्प्यूटिंग दुनिया बदलने की पुरजोर कोशिशें
कीं:
1
जाल-स्थल आधारित शब्द संसाधक
माइक्रोसॉफ़्ट का ऑफ़िस लाइव अभी तो कुछ विशिष्ट आमंत्रित बीटा जाँचकर्ताओं
तक सीमित है, और गूगल का जाल-स्थल आधारित शब्द संसाधक अभी अफ़वाहों
के बीच फंसा हुआ है. मगर, इस बीच कुछ अच्छे ऑफ़िस-नुमा अनुप्रयोग जारी
किए जा चुके हैं जो जाल-स्थल आधारित हैं और सचमुच उपयोगी हैं. इनमें आने
वाले समय में निश्चित ही सुधार होगा और एक दिन सचमुच वे हमारी कम्प्यूटिंग
आदतों को बदलकर रख देंगे. वर्ष 2005 में जाल-स्थल आधारित कुछ अच्छे शब्द
संसाधक जारी किए गए – जिनमें राइटली, जॉट-स्पॉट-लाइव, वेब-नोट , थिंकफ्री तथा टाइनी-एमसीई
सम्मिलित हैं.
राइटली में आपको पंजीकृत होकर एक खाता खोलना होता है, तत्पश्चात् न
सिर्फ आप अपने ब्राउजर पर ही एक बढ़िया शब्द संसाधक का ऑनलाइन इस्तेमाल
कर सकेंगे, बल्कि अपनी फ़ाइलों को ऑनलाइन भंडारित भी कर सकेंगे. यही नहीं,
आप अपनी फ़ाइलों को अन्य दूसरे उपयोक्ताओं के साथ सम्मिलित रूप से संपादित
भी कर सकेंगे. इसी तरह की भिन्न-भिन्न सुविधाएँ वेब-नोट, जॉट-स्पॉट-लाइव
तथा टाइनी-एमसीई में भी मिलेंगी. राइटली एजेक्स तकनॉलाज़ी पर आधारित है
और ब्राउज़र पर एक सम्पूर्ण शब्द संसाधक का अनुभव प्रदान करता है.
2
जाल-स्थल आधारित व्यापारिक अनुप्रयोग
छोटे-मोटे व्यापार को संभालने के लिए अब आपको किसी किस्म के मंहगे
व्यापारिक अनुप्रयोगों को खरीद कर अपने कम्प्यूटर पर संस्थापित करने की
आवश्यकता नहीं है. ब्राउज़र आधारित जाल-स्थल के कई अनुप्रयोग हैं जो अब
आपकी समस्त जरूरतों को पूरा करने में पूर्ण रुपेण सक्षम हैं. सेकण्ड साइट नाम का
जाल-स्थल आधारित अनुप्रयोग बिलिंग तथा एनवाइसिंग की समस्त जरूरतों को
एक ही स्थल पर नियंत्रित करने देता है. इसी प्रकार नेटवर्थ-आईक्यू से आप
अपने व्यक्तिगत आय-व्यय का प्रबंध कर सकते हैं, तो बैकपैक के जरिए अपना
व्यक्तिगत-व्यापारिक-जानकारी प्रबंधन का कार्य कर सकते हैं.
3
जाल-स्थल आधारित ई-मेल सेवा
गूगल का जाल-स्थल आधारित ई-मेल सेवा जी-मेल निःसंदेह वर्ष 2005 का
सर्वश्रेष्ठ ई-मेल सेवा माना जा सकता है. ई-मेल को सदा-सर्वदा के लिए भंडारित
रखने के साथ ही पॉप-3 एक्सेस सुविधा, 2 गी.बा. मेमोरी जो कि घड़ी की
टिक-टिक के साथ बढ़ती रहती है, तथा सम्पूर्ण यूनीकोड समर्थन इस सेवा को
नायाब बना देते हैं. सिटाडेल एजेक्स आधारित
ईमेल सेवा है – जिस तरह का अनुभव आप आउटलुक एक्सप्रेस में करते हैं – उसी
तरह का अनुभव यह जाल-स्थल आधारित अनुप्रयोग आपको देता है. याहू मेल के
नए संस्करण का भी परीक्षण चल रहा है जिसमें लगभग इसी तरह की सुविधाएँ
उपयोक्ताओं को मिलेंगी.
4
जाल-स्थल पर फ़ाइल भंडारण सेवा
जाल स्थल पर अब आप अपनी फ़ाइलों को सदा सर्वदा के लिए सुरक्षित रख
सकते हैं. वह भी बिना किसी खर्च के या अत्यंत न्यूनतम खर्च के. यदि आपके
पास जीमेल खाता है तो कुछ अनुप्रयोगों का इस्तेमाल कर आप जीमेल के खाते
को ऑनलाइन डिस्क की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं जहाँ आपकी फ़ाइलें सुरक्षित
तो रहेंगी ही, विश्व में किसी भी कोने से इंटरनेट के जरिए इन पर पहुँचा जा
सकता है. जीमेल को ऑनलाइन डिस्क की तरह इस्तेमाल करने के लिए तो भले
ही आपको कुछ अतिरिक्त अनुप्रयोगों की जरूरत होगी, और ऊपर से गूगल की शर्तों
के विपरीत होगी, पर जाल-स्थल पर ऐसे कई ऑनलाइन भंडारण सेवाएँ हैं जिनका
इस्तेमाल बखूबी किया जा सकता है. ओपनमाई जाल-स्थल आधारित
भंडारण सेवा है जो आपको 1 गी.बा. तक फ़ाइलों को मुफ़्त भंडारित करने की
सुविधा देता है. ओमनीड्राइव, आलमाईडाटा, स्ट्रीमलोड तथा सेंडस्पेस भी ऐसी ही
साइटें हैं जहाँ आप अपनी फ़ाइलों को जाल-स्थल पर ऑनलाइन सुरक्षित रख
सकते हैं.
5 चित्र
भंडारण एवं साझा
डिज़िटल कैमरों ने हर व्यक्ति को फोटोग्राफर बनाकर रख दिया है. बिना किसी
आवृत्तिक खर्च के आप मुफ़्त में हजारों-हजार डिजिटल फोटो खींच सकते हैं. अब
समस्या इन्हें भंडारित करने की है. जाल-स्थल जैसा उपयुक्त स्थल और कोई हो
सकता है भला? फ़्लिकर, फोटोबकेटग्लाइड-डिजिटल जैसी
अनेकानेक सेवाएँ आपके लिए तैयार हैं जो आपके डिजिटल फोटो को जाल-स्थल
पर न सिर्फ भंडारित करती हैं, बल्कि उन्हें सार्वजनिक या मित्रों-परिचितों के बीच
साझा करने देती हैं.
6 ऑनलाइन कैलेण्डर एवं कार्य-सूची
अब जब आपका अधिकांश समय जाल-स्थलों के भ्रमण या जाल-स्थल के जरिए
कार्य पर बीतता है तो फिर आपने अपना कैलेण्डर एवं कार्य सूची (टू डू लिस्ट)
अपने कम्प्यूटर पर क्यों बना रखा है? जबकि जाल-स्थल आधारित कुछ बहुत ही
खूबसूरत ऑनलाइन कैलेण्डर आपकी हर किस्म की सेवा करने को तत्पर, तैयार
बैठे हैं? हिपकैल, एयरसेट, किको , वू2डू तथा कैलेण्डर-हब ऐसे ही कुछ
जाल-अनुप्रयोग हैं जो आपकी दैनंदिनी कार्यों को सालों साल संभाल सकते हैं –
उनका लेखा जोखा रख सकते हैं – आपको स्मरण दिला सकते हैं और न जाने
क्या-क्या कर सकते हैं.
7
जाल-स्थल के सामाजिक पृष्ठ-चिह्नक
अरबों-खरबों की संख्या में उपलब्ध जाल-पृष्ठों में से काम की चीजें ढूंढ निकालना
तथा उन पृष्ठों को याद रखना कितना मुश्किल कार्य होता जा रहा है, यह तो आप
भी अनुभव करते होंगे. आपकी इन्हीं मुश्किलों को हल करने के लिए जाल-स्थल
पर कई पृष्ठ-चिह्नक मिलेंगे, जिनका इस्तेमाल कर न सिर्फ आप अपने
व्यक्तिगत-निजी-गोपनीय या सार्वजनिक पृष्ठों को चिह्नित कर जाल-स्थल पर ही
रख छोड़ सकते हैं. जिसे कालान्तर में परिवर्तित भी किया जा सकता है.
सामाजिक पृष्ठ-चिह्नों के जरिए अच्छे, सचमुच काम के जाल-स्थलों पर आसानी से
पहुँचा जा सकता है एवं उन्हें न सिर्फ श्रेणी बद्ध किया जा सकता है, बल्कि और
भी अनेक रुपों में इस्तेमाल किया जा सकता है. सामाजिक पृष्ठ-चिह्नक में सर्वाधिक
प्रसिद्ध डेलिशियस सेवा है, परंतु
कई अन्य अच्छे सामाजिक पृष्ठ-चिह्नकों में शेडोज़, सिम्पी, स्पर्ल इत्यादि शामिल हैं
*******.
8888888
*****.
यूँ तो रुपए के बारे में इस दफा के अनुगूंज के विषय से मेल खाता एक व्यंग्य पहले ही लिखा जा चुका
है. पर उसे यहाँ चिपकाने से बात नहीं बनेगी. कुछ नई बात लिखनी
होगी.
बात बहुत पुरानी नहीं है. चार-पांच साल पहले तक चिल्लर की भयानक
मारा-मारी रहती थी. सरकार को एक, दो, और पांच रुपयों के नोट जरूरी तादाद
में छापना भारी पड़ रहा था, और मांग के हिसाब से नए नोट छप नहीं पा रहे थे.
लिहाजा बाजार में चिल्लर मिलता ही नहीं था. सड़े-गले फटे पुराने नोटों को सेलो
टेप से चिपका-चिपका कर काम में लिया जाता था. कुछ दुकानदारों ने चिल्लर के
बदले टॉफ़ियाँ देना शुरू कर दी थीं तो कुछ ने अपने कूपन ही छपवा लिए थे कि
भाई, अगली दफा इस कूपन को दे कर बदले में कुछ ले लेना. कुछ स्थानों में
बाजार के कुछ दूकानदारों ने तो साझा समझौता कर लिया था और एक
सम्मिलित कूपन निकाला गया था, उसे वहां के तमाम दुकानदार चिल्लर नोटों के
स्थान पर बाकायदा इस्तेमाल करते थे. चिल्लर लेने के लिए आपको प्रीमियम
अदा करना पड़ता था. बिचौलिए सक्रिय थे जो आपको प्रीमियम पर चिल्लर देते
थे. यानी जब आपको 100 रुपए के चिल्लर लेना होता था तो एवज में आपको
110 रुपए देना होते थे.
चिल्लरों की मारामारी खत्म करने के लिए सरकार ने छोटे नोटों की जगह
सिक्के चला दिए. ये सिक्के भी यूरोप से ढलवा कर आयात किए गए. बाजार को
सिक्कों से पाट दिया गया. अब स्थिति यह है कि कहीं भी बाजार जाते हैं, कुछ
खरीदारी कर घर आते हैं तो जेब हल्का होने के बजाए भारी हो जाता है - एक,
दो और पांच रुपयों के सिक्कों से जेब भर जाता है. अब दुकानदार ज्यादा चिल्लर
लेते नहीं. कई दुकानदारों के पास लाखों रुपयों के चिल्लर जमा हो गए हैं. बैंकें भी
चिल्लर लेती नहीं. ग्राहक उल्टे सामान लेकर चिल्लर थमाए जा रहे हैं. उन्हें अपने
चिल्लर को ठिकाने लगाने के लिए अब प्रीमियम अदा करना पड़ रहा है. बिचौलिए
अब भी सक्रिय हैं. अब वे आपके 110 रुपए के चिल्लर सिक्कों के बदले 100 रुपये
का कड़कड़ाता नोट पकड़ा देते हैं.
इस बीच, एक, दो और पांच रुपयों के नोटों के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं. एक
और दो के नोट तो छपना ही बन्द हो गए हैं. यदा-कदा पांच रुपए के नोट की
सूरत कहीं दिखती है, तो दिल को सुकून सा मिलता है. उसे सहेज कर रखने का
मन करता है.
शुभ कार्यों में शगुन के इक्यावन, एक-सौ-एक और एक-सौ-ग्यारह रुपयों के
भेंट का फंडा बदलना होगा. या तो लिफ़ाफ़े में अजीब सा कॉम्बीनेशन एक रूपये
के सिक्के के साथ पचास या सौ का पत्ता रखें या कोरा पचास - सौ का नोट. शुभ
कार्यों के लिए भी एक रुपए का नोट मिलना अब दूभर है.
यूँ तो एक रुपए में सौ पैसे होते हैं. पर अब पैसे का क्या अर्थ रह गया है?
सब्जी बाजार में जाओ तो हरा-धनिया का एक डंठल भी पचास पैसे में नहीं
मिलता. पैसा अब चलन से बाहर हो चुका है और, जाहिर है, अब इसका महत्व
ऐतिहासिक ही रह गया है.
असली और नकली रुपए की बात छोड़ भी दें तो देश में दो-नंबर का रुपया
एक नंबर के रुपए से कहीं ज्यादा तादाद में प्रचलन में है. ऐसे में, एक नंबर के
रुपये के बने रहने का कोई हक है क्या? रुपया ऐसा हो जिसे देश का हर नागरिक
इमानदारी से कमा सके और दो-जून की रोटी खा सके.
रुपया कम से कम ऐसा तो बना ही रहे जिससे कोई बच्चा अपने लिए
शक्कर की एक गोली (टॉफ़ी) तो खरीद ही सके.
**-**
88888
****.
स्वीडन के गोथनबर्ग विश्वविद्यालय के शिक्षाविदों ने तीन साल के कठिन
परिश्रम युक्त सर्वे से यह निष्कर्ष निकाला है कि मनुष्य द्वारा कठिन परिश्रम करके
प्राप्त किया गया लक्ष्य ही उसके लिए चिरस्थायी खुशी लेकर आता है.
सर्वे में यह भी उजागर किया गया है कि पैसा, प्यार, सफलता सिर्फ क्षणिक
आनंद देते हैं. शीघ्र ही आप इनके आदी हो जाते हैं और खुशी काफूर हो जाती
है.
बहुत से लोग जो यह मानते हैं कि जाड़े की गुनगुनी धूप में बिना कोई काम
किए आराम फरमाना ही खुशी हासिल करने का सटीक तरीका है, तो यह गलत
है.
यह तो रही सर्वे की बात. पता नहीं आप इस सर्वे से कितना इत्तफाक रखते
हैं, परंतु लगता है कि सर्वे वालों का साबका मुझ जैसे अलालों से नहीं पड़ा, या
उन्होंने मेरे जैसों के विचार जानबूझ कर दर्ज नहीं किए. मुझे तो लगता है कि पूरे
विश्व को काम के जुनून में झोंकने की उनकी यह कोई चाल है.
ठिठुरन भरी सर्दी में कम्बल लपेट कर सोने या पूरी दोपहरी धूप में निठल्ले
निकाल देने से बढ़कर भला कोई आनन्द हो सकता है? गरमी की लू चल रही हो
तो कूलर / एसी लगा कर आनंद से सोफे में लेटे रहने का मजा क्या कम है?
बारिश में रिमझिम आवाज़ों के बीच गर्म पकौड़ों के साथ बिताए मजेदार समय को
आप कम आंकते हैं?
मैं इस सर्वे को सिरे से खारिज करता हूँ.
मेरे लिए आनंद और परम आनंद का पल तो आराम का पल होता है. कहीं
भी कभी भी – सुबह-दोपहर-शाम-रात आराम ही आराम.
**-**
व्यंज़ल
नसीब में न थे शायद आनंद के पल
ढूंढने में ही बिता दिए आनंद के पल
गलियों शहरों तलाशा था पर अंततः
माथे के पसीने में मिले आनंद के पल
बच्चे की हँसी, कहीं कोयल की कूक
क्या नहीं हैं ये परम आनंद के पल
क्या ये बात पता भी है कि वस्तुतः
दूसरों की खुशी में ही हैं आनंद के पल
नादान नहीं होगा जो ढूंढता है रवि
दूसरों के दुःख में अपने आनंद के पल
**-**
लिनक्स = लाल्टू
**-**
ये क्या? एक नया समीकरण! लाल्टू = लिनक्स !
इस माह के लिनक्स फ़ॉर यू पत्रिका में लाल्टू जी के लिनक्स प्रेम
पर पृष्ठ भर का आलेख छपा है कि कैसे उन्होंने अपने विभाग में ओपन सोर्स के
प्रति लोगों में जागरूकता जगाई और कैसे रेडहेट फेदोरा कोर 4, जिसमें हिन्दी पूर्ण
का समर्थन है, के जरिए इंटरनेट पर हिन्दी में काम करना शुरू किया.
लाल्टू जी, अगर आप अपने अनुभवों को एक ट्यूटोरियल के रूप में लिख कर
प्रकाशित करें तो बहुत से लोग लाभान्वित होंगे जो लिनक्स पर हिन्दी में काम
प्रारंभ करने में अड़चनें महसूस करते हैं.
बहरहाल, लाल्टू जी आपको बहुत-2 बधाईयाँ.
**-**
COMMENTS