छींटें और बौछारें में जून 05 में प्रकाशित रचनाएँ

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**************. सरकारी कंपनियों का निज़ीकरण: एक बहस *-*-* सेंटौर होटल के निजीकरण के परिप्रेक्ष्य में सीपीएम के दीपांकर मुखर्जी और बीजेपी के ...

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सरकारी कंपनियों का निज़ीकरण: एक बहस


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सेंटौर होटल के निजीकरण के परिप्रेक्ष्य में सीपीएम के दीपांकर मुखर्जी और बीजेपी के अरूण शौरी आज आमने सामने हैं और अखबारों के माध्यम से एक दूसरे पर पृष्ठ भर भर के आरोप प्रत्यारोप कर रहे हैं. यह जो वाद विवाद चल रहा है उसके पीछे न जाते हुए आइए चर्चा करें बाल्को की जिसे सरकार ने सबसे पहले निजी हाथों में स्टारलाइट कंपनी को बेचा था. उस समय भी भारी बवाल मचा था. सब तरफ हल्ला मचा था और केंद्र की बीजेपी सरकार के विरूद्ध छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी मुख्य मंत्री अजीत जोगी आमने सामने थे. बाद में कोर्ट ने जब मामला साफ किया था तो सबका मुंह बन्द हुआ था.



बाल्को की चिमनी: वर्तमान में एशिया की सबसे बड़ी चिमनी

एक बार जब निजी करण हो गया, तो इस काम में मुखर विरोध करने वाले अजीत जोगी बाल्को के एक्सटेंशन प्लान को धड़ाधड़ स्वीकृति देते देखे गए.

जो सरकारी बाल्को, मरियल चाल चलता हुआ, पिछले कई दशकों से एक ही रफ़्तार में, एक जैसा प्रॉडक्शन दे रहा था, निजी हाथों में आते ही सरपट दौड़ने लगा. इसकी कैपेसिटी एक्सटेंशन की योजना न सिर्फ रेकॉर्ड समय में पूरी हुई, बल्कि तीन साल के भीतर ही उसने अपनी आवश्यकता के लिए अपना स्वयं का, 750 मेगा वाट का विद्युत संयंत्र भी टर्न की आधार पर तैयार कर लिया. और अब यह अपनी दुगनी क्षमता से उत्पादन करने को तत्पर है. अल्यूमिनियम उत्पादन के नाम से यह विश्व में तीसरी बड़ी कंपनी बनने जा रही है. आज इसके ताप विद्युत संयंत्र की चिमनी पूरे एशिया में सबसे ऊँची है.

बाल्को न सिर्फ औद्यौगीकरण कर रही है, वरन् अब वह आसपास के क्षेत्रों में सामाजिक शिक्षा इत्यादि कार्यों को भी अपने हाथों में ले रही है.

क्या आप यहाँ महसूस करेंगे – निजी और सरकारी फ़र्क़ का? क्या सरकार को क़ानून व्यवस्था को ताक पर रख कर कम्पनियाँ और होटलें चलाना चाहिए?

शायद नहीं. सरकार को बस सरकार ही बने रहने दें तो अच्छा.

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व्यंज़ल
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सरकार को सरकार ही रहने दो तो अच्छा
भक्ति को निराकार ही रहने दो तो अच्छा

अब हमें चलना होगा और कितने कदम
यकीं को निराधार ही रहने दो तो अच्छा

कारणों में फंस सा गया है आज मगर
प्रेम को बेआधार ही रहने दो तो अच्छा

क्या लेना है किसी के हिसाब किताब से
हम को वफ़ादार ही रहने दो तो अच्छा

बहुतेरे प्रदूषण फैला दिए हैं रवि तुमने
मुल्क को हवादार ही रहने दो तो अच्छा

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पीसी पेस्ट कंट्रोल



(प्रभासाक्षी में पूर्व प्रकाशित)

अगर आप सोचते हैं कि आपने विश्व के कुछ सबसे बढ़िया एन्टीवायरस प्रोग्राम तथा फ़ॉयरवाल को अपने कम्प्यूटर में संस्थापित कर लिया है और इस तरह से आपका कम्प्यूटर सुरक्षित हो गया है, तो यह आपका बहुत बड़ा भ्रम है. आपका कम्प्यूटर इन प्रोग्रामों के द्वारा वायरस तथा रेट्स (अवैधानिक रिमोट एडमिनिस्ट्रेशन टूल्स) का तो अच्छे तरीके से मुकाबला कर सकता है, परंतु नाना प्रकार के पेस्टवेयर प्रोग्रमों का नहीं, जो आपके कम्प्यूटर और डाटा के लिए खतरा बने हुए होते हैं. इस बात की पूरी संभावना है कि आपका कम्प्यूटर ऐसे ज्ञात-अज्ञात कई प्रकार के पेस्टवेयर प्रोग्रामों से ग्रसित हो. और मज़ेदार बात यह भी हो सकती है कि आपने इनमें से कुछ प्रोग्रामों को स्वयं अपनी इच्छा से अपने कम्प्यूटर पर संस्थापित किया हुआ होगा, वे पृष्ठभूमि में चल रहे होंगे और आपको भान भी नहीं होगा कि आपकी जानकारी के बगैर ये क्या क्या गुल खिला रहे हैं. हालाकि पेस्टवेयर जैसे प्रोग्रामों से आपको ज्यादा नुकसान नहीं होता जैसा कि वायरसों के कारण हो सकता है, मगर नुकसान तो नुकसान ही है. कम या ज्यादा – बर्दाश्त क्यों किया जाना चाहिए? और, वैसे भी आपके कम्प्यूटर के स्वास्थ्य के लिहाज से पेस्टवेयर कतई सही नहीं हैं. खासतौर पर खतरे की बात तब है, जब आपका कम्प्यूटर ज्यादातर समय इंटरनेट से जुड़ा रहता है.
यहाँ हम आपके लिए एक संक्षिप्त मार्ग दर्शिका प्रस्तुत करते हैं, जो आपको यह बताएगा कि ये पेस्टवेयर हैं क्या बला, ये आपके कम्प्यूटर को क्या नुकसान पहुँचा सकते हैं तथा आप इनसे कैसे छुटकारा पा सकते हैं.
पेस्टवेयर- एक विश्वव्यापी महामारी:
आपको यह विश्वास करना होगा कि जो कम्प्यूटर इंटरनेट से जुड़े होते हैं उनमें से 90% से अधिक ज्ञात – अज्ञात रूपों के एकाधिक प्रकार के पेस्टवेयर से संक्रमित रहते ही हैं. उनमें से प्राय: बहुत से उपयोक्ता की सहमति से ही संस्थापित होते हैं और मासूम उपयोक्ता को यह हवा ही नहीं रहती कि उसने कोई पेस्टवेयर संस्थापित कर लिया है. अधिकांश पेस्टवेयर आपको मुफ़्त की वस्तुएँ और सुविधाएँ देने का वादा करते हैं जैसे कि मुफ़्त संगीत, या आपके ब्राउजर की गति बढ़ाने का दावा, या आपके माउस पाइंटर / संकेतक को नया रूप आकार देने का या कुछ अच्छे स्माइली इमोटिकान्स प्रदाय करने का इत्यादि. और आप बड़े मजे में इन्हें अपने कम्प्यूटर पर संस्थापित करते हैं. परंतु वे इन छोटी, नगण्य सी सुविधाओं के बदले वे आपको ये परोसते हैं – विज्ञापनों के पॉप अप विंडोज़, ब्राउज़र हाइजैकर और न जाने क्या क्या. वे आपकी इंटरनेट गतिविधियों की जासूसी भी कर सकते हैं! पेस्टवेयर के कई नाम हैं – कुछ इन्हें मालवेयर कहते हैं, तो कुछ उन्हें स्कमवेयर कहते हैं. कुछ अवांछित व्यवसायिक सॉफ़्टवेयरों को पैरासाइट भी कहा जाता है. कुछ प्रचलित, प्राय बहुतायत से उपयोग में लिए जाने वाले पेस्टवेयर प्रोग्रामों को एडवेयर भी कहा जाता है, और वास्तव में तो पेस्टवेयर की बहुतायत किस्मों में एडवेयर ही आते हैं. एडवेयर को माइक्रोसॉफ्ट ने भी अब गंभीरता से लिया है और उसका पहला, इस्तेमाल के लिए मुफ़्त एंटी एडवेयर प्रोग्राम भी जारी हो चुका है.
जब आप इंटरनेट पर सर्फ करते हैं, तो आपको कुछ ऐसे अवांछित संदेश प्राप्त होते होंगे -:
• क्या आप अपने सिस्टम की गुणवत्ता बढ़ाना चाहते हैं?
• क्या आप अपने सिस्टम की सुरक्षा बढ़ाना चाहते हैं?
• क्या आप मौसम की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं?
• क्या आप इंटरनेट पर अपनी पहचान छुपाना चाहते हैं?
• स्माइली मुफ़्त डाउनलोड करें, माउस संकेतक, स्क्रीन सेवर मुफ़्त डाउनलोड करना चाहते हैं?
• अपने ब्राउज़र की फंक्शनलिटी/गति/सर्च गति बढ़ाना चाहते हैं? ... तो नीचे दिए ठीक बटन पर क्लिक करें…” इत्यादि…
अब यदि ये प्रस्ताव आपको लुभावने लगते हैं और इनमें से किसी एक के जाल में फंस कर ठीक बटन को दबा देते हैं तो बहुत संभव है कि आपका कम्प्यूटर पेस्टवेयर से संक्रमित हो जाए. अब आप बताइए कि आपने किसी जेनुइन सॉफ़्टवेयर को ऐसे किसी तरह के लुभावने प्रलोभनों को देते हुए पाया है? हालाकि पेस्टवेयर आपके कम्प्यूटरों को ज्यादा नुकसान नहीं पहुँचाते, परंतु कुछ अवांछित समस्या तो वे पैदा करते ही हैं जैसे कि – बार-बार, दर्जनों पॉप अप विंडो खोलते हैं जिससे आपकी एकाग्रता भंग होती है और आपकी प्रॉडक्टिविटी कम होती है. ये आपके बैंडविड्थ, सिस्टम रिसोर्सेज़, मेमोरी उपयोग तथा सीपीयू सायकल को गैर जरूरी तरीके से हजम करते हैं. पेस्टपेट्रोल, एक संस्था जो पेस्टवेयर को खत्म करने के लिए गंभीरता से प्रतिबद्ध है – के अनुसार, वर्तमान में 13000 से भी ज्यादा पेस्टवेयर हैं. क्या आप इस सूची को स्वयं देखना चाहते हैं? अपनी आंखें खोलने के लिए, कि अब तक आपने कौन-कौन से पेस्टवेयर अपने कम्प्यूटर पर संस्थापित कर रखे हैं, इस कड़ी पर जाएँ - http://pestpatrol.com/search/searchpestinfo.asp आपको इतनी भारी-भरकम सूची देख कर आश्चर्य होगा. ऐसी ही एक और सूची यहाँ पर भी है -: http://doxdesk.com/parasite जिसे आप देख सकते हैं. यहाँ यह भी हो सकता है कि आपकी आवश्यकता और चुनाव अलग हो सकते हैं और आप इनकी सम्पूर्ण सूची से सहमत न हों. परंतु यह तो तय है कि इनमें सूचीबद्ध प्रोग्राम किसी न किसी प्रकार से पेस्टवेयर की तरह कार्य करते ही हैं. और उन्हें उनके इन्हीं क्रियाकलापों की वजह से पेस्टवेयर के रूप में पारिभाषित किया गया है. पेस्टवेयर आपके कम्प्यूटर में निम्न प्रकार से तबाही मचा सकते हैं –
पेस्टवेयर से होने वाले नुकसान:
पेस्टवेयरों को इस तरह बनाया जाता है जिससे कि इसके जाल में फँसे हर किसी से जानकारियाँ प्राप्त की जा कर उसका व्यावसायिक लाभ लिया जा सके. ये आपको निम्न प्रकार से नुकसान तो पहुँचा सकते ही हैं. और यह सूची कोई अंतिम भी नहीं है:
• आपके ब्राउजिंग व्यवहार को रेकॉर्ड कर सकते हैं तथा उसके आधार पर आपके ऑनलाइन होते ही लक्षित विज्ञापनों तथा प्रस्तावों से परेशान कर सकते हैं.
• आपके कुंजीपट स्ट्रोक्स को की-लॉगर्स से रेकॉर्ड कर सकते हैं तथा इसे पूर्वपारिभाषित लक्ष्य तक एक लॉग फ़ाइल के रूप में भेज सकते हैं. की-लॉगर्स के जरिए आपके अत्यंत सुरक्षित ऑनलाइन बैंकिंग व्यवहार में भी खाता क्रमांक तथा पासवर्ड चोरी कर सकते हैं.
• आपके डेस्कटॉप का स्क्रीनशॉट नियमित अंतराल पर ले सकता है तथा उसे ईमेल संलग्नक या एफटीपी अपलोड के जरिए रिमोट स्थान पर भेज सकता है..
• यदि आप ऑनलाइन खरीदार हैं तो आपके पासवर्ड / क्रेडिट कार्ड नंबरों को कैप्चर करने के लिए जासूसी कर सकता है.
• आपके कम्प्यूटर में कुकीज़ प्लान्ट करके आपके कम्प्यूटिंग व्यबहार को जान सकता है तथा आपकी पहचान इंगित कर सकता है.
• आपके कम्प्यूटर पर नुकसानदायक प्रोग्राम / स्क्रिप्ट चला सकता है.
• आपके ब्राउज़र को हाइजैक कर उसका होम पेज बदल सकता है.
हालांकि वहाँ कुछ ऐसे पेस्टवेयर भी हैं जो आपको आपके नित्य के कम्प्यूटिंग आवश्यकताओं के दौरान आपकी सहायता करते हैं और वे आपके लिए अति आवश्यक भी होते हैं. परंतु ऐसे पेस्टवेयरों की पहचान आपको स्वयं करना होगी, न कि किसी तीसरी पार्टी – जैसे कि किसी एन्टी पेस्टवेयर यूटिलिटी द्वारा.
पेस्टवेयर काम कैसे करते हैं
यूँ तो प्रत्येक पेस्टवेयर के काम करने का अंदाज अलग होता है. परंतु फिर भी, कुछ आम प्रचलित तरीकों में वे सबसे पहले आपके बारे में आरंभिक जानकारी प्राप्त करते हैं जैसे कि आपका लोकेशन इत्यादि. चूंकि प्राय: पर्सनल कम्प्यूटरों में आजकल आमतौर पर डायनामिक आईपी पता होता है, जो हर बार ऑनलाइन होने पर बदलता रहता है, अत: आपकी पहचान सुनिश्चित करने के लिए वे आपके कम्प्यूटर में कुकीज़ प्लांट करते हैं. कुकीज़ तो याहू! और गूगल जैसे माने हुए, आवश्यक वेब संस्थाएँ भी प्लांट करती हैं, मगर वे इसका उपयोग आपकी इंटरनेट सुविधाएँ बढ़ाने के लिए करती हैं, न कि आपकी जासूसी करने के लिए. जब आप किसी वेब साइट पर जाकर कुछ फ़ॉर्म भरते हैं, या कहीं किसी पाठ इनपुट बक्से में कुछ ढूंढने के लिए कोई वाक्यांश भरते हैं, तो आपके कम्प्यूटर पर कुकीज को इम्प्लांट किया जाता है ताकि यह इतिहास के रूप में दर्ज हो जाए और अगली बार जब आप ऐसा ही कोई कार्य करना चाहें तो वह आपकी सेवा में तत्काल उपस्थित हो जाए. अधिकांश पेस्टवेयर ऐसे फ्रीवेयर प्रोग्रामों के साथ आते हैं जो यह दावा करते हैं कि वे आपके कम्प्यूटर और कम्प्यूटिंग माहौल को आसान बना देंगे. क्या आप विश्वास करेंगे कि काजा मीडिया डेस्कटॉप जो कि संगीत प्रेमियों के लिए पसंदीदा, मुफ़्त का प्रोग्राम है, और जिसे इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 21.4 करोड़ से अधिक बार इंटरनेट से डाउनलोड किया जा चुका है, और जो काफ़ी समय से इंटरनेट डाउनलोड सूची में पहले स्थान पर रहा, वह एक तरह का पेस्टवेयर प्रोग्राम है? काजा आपको बैनर विज्ञापन दिखाता है तथा इसके जरिए किसी तीसरे प्रोग्राम को भी आपकी अनुमति के बिना कम्प्यूटर पर संस्थापित किया जा सकता है. अब, ऐसी स्थिति में कहीं कोई गुंजाइश नहीं बचती है कि यह न माना जाए कि 90% से अधिक कम्प्यूटर पेस्टवेयरों से संक्रमित हैं. और बहुत बार ये संक्रमण हमने अपनी मर्जी से कराए हुए होते हैं – हर प्रकार की सुरक्षा और फ़ॉयरवाल को दरकिनार कर. पेस्टवेयर एक्टिवएक्स कंट्रोल / जावा कोड के जरिए भी आपके ब्राउजर, ईमेल संलग्नकों के द्वारा आपके कम्प्यूटर को संक्रमित कर सकते हैं. और अकसर इनमें किसी तरह का अन-इंस्टालर नहीं होता है जिससे इन्हें अपने कम्प्यूटरों से हटाया जाना मुश्किल होता है.
एक बार संस्थापित हो जाने के उपरांत, पेस्टवेयर पृष्ठभूमि में कार्य करना प्रारंभ कर देता है. उदाहरण के लिए, यदि आप प्रभासाक्षी की वेब साइट में सर्च बक्से में कुछ लिखकर किसी वस्तु के लिए ढूंढेंगे तो, प्रभासाक्षी द्वारा जेनरेटेड सर्च संदेशों के अलावा भी आप कई पॉप-अप संदेश देखेंगे, जो पेस्टवेयरों के जरिए जेनरेट किए जाते हैं. यहाँ, पेस्टवेयर आपके इनपुट स्ट्रिंग को कैप्चर कर अपने सर्वर पर भेजता है, वहाँ इसे एनॉलाइज किया जाता है, तथा उससे मिलते जुलते विज्ञापनों को आपको परोसा जाता है. और, इसीलिए, कभी कभी आपको भारत में रहते हुए भी अमेरिका – कनाडा में प्लाट या दवाई खरीदने के प्रलोभन – प्रस्ताव आते रहते हैं.
निदान:
कुछ मामलों में खासे जटिल तथा पेचीदे होने के बावजूद कम्प्यूटर के पेस्टवेयर संक्रमण का पूरी तरह इलाज किया जा सकता है. संक्रमण को हटाने के लिए एंटीवायरस जैसे औज़ार भी हैं, जिनकी सूची उनके इंटरनेट कड़ी सहित नीचे दी गई है. चूँकि उपचार से ज्यादा अच्छा रोकथाम ही है, अत: पेस्टवेयरों अपने कम्प्यूटर में घुसने नहीं देना ही सबसे बढ़िया निदान है. आपके लिए कुछ सुझाव ये हैं जिनसे आप अपने कम्प्यूटर को पेस्टवेयर के संक्रमणों से कुछ हद तक बचा सकते हैं.
• ईमेल संलग्नकों से सावधान रहें. वायरस तथा वॉर्म के अतिरिक्त उनमें पेस्टवेयर भी हो सकते हैं. अपने मेल क्लाएंट में प्रीव्यू अक्षम करें, ताकि उन्हें स्वचालित चलने से रोका जा सके.
• वेब सर्फिंग के दौरान उच्च सुरक्षा विन्यास का प्रयोग करें. एक्टिव एक्स को अक्षम करें, और यदि यह संभव न हो तो प्राम्प्ट का विकल्प चुनें ताकि हर बार आप चुन सकें और आपकी जानकारी में रहे कि कौन सा एक्टिवएक्स कंट्रोल किस साइट से चल रहा है. हमेशा हस्ताक्षरित एक्टिवएक्स कंट्रोल उपयोग करें. अ-हस्ताक्षरित एक्टिवएक्स के लिए चेतावनी संदेश दिखाए जाते हैं.
• फ़ॉयरवाल का इस्तेमाल करें और इसे उचित प्रकार कॉन्फ़िगर करें ताकि कोई सुरक्षा खामी (होल) न रहे
• वेब पर सावधानी से कार्य करें. कुछ ऐसे पॉप अप संवाद बक्से ऐसे भी प्रकट होते हैं जिनमें रद्द, बन्द या केंसल बटन तो लिखा होता है, परंतु वे वस्तुत: ठीक यानी की ओके बटन होते हैं. ऐसे में, जब आप इस बटन को क्लिक करेंगे तो यह विंडो बन्द तो हो जाएगा, परंतु चूँकि वास्तव में वह ठीक (ओके) बटन होता है, अत: वह अब आपके कम्प्यूटर में पृष्ठभूमि में कुछ अवांछित गतिविधियाँ प्रारंभ करेगा. अत: सुरक्षा के लिहाज से ऐसे पॉपअप विंडो को उसके दाएँ ऊपरी किनारे के X बटन को क्लिक कर बन्द करें. या इसके टास्कबार में दायाँ क्लिक कर, बन्द को चुन कर इसे बन्द करें.
• कुछ पीअर-टू-पीअर मल्टीमीडिया फ़ाइल साझा सॉफ़्टवेयर कई सुरक्षा खामियां पैदा करते हैं तथा उपयोक्ता के कम्प्यूटर पर पेस्टवेयर को संस्थापित करने की सुविधा देते हैं. इनका प्रयोग सावधानी से करें.
• फ्रीवेयर का उपयोग भी सावधानी से करें. इनको ज्ञात-अज्ञात पेस्टवेयर सूची से मिलाकर देखें और जानें कि ये आपके लिए क्या खतरा पैदा कर सकते हैं.
पेस्टवेयर को मिटाने का परिपूर्ण उपचार
एक बार कोई पेस्टवेयर आपके कम्प्यूटर पर संस्थापित हो जाता है तो उसे मिटाना सचमुच का कठिन कार्य हो जाता है. कुछ पेस्टवेयर, जैसे कि हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं, आपकी जानकारी के बगैर संस्थापित होते हैं, ऐसे में उनकी पहचान करना निहायत ही कठिन होता है. कुकीज तथा एडवेयर जैसे प्रोग्राम स्वचालित संस्थापित होते हैं. जब तक आप सुनिश्चित नहीं हैं, पेस्टवेयर को वायरस की तरह ही मानना चाहिए.
पेस्टवेयरों को एंटीवायरस किस्म के सॉफ्टवेयर से पहचाना नहीं जा सकता. इनके क्रिया कलाप भी आपके कम्प्यूटर के डाटा इत्यादि को नुकसान पहुँचाने वाले नहीं होते. अत: वे बिना किसी की निगाह में आए, कम्प्यूटरों में अपना काम करते बने रहते हैं. इसीलिए पेस्टवेयर को ढूंढने के लिए तथा उन्हें कम्प्यूटर से निकाल बाहर करने के लिए एंटीवायरस से भिन्न किस्म के, एंटीपेस्टवेयर प्रोग्रामों की आवश्यकता होगी. ये प्रोग्राम आपके कम्प्यूटर को स्कैन कर तमाम तरह के संस्थापित पेस्टवेयर का पता लगाते हैं और आपके सामने उन्हें हटाने का विकल्प रखते हैं. यदि आप कोई एन्टी पेस्टवेयर प्रोग्राम इस्तेमाल कर रहे हैं तो इसकी पेस्टवेयर परिभाषा फ़ाइल को भी नियमित अंतराल से अद्यतन करते रहें.
नीचे कुछ प्रसिद्ध एंटी-पेस्टवेयर प्रोग्रामों की सूची दी गई है, जिनका उपयोग आप अपने कम्प्यूटर से पेस्टवेयरों को मिटाने के लिए कर सकते हैं. कृपया ध्यान दें कि एंटीवायरस औज़ारों की तरह इनमें से कोई भी एक अकेला पूरी तरह सक्षम नहीं है कि वह हर प्रकार के पेस्टवेयरों का पता लगाकर उसे निकाल बाहर कर सके. आपको ऐसे दो-एक एंटीपेस्टवेयर प्रोग्रामों की सहायता लेनी होगी. साथ ही, नए नए पेस्टवेयर उनकी परिभाषा फ़ाइल में सम्मिलित नहीं होंगे जिसकी वजह से वे नए पेस्टवेयर का पता लगाने में अक्षम होंगे. फिर भी, पेस्टवेयरों को अपने कम्प्यूटर से निकाल बाहर करने के लिए इनमें से कुछ का उपयोग तो आप कर ही सकते हैं. और खुशी इस बात की है कि इनमें से बहुत से फ्रीवेयर हैं:
1. एडअवेयर http://www.lavasoftusa.com
2. एंटी-ट्रोजन http://www.anti-trojan.net
3. पेस्ट-पेट्रोल http://www.pestpatrol.com
4. स्पाई बॉट सर्च & डिस्ट्रॉय http://www.security.kolla.de
5. स्पाई-स्वीपर http://www.webroot.com
6. एक्स-क्लीनर http://www.xblock.com
7. स्पाई-रिमूवर http://www.itcompany.com
8. स्टिंगर http://vil.nai.com/vil/stinger
9. यू-डबल्यू-श्रेडर http://www.spychecker.com
10. माइक्रोसॉफ़्ट एंटी एडवेयर http://www.microsoft.com/
आप इसके लिए कुछ वेब आधारित सेवा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. आपको सिर्फ यह करना होगा कि इंटरनेट पर कनेक्ट होइए और ऐसे वेब साइट पर जाइए जो आपके कम्पयूटर को पेस्टवेयर के लिए ऑन लाइन स्कैन करने की सुविधा देते हैं. ये सुविधाएँ तेज भले ही न हों, परंतु अद्यतन होती हैं और आपके कम्प्यूटर से पेस्टवेयर को निकालने में सक्षम होती हैं. एक ऐसी ही साइट है: http://doxdesk.com/ . परंतु चेतावनी फिर दी जा रही है – ऐसी सेवाओं का उपयोग सावधानी से करें.
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फ़र्क़ पड़ता है भाई!


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चिट्ठाकार भाई अतुल तथा अमित की मदद से, सेजावता गाँव के एक स्कूल में कुछ समय पूर्व, दसवीं कक्षा के होशियार बच्चों को दिया गया पुरस्कार शायद रंग लाया है. और, यह रंग इतना गहरा है कि स्कूल के प्राचार्य सहित तमाम ग्रामवासी खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं...

मध्य प्रदेश का दसवीं हाईस्कूल का परीक्षाफल कल घोषित हुआ. परिणाम आशाजनक नहीं रहे. मात्र 37 प्रतिशत बच्चे ही पास हुए. मगर सेजावता ग्राम के शासकीय स्कूल के दसवीं कक्षा के बच्चों की खुशी का प्रतिशत कहीं ज्यादा हैं. वहाँ का परिणाम 83 प्रतिशत रहा.

प्राचार्य का कहना है कि पुरस्कार वितरण के पश्चात् विद्यार्थी (और पालक भी) पढ़ाई में ज्यादा गंभीर हो गए थे, और अच्छे परिणाम के पीछे एक कारक यह भी था. उन्होंने इस हेतु चिट्ठाकारों का एक बार फिर आभार माना है.

वैसे तो ये पुरस्कार कोई बहुत बड़े नहीं थे, मगर प्रोत्साहन के रूप इससे बहुत फ़र्क़ पड़ा. सच है, प्रशंसा के दो बोल भी बहुत होते हैं...

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चांपा के बड़े


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मध्यप्रदेश (अब छत्तीसगढ़ में) का चांपा दो बातों के लिए प्रसिद्ध है- एक तो जून महीने की झुलसती गर्मी और कोसा के बने वस्त्रों के निर्माण और विपणन के लिए. परंतु इसमें अब तीसरी बात भी जुड़ गई लगती है.


अगर उचित कीमत में उचित वस्तु मिले तो उसके खरीदार जंगल तो क्या साइबेरिया में भी पैदा हो सकते हैं. मॅकडॉनल्ड और केएफ़सी अगर न्यूजर्सी से लेकर न्यू डेल्ही तक समान रूप से अगर बिकते हैं, और उनके काउन्टरों पर खरीदारों की भीड़ की भीड़ जमा रहती है तो इसके पीछे यही राज है.


और यही राज है, चांपा रेल्वे स्टेशन पर बिकने वाले बड़े (वड़े) के बड़े तादाद में बिकने का. हावड़ा मुम्बई रेल लाइन पर इस छोटे से स्टेशन आम तौर पर ट्रेनें पाँच मिनट से ज्यादा के लिए नहीं रुकतीं. परंतु इन पाँच मिनटों के दौरान पचासों बड़े बेचने वाले यात्रियों को पाँच रूपए के पाँच बड़े के भाव से हजारों बड़े बेच देते हैं. यहाँ आप पाएँगे कि हर दूसरा यात्री चाव से उन बड़ों को खा रहा है. उस रूट पर प्राय: यात्रा करने वाले लोग इंतजार करते हैं कि कब चांपा स्टेशन आए और बड़े खाने को मिलें. पचासों बड़े बेचने वाले होने के बावजूद, चूँकि ट्रेन ज्यादा देर रुकती नहीं है, जैसे ही कोई ट्रेन स्टेशन पर रुकती है, बड़े खरीदने के लिए वहाँ कांव-कांव मच जाती है. पर, थोड़ी ही देर में लगभग हर यात्री के हाथ में, अखबारी काग़ज़ में लिपटा बड़े का पुड़िया होता है.


लाल सुर्ख़ मिर्च की, लहसुन के साथ सिलबट्टे पर पीसी गई तीख़ी, नमकीन चटनी के साथ बड़ों को खाकर यात्री किसी ट्रांस में पहुँच जाते हैं. कुछ सफ़ाई पसंद और वायरस-बैक्टीरिया से डरने वाले लोग जो यह पुड़िया लेने में संकोच कर चुके होते हैं, अपने साथी यात्री को मजे में बड़े खाते और अलौकिक आनंद के सागर में गोते लगाते देख, बाद में पछताते हैं. पर, अगली दफ़ा जब वे इस स्टेशन से गुजरते हैं तो फिर वे यह आनंद लेना किसी हाल में नहीं भूलते.

दरअसल, ये बड़े आमतौर पर स्टेशनों में बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थों के विपरीत उच्च गुणवत्ता युक्त तो होते ही हैं, इनका स्वाद अलग और लाजवाब होता है. और कीमत तो ख़ैर वाजिब है ही. शायद, अदा की गई क़ीमत से ज्यादा की वस्तु ग्राहक को प्राप्त होती है.

लिहाज़ा, हर कोई उन्हें खरीदता है, खाता है और तारीफ़ करता है जिससे दूसरे भी खरीदते खाते हैं.


सफल मार्केटिंग का इससे बड़ा है कोई फंडा?


पुनश्च: आमतौर पर गांव और स्टेशनों के नाम बड़े ऊटपटाँग होते हैं. जैसे कि लेमरू और लाभरिया भेरू. इन्हें ऊटपटाँग बनाने में इतिहास का भी योगदान होता है, जैसे कि रतलाम का बढ़िया, सुंदर नाम रत्नपुरी था जो जाने कैसे, इतना रद्दी हो गया, दिल्ली को अंग्रेज देल्ही बना गए और केलकटा, कलकत्ता और कलिकाता होता हुआ कोलकाता हो गया है. पर नीचे का चित्र देखें. क्या सुंदर नाम है इस स्टेशन का! (यह चांपा के पास ही है)

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आपकी मंगलमय रेल यात्रा के लिए शुभकामनाएँ :)





एक सौ पच्चीस साल पुरानी रेल पटरियों पर दौड़ती रेलगाड़ियों का हश्र इससे जुदा हो सकता है भला? वह भी तब जब रखरखाव और आधुनिकी करण को राजनीति के पॉपुलिज्म की भेंट चढ़ा दिया गया हो.


आप सस्ती, कुल्हड़मय, छाछ-खद्दर युक्त रेल यात्रा तो करें, पर साथ ही ऐसी घटनाओं के लिए हरदम, हमेशा अपने आप को तैयार रखें. आपकी रेल यात्रा मंगलमय हो.

*-*-*
व्यंज़ल
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ऐसी ही तो चलेगी भई लालू की रेल
कुल्हड़ के लिए भी मचेगी पेलम पेल

स्टेशन पर कुत्तों, गायों, उठाईगीरों के
डिब्बों के भीतर चोर उचक्कों के खेल

ये कहते हैं लोग कि मंत्रियों के लिए
रेल मंत्रालय है मलाई रबड़ी और भेल

ये नई राजनीति इसके कायदे हैं नए
अपराधी को सम्मान मासूमों को जेल

इसमें सोचना क्या है बैठा रह तू रवि
अगर ट्रेन में गया निकल जाएगा तेल

*-*-*

सब कुछ बोगस है!



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**//**
अगर मतदाता बोगस हैं, तो नेता और सरकार कैसे बोगस नहीं होंगे? बोगस मतदाता बोगस नेताओं को चुनेंगे तो जो सरकार बनेगी वो बोगस ही होगी न? लगता है सत्तावन साल में बचा-खुचा सब कुछ बोगस हो गया है...

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व्यंज़ल
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क्या नहीं कुछ बोगस है
दिल मन सब बोगस है

धूप-बत्ती अजान प्रार्थना
पर सच में सब बोगस है

चलें कहीं कोई और ठौर
बचा यहाँ सब बोगस है

इस दौर में प्रेम की बातें
लगे कहीं कुछ बोगस है

सोचता बैठा रवि कब से
बन गया खुद बोगस है

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11 वीं अनुगूँज: आख़िर ये माजरा क्या है?




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मुम्बई में बीएमसी ने गर्दभ और मनुज को बराबरी का दर्जा दे दिया है. साफ सफाई के कामों में गर्दभ की मजदूरी के लिए मनुज की मजदूरी के बराबर ही भुगतान किया जाएगा.



वैसे भी, मनुष्य तो गधा बनता रहता है, पर शुक्र है, और शायद गधे के लिए राहत की बात भी कि, गधा कभी मनुष्य नहीं बनता.

वैसे, गधा ही क्या, मौक़ा पड़ने पर मनुष्य कुत्ता भी बन जाता है, सूअर भी, सांप (आस्तीन का) भी और नाली का कीड़ा भी.


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व्यंज़ल
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फ़र्क़ गुम गर्दभ मनुज में ये माजरा क्या है
नेताओं के बोलों में सत ये माजरा क्या है

जाति और धर्म के सियासी क्रीड़ा स्थल में
बन गए सब तमाशबीन ये माजरा क्या है

ख्वाब में फिर-फिर चला आता है वो गांधी
पूछता है मेरे भारत में ये माजरा क्या है

कोई और बढ़िया रहा होगा दौर जीवन का
नए आकलन समीकरण ये माजरा क्या है

नई टोपी नया खद्दर का कुरता पहने रवि
दोस्तों से निगाहें चुराए ये माजरा क्या है

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सुर मिलाएँ ऑपेरा के साथ


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मैं इंटरनेट एक्सप्लोरर को एक अरसे से भूल चुका था (वैसे वेब के कई पन्ने ऐसे अभी भी हैं जो इंटरनेट एक्सप्लोरर के अलावा किसी भी अन्य ब्राउज़र में खुलते ही नहीं) . मोज़िल्ला और नेटस्केप मौसेरे भाई थे जो मुझे कभी नहीं सुहाए. फ़ॉयरफ़ॉक्स में दम दिखा था तो पिछले सालेक भर से न सिर्फ उसका ही दीवाना बना रहा, बल्कि औरों को भी प्रेरित करता रहा कि भाई, इसी का इस्तेमाल करो, ताकि इंटरनेट पर कुछ सुविधा और सुरक्षा से काम कर सको. ऊपर से यह विंडोज़ और लिनक्स में समान रूप से तो चलता ही था, इसके बुकमार्क इत्यादि भी आसानी से आयात-निर्यात हो सकते थे. इसमें अंतर्निर्मित आरएसएस फ़ीड जैसी सुविधाएँ भी थीं, और ढेरों प्लगइन्स भी.

पर फिर कुछ-कुछ दिक्कतें फ़ॉयरफ़ॉक्स में भी आने लगीं. बहुत पहले कभी ऑपेरा को आज़माया था, परंतु विश्व का सबसे तेज़ ब्राउज़र का दावा करने वाले से कभी बात बनी नहीं थी. सोचा इसका नया संस्करण 8 फिर से आजमाया जाए. और सचमुच, इसके संस्करण 8 ने तो कमाल कर दिया है.

ऑपेरा 8 के एडवेयर (उत्पाद जिसे मुफ़्त इस्तेमाल के लिए जारी किया जाता है, परंतु बदले में विज्ञापन दिखाया जाता है, और उत्पाद के लिए भुगतान किया जाकर विज्ञापनों से छुटकारा पाया जा सकता है) होने के बावजूद यह इंटरनेट एक्सप्लोरर और फ़ॉयरफ़ॉक्स की तुलना में कई गुना ज्यादा तेज़ तो चलता ही है, आपको इसका दीवाना बनाने के लिए इसमें कई अंतर्निर्मित ख़ूबियाँ तो हैं हीं, दर्जनों प्लगइन्स भी हैं.

उदाहरण के लिए, ऑपेरा ब्राऊज़र में जब आप किसी वेब पृष्ठ पर जाते हैं, तो अगर उस पृष्ठ का कोई फ़ीड (आरएसएस या ऍटम) उसे मिलता है, तो वह उसका प्रतीक एड्रेस बार में प्रदर्शित करता है. जैसे ही आप उस प्रतीक को क्लिक करते हैं, ऑपेरा आपके लिए उस फीड को स्वचालित सब्सक्राइब कर अलग फ़ीड बुकमार्क में रख लेता है. इसके व्यू को आप तीन तरीकों से सेट कर सकते हैं – कोई चित्र नहीं, कैश चित्र, तथा चित्र युक्त. पहला विकल्प आपको ब्राउज़िंग के लिए धुआंधार तेज रफ़्तार देता है. कैश चित्र भी तेज ही होता है चूँकि यह इंटरनेट से चित्रों को डाउनलोड नहीं करता है, वरन आपके हार्ड डिस्क में मौजूद चित्रों को ही दिखाता है. आप चित्रों को लोड करने का व्यवहार भी इसमें बदल सकते हैं. उदाहरण के लिए, फ़ॉयरफ़ॉक्स में होता यह है कि जितनी बार आप किसी पृष्ठ में जाएँगे, उतनी ही बार वह उस पृष्ठ की छवियों को इंटरनेट से डाउनलोड करता है. इससे इसकी गति में भयानक कमी आती है. ऑपेरा में आप यह सेट कर सकते हैं कि चित्रों को कितनी देर बाद फिर से डाउनलोड किया जाए या फिर दुबारा डाउनलोड किया जाए ही नहीं. कुल मिलाकर ऑपेरा का सारा ध्यान और सारी सुविधाएँ आपको इंटरनेट का सबसे तेज अनुभव देने के लिए है.

तो फिर देर किस बात की ? डाउनलोड करिए ऑपेरा 8 अभी ही. ज्यादा खुशी की बात है कि यह लिनक्स के लिए भी उपलब्ध है.

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