महोदय, हम सचमुच गंदे लोग हैं. गुरचरण दास ने अजमेर यात्रा के अपने अनुभवों को बताते हुए पिछले सप्ताह टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है कि वहाँ ...
महोदय, हम सचमुच गंदे लोग हैं.
गुरचरण दास ने अजमेर यात्रा के अपने अनुभवों को बताते हुए पिछले सप्ताह टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है कि वहाँ के संगमरमर से बने सुंदर, ऐतिहासिक बड़ा दारा के चहुँओर कचरों का अंबार लगा हुआ था क्योंकि आसपास कचरा पेटी का अकाल था. लोग दीवारों की आड़ में सरेआम थूक मूत रहे थे क्योंकि आसपास कहीं कोई टॉयलेट नहीं था. बड़ा दारा एक पर्यटन स्थल भी है जहाँ हजारों की संख्या में सैलानी नित्य आते हैं.
भाई गुरचरण दास, यह स्थिति तो मेरे रतलाम में भी है. और रतलाम क्या भारत के प्राय: सभी नगरों, शहरों और गांवों में है. 2 लाख की जनसंख्या वाले पूरे रतलाम शहर में एक भी, फिर-से, एक भी सार्वजनिक मूत्रालय नहीं है. अगर आप शहर में किसी काम से निकले हों और आपको जोर की पेशाब आने लगे तो आपके सामने, अपने सामने की किसी झाड़ या दीवार का आड़ लेकर मूतने के सिवा और क्या रास्ता हो सकता है? पान खाकर पीक थूकने के लिए तो खैर भारत में कहीं कोई समस्या ही नहीं है- कहीं भी थूक सकते हैं- सड़कों पर चलते चलते भी और बिल्डिंगों की सीढ़ियों पर भी... कहीं अगर कचरा पेटी या थूकदान होता भी है तो आदत से लाचार लोग उसका उपयोग करने में झिझकते हैं, शर्माते हैं, अपने को हीन समझते हैं.
गुरचरण दास उदाहरण देते हुए आगे लिखते हैं कि सिंगापुर जो पहले किसी भी भारतीय शहर से भी ज्यादा गंदा था, आज विश्व का सबसे साफ-सुथरा शहर बन गया है. सिंगापुर को स्वच्छ बनाने में ली कुआन यू का योगदान वे गिनाते हैं. पर क्या भारत के लिए, या भारत के किसी एकाध शहर या गांव के लिए ही सही, कभी कोई ली कुआन यू पैदा हो सकेगा ?
*-*-*
ग़ज़ल
--**--
मनुज आजन्म गंदा न था
साथ में लाया फंदा न था
सियासतों में मज़हबों का
ये धंधा खासा मंदा न था
लोग अकारण ही चुक गए
फेरा गया अभी रंदा न था
महफ़िल से लोग चल दिए
किसी ने मांगा चंदा न था
रवि मरा बैमौत कहते हैं
पागल दीवाना बंदा न था
***
गुरचरण दास ने अजमेर यात्रा के अपने अनुभवों को बताते हुए पिछले सप्ताह टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है कि वहाँ के संगमरमर से बने सुंदर, ऐतिहासिक बड़ा दारा के चहुँओर कचरों का अंबार लगा हुआ था क्योंकि आसपास कचरा पेटी का अकाल था. लोग दीवारों की आड़ में सरेआम थूक मूत रहे थे क्योंकि आसपास कहीं कोई टॉयलेट नहीं था. बड़ा दारा एक पर्यटन स्थल भी है जहाँ हजारों की संख्या में सैलानी नित्य आते हैं.
भाई गुरचरण दास, यह स्थिति तो मेरे रतलाम में भी है. और रतलाम क्या भारत के प्राय: सभी नगरों, शहरों और गांवों में है. 2 लाख की जनसंख्या वाले पूरे रतलाम शहर में एक भी, फिर-से, एक भी सार्वजनिक मूत्रालय नहीं है. अगर आप शहर में किसी काम से निकले हों और आपको जोर की पेशाब आने लगे तो आपके सामने, अपने सामने की किसी झाड़ या दीवार का आड़ लेकर मूतने के सिवा और क्या रास्ता हो सकता है? पान खाकर पीक थूकने के लिए तो खैर भारत में कहीं कोई समस्या ही नहीं है- कहीं भी थूक सकते हैं- सड़कों पर चलते चलते भी और बिल्डिंगों की सीढ़ियों पर भी... कहीं अगर कचरा पेटी या थूकदान होता भी है तो आदत से लाचार लोग उसका उपयोग करने में झिझकते हैं, शर्माते हैं, अपने को हीन समझते हैं.
गुरचरण दास उदाहरण देते हुए आगे लिखते हैं कि सिंगापुर जो पहले किसी भी भारतीय शहर से भी ज्यादा गंदा था, आज विश्व का सबसे साफ-सुथरा शहर बन गया है. सिंगापुर को स्वच्छ बनाने में ली कुआन यू का योगदान वे गिनाते हैं. पर क्या भारत के लिए, या भारत के किसी एकाध शहर या गांव के लिए ही सही, कभी कोई ली कुआन यू पैदा हो सकेगा ?
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ग़ज़ल
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मनुज आजन्म गंदा न था
साथ में लाया फंदा न था
सियासतों में मज़हबों का
ये धंधा खासा मंदा न था
लोग अकारण ही चुक गए
फेरा गया अभी रंदा न था
महफ़िल से लोग चल दिए
किसी ने मांगा चंदा न था
रवि मरा बैमौत कहते हैं
पागल दीवाना बंदा न था
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Ravi ji pehle ratlam sirf Senv / namkeen ki liye mash-hoor tha ab aap jaise writer ke liye bhi ho jayega.
हटाएंहाँ, कालीचरण जी, रतलाम अब भी सेव नमकीन के लिए प्रसिद्ध है. हर घर में लोग भोजन के साथ सेव खाते हैं, उसकी सब्जी भी बनाते हैं. शायद यही कारण है कि इस शहर में हृदय रोगियों की संख्या का औसत जरा ज्यादा ही है...
हटाएंरवि