हो गया ओलंपिक ---------- हम भारतीय, एथेंस ओलंपिक में सिर्फ एकाध मेडल लेकर खुश हो रहे हैं कि भारत का ५७ सालों का व्यक्तिगत ओलंपिक पदक नहीं ...
हो गया ओलंपिक
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हम भारतीय, एथेंस ओलंपिक में सिर्फ एकाध मेडल लेकर खुश हो रहे हैं कि भारत का ५७ सालों का व्यक्तिगत ओलंपिक पदक नहीं पाने का रेकॉर्ड टूटा. पर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? भारतीय कु-व्यवस्था. एक सच्ची घटना प्रस्तुत है जिससे खेलों के भारतीय चलताऊ दृष्टिकोण का परदाफाश करेगी और यह बताएगी की हम ओलंपिक में एक भी पदक क्यों नहीं ले पाते.
हाल ही में नीमच में अंतर्महाविद्यालयीन क्रास कंट्री दौड़ स्पर्धा आयोजित की गई, जिसमें सफल विद्यार्थी को राष्ट्रीय अंतर्विश्वविद्यालयीन स्पर्धा में हिस्सा लेने हेतु पात्रता मिल जाती है. स्पर्धा के आयोजक एक प्रोफेसर को बना दिया गया जिसे खेलों का कोई अनुभव नहीं था. खिलाड़ियों को स्पर्धा के प्रारंभिक स्थल से ४ कि.मी. दूर ठहराया गया और स्पर्धा स्थल तक उन्हें पैदल आना पड़ा चूंकि खिलाड़ियों के लिए ट्रांसपोर्टेशन की कोई सुविधा मुहैया नहीं कराई जाती. स्पर्धा प्रारंभ होने का समय सुबह आठ बजे बताया गया था. परंतु ऐन मौके पर पानी गिरना प्रारंभ हो गया तो अज्ञानी आयोजक ने स्पर्धा दो घंटे के लिए आगे बढ़ा दी. जो प्रतियोगी वार्मअप हो चुके थे, जाहिर है उनका तो नुकसान होना ही था. काफी बहस के बाद अंततः साढ़े नौ बजे स्पर्धा प्रारंभ हुई. कुछ नीमच के स्थानीय प्रतियोगी भी थे.
बाद में प्रत्यक्ष दर्शियों ने बताया कि स्पर्धा के दौरान एक दो स्थानीय प्रतियोगियों को वाहनों के द्वारा ढोया गया और उनके राष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लेने के हक सुनिश्चित किए गए. निर्णय के समय काफी हो हल्ला मचा और घोषणा बाद के लिए रोक दी गई, पर कहा जाता है कि अंततः उन स्थानीय खिलाड़ियों को क्वालीफ़ाई कर दिया गया.
ऐसे हालातों में, जो भारत के प्रायः सभी हिस्सों में दोहराए जाते हैं, क्या हम कभी ओलंपिक में कोई पदक जीत पाएंगे? कभी नहीं. कभी भी नहीं. और हमें तो इस बारे में सोचना भी छोड़ देना चाहिए.
***********
ग़ज़ल
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ज़लालत है ज़िदगी क्या छोड़ देना चाहिए
अब अंधी गली में कोई मोड़ देना चाहिए
क्या मिला उस बुत पे घंटियाँ टुनटुनाने से
मिथ्या संस्कारों को अब तोड़ देना चाहिए
कब तक रहोगे किसी के रहमो-करम पे
ज़ेहाद का कोई नारियल फोड़ देना चाहिए
क्यों नहीं हो सकतीं अपनी एक ही दीवारें
खंडित आस्थाओं को अब जोड़ देना चाहिए
बहुत शातिराना चालें हैं तेरी बेईमान रवि
कहता है कहीं तो कोई होड़ देना चाहिए
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हम भारतीय, एथेंस ओलंपिक में सिर्फ एकाध मेडल लेकर खुश हो रहे हैं कि भारत का ५७ सालों का व्यक्तिगत ओलंपिक पदक नहीं पाने का रेकॉर्ड टूटा. पर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? भारतीय कु-व्यवस्था. एक सच्ची घटना प्रस्तुत है जिससे खेलों के भारतीय चलताऊ दृष्टिकोण का परदाफाश करेगी और यह बताएगी की हम ओलंपिक में एक भी पदक क्यों नहीं ले पाते.
हाल ही में नीमच में अंतर्महाविद्यालयीन क्रास कंट्री दौड़ स्पर्धा आयोजित की गई, जिसमें सफल विद्यार्थी को राष्ट्रीय अंतर्विश्वविद्यालयीन स्पर्धा में हिस्सा लेने हेतु पात्रता मिल जाती है. स्पर्धा के आयोजक एक प्रोफेसर को बना दिया गया जिसे खेलों का कोई अनुभव नहीं था. खिलाड़ियों को स्पर्धा के प्रारंभिक स्थल से ४ कि.मी. दूर ठहराया गया और स्पर्धा स्थल तक उन्हें पैदल आना पड़ा चूंकि खिलाड़ियों के लिए ट्रांसपोर्टेशन की कोई सुविधा मुहैया नहीं कराई जाती. स्पर्धा प्रारंभ होने का समय सुबह आठ बजे बताया गया था. परंतु ऐन मौके पर पानी गिरना प्रारंभ हो गया तो अज्ञानी आयोजक ने स्पर्धा दो घंटे के लिए आगे बढ़ा दी. जो प्रतियोगी वार्मअप हो चुके थे, जाहिर है उनका तो नुकसान होना ही था. काफी बहस के बाद अंततः साढ़े नौ बजे स्पर्धा प्रारंभ हुई. कुछ नीमच के स्थानीय प्रतियोगी भी थे.
बाद में प्रत्यक्ष दर्शियों ने बताया कि स्पर्धा के दौरान एक दो स्थानीय प्रतियोगियों को वाहनों के द्वारा ढोया गया और उनके राष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लेने के हक सुनिश्चित किए गए. निर्णय के समय काफी हो हल्ला मचा और घोषणा बाद के लिए रोक दी गई, पर कहा जाता है कि अंततः उन स्थानीय खिलाड़ियों को क्वालीफ़ाई कर दिया गया.
ऐसे हालातों में, जो भारत के प्रायः सभी हिस्सों में दोहराए जाते हैं, क्या हम कभी ओलंपिक में कोई पदक जीत पाएंगे? कभी नहीं. कभी भी नहीं. और हमें तो इस बारे में सोचना भी छोड़ देना चाहिए.
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ग़ज़ल
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ज़लालत है ज़िदगी क्या छोड़ देना चाहिए
अब अंधी गली में कोई मोड़ देना चाहिए
क्या मिला उस बुत पे घंटियाँ टुनटुनाने से
मिथ्या संस्कारों को अब तोड़ देना चाहिए
कब तक रहोगे किसी के रहमो-करम पे
ज़ेहाद का कोई नारियल फोड़ देना चाहिए
क्यों नहीं हो सकतीं अपनी एक ही दीवारें
खंडित आस्थाओं को अब जोड़ देना चाहिए
बहुत शातिराना चालें हैं तेरी बेईमान रवि
कहता है कहीं तो कोई होड़ देना चाहिए
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रवि जी , इतना निराश ना हों , कम से कम व्यक्तिगत पदक आना तो शुरू हुए हैं. अभी १ है, आगे और भी होंगे.लेकिन ये बात और है कि आज की स्थिति देखते हुए वो वक्त कब आएगा, पता नहीं.
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