ओलंपिक में नाउम्मीदी... **** फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंग ने भारत के ओलंपिक प्रदर्शनों पर टिप्पणी की है कि भारत में खेलों को राजनीति ने नाच गान...
ओलंपिक में नाउम्मीदी...
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फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंग ने भारत के ओलंपिक प्रदर्शनों पर टिप्पणी की है कि भारत में खेलों को राजनीति ने नाच गानों में डुबो दिया है. उनका यह कहना है कि भारत में खेलों के विकास के लिए कुछ भी ढंग से नहीं किया गया और इस दिशा में जो भी कार्य हुए वे राजनीति, भाई-भतीजावाद, क्षेत्रीयता और आरक्षण की मार से मर गए. स्थिति यह है कि क्रिकेट के अलावा भारत में किसी अन्य खेल हेतु कोई प्रायोजक हैं ही नहीं. ले देकर सरकार बचती है, तो एक ओर उसके नेताओं के पास अपनी क्षेत्रीय-राजनीति से फ़ुर्सत नहीं है तो दूसरी ओर बाबूराज (ब्यूरोक्रेसी) राजनीतिज्ञों तथा बाबा आदम के जमाने के फ़ाइलों और पुरातन सर्कुलरों के बोझ में दबी हुई है. लिहाजा ओलंपिक में भारत को आखिर क्या हासिल होना है?
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ग़ज़ल
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नाच गानों में डूब गई उम्मीदें हैं
नाउम्मीदी में भी बड़ी उम्मीदें हैं
ज़लज़लों को आने दो इस बार
कच्चे महल ढहेंगे ऐसी उम्मीदें हैं
जो निकला है व्यवस्था सुधारने
उस पागल से खासी उम्मीदें हैं
देख तो लिया दशकों का सफ़र
अब पास बची सिर्फ उम्मीदें हैं
तू भी क्यों उनके साथ है रवि
बैठे बैठे लगाए ऊंची उम्मीदें हैं
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फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंग ने भारत के ओलंपिक प्रदर्शनों पर टिप्पणी की है कि भारत में खेलों को राजनीति ने नाच गानों में डुबो दिया है. उनका यह कहना है कि भारत में खेलों के विकास के लिए कुछ भी ढंग से नहीं किया गया और इस दिशा में जो भी कार्य हुए वे राजनीति, भाई-भतीजावाद, क्षेत्रीयता और आरक्षण की मार से मर गए. स्थिति यह है कि क्रिकेट के अलावा भारत में किसी अन्य खेल हेतु कोई प्रायोजक हैं ही नहीं. ले देकर सरकार बचती है, तो एक ओर उसके नेताओं के पास अपनी क्षेत्रीय-राजनीति से फ़ुर्सत नहीं है तो दूसरी ओर बाबूराज (ब्यूरोक्रेसी) राजनीतिज्ञों तथा बाबा आदम के जमाने के फ़ाइलों और पुरातन सर्कुलरों के बोझ में दबी हुई है. लिहाजा ओलंपिक में भारत को आखिर क्या हासिल होना है?
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ग़ज़ल
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नाच गानों में डूब गई उम्मीदें हैं
नाउम्मीदी में भी बड़ी उम्मीदें हैं
ज़लज़लों को आने दो इस बार
कच्चे महल ढहेंगे ऐसी उम्मीदें हैं
जो निकला है व्यवस्था सुधारने
उस पागल से खासी उम्मीदें हैं
देख तो लिया दशकों का सफ़र
अब पास बची सिर्फ उम्मीदें हैं
तू भी क्यों उनके साथ है रवि
बैठे बैठे लगाए ऊंची उम्मीदें हैं
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