*** अरूण शौरी, जो कि भारत के मात्र कुछेक गिने चुने प्रतिबद्ध मंत्रियों में से रहे हैं, ने इंडियन एक्सप्रेस के अपने पिछले अंक में ग्राफ़िक ड...
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अरूण शौरी, जो कि भारत के मात्र कुछेक गिने चुने प्रतिबद्ध मंत्रियों में से रहे
हैं, ने इंडियन एक्सप्रेस के अपने पिछले अंक में ग्राफ़िक डिटेल में सिलसिलेवार
यह बताया है कि किस तरह भारत के कुछ राजनेता शासकीय निगमों और उपक्रमों की आड़
लेकर शासकीय हजारों करोड़ रूपयों का वारा न्यारा करते हैं, और कहीं कोई
एकाउन्टीबिलिटी नहीं होती.
मेरे ही शहर का एक ज्वलंत उदाहरण है. शहर के मेयर द्वारा सिटी सेंटर नाम का एक
व्यावसायिक परिसर नगर निगम के सहयोग से बनाया. परंतु विकास की यह सीढ़ी विरोधी
पार्टी के नेताओं को पसंद नहीं आई लिहाजा उसमें तमाम तरह के हथकंडे लगाए गए और
मामला न्यायालय से लेकर शासन तक खिंच रहा है. शासन का करोड़ों रूपया व्यर्थ ही
उस अध_बने, अनुपयोगी सिटी सेंटर में बर्बाद हो रहा है, पर कहीं किसी को कोई
चिंता नही. किसी की कोई एकाउंटिबिलिटी नहीं. यह तो मात्र एक उदाहरण है. ऐसे
सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे. यहाँ तक कि आपके शहरों में भी दर्जनों उदाहरण मिल
जाएँगे. एक तरफ़ दिन प्रतिदिन करों में बढ़ोत्तरी कर आम जन से ज्यादा से ज्यादा
कर वसूला जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसी पैसे का दुरूपयोग तो दूर की बाद उपयोग ही
नहीं हो रहा है. एक राजनीतिक पार्टी अगर देश को आगे बढ़ाने कुछ योजना बनाती है,
तो दूसरी को उसमें सड़ांध नज़र आती है, और वे उसमें टंगड़ी मारते हैं. और हम
हैं, जहाँ के वहीं. विनोद धाम अमरीका जाकर एक्स८६ ऑर्किटेक्चर डिज़ाइन कर सकते
हैं, परंतु भारत में लाल फ़ीताशाही, राजनीति और इंस्पेक्टर राज के कारण क्या वे
यहाँ कुछ कर पाते? आपमें से कुछ को लग सकता है कि स्थिति उतनी बुरी भी नहीं है,
परंतु द्वितीय महायुद्ध में नेस्तनाबूद ज़ापान अगर अपनी सीमित रिसोर्सेज़ के साथ
पचास वर्षों में कहीं का कहीं पहुँच सकता है तो भारत घिसट क्यों रहा है अभी तक?
गंगा कावेरी मिलन क्या सपनों तक ही सीमित रहेगा? गोल्डन ट्राएंगल पचास साल बाद
शुरू हो रहा है, वह भी दुबे जैसे प्रतिबद्ध इंजीनियरों की कुर्बानियों से स्याह
क्यों हो रहा है?
***
ज़रूरत से ज्यादा चिंतन हो गया. प्रस्तुत है आज की ग़ज़लः
***
ग़ज़ल
****
ज़रा देखिए
इस भारत का क्या हाल हो रहा ज़रा देखिए
नेता अफ़सर माला माल हो रहा ज़रा देखिए
दक्षिण सूखा, पश्चिम सूखा पूरब की क्या बात
उत्तर बाढ़ से बुरा हाल हो रहा ज़रा देखिए
जिसने सीटी बजाई, व्यवस्था की बातें की
होना क्या है, वह काल हो रहा ज़रा देखिए
कुरसी के खेल में तोड़ डाले सब नियम
ये देश तो मकड़ जाल हो रहा ज़रा देखिए
प्रगति, विकास के नारे, समाज़वाद साम्यवाद
ऐसा पाखंड सालों साल हो रहा ज़रा देखिए
सभी लगे हैं झोली अपनी जैसे भी भरने में
मूर्ख अकेला रवि लाल हो रहा ज़रा देखिए
****
और, आखिर में छोटी सी एक हँसीः
एक स्लिमिंग सेंटर (वंदना लूथ़रा नहीं) के उपचार के उपरांत एक संभ्रांत महिला
इतनी पतली हो गई कि जब उसे बाज़ू से देखा जाता था, तो उसके न होने का अहसास होता
था... हा... हा...हा...
+*+*+*
अरूण शौरी, जो कि भारत के मात्र कुछेक गिने चुने प्रतिबद्ध मंत्रियों में से रहे
हैं, ने इंडियन एक्सप्रेस के अपने पिछले अंक में ग्राफ़िक डिटेल में सिलसिलेवार
यह बताया है कि किस तरह भारत के कुछ राजनेता शासकीय निगमों और उपक्रमों की आड़
लेकर शासकीय हजारों करोड़ रूपयों का वारा न्यारा करते हैं, और कहीं कोई
एकाउन्टीबिलिटी नहीं होती.
मेरे ही शहर का एक ज्वलंत उदाहरण है. शहर के मेयर द्वारा सिटी सेंटर नाम का एक
व्यावसायिक परिसर नगर निगम के सहयोग से बनाया. परंतु विकास की यह सीढ़ी विरोधी
पार्टी के नेताओं को पसंद नहीं आई लिहाजा उसमें तमाम तरह के हथकंडे लगाए गए और
मामला न्यायालय से लेकर शासन तक खिंच रहा है. शासन का करोड़ों रूपया व्यर्थ ही
उस अध_बने, अनुपयोगी सिटी सेंटर में बर्बाद हो रहा है, पर कहीं किसी को कोई
चिंता नही. किसी की कोई एकाउंटिबिलिटी नहीं. यह तो मात्र एक उदाहरण है. ऐसे
सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे. यहाँ तक कि आपके शहरों में भी दर्जनों उदाहरण मिल
जाएँगे. एक तरफ़ दिन प्रतिदिन करों में बढ़ोत्तरी कर आम जन से ज्यादा से ज्यादा
कर वसूला जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसी पैसे का दुरूपयोग तो दूर की बाद उपयोग ही
नहीं हो रहा है. एक राजनीतिक पार्टी अगर देश को आगे बढ़ाने कुछ योजना बनाती है,
तो दूसरी को उसमें सड़ांध नज़र आती है, और वे उसमें टंगड़ी मारते हैं. और हम
हैं, जहाँ के वहीं. विनोद धाम अमरीका जाकर एक्स८६ ऑर्किटेक्चर डिज़ाइन कर सकते
हैं, परंतु भारत में लाल फ़ीताशाही, राजनीति और इंस्पेक्टर राज के कारण क्या वे
यहाँ कुछ कर पाते? आपमें से कुछ को लग सकता है कि स्थिति उतनी बुरी भी नहीं है,
परंतु द्वितीय महायुद्ध में नेस्तनाबूद ज़ापान अगर अपनी सीमित रिसोर्सेज़ के साथ
पचास वर्षों में कहीं का कहीं पहुँच सकता है तो भारत घिसट क्यों रहा है अभी तक?
गंगा कावेरी मिलन क्या सपनों तक ही सीमित रहेगा? गोल्डन ट्राएंगल पचास साल बाद
शुरू हो रहा है, वह भी दुबे जैसे प्रतिबद्ध इंजीनियरों की कुर्बानियों से स्याह
क्यों हो रहा है?
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ज़रूरत से ज्यादा चिंतन हो गया. प्रस्तुत है आज की ग़ज़लः
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ग़ज़ल
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ज़रा देखिए
इस भारत का क्या हाल हो रहा ज़रा देखिए
नेता अफ़सर माला माल हो रहा ज़रा देखिए
दक्षिण सूखा, पश्चिम सूखा पूरब की क्या बात
उत्तर बाढ़ से बुरा हाल हो रहा ज़रा देखिए
जिसने सीटी बजाई, व्यवस्था की बातें की
होना क्या है, वह काल हो रहा ज़रा देखिए
कुरसी के खेल में तोड़ डाले सब नियम
ये देश तो मकड़ जाल हो रहा ज़रा देखिए
प्रगति, विकास के नारे, समाज़वाद साम्यवाद
ऐसा पाखंड सालों साल हो रहा ज़रा देखिए
सभी लगे हैं झोली अपनी जैसे भी भरने में
मूर्ख अकेला रवि लाल हो रहा ज़रा देखिए
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और, आखिर में छोटी सी एक हँसीः
एक स्लिमिंग सेंटर (वंदना लूथ़रा नहीं) के उपचार के उपरांत एक संभ्रांत महिला
इतनी पतली हो गई कि जब उसे बाज़ू से देखा जाता था, तो उसके न होने का अहसास होता
था... हा... हा...हा...
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मूर्ख अकेला रवि लाल हो रहा ज़रा देखिए
हटाएंवंदना लूथरा कौन है?
हटाएंवंदना लूथ़रा स्लिमिंग सेंटर (वीएलसीसी) भारत का एक प्रमुख़ स्लिमिंग सेंटर है, जिसकी भारत में कई शाखाएँ हैं.
हटाएंरवि