**** एक अखबार के संपादकीय में मैंने पढ़ा था कि नई सरकार ने जो कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाया है वह जो भी हो, अगर उसका नाम इंडिया डेवलपमेंट प्रो...
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एक अखबार के संपादकीय में मैंने पढ़ा था कि नई सरकार ने जो कॉमन मिनिमम प्रोग्राम
बनाया है वह जो भी हो, अगर उसका नाम इंडिया डेवलपमेंट प्रोग्राम रखा जाता तो शायद
उसका ज्यादा और भला असर लोगों पर पड़ता.
बहरहाल, जो भी हो, एक बात पर सभी आंखें मूंदे हुए हैं. देश की बढ़ती जनसंख्या.
उपलब्ध रिसोर्सेज़ सीमित हैं, और जनसंख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है.
सीएमपी कहता है कि दस लाख रोज़गार पैदा (कहाँ से?) किए जाएंगे. मान लिया भाई, पर
जनसंख्या तो अगले साल बीस लाख बढ़ गई.... यह एक बहुत बड़ी समस्या है और अपने
तत्कालीन राजनीतिक लाभ के लिए कोई भी सरकार उस तरफ़ निगाह नहीं डालना चाहती.
जाहिर है, इस साधन सम्पन्न राष्ट्र के साधन कुछ ही वर्षों में जब कम पड़ने
लगेंगे तो अराजकता से निपटने हेतु हमारे पास कुल्हड़ों के सिवा कुछ न रहेगा. सारा
देश कुल्हड़ मय हो जाएगा. या शायद हमें शीघ्र ही सद्बुद्धि आएगी...
इसी समस्या को सोचते दिमाग में कुछ पंक्तियाँ आईं तो लिख डाली एक ग़ज़ल जो पेश
हैः
(एक स्वीकारोक्ति करूँ, तो एक स्वस्थापित (?) ग़ज़लकार ने मेरी ग़ज़लें पढ़
टिप्पणी की कि लिखने से पहले मैं कोई उस्ताद ढूंढूं - ग़ज़ल कहना सीखने के
लिए... भाई वाह. क्या सलाह है. मगर, मुझे कोई यह बताए कि फिर उसका उस्ताद कौन है
जिसने जमाने की पहली ग़ज़ल कही... हा..हा..हा..हा...)
ग़ज़ल
धुआं ही धुआं भरा है क्यों हर तरफ़
सवाल ही सवाल फैले हैं क्यों हर तरफ़.
आखिर क्यों नहीं इस मर्ज़ का इलाज
भीड़ की भीड़ मौजूद है क्यों हर तरफ़.
समाज, देश, विश्व की बातें भूल कर
सब अपनी भलाई में हैं क्यों हर तरफ़.
खाने, पीने, पहनने, ओढ़ने का क्या हो
बिकवालों की बस्ती है क्यों हर तरफ़.
अगरचे यहाँ जीना है मुश्किल तो फिर
मरना अधिक कठिन है क्यों हर तरफ़.
कहते हैं लोग कि कल हो न हो रवि,
फिर कल की चिंता है क्यों हर तरफ़.
आपके अमूल्य समय के लिए बहुत सारा धन्यवाद.
अपनी टिप्पणी अवश्य लिखें ताकि मेरी लेखनी को संबल मिलता रहे...
छा गये रवि जी आप तो| कुछ रतलाम के बारे में भी लिख डालिए|
हटाएंकुछ तो हुआ है। कल हो न हो।
हटाएंबढ़िया है।