भारत में अपनी मातृभाषा हिंदी क्या सदैव ऐच्छिक ही बनी रहने को अभिशप्त है?

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हिंदी पखवाड़े में विश्व हिंदी दिवस और विश्व हिंदी सम्मेलन धूमधाम से सम्पन्न हो गया, और इधर, चहुँओर अंग्रेज़ी का साम्राज्य और अधिक तेजी से पस...

हिंदी पखवाड़े में विश्व हिंदी दिवस और विश्व हिंदी सम्मेलन धूमधाम से सम्पन्न हो गया, और इधर, चहुँओर अंग्रेज़ी का साम्राज्य और अधिक तेजी से पसरने लगा. हालात अब हिंदी को हिंग्लिश और रोहिंदी (रोमनहिंदी) की ओर धकेल रहे हैं.

एक ताज़ा उदाहरण - एक सच्चा योगी सन्यासी, जो सदा सर्वदा से स्वदेशी की वकालत करता रहा है, उसकी कंपनी ने जब स्वदेशी उत्पाद निकाले, तो उत्पादनों के विज्ञापन देते समय विज्ञापन एजेंसी ने स्वदेशी की हवा निकाल दी और सच्चा योगी सन्यासी को विदेशी घोषित कर दिया -

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वर्ल्ड क्लास क्वालिटी, लो प्राइस एंड 100% चेरिटी फ्रोम प्रोफिट्स।

ऐसी दिव्य भाषा एक सच्चा स्वदेशी प्रेमी ही तो लिख सकता है!

 

जाहिर है, हिंदी मर रही है और जो कुछ बची खुची रहेगी, वो रहेगी हिंग्लिश या रोहिंदी!

 

मगर, अगर यह, और ऐसा, हो रहा है तो आखिर क्यों और कैसे?

 

मुझे याद है, जब हम माध्यमिक स्कूल में पढ़ते थे तब अंग्रेज़ी हटाओ का नारा हमारे हिंदी प्रदेश - मध्य प्रदेश में भी आया था. तब, त्रिभाषा फार्मूले के तहत, अंग्रेज़ी माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा में अनिवार्य थी. तो सरकार ने अंग्रेज़ी की अनिवार्यता हटा दी. हमने जमकर खुशियां मनाई और अपनी स्कूली शिक्षा से इसे निकाल बाहर किया और स्कूल हिंदी मीडियम में पढ़े. मगर जैसे ही उच्च शिक्षा में आए, उच्च शिक्षा की कोई किताब हिंदी में थी ही नहीं. पढ़ने पढ़ाने को कोई शिक्षक हिंदी में मिलता ही नहीं था - अब भी नहीं है. प्रश्नपत्र हिंदी में आते ही नहीं थे. कहना न होगा कि गति सांप छछूंदर की तरह हो गई - न इधर के रहे न उधर के.

 

इस कहानी को बताने का उद्देश्य, आपने ठीक समझा - सरकारी अदूरदर्शिता पूर्ण आदेशों, और तात्कालिक राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से जारी किए गए आधे-अधूरे अदूरदर्शी नियम-कायदों की ओर ध्यान दिलाना है.

लंबे समय से भारत सरकार आईटी और कंप्यूटर की भाषा संबंधी नीतियों में भी यही और इसी तरह की अदूरदर्शिता पूर्ण नीतियाँ लागू करती करवाती आ रही है. ताज़ातरीन आईटी भाषा नीति में भी हिंदी और स्थानीय भाषाओं को वैकल्पिक / ऐच्छिक / डिज़ायरेबल की श्रेणी में रखा गया है, जाहिर है ऐसे में इस क्षेत्र में हिंदी और अन्य भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं की आईटी और कंप्यूटर क्षेत्रों में मृत्यु सुनिश्चित है. इससे बचने के लिए, हिंदी और अन्य भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए. इसकी प्रेरणा बांग्लादेश जैसे छोटे से देश से लेनी चाहिए. उदाहरण के लिए, जब फायरफ़ॉक्स ने अपना नया ऑपरेटिंग सिस्टम और नया मोबाइल फ़ोन जारी किया तो बांग्लादेश ने अपने देश में इसे जारी करने के लिए पूर्व शर्त रखी कि इंटरफ़ेस और कुंजीपट बांग्ला भाषा में तो होना ही चाहिए, वह भी बांग्लादेश की बांग्ला (ba_bn, न कि ba_in) में होना चाहिए न कि भारतीय बांग्ला में.

 

ग़नीमत है कि आईटी और कंप्यूटर क्षेत्रों में हिंदी के लिए कुछ स्वयंसेवी दल जी जान से लगे हुए हैं. जिससे हिंदी अपने रूप रंग को आईटी और कंप्यूटरों में बचाए हुए है. फायरफ़ॉक्स हिंदी स्थानीयकरण परियोजना भी इसी तरह का उपक्रम है जो अभी जीवंत और अग्रसक्रिय है. हाल ही में इस परियोजना से जुड़़े दल आपस में मिले और अपने अब तक के किये कार्यों की समीक्षा भी की.

mozilla hindi review 2015

विस्तृत समाचार आप आउटलुक पत्रिका की साइट पर यहाँ से पढ़ सकते हैं -

http://www.outlookhindi.com/media/social-media/hindi-pakhwada-media-review-on-mozilas-work-in-hindi-4049

प्रसंगवश, बीबीसी हिंदी में मेरा एक आलेख संपादित रूप से छपा था. उसे यहाँ प्रस्तुत करना समीचीन होगा -

हिंदी की बेहतरी के लिए भारत सरकार को ये 5 काम तुरंत ही करने चाहिए –

 

ज्यादा पुरानी बात नहीं है. एक दिन मेरे पास एक ईमेल आया. आईआईटी पास बंदे का पत्र था वह. पत्र में दुःखी स्वर में स्वीकारोक्ति थी कि नामी आईआईटी संस्थान से कंप्यूटर टेक्नोलॉज़ी में स्नातक होने के बावजूद वह हिंदी भाषा में लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम की उपलब्धता से अनभिज्ञ था. और, तब तक तो हिंदी समेत अन्य प्रमुख भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त, हमारा कंप्यूटर स्थानीय बोलियाँ - छत्तीसगढ़ी और मैथिली भी बोलने लग गया था – यानी इन भाषाओं में मुफ़्त व मुक्त स्रोत का लिनक्स जारी हो चुका था.

जाहिर है, तंत्र में गड़बड़ियाँ हैं, और शुरू से हैं. इन गड़बड़ियों को तुरंत ठीक किया जाना चाहिए. ये हैं कुछ उपाय जिनसे मामला बहुत कुछ सुलझ सकता है –

1

– कंप्यूटर तकनीकी की शिक्षा में एक प्रायोगिक विषय ‘स्थानीयकरण’ (लोकलाइज़ेशन) अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए. विषय में हिंदी अथवा राज्य की स्थानीय भाषा शामिल की जा सकती है. छात्र अपना प्रोजेक्ट अपनी पसंद की भाषा में करे. हिंदी भाषी हिंदी में करे, तमिलनाडु का तमिल में, उड़ीसा का ओडिया में.

2

– कंप्यूटिंग उपकरणों के साथ हिंदी/स्थानीय भाषा में हार्डवेयर कीबोर्ड की उपलब्धता अनिवार्य की जाए. टच स्क्रीन मोबाइल कंप्यूटिंग उपकरणों व ट्रांसलिट्रेशन औजारों का धन्यवाद, कि अब अपने कंप्यूटिंग उपकरणों में हिंदी में लिखने के लिए अधिक जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती. फिर भी, अभी भी बड़ी संख्या में जनता अच्छी खासी परेशान रहती है कि हिंदी में, आखिर, लिखें तो कैसे! हिंदी कीबोर्ड सामने रहेगा तो आदमी देख देख कर उपयोग करना सीख ही जाएगा. कंप्यूटिंग उपकरणों के इंटरफ़ेस व कीबोर्ड डिफ़ॉल्ट हिंदी/स्थानीय भाषा (यदि उपलब्ध हों) में ही हों. अभी होता यह है कि डिफ़ॉल्ट अंग्रेजी होता है, और हिंदी/स्थानीय भाषा का विकल्प होने के बावजूद सेटिंग में जाकर या अन्य डाउनलोड कर अथवा जुगाड़ से हिंदी/स्थानीय भाषा उपयोग में ली जाती है, जिससे लोग भाषाई कंप्यूटिंग से कन्नी काटते हैं.

3

– सभी उत्पादों के उत्पाद निर्देशिका (यूजर मैनुअल) हिंदी/स्थानीय भाषा में उपलब्ध करवाना अनिवार्य किया जाए. इससे उत्पादों को समझना आसान होगा. साथ ही, इस कदम से भाषाई तकनीकज्ञों, अनुवादकों तथा सामग्री सृजकों की एक नई बड़ी खेप तैयार तो होगी ही, उद्योग जगत में रोजगार का एक नया, वृहद रास्ता भी बनेगा.

4

– सीडैक (आदि तमाम सरकारी उपक्रमों) के तमाम कंप्यूटिंग औजार व संसाधन आम जन के लिए निःशुल्क जारी किए जाएं. बड़े ही दुःख और बड़ी ईमानदारी से कह रहा हूँ कि यदि करदाताओं के पैसे से बने, सीडैक के तमाम भाषाई उत्पाद जैसे कि आईलीप / लीप ऑफ़िस आदि शुरुआत से ही आम जनता के लिए निःशुल्क उपयोग के लिए जारी कर दिए गए होते तो भारत की भाषाई कंप्यूटिंग का इतिहास कुछ और होता. आज वह दस गुना ज्यादा समृद्ध होती. ख़ैर, अभी भी समय है सुधर जाने का.

5

– अंतिम, परंतु महत्वपूर्ण – सभी सरकारी साइटों का हिंदीकरण/स्थानीयकरण हो और वे डिफ़ॉल्ट रूप में हिंदी/स्थानीय भाषा में खुलें. स्थान (लोकेशन) के हिसाब से ब्राउज़र पर स्थानीय भाषा दिखे. यदि सामग्री हिंदी/स्थानीय भाषा में उपलब्ध न हो तब ही अंग्रेज़ी में खुले. अंग्रेज़ी भाषा तो वैकल्पिक रूप से रहे. अभी तो तमाम सरकारी साइटों की डिफ़ॉल्ट (प्राथमिक) भाषा अंग्रेज़ी होती है. साथ ही, हिंदी/स्थानीय भाषा में सामग्री सृजन हो, न कि अंग्रेज़ी से हिंदी का फूहड़, अफसरी अनुवाद जिसे पढ़ने समझने में ही पसीना आए और आदमी अंग्रेज़ी पन्नों की ओर फिर से दौड़ लगा दे.

 

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1986 से कंप्यूटर पर हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में कार्य करने वाले भाषा अधिकारी श्री हरिराम ने अपने ब्लॉग प्रगत भारत में भी समय समय पर इन्हीं किस्म की समस्याओं को उठाते रहे हैं. पिछले 9 वें विश्व हिंदी सम्मेलन के अवसर पर उन्होंने कर्ता-धर्ताओं से 10 यक्ष प्रश्न पूछे थे, जो अनुत्तरित रहे हैं -

 

9वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के प्रतिभागियों से 10 यक्ष प्रश्न
निम्न कुछ तथ्यपरक व चुनौतीपूर्ण प्रश्न 9वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में पधारे विद्वानों से करते हुए इनका उत्तर एवं समाधान मांगा जाना चाहिए...
(1)
हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने के लिए कई वर्षों से आवाज उठती आ रही है, कहा जाता है कि इसमें कई सौ करोड़ का खर्चा आएगा...
बिजली व पानी की तरह भाषा/राष्ट्रभाषा/राजभाषा भी एक इन्फ्रास्ट्रक्चर (आनुषंगिक सुविधा) होती है....
अतः चाहे कितना भी खर्च हो, भारत सरकार को इसकी व्यवस्था के लिए प्राथमिकता देनी चाहिए।
(2)
-- हिन्दी की तकनीकी रूप से जटिल (Complex) मानी गई है, इसे सरल बनाने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?

-- कम्प्यूटरीकरण के बाद से हिन्दी का आम प्रयोग काफी कम होता जा रहा है...
-- -- हिन्दी का सर्वाधिक प्रयोग डाकघरों (post offices) में होता था, विशेषकर हिन्दी में पते लिखे पत्र की रजिस्ट्री एवं स्पीड पोस्ट की रसीद अधिकांश डाकघरों में हिन्दी में ही दी जाती थी तथा वितरण हेतु सूची आदि हिन्दी में ही बनाई जाती थी, लेकिन जबसे रजिस्ट्री और स्पीड पोस्ट कम्प्यूटरीकृत हो गए, रसीद कम्प्यूटर से दी जाने लगी, तब से लिफाफों पर भले ही पता हिन्दी (या अन्य भाषा) में लिखा हो, अधिकांश डाकघरों में बुकिंग क्लर्क डैटाबेस में अंग्रेजी में लिप्यन्तरण करके ही कम्प्यूटर में एण्ट्री कर पाता है, रसीद अंग्रेजी में ही दी जाने लगी है, डेलिवरी हेतु सूची अंग्रेजी में प्रिंट होती है।
-- -- अंग्रेजी लिप्यन्तरण के दौरान पता गलत भी हो जाता है और रजिस्टर्ड पत्र या स्पीड पोस्ट के पत्र गंतव्य स्थान तक कभी नहीं पहुँच पाते या काफी विलम्ब से पहुँचते हैं।
-- -- अतः मजबूर होकर लोग लिफाफों पर पता अंग्रेजी में ही लिखने लगे है।
डाकघरों में मूलतः हिन्दी में कम्प्यूटर में डैटा प्रविष्टि के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?
(3)
-- -- रेलवे रिजर्वेशन की पर्चियाँ त्रिभाषी रूप में छपी होती हैं, कोई व्यक्ति यदि पर्ची हिन्दी (या अन्य भारतीय भाषा) में भरके देता है, तो भी बुकिंग क्लर्क कम्प्यूटर डैटाबेस में अंग्रेजी में ही एण्ट्री कर पाता है। टिकट भले ही द्विभाषी रूप में मुद्रित मिल जाती है, लेकिन उसमें गाड़ी व स्टेशन आदि का नाम ही हिन्दी में मुद्रित मिलते हैं, जो कि पहले से कम्प्यूटर के डैटा में स्टोर होते हैं, रिजर्वेशन चार्ट में नाम भले ही द्विभाषी मुद्रित मिलता है, लेकिन "नेमट्रांस" नामक सॉफ्टवेयर के माध्यम से लिप्यन्तरित होने के कारण हिन्दी में नाम गलत-सलत छपे होते हैं। मूलतः हिन्दी में भी डैटा एण्ट्री हो, डैटाबेस प्रोग्राम हो, इसके लिए व्यवस्थाएँ क्या की जा रही है?
(4)
-- -- मोबाईल फोन आज लगभग सभी के पास है, सस्ते स्मार्टफोन में भी हिन्दी में एसएमएस/इंटरनेट/ईमेल की सुविधा होती है, लेकिन अधिकांश लोग हिन्दी भाषा के सन्देश भी लेटिन/रोमन लिपि में लिखकर एसएमएस आदि करते हैं। क्योंकि हिन्दी में एण्ट्री कठिन होती है... और फिर हिन्दी में एक वर्ण/स्ट्रोक तीन बाईट का स्थान घेरता है। यदि किसी एक प्लान में अंग्रेजी में 150 अक्षरों के एक सन्देश के 50 पैसे लगते हैं, तो हिन्दी में 150 अक्षरों का एक सन्देश भेजने पर वह 450 बाईट्स का स्थान घेरने के कारण तीन सन्देशों में बँटकर पहुँचता है और तीन गुने पैसे लगते हैं... क्योंकि हिन्दी (अन्य भारतीय भाषा) के सन्देश UTF8 encoding में ही वेब में भण्डारित/प्रसारित होते हैं।
हिन्दी सन्देशों को सस्ता बनाने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?
(5)
-- -- अंग्रेजी शब्दकोश में अकारादि क्रम में शब्द ढूँढना आम जनता के लिेए सरल है, हम सभी भी अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश में जल्दी से इच्छित शब्द खोज लेते हैं,
-- -- लेकिन हमें यदि हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश में कोई शब्द खोजना हो तो दिमाग को काफी परिश्रम करना पड़ता है और समय ज्यादा लगता है, आम जनता/हिन्दीतर भाषी लोगों को तो काफी तकलीफ होती है। हिन्दी संयुक्ताक्षर/पूर्णाक्षर को पहले मन ही मन वर्णों में विभाजित करना पड़ता है, फिर अकारादि क्रम में सजाकर तलाशना पड़ता है...
विभिन्न डैटाबेस देवनागरी के विभिन्न sorting order का उपयोग करते हैं।
हिन्दी (देवनागरी) को अकारादि क्रम युनिकोड में मानकीकृत करने तथा सभी के उपयोग के लिए उपलब्ध कराने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
(6)
-- -- चाहे ऑन लाइन आयकर रिटर्न फार्म भरना हो, चाहे किसी भी वेबसाइट में कोई फार्म ऑनलाइन भरना हो, अधिकांशतः अंग्रेजी में ही भरना पड़ता है...
-- -- Sybase, powerbuilder आदि डैटाबेस अभी तक हिन्दी युनिकोड का समर्थन नहीं दे पाते। MS SQL Server में भी हिन्दी में ऑनलाइन डैटाबेस में काफी समस्याएँ आती हैं... अतः मजबूरन् सभी बड़े संस्थान अपने वित्तीय संसाधन, Accounting, production, marketing, tendering, purchasing आदि के सारे डैटाबेस अंग्रेजी में ही कम्प्यूटरीकृत कर पाते हैं। जो संस्थान पहले हाथ से लिखे हुए हिसाब के खातों में हिन्दी में लिखते थे। किन्तु कम्प्यूटरीकरण होने के बाद से वे अंग्रेजी में ही करने लगे हैं।
हिन्दी (देवनागरी) में भी ऑनलाइन फार्म आदि पेश करने के लिए उपयुक्त डैटाबेस उपलब्ध कराने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
(7)
सन् 2000 से कम्प्यूटर आपरेटिंग सीस्टम्स स्तर पर हिन्दी का समर्थन इन-बिल्ट उपलब्ध हो जाने के बाद आज 12 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक अधिकांश जनता/उपयोक्ता इससे अनभिज्ञ है। आम जनता को जानकारी देने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
(8)
भारत IT से लगभग 20% आय करता है, देश में हजारों/लाखों IITs या प्राईवेट तकनीकी संस्थान हैं, अनेक कम्प्यूटर शिक्षण संस्थान हैं, अनेक कम्प्टूर संबंधित पाठ्यक्रम प्रचलित हैं, लेकिन किसी भी पाठ्यक्रम में हिन्दी (या अन्य भारतीय भाषा) में कैसे पाठ/डैटा संसाधित किया जाए? ISCII codes, Unicode Indic क्या हैं? हिन्दी का रेण्डरिंग इंजन कैसे कार्य करता है? 16 bit Open Type font और 8 bit TTF font क्या हैं, इनमें हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाएँ कैसे संसाधित होती हैं? ऐसी जानकारी देनेवाला कोई एक भी पाठ किसी भी कम्प्यूटर पाठ्यक्रम के विषय में शामिल नहीं है। ऐसे पाठ्यक्रम के विषय अनिवार्य रूप से हरेक computer courses में शामिल किए जाने चाहिए। हालांकि केन्द्रीय विद्यालयों के लिए CBSE के पाठ्यक्रम में हिन्दी कम्प्यूटर के कुछ पाठ बनाए गए हैं, पर यह सभी स्कूलों/कालेजों/शिक्षण संस्थानों अनिवार्य रूप से लागू होना चाहिए।
इस्की और युनिकोड(इण्डिक) पाठ्यक्रम अनिवार्य करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
(9)
हिन्दी की परिशोधित मानक वर्तनी के आधार पर समग्र भारतवर्ष में पहली कक्षा की हिन्दी "वर्णमाला" की पुस्तक का संशोधन होना चाहिए। कम्प्यूटरीकरण व डैटाबेस की "वर्णात्मक" अकारादि क्रम विन्यास की जरूरत के अनुसार पहली कक्षा की "वर्णमाला" पुस्तिका में संशोधन किया जाना चाहिए। सभी हिन्दी शिक्षकों के लिए अनिवार्य रूप से तत्संबंधी प्रशिक्षण प्रदान किए जाने चाहिए।
इसके लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
(10)
अभी तक हिन्दी की मानक वर्तनी के अनुसार युनिकोड आधारित कोई भी वर्तनी संशोधक प्रोग्राम/सुविधा वाला साफ्टवेयर आम जनता के उपयोग के लिए निःशुल्क डाउनलोड व उपयोग हेतु उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। जिसके कारण हिन्दी में अनेक अशुद्धियाँ के प्रयोग पाए जाते हैं।

इसके लिए क्या व्यवस्थाएँ की जा रही हैं?

 

हरिराम ने अपने प्रश्नों में कुछ जोड़ घटा कर 10 वें विश्व हिंदी सम्मेलन के कर्ताधर्ताओं से पूछा है -

 

10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के प्रतिभागियों से 10 यक्ष प्रश्न

निम्न कुछ तथ्यपरक व चुनौतीपूर्ण प्रश्न 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में पधारे विद्वानों से किए जा रहे हैं। उत्तर अपेक्षित है।

(1)

-- इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर अधिकांश प्रत्याशियों एवं आम जनता का अभ्यास क्यों नहीं है?
सन् 1991 में भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा कम्प्यूटरों में भारतीय भाषाओं में काम करने की सुविधा के लिए इस्की कूट (ISCII code) के मानकीकरण के अन्तर्गत हिन्दी तथा 10 ब्राह्मी आधारित भारतीय भाषाओं के लिए एकसमान इनस्क्रिप्ट (Inscript) कीबोर्ड को मानकीकृत किया गया था। इसका व्यापक प्रचार भी किया गया। लेकिन सन् 2000 में विण्डोज में अन्तर्राष्ट्रीय युनिकोड (Unicode) मानक वाली हिन्दी भाषा की सुविधा अन्तःनिर्मित रूप से आने के बाद ‘इस्की कोड’ मृतप्रायः हो गए। किन्तु युनिकोड में भी इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड का वही मानक विद्यमान रहा। इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड के मानकीकरण के दीर्घ 21 वर्षों के बाद राजभाषा विभाग के दिनांक 17 फरवरी 2012 के तहत आदेश जारी किया गया कि "1 अगस्त 2012 से सभी नई भर्तियों के लिए टाइपिंग परीक्षा इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड पर लेना अनिवार्य हो।" हाल ही में अगस्त-2015 में एक केन्द्रीय सरकारी संगठन में हिन्दी पद के लिए हिन्दी टंकण परीक्षा हेतु 40 प्रत्याशी उपस्थित हुए। लेकिन कोई भी इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर परीक्षा देने में सक्षम नहीं था, सभी वापस चले गए, सिर्फ 3 प्रत्याशियों ने ही इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर परीक्षा देने का प्रयास किया, लेकिन लगभग 500 शब्दों के प्रश्नपत्र में से अधिकतम टंकण करनेवाला प्रत्याशी भी 10 मिनट के समय में सिर्फ 52 शब्द टाइप कर पाया। इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर आम जनता या प्रत्याशियों का अभ्यास न होने के क्या कारण हैं और इसका क्या निवारण किया जा रहा है?
(2)

-- हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में कम्प्यूटरों में इनपुट के लिए विद्यार्थियों तथा आम जनता के लिए इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर प्रशिक्षण व्यवस्था क्यों नहीं है?

राजभाषा विभाग द्वारा हिन्दी टंकण एवं आशुलिपि प्रशिक्षण भी पिछले लगभग 10-12 वर्षों से कम्प्यूटरों पर ही दिया जा रहा है। मानकीकृत इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर टंकण करने हेतु प्रशिक्षण दिया जाता है। किन्तु यह प्रशिक्षण केवल केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों को ही दिया जाता है। विद्यार्थियों तथा सरकारी नौकिरियों में टंकण तथा आशुलिपिक पदों पर नई भर्ती के लिए प्रत्याशियों या आम जनता को इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर प्रशिक्षण देने हेतु देशभर में कोई पर्याप्त/उचित व्यवस्था कब तक की जाएगी?

(3)
-- डाकघरों से हिन्दी में पते लिखे पत्रों की रजिस्ट्री एवं स्पीड पोस्ट की रसीदें हिन्दी में कबसे मिलेंगी?

डाकघरों (post offices) में स्पीड पोस्ट या रजिस्टरी से हिन्दी में पते लिखे पत्र भेजने पर भी रसीद अंग्रेजी में ही दी जाती है, क्योंकि बुकिंग क्लर्क केवल अंग्रेजी में कम्प्यूटर में टाइप करता है। 1991 अर्थात् गत 24 वर्ष पहले से इन्स्क्रिप्ट की बोर्ड मानकीकृत होने के तथा निःशुल्क व अन्तर्निर्मित रूप से सन् 2000 से सभी कम्प्यूटरों उपलब्ध होने के बावजूद अभी तक डाकघरों में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में पते लिखे पत्रों की बुकिंग रसीद केवल अंग्रेजी में ही क्यों दी जा रही है? इसीप्रकार रेलवे रिजर्वेशन काउंटर पर टिकट लेते वक्त बुकिंग क्लर्क कम्प्यूटर में हिन्दी में विवरण कबसे दर्ज करेंगे?
(4)
-- भारत में बिकने वाले सभी मोबाईल/स्मार्टफोन में हिन्दी आदि संविधान में मान्यताप्राप्त 22 भाषाओं में एस.एम.एस., ईमेल आदि करने हेतु पाठ के आदान-प्रदान की सुविधा अनिवार्य रूप से क्यों नहीं मिलती?

-- राजभाषा विभाग द्वारा सभी इलेक्ट्रानिक उपकरण द्विभाषी/बहुभाषी ही खरीदने के लिए 1984 से आदेश जारी किए गए हैं, लेकिन भारत में बिकनेवाले सभी मोबाईल/स्मार्टफोन में हिन्दी तथा संविधान में मान्यताप्राप्त 22 भाषाओं की सुविधा अनिवार्य रूप से उपलब्ध होनी चाहिए। इसके लिए ट्राई द्वारा आदेश क्यों नहीं जारी जाते? कब तक यह सुविधाएँ अनिवार्य रूप से उपलब्ध होंगी?
(5)
हिन्दी माध्यम से विज्ञान, तकनीकी, वाणिज्य, मेडिकल, अभियांत्रिकी आदि की उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम कब तक उपलब्ध होंगे?
अभी तक विज्ञान, तकनीकी, वाणिज्य, मेडिकल, अभियांत्रिकी आदि की उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम हिन्दी में क्यों उपलब्ध नहीं कराए जा सके हैं तथा कब तक उपलब्ध करा दिए जाएँगे एवं इन विषयों में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में शिक्षा कबसे शुरू हो पाएगी?
(6)
केन्द्रीय सरकारी नौकरियों में नई भर्ती के लिए अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी में भी काम करने में सक्षम प्रत्याशियों को प्राथमिकता दिए के आदेश कब से जारी होंगे?
अभी तक केन्द्र सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए अंग्रेजी का ज्ञान होना अनिवार्य है। राजभाषा अधियनियम के अनुसार केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों को हिन्दी शिक्षण योजना के अन्तर्गत हिन्दी का सेवाकालीन प्रशिक्षण दिलाया जाता है एवं परीक्षाएँ पास करने पर पुरस्कार स्वरूप आर्थिक लाभ दिए जाते हैं, जिसमें केन्द्र सरकार को काफी खर्च करना पड़ता है और हिन्दी प्रशिक्षण प्राप्त कर्मचारी भी हिन्दी में सरकारी काम पूरी तरह नहीं कर पाते। अतः बेहतर तथा बचत देते वाला उपाय यह होगा यदि आम जनता व प्रत्याशियों के लिए हिन्दी प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए एवं अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर्मचारियों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाए। यह व्यवस्था कब तक लागू की जाएगी?
(7)
"भारतीय मानक - देवनागरी लिपि एवं हिन्दी वर्तनी" आईएस 16500:2012 भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा अगस्त 2012 में नवीनतम मानक जारी किए गए थे, जिनका व्यापक प्रचार किया जाना तथा इन्हें सभी हिन्दी कर्मियों, हिन्दी शिक्षकों, प्राध्यापकों, हिन्दी भाषियों को निःशुल्क जारी किया जाना आवश्यक है? लेकिन इस पुस्तिका को बेचा जा रहा है और केवल खरीदनेवाले व्यक्ति को ही इसका उपयोग करने का लाईसैंस जारी किया जा रहा है। क्या मानकों के अनुसार देवनागरी लिपि तथा हिन्दी वर्तनी का उपयोग करने के लिए हरेक हिन्दी-कर्मियों, हिन्दी-भाषियों को भारतीय मानक ब्यूरो से लाईसैंस खरीदना होगा? यदि हाँ, तो क्या सभी हिन्दी-भाषी लाईसैंस खरीद पाएँगे? इसप्रकार विश्वभर में शुद्ध हिन्दी का उपयोग कैसे सफल हो पाएगा? इन मानकों के आधार पर बने हिन्दी वर्तनीशोधक (spell checker) सभी साफ्टवेयर तथा ईमेल व इंटरनेट ब्राऊजरों पर कब तक उपलब्ध हो सकेंगे?
(8)
"भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के “भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास” प्रभाग द्वारा हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के लाखों रुपये मूल्य के सॉफ्टवेयर उपकरण निःशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं। वेबसाइट पर ये निःशुल्क डाउनलोड के लिेए भी उपलब्ध कराए गए हैं। किन्तु अधिकांश लोग इतना भारी डाउनलोड करने में समर्थ नहीं हो पाते। मांगकर्ता व्यक्ति को इनकी सी.डी. भी निःशुल्क भेजी जाती है। इसमें सरकार का काफी खर्च भी होता है। यदि इनमें से हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के कुछ प्रमुख फोंट्स एवं सॉफ्टवेयरों को विण्डोज, लिनक्स, आईओएस आदि आपरेटिंग सीस्टम्स के ओटोमेटिक अपडेट के पैच में शामिल करवा दिया जाए तो अनिवार्यतः भारत में प्रयोग होनेवाले सभी कम्प्यूटरों में ये स्वतः उपलब्ध हो सकते हैं और विश्वभर की समस्त जनता हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं का उपयोग करने में समर्थ हो पाती और सरकार के खर्च की भी बचत होती। यह कार्य कब तक करवा दिया जाएगा?
(9)
"युनिकोड में हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के मूल व्यंजनों, संयुक्ताक्षरों की एनकोडिंग नहीं हुई है, जिसके कारण इन भाषाओं की प्रोसेसिंग "रेण्डरिंग इंजिन" आदि तीन-स्तरीय जटिल अलगोरिद्म के तहत होती है और ‘पेजमेकर’, ‘कोरल ड्रा’ आदि डी.टी.पी. पैकेज के पुराने वर्सन में युनिकोडित भारतीय फोंट्स का प्रयोग नहीं हो पाता। इनके नए वर्सन काफी मंहगे होने के कारण छोटे प्रेस प्रयोग नहीं कर पाते। युनिकोडित हिन्दी फोंट से पी.डी.एफ. बनी फाइल को वापस पाठ (text) रूप में सही रूप में बदलना भी संभव नहीं हो पाता। और समाचार-पत्रों/पत्रिकाओं को अपने मुद्रित अंक के लिए पुराने 8-बिट फोंट में पाठ संसाधित करना पड़ता है तथा वेबसाइट पर ई-पत्र-पत्रिका के लिए युनिकोडित 16-बिट फोंट में संसाधित करने की दोहरी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। जिससे हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं का प्रयोग कठिन बन जाता है। युनिकोड में मूल व्यंजनों तथा संयुक्ताक्षरों की एनकोडिंग करवाने या इण्डिक कम्प्यूटिंग को एकस्तरीय और सरल बनाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं।

(10)
भारत को अंग्रेजों की दासता से स्वाधीन हुए 68 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक अंग्रेजी की दासता से स्वाधीन नहीं हो पाया। इसका एक कारण है शिक्षा में हिन्दी की नहीं अंग्रेजी की अनिवार्यता है। शिक्षा भले ही मौलिक अधिकार के अन्तर्गत आती है, लेकिन शिक्षा व्यवस्था प्रान्तीय सरकारों के अधीन हो रही है। यदि शिक्षा प्रणाली को केन्द्र सरकार अपने हाथ में लेती और त्रिभाषी(प्रान्तीय भाषा – हिन्दी – अंग्रेजी) फार्मूले को भी सही रीति लागू करे तो पहली से 10वीं कक्षा तक सिर्फ 10 वर्ष में अधिकांश जनता हिन्दी में निपुण हो जाती। यदि गाँव-गाँव में केन्द्रीय विद्यालय, हर प्रखण्ड/जिला स्तर पर केन्द्रीय महाविद्यालय और हर प्रान्त में केन्द्रीय विश्वविद्यालय चालू कर दिए जाएँ तो समग्र भारत में हिन्दी और भारतीय भाषाओं का समुचित विकास और प्रयोग सुनिश्चत हो सकता है। इस दिशा में क्या कदम उठाए जा रहे हैं और इसे कब तक लागू किया जा सकेगा?
उल्लेखनीय है कि 9वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के विद्वानों से 10 यक्ष प्रश्न पूछे गए थे, जिनका उत्तर अभी तक अपेक्षित है।

n हरिराम

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छींटे और बौछारें: भारत में अपनी मातृभाषा हिंदी क्या सदैव ऐच्छिक ही बनी रहने को अभिशप्त है?
भारत में अपनी मातृभाषा हिंदी क्या सदैव ऐच्छिक ही बनी रहने को अभिशप्त है?
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छींटे और बौछारें
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