क्या हिंदी कंप्यूटर-फ़्रैंडली है? क्या कंप्यूटर हिंदी-फ़्रैंडली है? और यह भी - क्या हम हिंदी-फ़्रैंडली हैं?

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कंप्यूटर-क्षमता में हम और हिंदी कहाँ हैं, हमारी ताक़तें और कमज़ोरियाँ क्या हैं ? कंप्यूटरी भाषा में पूछें तो क्या हिंदी कंप्यूटर-फ़्रैंडली ...

कंप्यूटर-क्षमता में हम और हिंदी कहाँ हैं, हमारी ताक़तें और कमज़ोरियाँ क्या हैं? कंप्यूटरी भाषा में पूछें तो क्या हिंदी कंप्यूटर-फ़्रैंडली है? क्या कंप्यूटर हिंदी-फ़्रैंडली है? और यह भी क्या हम हिंदी-फ़्रैंडली हैं?

कोशकार अरविंद कुमार द्वारा विहंगावलोकन

कंप्यूटर-फ़्रैंडली, हिंदी-फ़्रैंडली, विश्व-फ़्रैंडली

यह युग सूचना प्रौद्योगिकी का यानी कंप्यूटर युग है. जो काम पहले कभी बरसों में हुआ करते थे अब कंप्यूटर की सहायता से कुछ दिनों, घंटों या मिनटों में हो जाते हैं. संसार का ज्ञान सिमट कर हमारी मेज़ पर या हमारी गोदी में रखे लैपटाप पर आ सकता है. प्रबंधन की गहन समस्याएँ, उत्पादन प्रक्रिया का स्वचालनीकरण, बैंकों का हिसाब किताब, वायुयान या रेलवे की बुकिंग सब कुछ तत्काल. देश के किसी भी कोने में अपने रुपए निकाल लो. बैंक जाओ पूरे साल के ब्योरे का प्रिंटआउट ले आओ.

यह संभव करने वाली गणना प्रणाली का नाम है कंप्यूटर की दो अंकों वाली बाइनेरी (द्वितीय लव, युग्मक, द्वैत) प्रणाली. इसमें कुल दो अंक हैं – एक और शून्य, हाँ और ना. [उदाहरण – हमारी प्रचलित दशम लव प्रणाली के 1, 2, 3, 4 बाइनेरी में लिखे जाते हैं 1, 10, 11, 100] इस गणन विधि की क्षमता अपरंपार है. इस की सहायता से कंप्यूटर के मानीटर (स्क्रीन) पर चित्र/ध्वनि दिखाए जा सकते हैं, समाचार-लेख-ग्रंथ लिखे और छापे जाते हैं. संदेश कुछ ही पलों में पृथ्वी के किसी भी कोने में पहुँच जाते हैं.

नतीजा यह हुआ है कि काग़ज़ क़लम की जगह कंप्यूटर लेता जा रहा है. सारी किताबें, दैनिक पत्र, टीवी के डिजिटल चैनल, उन के सारे सीरियल और समाचार – सब के सब – इन्हीं 1 और 0 के सहारे हमारे पास आते हैं. आम आदमी की ज़िंदगी में कंप्यूटर की लिखने पढ़ने की क्षमता ही सब से ज़्यादा काम आती है. कुछ प्रमुख लिपि हैं: चित्रलिपि (जैसे चीनी लिपि), अक्षर लिपि (जैसे रोमन - इंग्लिश), उच्चारण लिपि (ब्राह्मी से निकली देवनागरी आदि).

इंग्लिश अक्षर ग्राफिक (तस्वीर) होते हैं. उनकी अपनी कोई एक सुनिश्चित ध्वनि नहीं होती. स्वर ‘ए’ कभी ‘अ’ होता है, कभी ‘आ’, कभी ‘ए’, ‘ऐ’. व्यंजन ‘सी’ कभी ‘स’ होता है, कभी ‘क’ और ‘च’ भी. ‘ऐस’ अकसर ‘स’ है, लेकिन ‘ज़’ भी है, ‘श’ भी है. इंग्लिश उच्चारण कई बार संदर्भ पर भी निर्भर करता है: इंग्लिश में लिखा minute एकम घंटे के साठवें भाग के तौर पर मिनट बोला जाता है, लेकिन सूक्ष्म के अर्थ में माइन्यूट! ये उच्चारण स्वयं इंग्लिश बोलने वालों को बचपन से सीखने होते हैं.

ब्राह्मी से निकली लिपियोँ की ख़ूबी है: जैसा लिखना वैसा बोलना. यानी वे सब ध्वनि आधारित हैं. सब का उच्चारण सुनिश्चित है. ‘क’ का उच्चारण कबूतर वाला ‘क’ ही होगा. यह तथ्य हिंदी आदि को पूरी तरह कंप्यूटर-फ़्रैंडली बनाता है.

इनस्क्रिप्ट और फिर यूनिकोड क्रांति...

कुछ साल पहले तक हिंदी टंकण (पहले टाइपराइटर और बाद में कंप्यूटर पर) ग्राफिक मोड में होता था. इम मोड में ‘आ’ टाइप करने के लिए पहले ‘अ’ और उसके बाद ‘आ का डंडा’ टाइप करते थे, ‘कि’ लिखने के लिए पहले ‘इ की मात्रा टाइप’ करते थे, बाद में ‘क’. हर कंप्यूटर कंपनी पर अलग अलग फ़ौंट होते थे. इस अराजकता का सीधा दुष्प्रभाव हिंदी को संसार के हर कंप्यूटर तक पहुँचाने में सब से बड़ी बाधा था. देखने वाले के कंप्यूटर पर भेजने वाले का फ़ौंट न हो तो वह कुछ नहीं देख पाता था.

1985-86 के आसपास हमारे मेधावी कंप्यूटरविदोँ ने टाइपिंग की एक नई विधि (इनस्क्रिप्ट) बनाई. इसमें कंप्यूटर पर हम अक्षर नहीं ध्वनि (उच्चारण) टाइप करते हैं. अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ जैसे स्वरों, उनकी मात्राओं तथा हलंत चिह्न के लिए स्वतंत्र कुंजियां बनाई गईं. इसी तरह सभी व्यंजनों की ध्वनियोँ की भी कुंजियाँ बनीं. सभी व्यंजनों को आधा करने के लिए हलंत लगाने का प्रावधान किया गया. अब ‘कि’ लिखने के लिए हम पहले ‘क’ टाइप करते हैँ, फिर ‘इ’ की मात्रा. और भी अच्छा उदाहरण है ‘क्ति’ टाइप करना. पहले ‘क’ टाइप करो, फिर हलंत, फिर ‘त’ और अब छोटी ‘इ’ की मात्रा. बन गया ‘क्ति’!

इस आविष्कार से एक महत्वपूर्ण लाभ और हुआ. अब हिंदी में डाटाबेस बनाना संभव हो गया. [डाटाबेस - डाटा (तथ्य/सूचना) का इस प्रकार संकलन कि वांछित सूचना को आसानी से और लगभग तत्काल खोजा/निकाला जा सके. बैंकों के सारे खाते, जमा या निकाली रक़म की जानकारी या रेलवे टिकटों की क़ीमत/बुकिंग आदि का हिसाब-किताब डाटाबेस या विशाल तालिका होता है.] पहले हिंदी में केवल आरंभिक स्तर की टाइपिंग (डीटीपी – डैस्क टाप पब्लिशिंग) हो सकती थी. अब डाटाबेस बनने शुरू हुए. मेरे दो भागोँ वाले समांतर कोश (प्रकाशक- नेशनल बुक ट्रस्ट-इंडिया, नई दिल्ली) और तीन भागोँ वाले द पेंगुइन इंग्लिश-हिंदी/हिंदी-इंग्लिश थिसारस ऐंड डिक्शनरी (अब मेरी कंपनी - अरविंद लिंग्विस्टिक्स प्रा. लि., ई-28 प्रथम तल, कालिंदी कालोनी, नई दिल्ली 110065 - से उपलब्ध) के विशाल डाटाबेस इस क्षमता के कारण ही बन पाए.

और अब इंटरनैट पर उपलब्घ बृहद द्विभाषी कोश अरविंद लैक्सिकन (http://arvindlexicon.com/lexicon) इसी की देन है. इसी के सहारे पर इंटरनैट पर तरह तरह के हिंदी, हिंदी-इंग्लिश, इंग्लिश-हिंदी कोश मिलते हैं. इस के ज़रिए दुनिया भर के लोगों को हिंदी सीखने-सिखाने-सुधारने का रास्ता खुल गया. इन की सहायता से विदेशों में बसे भारतीयों की दूसरी-तीसरी पीढ़ी के बच्चोँ के लिए अब इंग्लिश शब्दों के द्वारा हिंदी सीखने-सिखाने और सुधारने का सर्वोत्तम साधन. हर दिन यह उपयोगिता और लोकप्रियता की नई मंज़िलें छू रहा है.

फिर भी आज से दस-बारह साल पहले तक भारतीय लिपियों में इंटरनैट का उपयोग आकाश कुसुम ही था. यह समस्या अकेली हिंदी या तमिल की ही नहीं थी. रोमन लिपि के अतिरिक्त संसार की सभी भाषाओं के सामने यही कठिनाई थी. इसे दूर करने के लिए कोई दस साल पहले यूनिकोड नाम की एक और क्रांति हुई. संसार की सारी लिपियोँ को एक ही कीबोर्ड पर टाइप करने की क्षमता देने वाला यूनिकोड बना. यह सारी दुनिया के भाषाविदों और कंप्यूटर पंडितों ने मिल बैठ कर तैयार किया. सारी लिपियाँ और भाषाएँ एक ही कुंजीपटल पर टाइप करने की क्षमता पैदा हुई. दुनिया के किसी भी कोने में उन्हें देख पढ़ पाने की सुविधा मिली. इस प्रकार कंप्यूटर पूरी तरह विश्व-फ़्रैंडली बन गए.

आख़िर यूनिकोड है क्या?

यह संसार की सभी लिपियोँ को एक माला में पिरोने के प्रयासोँ का सफल परिणाम है. इस में संसार की हर लिपि के एक एक अक्षर को एक सुनिश्चित संख्या दी गई है और इंस्क्रिप्ट को भी उस मेँ समाहित कर लिया गया है. कंप्यूटर और डिजिटल संप्रेषण (ईमेल, इंटरनैट आदि) को विश्व-फ़्रैंडली बनाने के लिए यह मूलभूत आवश्यकता थी. तभी इंटरनैट की फ़ौंट अराजकता समाप्त हो सकती थी और हमारी सभी भाषाओँ विशेषकर हिंदी को दुनिया तक बड़े सहज भाव से पहुँचाया जा सकता था. इसके 1991 से ही प्रयास आरंभ किए गए. यूनिकोड कंसौर्शियम नामक अलाभ संस्था ने इसके मानक तैयार किए.

यूनिकोड करता क्या है? यह प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नंबर प्रदान करता है, चाहे कोई भी प्लैटफॉर्म हो, चाहे कोई भी प्रोग्राम हो, चाहे कोई भी भाषा हो. यूनिकोड स्टैंडर्ड को ऐपल, एचपी, आईबीएम, जस्ट सिस्टम, माईक्रोसाफ़्ट, औरेकल, सैप, सन, साईबेस, यूनिसिस जैसी उद्योग की प्रमुख कंपनियों ने इस अपनाया और अब यह सर्वमान्य हो चुका है. इस का हिंदी कोड नीचे के चित्र में दिखाया गया है-

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यूनिकोड में देवनागरी के हर अक्षर की क्रम संख्या ऊपर के चित्र में दिखाई गई है. यूनिकोड में यह क्रम बिल्कुल वही है जो इंस्क्रिप्ट में था. बत्तीस बिट वाली संपूर्ण तालिका में देवनागरी को U+090 से U+097 तक की संख्याएँ दी गई हैं. इस से कम और अधिक वाली संख्याएँ अन्य लिपियोँ के लिए हैँ.

कोई त्रुटिहीन वर्तनी जाँचक नहीं अभी तक नहीँ बना है. रुकावट है - हिंदी में हर अख़बार की, हर प्रकाशक की और लेखक की भी अपनी अलग वर्तनी. हिज्ज़ों का कोई मानकीकरण नहीं है. कोई ‘गयी’ लिखता है, कोई ‘गई’. कोई भी संस्थान दूसरे की वर्तनी स्वीकार नहीं करता. हरएक को अपना जाँचक चाहिए. दूसरी बाधा है किसी के पास पूरी हिंदी शब्दावली का डाटा नहीं है. शब्दावली है भी, तो शब्दों के भिन्न रूप नहीं हैं. जाना क्रिया के वर्तनी भेद से इतने सारे रूप बनते हैं – (अकारादि क्रम से) गई, गए, गया, गयी, गये जा, जाइए, जाइएगा, जाऊँगा, जाऊँगी, जाएंगी, जाएँगे, जाएंगे, जाए, जाएगा, जाएगी, जाओ, जाओगी, जाओगे, जाने. हिंदी के सभी शब्दों के रूप अभी तक किसी ने जैनरेट नहीं किए हैं. [मैंने कुछ चुने शब्दों के ऐसे रूप जैनरेट कर के अरविंद लैक्सिकन में डालना शुरू किया है. काम ऊबाऊ पर कर रहा हूँ. बरसों लगेंगे. कब तक कर पाऊँगा? – बयासी पूरे कर चुका हूँ. पता नहीं कितने बाक़ी हैं?]

कितने कंप्यूटर-फ़्रैंडली हुए अब तक हम?

हिंदी के लगभग सभी अख़बार, पत्रपत्रिकाएँ और उनके दफ़्तर कंप्यूटरित हो चुके हैं. सामान्य हिंदी पत्रकार कंप्यूटर-सक्षम है. लेखक-साहित्यकार कंप्यूटर से लाभ नहीं उठा रहे. पुराने ज़माने के लोगों की बात करेँ तो इंग्लिश में लिखने वाले ख़ुशवंत सिंह (अब तो वह बहुत बूढ़े गए, पर पंदरह साल पहले भी) काग़ज़ क़लम का ही इस्तेमाल करते हैं. कमलेश्वर पलंग पर पालथी मार कर हाथ से लिखते रहे. ऐसे लोग अज्ञानवश कंप्यूटर से दूर भागते हैं. उनके मन में डर था और है कि वे कंप्यूटर पर काम कर पाएँगे भी या नहीं. उनके सामने मैं अपना उदाहरण रखना चाहता हूँ. तिरेसठ बरस पूरे करने के बाद मैंने कंप्यूटर लिया, और बड़ी आसानी से उस पर काम करने लगा. बेहद आसान था यह - तब क्रांतिकारी इनस्क्रिप्ट कुंजीपटल बन चुका था.

एक दिक्क़त और है. धन की. नौजवान हिंदी वालोँ के पास कंप्यूटर के लिए पैसा नहीं होता. यहाँ काम आएँगे सस्ते टौबलेट और लैपटाप.

टैबलेट लैपटाप बन सकते हैं महान मानव संसाधन!

अब अगर सरकारें सभी छात्रों को टैबलेट (ऐंड्राइड) या लैपटाप कंप्यूटर देने का वादा पूरा कर पाईं, तो हमारे पास एक पूरी कंप्यूटर-फ़्रैंडली हिंदी सेना तैयार हो जाएगी. जनसांख्यिक आकलनों और भावी संभावनाओँ के आधार पर पच्चीस साल बाद यह सेना जनसंख्या में संसार की सबसे बड़ी युवा सेना होगी. एक महान मानव संसाधन! हिंदी का प्रचार तो तेज़ी से होगा ही. इस से जो नई पीढ़ी बड़ी होगी वह पुरातन से अधुनातम की और स्वयं बढेगी, हिंदी को और देश को दुनिया भर में बढ़ाएगी.

हर दसवीँ-पास को टैबलेट पर बारहवीं की सभी पाठ्य पुस्तकें और बारहवीँ-पास को बी.ए. की सभी पुस्तकेँ प्रीलोडित मिलनी चाहिए. इस से किताबें छापने पर जो काग़ज़ और स्याही ख़र्च होते हैं, वे बचेंगे. वन संरक्षण में भारी सहायता मिलेगी. मेरा प्रस्ताव है कि प्रति ऐंड्राइड के हिसाब से प्रति पुस्तक और कोश के लिए अगर पाँच पाँच रुपए रायल्टी दी जाए तो प्रकाशक बड़ी आसानी से राज़ी हो जाएँगे. उन का छपाई-बँधाई-बिकाई का सारा व्यय जो बच रहा है. सवाल एक दो कंप्यूटरों का नहीं लाखोँ करोड़ों का है.

स्पष्ट है - इस से प्रति कंप्यूटर लागत बढ़ जाएगी. मेरा अनुमान है कि यह लागत लगभग ढाई-तीन सौ रुपए बैठेगी. लेकिन राष्ट्रीय बचत तो अनुमानातीत होगी. अरबों रुपए हर साल! हर छात्र का किताबोँ का कितना ख़र्च बचेगा! देश का काग़ज़ और छपाई का ख़र्च! (वन संरक्षण अलग से होगा.)

हर टैबलेट (ऐंड्राइड) या लैपटाप पर औफ़लाइन हिंदी-इंग्लिश कोश-थिसारस भी मिलना चाहिए, क्योंकि इंटरनैट कनेक्शन हर वक़्त औन रखना छात्रों की जेब से परे होगा.

हिंदी और इंग्लिश देश की राजभाषाएँ हैं. दोनों की अच्छी जानकारी के सारे संसाधन छात्रों के हाथोँ में होने ही चाहिएँ. इंग्लिश के प्रति अपना पुराना पराधीनता वाला संकुचित दृष्टिकोण हम अब अपनाए नहीं रह सकते. तब वह ग़ुलामी का प्रतीक थी. अब सबसे अधिक प्रचलित विश्व भाषा और हमारे लिए ज्ञानविज्ञान की कुंजी और दुनिया से संपर्क की साधन है. हमारे युवाओँ को इंग्लिश-सक्षम होना ही होगा. उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लायक़ बनाना हमारा कर्तव्य और दायित्व दोनों हैं. मुझे इसमें हिंदी-विरोध या इंग्लिशपरस्ती नहीं, देश की क्षमता का विकास नज़र आता है.

•••

(दैनिक जागरण के पुनर्नवा में छपे अरविंद कुमार के लेख का परिवर्धित और परिष्कृत रूप)

--

अरविंद कुमार

प्रधान संपादक, अरविंद लैक्सिकन - इंटरनैट पर हिंदी इंग्लिश महाथिसारस

सी-18 चंद्र नगर, गाज़ियाबाद 201 011

 

E-mail:

samantarkosh@gmail.com

Website:

http://arvindlexicon.com

COMMENTS

BLOGGER: 5
  1. धीरे धीरे हिन्दी को आगे ले आयेगी डिजटली टोली।

    जवाब देंहटाएं
  2. रोचक और ज्ञानवर्धक लेख।
    धन्यवाद
    जी विश्वनाथ

    जवाब देंहटाएं
  3. गजब की जानकारी जिसका लाभ अभी ले रहा हूँ . क्यों कहूँ धन्यवाद् क्रम टूट जायेगा ,डर लगता है

    जवाब देंहटाएं
  4. http://vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/blog-post_18.html

    जवाब देंहटाएं
  5. धनंजय5:45 am

    हिंदीसेवियों की निःस्वार्थ सेवा के चलते ही आज हम कंप्यूटर पर हिंदी का प्रयोग कर पा रहे हैं। इनकी बढ़ती संख्या को देखते हुए लगता है कि हिंदी का स्वर्णिम युग अब बहुत दूर नहीं है।

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क्या हिंदी कंप्यूटर-फ़्रैंडली है? क्या कंप्यूटर हिंदी-फ़्रैंडली है? और यह भी - क्या हम हिंदी-फ़्रैंडली हैं?
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